मां से जो सीखा काम आया – नेकराम Moral Stories in Hindi

मेरी मां जैसी भी थी मेरे लिए तो सिर्फ मां थी समाज की नजर में मां अनपढ़ थी समाज के लोग अपनी पढ़ाई की धौंस हमेशा जमाया करते थे मां अनपढ़ तो थी लेकिन मुझे पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी जब मैं 6 वर्ष का हुआ तो मेरे दाखिले के लिए मां ने बहुत भाग दौड़ की शायद वह यह सोचती थी कि मैं तो अनपढ़ हूं किंतु मेरा बेटा नेकराम पढ़ – लिख जाए
मोहल्ले में और भी मां थी किंतु मुझे मेरी मां ही सबसे अच्छी लगती थी सन 1987 की बात है उस समय मैं केवल 7 वर्ष का था मां घर का काम निपटा कर दोपहर के समय गाय भैंसों के पीछे-पीछे तसला लेकर चला करती थी सड़क पर गिरने वाला गोबर उठाकर घर पर जमा करना उसके उपले बनाकर धूप में सूखाना जो उपले कल परसों सूखाए थे
उन्हें शाम के वक्त चूल्हे में जलाकर खाना पकाने का नियम था मैं चूल्हे के पास ही जमा रहता मां भी कुछ ना कहती धुएं के कारण चूल्हा आंगन में जलाना पड़ता था नमक तेल मसाले घर में रखे होते थे मां के कहने पर मैं दौड़कर नमक का डिब्बा तेल मसाले घर के भीतर से ले आता पिता का काम हर बार छूट जाता लेकिन मां ने खाना पकाना कभी बंद ना किया
कई-कई महीनो तक पिता की तनख्वाह घर पर ना आती किंतु मां हमें पेट भर के खाना खिला देती थी खिलौने नए कपड़े जूते चप्पल हमने मां से कभी नहीं मांगे हर त्यौहार हमारा दूसरों की खुशियां देखकर ही बीत जाता था मां ने हमेशा यही सिखाया हमेशा ईमानदार बने रहना झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए उस समय तो मां की बातें मुझे कुछ अटपटी सी लगी
लेकिन जब मैं धीरे-धीरे और बड़ा हुआ तब मुझे ईमानदारी का महत्व समझ में आया
ईमानदारी की वजह से दृष्टि कोचिंग में विकास दिव्यकीर्ति सर ने मुझे नौकरी के लिए चुना
आज मैं उसी कोचिंग का पहरेदार हूं इसी नौकरी से मेरा परिवार पेट भर के खाना खाता है यहां से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला पढ़े-लिखे लोगों के बीच रहने के कारण मैंने भी कविताएं और सामाजिक कहानियां लिखना शुरू कर दिया
देश के कोने-कोने से UPSC व IAS की तैयारी करने वाले हजारों स्टूडेंट्स से मेरी बातचीत होती है किस तरह वह P G में रहकर अपनी पढ़ाई को अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी जान लगा देते हैं शहर से कोसों दूर छोटे-बड़े गांव से एक उम्मीद की किरण लिए अपनी पढ़ाई को पूरा करते हैं
कुछ स्टूडेंट तो मुझसे नौकरी भी मांगते हैं कहते हैं पढ़ाई पूरी करनी है माता-पिता पर अधिक दबाव नहीं बना सकते
अपने सपनों के संघर्ष की लड़ाई में हमें स्वयं ही अकेले चलना है
कड़कती सर्दी में रात के दो या 2:30 बजे जब कोई स्टूडेंट मेरे लिए दुकान से चाय खरीद लाता है कोई समोसे कोई ब्रेड पकोड़े दे जाता है कोई अंकल कोई ताऊ भी कहता है कुछ स्टूडेंट तो यह भी कह देते हैं अगर हम जब बड़े अधिकारी बनेंगे तब आपको हम फुटपाथ पर रात के अंधेरे में सर्दी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी नहीं करने देंगे तुम्हें हम अपने घर ले चलेंगे
तुम्हारी कहानियों की किताबें हम अपने पैसे लगाकर छपवाएंगे
उनकी बातें सुनकर मैं भी मुस्कुरा कर कह देता हूं मेरी चिंता ना करो मैं तो आप जैसे बच्चों का प्यार पाने के लिए ही यह नौकरी कर रहा हूं इस चौराहे पर बैठकर रात भर में तमाम आने जाने वाले लोगों को देखता हूं उनसे कुछ ना कुछ सीखता हूं
सामाजिक कहानियां लिखने के लिए समाज के लोगों के साथ उठना बैठना बहुत जरूरी है उनके दुखों को सुनना उनके मुरझाए चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए छोटी-छोटी कोशिश मैं करता रहता हूं
मैं तो बस यही चाहता हूं देश का हर बच्चा अपने माता-पिता हो या दूसरों के माता-पिता हो सभी का सम्मान करें भाई भाई का आपस में कभी झगड़ा ना हो
सभी लोग ईमानदार और कर्मशील बने जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज को और बेहतर से बेहतर बनाने के लिए
अपना योगदान दे किसी भी रूप में
छल कपट और धोखाधड़ी से हमेशा दूर रहे
माता-पिता स्वयं संस्कारी नहीं बनते लेकिन बच्चों को संस्कारी देखना चाहते हैं बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए कभी-कभी माता-पिता को भी सुख सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है अपनी खुशियों का गला दबाना पड़ता है तब जाकर बच्चों के अंदर विद्वान बनने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है
माता-पिता मांस मदिरा का सेवन करते हैं और बच्चों से उम्मीद करते हैं यह सब बुरी चीजे हैं इसे ना खाया करो बच्चे माता-पिता को देखकर ही सीखते हैं
बहुत से माता-पिता की शिकायत रहती है हमारे बच्चे पढ़ते लिखते नहीं है पढ़ाई में ध्यान नहीं देते मैंने ऐसे बहुत से घर देखे हैं माता-पिता टेलीविजन चला कर अपनी पसंद का प्रोग्राम देखते हैं और बच्चों से कहते हैं पढ़ाई करो यह बात उनके लिए है जिनके पास सिर्फ एक ही कमरा होता है
वहां बच्चों को पढ़ाई करने में बहुत कठिनाइयां आती हैं
बच्चों को अच्छा साहित्य लाकर दो टेलीविजन को गुड बाय कहो बच्चों के साथ खेलो कूदो उनके साथ बैठकर कुछ घंटे बिताओ
शहर में मैंने ऐसे बहुत से घर देखे हैं बच्चों के सामने पति-पत्नी आपस में गाली-गलौज करते हैं छोटे-छोटे बच्चे उन्हीं गालियों को सीखते हैं
बहुत सी महिलाएं तो अपने बच्चों को जासूस बनाकर इधर-उधर भेज देती है जाओ पता करो कौन मेरे बारे में क्या कह रहा है
और जब बच्चे बड़े होकर कुछ नहीं बन पाए बस जासूस बनकर ही रह जाते हैं या गाली-गलौज सीख लेते हैं तब लोग कहते हैं आजकल के बच्चे ठीक नहीं है
बच्चे ठीक नहीं है तो माता-पिता भी तो ठीक नहीं है
माता-पिता बच्चों के सामने कभी-कभी ऐसी बातें कह देते हैं जो नहीं कहनी चाहिए
आज मेरी उम्र 43 हो चुकी है जिंदगी में मैंने बस एक ही बात सीखी है जो बच्चे माता-पिता का कहना नहीं मानते उन्हें मैंने कभी भी सफल होते हुए नहीं देखा
जब मैं 9 वर्ष का था तो मेरी मां ने मुझसे कहा था देख नेकराम मैं रिश्तेदारी में जा रही हूं शाम तक लौटेगी तुझे घर पर ही अकेले रहना है घर से बाहर नहीं निकलना जब तक मैं नहीं आ जाऊं सुबह से शाम हो गई मैं कमरे से बाहर नहीं निकला
अपना संडे का दिन कैसे बिताता मेरे पड़ोस के बहुत से मित्र मेरे पास आए दरवाजा खटखटाया नेक राम दरवाजा खोलो
चलो पार्क में खेलने चलते हैं तब मैंने कहा मेरी मां ने मुझे मना किया है बाहर निकलने के लिए तब मित्रों ने कहा थोड़ी देर बाहर खेलते हैं फिर तुम वापस कमरे में आ जाना किसी को भी पता नहीं चलेगा मेरे मन में खेलने की उमंग जाग गई
किंतु मां की बात याद आई नेकराम कमरे से बाहर नहीं निकलना जब तक शाम को मैं लोट कर ना आ जाऊं
मैंने अपने आस पड़ोस के सभी मित्रों को भगा दिया और किवाड़ नहीं खोला
समय कट नहीं रहा था इसलिए बस्ता खोलकर किताब निकाली और पढ़ने बैठ गया एक पाठ को मैंने कई बार पढ़ा समय अभी भी बहुत था शाम होने के लिए मैं बार-बार उसी पाठ को पढ़ता रहा एक पाठ को कई बार पढ़ने की वजह से मुझे कुछ समझ आया इस पाठ के प्रश्न इसी कहानी को देखकर बनाए गए हैं और उत्तर सारे कहानी के भीतर ही है
उसके बाद फिर कभी मैंने बाजार से कुंजी खरीदने की अपनी मां से जिद नहीं की
क्योंकि मुझे इस बात का पता चल चुका था अगर हम एक कहानी को 10 बार पढ़ते हैं 20 बार पढ़ते हैं 30 बार पढ़ते हैं
और जब तक पढ़ते हैं जब तक उस कहानी का छिपा हुआ संदेश हमारे भेजे में न घुस जाए लेखक ने यह कहानी क्यों लिखी यह कविता क्यों लिखी उसकी तह तक जाने के लिए
हमें कहानी या कविता जब तक पढ़नी चाहिए लेखक के लिखने का उद्देश्य क्या है लेखक कहानी वह कविताओं के माध्यम से हमें क्या सीखना चाहता है क्या बताना चाहता है
और हम इसी राह पर चलते-चलते हमारे भीतर का छुपा हुआ लेखक निकलकर बाहर आ जाता है
मां की बात मुझे आज भी याद है ड्यूटी से जब घर जाता हूं तो स्वयं को कमरे में कैद कर लेता हूं इसी कैदखाने की वजह से मेरे अंदर का लेखक निकलकर बाहर आया इसलिए मैं कभी-कभी सोचता हूं
मां से जो सीखा काम आया
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड मुखर्जी नगर
स्वरचित रचना दिल्ली से
24 फरवरी 2024

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