मां… – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

छोटा सा शहर जो गांव की संस्कृति और आत्मा को जिंदा रखा था वहीं जन्म हुआ था शांभवी का.. दादा दादी चाचा चाची सब एक हीं घर में एक साथ रहते थे.. पिता मां भगवती के उपासक थे .. पहली संतान जब बेटी हुई तो नाम रखा शांभवी! बेहद शांत सहनशील और ठंडे स्वभाव की शांभवी पूरे परिवार के स्नेह प्यार दुलार के साथ पलने लगी.. उम्र के साथ रूप निखरने लगा.. पर स्वभाव वैसा हीं रह गया.. आजी कहती हमर बुचिया के राजकुमार बियाहे खातिर हमरा दुवारी पर आ के निहोरा करी.. बहुत नाज था आजी बाबा को अपनी बूचिया पर..

सेल टैक्स कमिश्नर प्रभाकर आनंद भगवती जागरण में दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए आमंत्रित थे शांभवी का पूरा परिवार पूरी आस्था से जागरण की तैयारी में लगा था.. शांभवी के पिता तो अपनी नौकरी से एक सप्ताह की छुट्टी ले कर  लगे हुए थे…

बीसवें साल में शांभवी प्रवेश कर चुकी थी.. जागरण में लाल रंग का चुन्दरी प्रिंट का शूट पहने सर को दुपट्टे से ढके हुए शांभवी का रूप अद्भुत रूप से निखर आया था.. आजी काजर लगा दिया था..

कमिश्नर साहब की नजर पिता की मदद करती हुई शांभवी पर अचानक हीं चली गई अपलक निहारते रहें. 

अगले दिन सचमुच अपने बेटे के लिए शांभवी का हाथ मांगने आ गए…

शांभवी की शादी पियूष के साथ संपन्न हो गई.. मध्यम वर्गीय परिवार इतना अच्छा घर वर पाकर निहाल हो गया..

पियूष एरीगेशन विभाग में इंजीनियर था इकलौता बेटा अथाह धन संपत्ति बाप का रुतबा …

पियूष का तबादला दूसरे शहर में हो गया शादी के महीने दिन बाद हीं..

अब शांभवी और पियूष की गृहस्थी शुरू हो गई.. पियूष बहुत नकचढ़ा और गुस्सैल प्रवृत्ति का पुरुष था.. पीने की लत भी थी… पीने के बाद उसका व्यवहार बहुत बुरा हो जाता था शांभवी के प्रति.. पिता ने इसी लालच में शादी की थी पत्नी की सुंदरता में खोकर पीना छोड़ देगा.. पर ऐसा नहीं हुआ.. होठों के पास जमे हुए खून के धब्बे सूजी आंखे अक्सर शांभवी के बिना बोले रात की दास्तां बयां किया करते थे..

समय बीतने के साथ शांभवी को दो जुड़वां बच्चे हुए.. सन्नी और सुहानी.. शांभवी को आशा थी बच्चों के आने के बाद शायद पियूष सुधर जाए पर ये उसका भ्रम था…

ससुर भी बूढ़े हो चले थे अपने को शांभवी का गुनहगार मानते थे..

बच्चे बड़े हो रहे थे.. बचपन से मां के उपर हो रहे अत्याचार को देख रहे थे.. पिता के प्रति आक्रोश पल रहा था पर..

निम्न मध्यम वर्गीय परिवार तथा मध्यम वर्गीय परिवार बेटी के संपन्न परिवार में रिश्ते हो जाने को हीं बेटी के सुखी भविष्य का आधार मानते थे.. और पैसे तथा रसूख वाले उनकी इस सोच और आर्थिक स्थिति का खूब फायदा उठाते थे.. अब भी उठा रहें हैं पर अब बहुत जागरूकता आ गई है लड़कियों की पढ़ाई और जॉब के कारण..

सन्नी और सुहानी अपनी मां को पिता के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कहते पर शांभवी बच्चों का भविष्य खराब नही करना चाहती थी.. क्या करती अपने साथ साथ बच्चों के लिए भी पति के पैसों पर निर्भर थी.. समाज में इज्जत प्रतिष्ठा सब कुछ पति से हीं जुड़ा था.. लोग कहते हैं बहुत कानून बन गए हैं पर पत्नी अगर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराया अगर पति को सजा हो गई उसके बाद उसकी बहुत बड़ी कीमत हाउस वाइफ को चुकाना पड़ता है.. जो पैरों पर खड़ी है उनके लिए  भी ये समाज मुश्किलें खड़ा कर देता है.. उनके पीठ पीछे कहीं सार्वजनिक समारोह में खुसुर फुसुर शुरू हो जाता है..

 

सन्नी गुगल में इंजीनियर बन गया अब वो सुहानी की पढ़ाई और मां की जिम्मेवारी उठाने के काबिल हो गया था.. मेल आते हीं मां और बहन को पकड़ के खुशी से रोने लगा.. मां अब आपके दुःख के दिन समाप्त हो गए..

नवरात्र शुरू हो चुका था ..

रात दस बजे हमेशा की तरह पियूष पिए हुए घर में प्रवेश किया..

पियूष के लिए शांभवी उसके शरीर की जरूरत को पूरी करने का जरिया उसके अहम की तुष्टि का साधन मात्र थी.. बदले में खाना कपड़ा घर और समाज में इंजीनियर की पत्नी कमिश्नर की बहु होने का खिताब मिला था.. शांभवी की आत्मा कराह उठती लगता लिजलिजे कीड़े उसके शरीर पर रेंग रहे है .. असहनीय पीड़ा से इतने साल से वह हर रात गुजर रही थी.. जिससे प्रेम ना हो उसका स्पर्श बलात्कार से कम नहीं होता.. पच्चीस साल उफ्फ…

खाना लेकर पियूष के पास शांभवी गई ये क्या है घास फूस? पियूष की भृकुटी तन गई.. नवरात्र में यही खाना बनेगा आत्मविश्वास के साथ शांभवी बोली  सुनते हीं पियूष थाली चला के शांभवी को मारना चाहा.. ये क्या! शांभवी ने हाथ पकड़ लिया नशे में धुत पियूष कुछ पल के लिए अवाक रह गया फिर जैसे हीं शांभवी की चोटी पकड़नी चाही जोरदार थप्पड़  जड़ दिया शांभवी ने.. दोनो बच्चे दौड़े आए.. शांभवी ने कहा सन्नी पुलिस को फोन करो . शांभवी और मां दुर्गा का चेहरा जैसे एकाकार हो गया हो.. शांत शीतल गमखोर शांभवी आज अपने रौद्र रुप में आ गई थी.. पुलिस ले गई पियूष को.. सुबह अखबार की सुर्खियों में मुहल्ले में रिश्तेदारों में ये चर्चा का विषय होगा पर मुझे परवा नहीं मेरे दो ससक्कत बाजू मेरे बच्चे मेरे साथ है मुझे कोई परवाह नहीं किसी की… 

❤️🙏✍️

Veena singh…

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