क्या बात है देख रही हूं तेवर चढ़ाए आए हो आप दफ्तर से आज…सब ठीक तो है? किसी से कहा सुनी तो नहीं हो गई?
नहीं!
फिर??
फिर क्या… जिंदगी में तनाव का कारण क्या सिर्फ दफ्तर ही होता है और बातें नहीं हो सकती क्या?
वही तो मैं जानना चाहती हूं कि क्या बात है जो आप इतने परेशान हैं..समस्या बताएंगे तभी तो कोई हल निकलेगा ना?
इस समस्या का कोई हल नहीं है कावेरी…इस समस्या का नसीब ही है सिर्फ और सिर्फ तनाव और कुछ भी नहीं??
कहीं आप फिर दिव्यांक की बात तो नहीं कर रहे?
तुम्हारा लाडला और कोई बात आने देता है दिमाग में….आज श्रीकांत मिठाई का डिब्बा लेकर आया था उसकी बेटी का सेलेक्शन हो गया है नीट में,धीरेन अपने बेटे का एडमिशन करवाने कानपुर गया है…
तो जाने दीजिए ना…जिसकी क़िस्मत में जो होता है मिलता है और अभी हमारा बच्चा ट्वेल्थ में ही तो है…अगले साल से देगा ना कंपीटिशन,तो अभी से आप क्यों परेशान हैं?
कावेरी… कंपीटिशन है वो कोई हलवा नहीं…कि लाइन में लगने वाले हर किसी को मिल ही जाएगा.. कंपीटिशन के लिए पढ़ना पड़ता है…जैसे दिव्यांक पढ़ता है वैसे नहीं कि खेलकूद,घुमना फिरना और हर चीज के साथ पढ़ाई.. कंपीटिशन की पढ़ाई मतलब सिर्फ पढ़ाई समझी तुम और तुम कहां से समझोगी ये सारी बातें…पर ये जान लो दिव्यांक जिस तरह पढ़ता है ना उससे वो अगले साल क्या दस साल तक कोई कंपीटिशन पास नहीं कर सकता..
शुभ शुभ बोलो जी….मेरा बच्चा पढ़ने में अच्छा है सब कर लेगा…और अगले साल ही करके दिखाएगा देखना आप।
विजेंद्र ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा–इफ विशेज वेअर हाॅर्सेज,बेगर्स वुड राइड….ख्याली घोड़े पर मत उड़ो कावेरी..गिरोगी तो फिर कभी संभल नहीं पाओगी…।
जरूर आज इनके भाई के घर से फोन आया होगा–किचन में आटा गूंथ रही कावेरी मन ही मन सोच रही थी क्योंकि ऐसा उखड़ा मूड विजेंद्र का तभी होता है,जब उन्हें भाई का डोज मिला होता है।
पहले विजेंद्र भी इतने चिड़चिड़े नहीं थे और उसकी इज्जत करते थे पर सबने इतना उनके दिमाग में ये भरा कि “कावेरी शिक्षित नहीं है इसलिए दोनों बच्चे औसत है “उन्हें भी ऐसा लगने लगा कि बच्चे की सफलता के लिए मां का उच्च शिक्षित होना पहली शर्त है…और अगर यही सच होता तो पहले के बच्चे डाॅक्टर, इंजीनियर और ऊंचे पद पर कैसे जाते थे जिनकी मांँ अंगूठा लगाया करतीं थीं?-कावेरी खुद को समझाती।
सास ससुर कुछ दिन के लिए विजेंद्र के छोटे भाई के घर गए हुए थे…विजेंद्र के भाई सत्येंद्र के दोनों बच्चे पढ़ने में अत्यधिक प्रतिभाशाली थे…जिसका घमंड और धौंस जब तब दोनों पति पत्नी सत्येंद्र और मुक्ति दिखाते रहते थे जबकि विजेंद्र का बेटा दिव्यांक पढ़ने में औसत और बेटी औसत से थोड़ी ज्यादा थी।
और सब तो ठीक था पर जब देवर सत्येंद्र बच्चों के औसत होने की जिम्मेदारी कावेरी पर डालता तो कावेरी का मन सुलग उठता…वो अक्सर कहता—
बच्चे के पढ़ने में अच्छा होने के लिए मांँ का पढ़ा लिखा होना बहुत जरूरी है…मुक्ति के कारण ही तो मैं दोनों बच्चों से निश्चिंत रहता हूं।
दरअसल कावेरी बहुत ज्यादा पढ लिख नहीं पाई थी,पिता के ना होने के कारण चाचा ने उसकी बड़ी बहन और उसकी शादी अठारह होते होते ही कर दी थी..फिर कहां पढ़ाई लिखाई? वहीं देवरानी मुक्ति पढ़ी लिखी थी तो उसका घमंड दोनों देवर देवरानी को था, हालांकि कावेरी को उनकी बातों या घमंड से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था..पर… विजेंद्र बहुत परेशान हो जाता कि भाई के बच्चे इतना अच्छा कर रहे हैं तो उसके क्यों नहीं,उसके इस तनाव में सास ससुर भी आग में घी डालने का काम करते देवर देवरानी के सुर में सुर मिलाकर…
“मांँ का शिक्षित रहना जरुरी है,तभी बच्चे जेनेटिक रूप से भी तेज होते हैं और मांँ के पढ़े लिखे संरक्षण से भी उनकी क्षमता बढ़ती है “
कावेरी पति को समझाती कि अकादमिक पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले तो शुरू के दस बच्चे ही होते हैं ना,बाद के सारे बच्चे क्या जीवन में असफल ही रह जाते हैं..भले उनका दिव्यांक कक्षा के शीर्ष दस बच्चों में नहीं पर इसका ये मतलब तो नहीं कि वो कंपीटिशन नहीं निकाल पाएगा…?
पर विजेंद्र के तो दिमाग में ही उसकी पत्नी की छवि परिवार वालों ने खराब कर रखी थी तो भला कहांँ उसे समझ में आनी थी कावेरी की बात!
ख़ैर….कावेरी की बड़ी बहन का बेटा दो साल से दिल्ली में रहकर सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था,वो अक्सर एक दो दिन की छुट्टी या पर्व त्यौहार में मासी के पास आ जाया करता था, क्योंकि उसका घर काफी दूर था …कावेरी के जीजाजी भी बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं थे छोटी सी एक दुकान चलाते थे और उससे अपने परिवार की परवरिश करते थे,बेटी की शादी हो चुकी थी बेटा बहुत अच्छा तो नहीं था पर बेटे के सपने का मन रखने के लिए दोनों उसे दिल्ली में रखकर तैयारी करवा रहे थे।
विजेंद्र और उसके परिवार के लिए ये भी माखौल का विषय ही था…
भाभी…अपनी बहन से बोलो अभी बहुत सारी रिक्तियां आई हैं बैंक असिस्टेंट की…उसकी तैयारी करवाएंँ बेटे को… ,ख्वाब भी वही देखने चाहिए जो पूरे हो पाएं।
देवरजी…ख्वाब और सोच को बड़ा नहीं करेंगे तो बड़ा कैसे मिलेगा…और वो बहन और उसके परिवार का मामला है मैं क्यों पड़ूंँ उसमें…अपने घर में जब मेरी नहीं चलती तो??
संयोग से जिस दिन सत्येंद्र माता पिता को वापस छोड़ने आया था उसी दिन कावेरी की बहन का लड़का अरमान भी आया हुआ था।
क्या भई…अब ये सब छोड़ो कमाने धमाने की कोशिश करो… मैं हमेशा अपनी क्लास में फर्स्ट आता था.. सब लोग कहते थे मेरे लिकुछ भी मुश्किल नहीं पर तीन साल मेहनत करने के बाद भी जब सिविल सेवा में मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ फिर मुझे बैंक अधिकारी बनकर संतोष करना पड़ा…. इसलिए कह रहा हूं ये सब छोड़ो कहीं उम्र ना निकल जाए ।अरे इन सब में चयनित होने वालों की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी होती है…यूंँ ही कोई नहीं बन जाता
–सत्येंद्र ने अरमान को देखते ही भाषण पिलाना शुरू कर दिया।
अरमान सर झुका कर सारी बातें सुन रहा था…तभी उसका फोन बजा।
तू मजाक तो नहीं कर रहा! ठीक है चल भेज मेरे नंबर पर लिस्ट—अरमान के स्वर गले में ही अटक रहे थे..।
मौसी..वो निखिल का फ़ोन था कह रहा था मेरा नाम फाइनल लिस्ट में आ गया है…मांँ को फोन करने जा रहा हूं जरा वो फाइनल लिस्ट तो भेज दें…कल भी मां ने फोन कर मुझे कितना समझाया था और मुझे खुद पर भरोसा रखने की सलाह दी थी।
वाह अरमान वाह…बेटे तुमने तो कमाल कर दिया..।
सत्येंद्र सहित परिवार का हर इंसान आश्चर्यचकित था..कि ये कैसे हो गया.. अकादमिक जीवन में शीर्ष पर ना रहने वाला,कम पढ़े लिखे माता पिता का बच्चा…देश की सर्वोच्च प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में कैसे सफल हो गया?
मांँ का शिक्षित नहीं संस्कारी और समझदार होना ज्यादा जरूरी है देवर जी,जो पढ़ाकर ना सही मानसिक तौर पर अपने बच्चों के साथ खड़ी होकर उसे कभी टूटने ना दें,उसका हौसला बढ़ाती रहें,पढ़ता तो आखिरकार बच्चा ही है। —कहने का मन किया कावेरी का चिल्लाकर देवर को और पूरे परिवार को,पर उनके चेहरों से ही लग रहा था कि उन्हें समय ने ही जवाब दे दिया है।
शायद कल से कावेरी को “शिक्षित नहीं है ना” के ताने मिलने बंद हो जाएं।
मीनू झा