Moral stories in hindi : क्या कहा!! मां जी सीढ़ियों से गिर गई, और उनके सिर में भारी चोट लगी है, ये सुनते ही निशू रोने लगी, उसके पति आदित्य ने फोन संभाला,” हां राजेश ज्यादा गहरी चोट तो नहीं है? उसने निशू के भाई से पूछा “।
“जीजू चोट तो गहरी है, डॉक्टर कह रहे थे कि बचने की कोई उम्मीद नहीं है, आप जीजी को लेकर मिलने आ जाइयें, क्या पता फिर मिलना हो ता नहीं हो”। राजेश की बात सुनकर आदित्य ने निशू को कह दिया कि, मां जी के चोट लगी है, घबराने की कोई बात नहीं है, पर वो तुमसे मिलना चाह रही है, हमें अभी निकलना होगा, ये सुनकर निशू तुरंत निकलने लगी तो आदित्य ने टोका,” निशू दो-चार जोड़ी कपड़े रख लो, हो सकता है, तुम्हें मम्मी जी वहां रोक ले, मै मना नहीं करूंगा, तुम उनकी सेवा कर लेना।
निशू ने एक कपड़े का बैग जमा लिया और सारी जरूरी चीजें रख ली, अपनी सासू मां का आशीर्वाद लेकर बच्चों को उन्हें सौंपकर वो चली गई, रास्ते भर मां के लिए प्रार्थना करती रही, मां बस जल्दी से ठीक हो जाएं।
वो दौड़कर अस्तपताल के अंदर पहुंची जैसे सारे उसका ही इंतजार कर रहे थे, मां के पास पहुंची और उन्हें जी भर के प्यार करने लगी, पर सामने से कोई जवाब ना पाकर निशू हैरान थी, तभी धीमी सी आवाज सुनाई दी,” निशू तू आ गई” और उन्होंने आंखें मूंद ली।
एक लंबी चीख के साथ निशू रोने लगी, आदित्य को उसे संभालना मुश्किल हो गया,” मां आप मत जाओं, पापा भी चले गये, मै अकेली कैसे रहूंगी? वापस आ जाओं, और रोते-रोते निशू बेहोश हो गई, मां को खोने का गहरा सदमा लगा था और निशू उस दुख से उबर नहीं पा रही थी। राजेश और दीपेश दोनों भाईयों ने अपनी मां को अंतिम विदाई दी।
निशू को होश आया, उसने घर देखा तो फिर रोने लगी, घर के हर कोने में, घर की हर दीवार में मां बसी हुई थी, उसकी मां जानकी सीधी-सादी महिला थी, जिसके लिए अपना परिवार ही सर्वोपरि था, वो अपने परिवार की खुशियो के लिए कुछ भी कर लेती थी। सबसे पहले जानकी जी ने निशू को जन्म दिया फिर दोनों बेटों राजेश और दीपेश का जन्म हुआ, जानकी जी ने निशू की बहुत अच्छे से परवरिश की, उन्होंने कभी लड़का और लड़की में फर्क नहीं किया। निशू को भी वो ही मौके और अवसर मिले जो दोनों बेटों को दिये थे।
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” मम्मी, मै आगे शहर जाकर पढ़ाई करना चाहती हूं और वहीं के कॉलेज से बीएड भी कर लूंगी, मुझे टीचर बनकर बच्चों को पढ़ाना है, निशू के पापा का शहर भेजने का मन नहीं था, पर जानकी जी जिद पर अड़ गई, और उन्होंने उसे शहर जाकर अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी। जानकी जी ने हर कदम पर अपनी बेटी का साथ दिया और करियर बनाने में मदद की, कुछ साल बाद निशू की शादी आदित्य से तय हो गई, अपनी बेटी का घर बसता हुआ देखकर उन्हें खुशी हो रही थी पर उससे दूर जाने की कल्पना से वो सिहर उठती थी।
निशू की शादी की वो धूमधाम से तैयारी कर रही थी पर फिर भी उनके मन से अपनी बेटी से दूर होने का मलाल था।
“मां , अब वो जमाने गये, जब बेटियां मायके से दूर होने के गम में रोती रहती है, फिर आजकल तो इतनी सुविधाएं है, फोन है, वीडियो कॉल है, हम दूर नहीं होंगे, जब चाहें बात कर लेंगे, लेकिन जानकी जी निशू को कैसे समझाती कि फोन पर बच्चे चाहें कितनी ही बात क्यों ना कर लें, पर मां को तो बच्चे को अपनी गोद में पाकर ही चैन मिलता है, दूर से वो अपने बच्चे के सिर पर हाथ थोडी फेर सकती है?
निशू ससुराल में आ गई, फिर पगफेरे की रस्म के लिए मायके गई, वहां से आते वक्त वो बहुत रोई, क्योंकि अब क्या पता मायके कब आना होगा? वो मायके छोड़ते वक्त तो मां को समझा रही थी, पर अब उसे अपनी मां की बहुत याद आ रही थी, पन्द्रह दिन निकले थे कि उसने आदित्य को मायके जाने की इच्छा जताई , तो सासू मां ने बोला, “अभी मायके क्यूं? कोई त्योहार भी नहीं है, फिर तुम्हारी मां ने भी फोन नहीं किया, फिर हम कैसे भेज दें?
उसने अपनी मायके में फोन लगाया और अपनी आने की इच्छा बताई, जानकी जी ने दो दिन बाद उसकी सास को फोन किया कि मै निशू के भाईयों को लेने के लिए भेज रही हूं, आप उसे मायके भिजवा दीजिए।
तुरंत फोन करती तो निशू को सुनने को मिलता कि जल्दी बुलाने के लिए अपनी मां को कहकर फोन करवा दिया।
राजेश और दीपेश दोनों लेने आयें तो जानकी जी ने साथ में ढ़ेर सारा सामान भिजवा दिया,निशू मायके आई तो मां ने गले से लगा दिया, वो हर घड़ी उसका ध्यान रखने लगी, निशू को ये पसंद है तो ये बना दूं, उसके पापा को भी बाजार भेजती रहती थी, ” निशू के लिए शर्मा हलवाई से गरमागरम कचौरियां और जलेबियां ले आना उसे बहुत पसंद है।
बाजार से नारियल और सूखे मेवे ले आना, निशू को नारियल की बर्फी बहुत पसंद है, निशू के लिए चमन रस वाले से पाइनएपल का रस ले आना, उसे रस पीने की इच्छा हो रही है। जानकी जी रोज दोनों बेटों और पति को मार्केट भेजती रहती थी।
एक दिन दोनों भाई बोले,” मां आप तो दीदी के बहुत लाड़ करती हो, बेटी के अलावा आपके दो बेटे भी है, ये सुनकर वो हंसकर कहती,” हां, दो बेटे भी है, पर वो सदा मेरे पास रहने वाले है, मेरी बेटी तो चली जायेगी।
मायके से जाने के नाम पर निशू का चेहरा उतर जाता पर ससुराल तो जाना ही था। जितनी तैयारी निशू के मायके आने पर हुई थी, उतनी ही जोश से तैयारी उसके जाने के लिए हो रही थी।
“आपने, ये सब क्या बांध दिया, मै इतना सामान लेकर कैसे जाऊंगी? मेरे ससुराल में सब मिलता है, पर मां का मन कहां मानता है, हाथ से बने आलू के पापड़, मूंग दाल की बड़ियां, सूखे मेवे और गोंद से बने लड्डू, बेसन की बर्फी, नमकीन मठरियां, और साथ में साड़ियां और शगुन के लिफाफे हाथ में रख दिये, निशू मना नहीं कर सकी और जानकी जी के गले लगकर ससुराल आ गई।
निशू सर्दियां आ रही है, कुंवर साहब और तेरे लिए स्वेटर बुन रही हूं, और उन्होंने कूरियर से स्वेटर के साथ, गजक, रेवड़ी और मिठाइयां भिजवा दी।
“मां , आपको इतना सब भिजवाने की, खर्चा करने की क्या जरूरत है? मेरे पीछे दोनों भाईयों की पढ़ाई और करियर भी तो है, वो भी तो पापा को देखना है, पर जानकी जी उसे ही समझा देती कि बेटियां अपने भाग्य का लेकर जाती है।
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निशू अपने ससुराल में रमने लगी थी, एक दिन फोन आया कि उसके पापा का एक्सीडेंट हो गया है और वो अब इस दुनिया में नहीं रहे, निशू के पैरों से जमीन सरक गई, मां को संभाला, उनके गले लगकर रोई, पापा थे तो हक से सब-कुछ बोल देती थी, पापा थे तो हर ख्वाहिश बता देती थी, पापा थे तो उसे ये घर अपना सा लगता था,पर अब ऐसा लग रहा था सब कुछ खत्म हो गया।
इधर राजेश और दीपेश की भी नौकरी लग चुकी थी, अब राजेश की शादी की बात चल रही थी ताकि जानकी जी बहू आने से इस दुख से उबर सके। संगीता और राजेश की शादी हो गई और शादी का सारा काम निपटाकर वो अपने ससुराल चली गई, महीनों हो गये, अब उसे मायके की याद आने लगी। एक दिन जानकी जी ने उसे लाने के लिए दीपेश को भेजा, वो अभी छोटा था और नौकरी ढूंढ रहा था।
रास्ते में दीपेश गुस्सा कर रहा था,” दीदी, आप ही ना उनको समझाना, ये क्या पुराने जमाने जैसी बाते करती है, अब आजकल के जमाने में बहन-बेटियों को कौन लेने जाता है? खुद ही आ जायें, चली जायें तो अच्छा है,
अब आपको लाने -जाने का किराया भी लग गया और मेरा समय भी बर्बाद हो गया, इससे अच्छा तो मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू की तैयारी ही कर लेता”।
अपने छोटे भाई के मुंह से ये सब सुनकर निशू को बहुत बुरा लगा, वो मायके गई तो दहलीज पर पैर रखते ही पापा की याद आने लगी, फिर वो अन्दर पहुंची, उसे कोई नहीं दिखा, मां पूजा कर रही थी, और संगीता कमरे में थी,वो निकलकर बाहर नहीं आई, थोड़ी देर बाद मां बाहर आई और बेटी को गले से लगा लिया,” अरे! कितनी देर हो गई, इतनी गर्मी में आई है, नींबू पानी बनाकर ला देती हूं, और वो रसोई में चली गई, संगीता भाभी अभी तक भी कमरे से नहीं निकली थी।
निशू को बहुत दुख हो रहा था, कम से कम भाभी को बाहर तो आना चाहिए था, मां ही उसके स्वागत में लगी हुई थी, थोड़ी देर बाद जानकी जी ही नींबू पानी और नाश्ता लेकर आई, और बोली,” बहू अभी आराम कर रही है, तू मेरे कमरे में चल, बाद में उससे मिल लेना।
आज ना पापा थे, ना ही दोनों भाई, बस जानकी जी बेटी के स्वागत में लगी हुई थी। काफी देर बाद संगीता आई और औपचारिकता वश बात की।
“अच्छा, बता खाने में क्या बनाऊं? और जानकी जी रसोई में चली गई, निशू भी उनके साथ जाकर मदद करवाने लगी, उन्होंने उसकी पसंद का खाना बनाया और सबको आवाज लगा दी, थोड़ी देर बाद राजेश भी कमरे से आ गया तो उसे देखकर उसे हैरानी हुई,” राजेश घर पर ही था, मुझे आये दो घंटे हो गये, बाहर मिलने तक नहीं आया”?
उसके चेहरे के भाव पढ़कर जानकी जी ने समझाया,” राजेश को सिरदर्द हो रहा था, वो अंदर सो रहा था”।
पर उसे पता तो था कि उसकी दीदी आने वाली है, पर निशू ने बाहर कुछ नहीं बोला, और दो दिन रहकर वो चली गई, जानकी जी ने भी ज्यादा नहीं रोका, क्योंकि वो भी अपने बेटे बहू के आगे मजबूर थी।
अब ना पहले की तरह वो मायके जाती थी, छोटे भाई दीपेश की भी शादी हो गई, जानकी जी से मिलना होता था तो सुबह जाकर अगली सुबह वापस आ जाती, वो मना करती, पर वो कहती थी,” मां हूं जब तक बुलाऊंगी, फिर तो कोई नहीं बुलायेगा, मां से ही मायका होता है, बस ये शब्द सुनकर वो उनसे मिलने चली जाती थी, तब वो भाई-भाभी के द्वारा किये गये अपमान को भी भुल जाती थी, क्योंकि सच में मां से ही मायका होता है, एक मां ही है जो उसकी परवाह करती है, फोन करके हाल-चाल लेती है, भाई और भाभी तो कभी पूछ्ते ही नहीं है, ना ही आने को कहते हैं।
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निशू अतीत से निकलकर आ गई, अब घर की बेटी है तो उसे पन्द्रह दिनों तक वहीं रहना था, दोनों भाई और भाभियां उस समय तो रीति-रिवाज निभा रहे थे, सारे कर्म कांड जो करने थे, वो कर रहे थे, निशू भी अपना काम करके धर्म निभा रही थी।
जानकी जी की तेरहवीं हो गई, निशू का दिल भर आया, पर वो मन ही मन सब सह गई, वो उठकर कमरे में जा ही रही थी कि,” दोनों भाभियां आपस में बात कर रही थी, जाने कब सब मेहमान जायेंगे? हम तो परेशान हो गये है? अब तो तेरहवीं भी हो गई, दो दिन बाद शोक भी खुल जायेगा, और ये निशू दीदी कब जायेगी? अभी तक तो जाने का टिकट भी नहीं बनवाया, लगता है मकान का हिस्सा लेने के लिए यहां डटकर रहेगी, या हो सकता है , सोने के गहनों पर इनकी नजर होगी, और तो क्या पता, ” मां अपनी बेटी को चुपचाप गहने दे गई हो, देखा नहीं हर थोड़े दिन में एक रात रूकने आ जाती थी और अगले दिन ही जाती थी, हो सकता है, वो उन्हें बैग में भरकर सामान और गहने भी देती हो, मां -बेटी के बीच में बहुत खिचड़ी पकती थी। अपनी भाभियों की बात सुनकर निशू हैरान रह गई, वो तो यहां पर उनकी मदद के लिए रूकी हुई थी।
अब निशू का वहां रुकना भारी हो गया था, क्योंकि मां तो कभी नहीं पूछती थी कि तू कब जायेगी? वो तो हमेशा रोकती थी और ये ही कहती थी कि तू कब आयेगी? आजा मै हूं जब तक आजा, फिर कोई नहीं बुलाएगा……और निशू फूट-फूटकर रोने लगती है।
वो कमरे में जाकर अपना सामान जमाने लगती है, अपने मम्मी-पापा की एक तस्वीर हाथ में लेकर बाहर कमरे में जाती है, और बोलती है,” अगर तुम सबकी इजाजत हो तो मै ये मां-पापा की फोटो लेकर जा सकती हूं, मुझे मायके से कुछ नहीं चाहिए, बस मेरे पास मेरे मायके की सुनहरी यादें हैं, उन्हें ही संजोकर मै ले जा रही हूं, मुझे ना तो जमीन में से हिस्सा चाहिए, ना ही घर में से कोई कमरा चाहिए, सोने के जेवरों पर भी मुझसे पहले मेरी दोनों भाभियों का ही हक है
बस भाभी इतनी विनती है, ” मम्मी की तस्वीर के आगे दीपक जला देना, उन्हें अंधेरे से बहुत डर लगता था,और पापा किताबें जो उन्हें बहुत पसंद थी, रद्दी में ना देकर मुझे दे देना, मै उन्हें पापा की निशानी के तौर पर संभाल कर रख लूंगी, निशू आदित्य के साथ वापस ससुराल आ गई, दोनों भाइयों ने रोका भी नहीं।
दिन महीने निकल गये, अब ना तो मायके से फोन आता है, ना मां के हाथों के बुने स्वेटर, गोंद के लड्डू , मठरियां आती है, ना ही मायके से फोन आता है कि निशू दीदी आप दो दिन के लिए रहने को आ जाओं। सारे रिशते बस औपचारिक हो गये थे, भाई अपनी नौकरियों में व्यस्त हो गये है, भाभियां अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई है, सबकी अपनी-अपनी दुनिया हो गई है, एक ही कोख से जन्मे सगे भाई-बहन दूर हो गये है।
मां के जाने के बाद पहला राखी का त्योहार आया, निशू ने सबके लिए राखियां खरीदी, और एक आशा जगी, मायके से बुलावे का इंतजार करने लगी पर कोई फोन नहीं आया, निशू ने भी मैसेज कर दिया कि राखी भिजवा दी थी।
मैसेज का जवाब आया,” हां, दीदी आपकी राखियां और मिठाई मिल गई है”। जवाब पढ़कर निशू रोने लगी, मां को याद करने लगी, अब ना मां वापस आयेगी? ना ही उसे उसका मायका मिलेगा, क्योंकि मां से ही तो मायका होता है।
पाठकों, मां होती है तो मायके में चहल-पहल रौनक सी लगी रहती है, मां अपनी बेटियो के भरपूर लाड़ करती है, लेकिन वो ही जब दुनिया से चली जाती है तो मायका खत्म हो जाता है, मां से ही मायका होता है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
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