शादी की शॉपिंग हो गई दीदी….. वर्तिका (देवरानी) ने अहिल्या (जेठानी) से पूछा…..! पहले तो ये बताइए आपने अपने लिए कैसी साड़ी ली है….?? लड़के की शादी है इस बार तो हमें भी आपके तरफ से महंगी और सुंदर साड़ी चाहिए …..बहू के घर से आएगी… वो अलग…. पूरे हक और अपनेपन से वर्तिका ने अहिल्या से शादी के लिए उत्सुकता दिखाते हुए कहा…..।
हाँ हाँ वर्तिका…. शॉपिंग तो शुरू कर दी है …पर अभी अपने पक्ष के लिए नहीं…… बहू के लिए और उनके घर वालों के लिए ही खरीदारी हुई है…… अभी इधर के लिए शॉपिंग करना बाकी है…… और हाँ देवरानी जी…. मैं तुम्हारी पसंद का पूरा ख्याल रखूंगी ……देवरानी की बातों का सम्मान करते हुए अहिल्या ने कहा….।
दीदी वो तो ठीक है…. बहू के लिए तो चढ़ावे की साड़ी और कपड़े जाते ही हैं …..पर बहू के परिवार में सब के लिए कपड़े……?? मैं समझी नहीं दीदी…… एक भाई के लिए लावा परछन और एक बुआ या दीदी के लिए सिंदुर बहूराई ….बस यही तो रिवाज है ना दीदी …..लड़के के घर वालों की तरफ से कपड़े थोड़ी ना जाते हैं ….वैसे भी बेटी के ससुराल का कहाँ खाते …पहनते हैं….। वर्तिका ने अहिल्या के बातों से उपजे असमंजस की स्थिति को साफ करना चाहा….।
देखो देवरानी जी …..जब ये सब रीति-रिवाज बने थे तब लड़के लड़कियों में काफी भेदभाव होता था… उस जमाने में लड़कियां सिर्फ घर संभालती थी…. आज लड़का.. लड़की.. दोनों बराबर है ….लड़की भी लड़कों की तरह आत्मनिर्भर है …….! फिर बहू के घर का खा सकते हैं पहन सकते हैं ….तो बेटी के घर का क्यों नहीं …..?? उसे भी तो पढ़ा लिखा कर बेटे की भांति ही योग्य बनाया है तो फिर….??
और वर्तिका देखो …. मैंने परंपरा… संस्कारों रीति रिवाजों…में कोई फेरबदल नहीं किया किया है…… उपहार लेने देने में कैसा बंधन……?? ये तो मेरा एक शौक है…. मुझे अच्छा लगेगा ….यदि वो मेरे दिए हुए वस्तुओं का उपयोग करेंगे……. बस इतनी सी तो बात है……अहिल्या ने वर्तिका को अपनी भावनाओं से अवगत कराना चाहा….।
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दीदी ये सब बड़ी-बड़ी बातें ना ….जब जेब में पैसे हो तभी अच्छे लगते हैं …..आपके पास इतना है तो आप शौक से ये …सब कुछ भी कर सकती हैं…..वरना लड़के की शादी में ये सब अनावश्यक खर्च कौन करता है….. वर्तिका की असंतुष्टि उसकी बातों से साफ झलक रही थी…..।
और एक बात दीदी.. ये सब कुछ भी नए चाल रिवाज चलाने की आवश्यकता थी ही नहीं…. जो सदियों से चला आ रहा है उसे चलने देना चाहिए…… जब लड़की वाले कुछ बोलें… तो साफ कह देना चाहिए …हमारे में ऐसा रिवाज नहीं है ……. दीदी…अब आपके बेटे की शादी है तो मैं कैसे कुछ बोल सकती हूं ….जैसी आपकी मर्जी…. !
अरे वर्तिका कैसी बातें कर रही हो….. ?? ये आपका बेटा …मेरा बेटा ….क्या लगा रखा है…?? बच्चे हैं यार ….तेरे भी और मेरे भी…… और फिर बहू भी तो हमारी आ रही है ना…… तो फिर जब बहू हमारी ……तो उसके परिवार वाले भी तो हमारे ही हुए ना…….
खैर छोड़…. तूने अपने मन की बात अधिकार पूर्वक कहीं …..मुझे अच्छा लगा………
पर एक बार दिल से सोचना जरूर….. क्या मेरी सोच गलत है…. अहिल्या ने बात को विराम देना चाहा….।
दीदी मैंने तो सोचा है…. मैं अपने बेटे की शादी में लड़की वालों से बोल दूंगी….. भाई मेरा लड़का है बाकी सब कुछ आपको करना है …..जब कैश में दहेज नहीं लूंगी… . तो कपड़े… गहने.. मेहमानों का स्वागत …सबकुछ लड़की वालों की तरफ से होगा …..ना मैं कुछ लूंगी ना कुछ दूंगी…. हंसते हुए वर्तिका ने भी अपनी सोच रख डाली…. ।
ठीक है देवरानी जी …जब समय आएगा तब देखा जाएगा फिलहाल तो जो पहले है उसे निपटा लिया जाए…
अहिल्या ने बड़े उत्साह से बेटे की शादी की….और अपने सामर्थ्य अनुसार लड़की के परिवार वालों को भी सम्मान दिया…. । कई जगहों पर खुद आगे बढ़कर लड़की पक्ष के कार्य में सहयोग किया …।
शानदार शादी के बाद रिसेप्शन में बहू के मायके से भी सभी लोग आए…..
अरे दीदी समधन जी वही साड़ी पहनी है ना …जो हमारे यहां से गया था ….कितनी अच्छी लग रही है ….महंगी है ना….. वर्तिका ने समधन जी को देखते ही जेठानी के कान में फुसफुसाया ….!
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हाँ वर्तिका ये वही साड़ी है जो मैंने उन्हें दिया है …और मुझे खुशी है उन्होंने इसे पहनकर मेरा मान बढ़ाया…. ऐसा नहीं है कि उनके पास साड़ी नहीं है… उन्होंने मेरी भावनाओं को समझा और सम्मान किया…. इसकी मुझे बहुत खुशी है….।
” मैंने तो कुछ रीति रिवाजों को भावनाओं का जामा पहनाकर सकारात्मकता लाने की कोशिश भर की थी ” वर्तिका………. किसी भी परिवार …..चाहे बेटा वाले हो या बेटी वाले …. अभिभावक पर बोझ नहीं डालना चाहिए
औरत हूँ ना तो औरत की भावना को कैसे नहीं समझूंगी….. मैंने तो सिर्फ लड़के लड़की को बराबरी का दर्जा देने के लिए ही एक पहल की ……!
” माँ तो माँ ही होती है …चाहे वो बेटा की हो या बेटी की “
फिर खुश होने का हक दोनों को है…… भावनाएं… इच्छा.. अपेक्षा …खुशी तो सभी में होती है ना ….इसमें लड़के और लड़की की माँ में अंतर क्यों….?? अहिल्या ने
अपनी सुलझी हुई सोच वर्तिका को स्पष्ट बता दी….।
दीदी एक बात बोलूं ….. आज ना पहली बार मुझे अपनी सोच अपने विचारों पर शर्मिंदा महसूस हो रही है ” धिक्कार ” है ऐसी सोच पर जो स्वार्थ से भरी पड़ी हो ….!
सच में समधन जी को हमारी साड़ी में देखकर ….मुझे भी बहुत अच्छा लगा ….आपने तो मेरी सोच ही बदल दी….. कभी कभी खुशी सिर्फ लेने से नहीं….. देने में भी होती है…… सच में दीदी …जैसे…
” खुशी तो खुशी ही होती है “….वैसे ही…..” माँ तो माँ ही होती है “…. बेटा या बेटी की नहीं…..!
देवरानी जी के द्वारा अपनी बातों का भरपूर समर्थन पाकर अहिल्या ने भावुक होते हुए कहा…. तुम्हारे विचारों द्वारा एक शुभ संदेश पाकर मैं धन्य हो गई वर्तिका ….मैंने अपने विचारों और भावनाओं को तुम तक पहुंचाने में सफलता पाई है….
चलो अब देखें कहीं नए रिश्तेदारों की आवभगत में कोई कमी ना रह जाए …..और देवरानी जेठानी दोनों मुस्कुराती हुई चल पड़ी …!!
साप्ताहिक विषय
#धिक्कार
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
संध्या त्रिपाठी