moral stories in hindi : आज खुशी का में किसी भी काम में नहीं लग रहा था कारण था कल उसकी मां के गिरने की खबर का मिलना। रोज़ के काम वो चुपचाप किया जा रही थी पति बच्चों को उठाना,पूजा पाठ , उन सबका नाश्ता,टिफिन वगैरह तैयार कर के बच्चे स्कूल और पतिदेव ऑफिस चले गए।
वैसे तो खुशी का पति राहुल उसकी और बच्चों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखता था और खुशी को भी उस से ऐसी कोई शिकायत नहीं थी मगर राहुल उसे कभी भी मां के घर नहीं कुछ दिन के लिए भी नहीं जाने देता था ,हमेशा ये कह के बात ख़तम हो जाती कि फिर कभी चली जाना , यहां का काम कैसे चलेगा या मै ले चलूंगा और साथ ही लौट आना।
ऐसा करते करते शादी को 10 साल बीत चुके थे और खुशी ने भी समझौता कर लिया था क्यूंकि उस की मां भी उसे यही समझाती थी कि वही तुम्हारा घर है और मेरे मोह में अपने घर का माहौल कभी खराब मत करना बेटी।
मगर खुशी को ज़्यादा बुरा तब लगता जब हर गर्मी की छुट्टी में राहुल उस और बच्चों को गांव में अपने माता पिता के पास छोड़ आता था ।खुशी हर बार ये पूछना चाहती थी कि अब तुमको दिक्कत नहीं होती ,महीने भर कैसे मैनेज करते हो घर ऑफिस सब। मगर आपस में कलह कलेश न हो इसलिए चुप ही रहती थी।
मगर आज उस से शांत नहीं रहा जा रहा था क्यूंकि मां घर में अकेली थी और खाना बनाते वक़्त गिर गई थी। वो तो भला हो पड़ोस की चाची का, जो वो उसी वक़्त मिलने के लिए आ गई थी तो मां को गिरा देख कर उन्हें उठाया । फिर खुशी को फोन किया क्योंकि उसका छोटा भाई रवि पढ़ाई के लिए बंगलौर में था। खुशी ने राहुल को बताया तो उस ने कोई खास तवज्जो नहीं दी।
रात में फिर खुशी ने कहा तो राहुल चिढ़ के बोला,”अरे यार, शादी के बाद भी तुमको हर समय अपने मायके की ही लगी रहती है। अब यहां के बारे में सोचो, मै और बच्चे कैसे मैनेज करेंगे सब। ऐसा करो चाची से बोल के किसी हेल्पर को लगवा दो, बाद में किसी दिन चलेंगे और तुम देख लेना अपनी मां को।
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” ये कह के वो मुंह घुमा के सो गया मगर खुशी की आंखों से नींद उड़ी हुई थी। आज उसका दिल बुरी तरह से टूट चुका था। सुबह से वो उदास सी अपने काम में लगी है।सबको स्कूल ,ऑफिस भेज कर उस ने मां को फोन किया। हाल चाल लेते हुए वो रो पड़ी तो मां ने उसे ढांढस दिया और बताया कि चाची अभी उनके पास ही है और एक कामवाली को 24 घंटे के लिए रख लिया है।
वो चिंता न करें और जब फुरसत मिले तब आना। ये कह कर मां ने फोन रख दिया। कामवाली के विषय में जान कर खुशी को कुछ राहत मिली मगर आज राहुल के व्यवहार ने उसे बहुत दुख दिया था।
धीरे धीरे समय बीत गया।मां भी अब ठीक हो चुकी थी और कामवाली को हमेशा के लिए रख लिया था उन्होंने। अपना पीछे वाला कमरा उसे परिवार सहित रहने को दे दिया था ताकि रात-बिरात कोई समस्या हो तो कोई घर में हो उनकी देखभाल के लिए। अब खुशी और उसका भाई रवि निश्चिंत थे।
अब इस बात को भी काफी दिन हो चुके थे मगर खुशी के मन में ये बात चुभ चुकी थी। कुछ महीने के बाद एक दिन राहुल ऑफिस से जल्दी आ गया। आते ही खुशी से कहा कि कल सुबह ही हमलोगों को गांव जाना हैं, मां आगंन में फिसल कर गिर गई है।मैंने कल की छुट्टी ले ली है ,तुमको वहां छोड़ कर वापस आ जाऊंगा। मां के ठीक होने तक तुम वहां रहना फिर ले आऊंगा।
पहले तो खुशी को चिंता हुई मगर फिर उस ने कहा मै नहीं जा पाऊंगी।
राहुल गुस्से में बोला, “क्यों,क्यों नहीं जा सकती?”
खुशी ने कहा ,”यहां आपको और बच्चो को दिक्कत होगी मेरे बिना,फिर बच्चों की परीक्षा भी आने वाली है।”
राहुल ने कहा,”वो सब मैं देख लूंगा।तुम यहां की चिंता मत करो। मैं खाने के लिए टिफिन सर्विस लगवा लूंगा।तुम तो बस जाने की तैयारी करो। वहां मां को कितनी दिक्कत हो रही होगी, उनको अभी हमारी ज़रूरत है,अकेले कैसे सम्हाल पाएंगी।”
खुशी ने कहा,”वाह राहुल,ठीक वैसे ही सम्हाल लेंगी वो भी जैसे अभी कुछ दिन पहले मेरी मां ने सम्हाला था सबकुछ। सासु मां के पास तो फिर भी पापा जी है न, ज़्यादा दिक्कत हो तो किसी हेल्पर को रख ले, मगर मैं नहीं जा पाऊंगी अपने बच्चों को छोड़ कर,” ये कह कर खुशी वहां से चली गई। राहुल बहुत गुस्से में था तो उस ने भी कोई बात नही की खुशी से रात भर मगर ये सोचता रहा कि अब कैसे क्या करूंगा?
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इसी कशमकश में रात बीत गई। जब सुबह राहुल की नींद खुली तो खुशी कमरे में नहीं थी। उस ने बाहर जाकर देखा तो खुशी अपना सारा सामान पैक कर के बैठी थी।
राहुल ने पूछा,”अब ये क्या नाटक है तुम्हारा,सुबह सुबह कहां जा रही हो?”
खुशी ने जवाब दिया,”गांव चलना है कि नहीं।” राहुल ने कहा,”मगर तुमने तो मना किया था न तो अब क्या।”
खुशी ने कहा, “वो सब सिर्फ तुमको अहसास दिलाने के लिए था कि मां तो मां ही होती है न चाहे मेरी हो या तुम्हारी।अगर शादी के बाद मैंने सासु मां को अपनी मां जितना मां सम्मान दिया ,हमेशा सबका ख्याल रखा तो तुम ऐसा क्यों नहीं कर पाए राहुल? आखिर वो भी तो मां है न बस फर्क इतना है कि वो मेरी यानी इस घर की बहू की मां है तो क्या उनको सम्मान नहीं मिलना चाहिए या ज़रूरत पड़ने पर हमको उनका साथ नहीं देना चाहिए।
ये तुम सोचो कि तुम्हारी सोच कहां तक सही है। रही बात मेरी तो मैं अपने फर्ज अच्छी तरह समझती हूं। मैंने कभी आपकी मां को मेरी मां से अलग नहीं समझा है,हमेशा दोनों को एक आंख से ही देखा और उतना ही स्नेह और सम्मान दिया है।मां जी को मेरी ज़रूरत है अभी,इसलिए तुम मुझे गांव की बस में बिठा दो, मै चली जाऊंगी, और हां खाने वाली से बात कर ली है मैंने, वो सुबह से आकर शाम तक रहेगी।”
ये कह कर खुशी शांत हो गई और राहुल सोच में पड़ गया। उस ने खुशी से माफी मांगी और वादा किया कि आज के बाद वो ऐसा कभी नहीं करेगा।
दोस्तों,ये एक काल्पनिक कहानी है मगर लगभग कई घरों में ऐसा देखने को मिलता है। राहुल तो समझ गया मगर बहुत से लोग फिर भी नहीं समझते। मां तो मां ही होती है चाहे किसी की भी हो,अतः हमें एक आंख से ही हर रिश्ते को देखना चाहिए।
स्वरचित मौलिक रचना
शफ़क रश्मि
लखनऊ उत्तर प्रदेश