राजीव का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था रंग-बिरंगे फूलों से बने हार, रंगीन बल्बों की
सीरीज, बेहद आकर्षक मंडप और कानों को प्रिय लगे ऐसा लाजवाब संगीत चल रहा था। कोई भी राह से
गुजरने वाला व्यक्ति दो मिनट रुककर, उस बंगले को देखता ज़रूर था। घर में आने-जाने वालों की भीड़
लगी हुई थी। राजीव की माँ दमयंती और उसके पिता रंजीत शादी की तैयारियों में अत्यंत ही व्यस्त होने
के साथ ही साथ अपने मेहमानों का स्वागत भी कर रहे थे। दूसरी तरफ़ अनामिका जिससे राजीव का
गठबंधन होने वाला था, लाल जोड़े में सजी-धजी मानो कोई अप्सरा ही हो, इतनी सुंदर लग रही थी। उसे
उसकी सारी सखी सहेलियाँ अपनी-अपनी तरह से मशवरा दे रही थीं और सभी बहुत ही खुश मस्ती के
मूड में थी। अनामिका भी काफ़ी खुश थी और होने वाले पति के साथ अपनी भावी ज़िंदगी के सपने बुन
रही थी।
अनामिका की माँ सुभद्रा अपनी बेटी के लिए काफ़ी परेशान थी, उन्हें उसके भविष्य की चिंता
हो रही थी। ना जाने नए लोगों के बीच मेरी बेटी कैसे रहेगी, कितने नाज़ों से पाला है उसे। सब के साथ
ससुराल में उसे पता नहीं क्या-क्या सहना पड़ेगा। सुभद्रा का मन बार-बार बेचैन हो रहा था, उसके मन में
विचारों का एक तूफ़ान चल रहा था। तब उससे रहा नहीं गया और सुभद्रा ने अनामिका को अपने कमरे
में बुलाया और उसे समझाने लगी, “अनामिका देखो तुम एक नई जगह जा रही हो, पता नहीं सब लोग
वहाँ कैसे होंगे। अपनी हर चीज का ख़्याल रखना, अपने गहने अपने ही पास रखना, सास ससुर से दूरी
बना कर रखना, वरना अगले ही दिन से तुम्हें काम पर लगा देंगे। हाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात राजीव को
अपने नियंत्रण में शुरू से ही रखने की कोशिश करना और धीरे-धीरे उसे अपना अलग घर बनाने के लिए
कहती रहना। शुरू से ही ऐसा माहौल बना देना कि राजीव को एहसास होने लगे कि तुम यहाँ ख़ुश नहीं
हो। उसकी माँ के साथ तुम्हारा निभ पाना मुश्किल है।”
अपनी माँ सुभद्रा की इन सभी बातों को अनामिका बहुत ध्यान से सुन रही थी और समझने की
कोशिश भी कर रही थी। हर लड़की जिस तरह सबसे ज़्यादा अपनी माँ को मानती है, उनकी हर बात को
सही जानती है ठीक वैसे ही अनामिका के लिए भी उसकी माँ ही उसकी रोल मॉडल थीं।
उनकी बातें आपस में हो ही रही थीं कि बाहर काफ़ी ज़ोर से शोर सुनाई दिया, बारात आ गई,
बारात आ गई। तभी सुभद्रा और अनामिका भी कमरे से बाहर आ गईं। कुछ ही घंटों में राजीव और
अनामिका का विवाह भी संपन्न हो गया, जीवन भर का गठबंधन दोनों के बीच बंध गया। उसके बाद
विदाई की बेला आ गई। अनामिका अपनी माँ और पिता के गले मिलकर भीगी पलकों से, राजीव के साथ
कार में जाकर बैठ गई और कार वहाँ से राजीव के घर की तरफ़ रवाना हो गई।
अनामिका के घर पर पहुँचते ही दमयंती ने ज़ोरदार तरीके से अपनी बहू का स्वागत किया।
उसके हाथों की हल्दी वाली छाप और अल्ता से रंगे लाल कदमों से दमयंती के मन में ख़ुशी और प्यार
का सागर उमड़ पड़ा। उसे प्यार सहित दमयंती ने ग्रह प्रवेश करवाया। भगवान से आशीर्वाद लेने के
उपरांत, घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के लिए अनामिका से कहा।
शादी के उपरांत की सभी रस्में पूरी करते-करते रात हो गई। राजीव की बहन और उसकी
सखियों ने अनामिका को राजीव के कमरे में पहुँचाया और फिर राजीव और अनामिका हमेशा के लिए
तन-मन से एक हो गए। धीरे-धीरे घर के सभी मेहमान अपने घर वापस लौट गए। अब घर में सिर्फ़
अनामिका, राजीव और राजीव के माता पिता ही रह गए।
अनामिका का सभी लोग बेहद ख़्याल रखते थे। दमयंती तो अनामिका को अपनी बेटी की तरह
ही रखती थी। उसे प्यार से यहाँ भी सभी अनु कह कर बुलाते थे। अनामिका हैरान थी! उसे बार-बार
अपनी माँ के शब्द याद आ रहे थे, पर कैसे? कैसे मैं यह सब शुरू करूं वह अपने मन ही मन सोच
रही थी। इसी उधेड़बुन में अनामिका कुछ परेशान रहने लगी। यहाँ इतना प्यार मिल रहा था कि ग़लती
निकालने का कोई अवसर उसे नहीं मिल पा रहा था।
कुछ दिन यूं ही बीत गए और फिर धीरे-धीरे अनामिका ने राजीव से महंगी-महंगी चीजों की
फरमाइश शुरू कर दी। राजीव अनामिका की हर फरमाइश पूरी कर देता था। हीरे का सेट भी राजीव ने
उसे अपनी पहली रात को ही गिफ़्ट में दिया था, लेकिन अनामिका की फरमाइश दिन प्रतिदिन बढ़ती ही
जा रही थी।
एक दिन अनु ने अपनी सास दमयंती से कहा मांजी मुझे आपका सोने का हार व कंगन बहुत
पसंद हैं
उसके इतना कहते ही दमयंती ने उसे कहा अनु दो मिनट रुको
फिर तुरंत ही दमयंती अपना सोने का सेट लेकर आ गई और अनामिका को देते हुए बोली
तुमने तो बेटा मेरी मुश्किल ही आसान कर दी। मैं कब से सोच रही थी कि तुम्हें क्या दूं, यह लो अभी
शादी के वक़्त ही लिया है"। एक बार फिर अनामिका दंग रह गई, उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि
उसके मांगते से ही दमयंती उसे इतना कीमती तोहफ़ा दे देगी।
कोई बड़ा कारण ना मिलने के बावजूद भी, अब अनामिका ने राजीव से बोलना शुरु कर दिया
"राजीव तुम्हें नहीं लगता कि हमें भी अपने लिए एक अलग घर ले लेना चाहिए।"
उसकी बात सुनकर राजीव चौंक गया ये क्या कह रही हो अनु? इतना घटिया ख़्याल तुम्हारे
दिमाग़ में आया ही कैसे? यहाँ क्या तकलीफ है तुम्हें? सब कितना प्यार करते हैं, मैं सोच भी नहीं
सकता था कि तुम्हारे दिमाग़ में ऐसा भी कुछ आ सकता है।
राजीव की बात सुनकर अनामिका उससे नाराज़ हो गई और दो-तीन दिनों तक उसने राजीव से
बात नहीं की। लेकिन राजीव ने इस बात के लिए उसे बिल्कुल भी नहीं मनाया।
अब अनामिका ने दमयंती के साथ भी गुस्सा दिखाना, बात ना करना सब शुरु कर दिया।
दमयंती भी अनामिका का बदला हुआ रूप देख रही थी और सोच रही थी कि ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ,
फिर अनामिका ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है? शायद राजीव के साथ कुछ खटपट हो गई होगी। एक दो
दिन में सब ठीक हो जाएगा, ऐसा सोचकर दमयंती ने उस बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया।
अनामिका के पास लगभग हर रोज़ ही उसकी माँ का फ़ोन आता था और काफ़ी देर तक उनकी
बातचीत भी होती थी। अपनी माँ की सिखाई बातों में मेरा ही तो फायदा है। अनामिका हमेशा यही
सोचती थी, मेरी माँ जो भी कर रही है मेरे अच्छे के लिए ही तो कर रही है। फिर एक दिन अनामिका ने
बिना किसी से पूछे, बिना बोले ही अपना सूटकेस तैयार कर लिया। राजीव ने ऑफ़िस से आ कर देखा तो
पूछ बैठा "अनु यह सब क्या है? घर की बहुत याद आ रही है क्या? मुझे कहती मैं तुम्हें छोड़ कर आता।
दो चार दिनों के लिए चली जाओ, फिर मैं लेने आ जाऊंगा।लेकिन अनामिका ने गुस्से में राजीव को जवाब दिया राजीव, जहाँ मेरी भावनाओं की कद्र नहीं
वहाँ रहने का मेरा मन भी नहीं।
क्या, क्या बोल रही हो अनु तुम? क्या तुम गुस्से में घर छोड़ कर जा रही हो?
हाँ, मैंने तुमसे सिर्फ़ अलग घर लेने को ही तो कहा है, रिश्ता तोड़ने की लिए नहीं। हम आते
जाते रहेंगे ही, सभी लोग अलग रहते हैं, मैंने कौन-सी नई बात कह दी है।
अनामिका के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर राजीव नाराज़ हो गया और स्पष्ट शब्दों में कह दिया
अनु तुम्हारी यह इच्छा मैं कभी पूरी नहीं कर सकता, नहीं करुंगा, तुम्हें जो करना है करोऔर राजीव
कमरे से बाहर चला गया।
अनामिका ने सोचा था सूटकेस देखकर और ऐसी धमकी से राजीव पिघल जाएगा लेकिन ऐसा
हुआ नहीं और अनामिका घर छोड़ कर अपने मायके चली गई।
सुभद्रा ने अनामिका से कहा बेटे डरने की कोई बात नहीं, देखना अभी दो चार दिन में ही
राजीव तुम्हें लेने आ जाएगा।लेकिन देखते ही देखते दो चार दिन ही क्या, हफ्ते और महीने निकल गए
लेकिन राजीव नहीं आया।
तभी सुभद्रा ने अपनी बेटी से कहा घी सीधी उंगली से निकलने वाला नहीं है, अभी हमें बड़ा
क़दम उठाना पड़ेगा, तभी तुम अलग राजीव के साथ सुकून से रह सकोगी। राजीव को डराने के लिए
तलाक के कागज़ भिजवा देते हैं, तब तो वह अवश्य ही तुम्हारी बात मान जाएगा।
इच्छा ना होते हुए भी अनामिका अपनी माँ का विरोध नहीं कर पाई और तलाक के कागज़ात
भिजवा दिए। राजीव ने भी बिना कुछ सोचे हस्ताक्षर कर काग़ज़ वापस लौटा दिए। उन कागज़ों पर
राजीव के हस्ताक्षर देख कर सुभद्रा और अनामिका हैरान रह गए, लेकिन उन्होंने आगे कोई कार्यवाही
नहीं करी।
इसी बीच अनामिका के भाई की शादी भी तय हो गई और धूमधाम से उसके भाई का विवाह
हो गया। अनामिका के घर अब उसकी भाभी भी आ गई जो बहुत ही सीधी-सादी और अत्यंत ही शालीन
परिवार की सुशील लड़की थी। उसने आते ही घर में खुशियाँ बिखेरना शुरू कर दिया। अनामिका से,
सुभद्रा से सबसे बेहद प्यार और सम्मान के साथ पेश आती थी। घर में सभी का ख़्याल रखती और घर
को भी सुंदरता से सजाना उसे बहुत पसंद था। अनामिका उसकी तरफ़ जब भी देखती, उसे अपने मन में
कुंठा होती थी कि मैं भी तो ऐसे ही रह सकती थी। वहाँ तो सब मुझे कितना प्यार करते थे।
ख़ैर धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया, अनामिका ने सोचा अभी तो शुरुआत ही है एक दो महीने में
ज़रूर भाभी भी अलग होना चाहेंगी और माँ उन्हें प्यार से अलग भी कर देंगी। फिर एक दिन अनामिका
ने सुभद्रा से पूछ लिया माँ, भैया-भाभी अलग रहने कब जाएंगे?यह सुनते ही सुभद्रा का क्रोध सातवें आसमान पर था "क्या, क्या कहा अनु? तुम्हें शर्म आनी
चाहिए, तुमने ऐसा सोचा भी कैसे? देखा नहीं, हम लोग कितने प्यार से रहते हैं और तुमने हमारे बारे में
भी नहीं सोचा कि हम दोनों पति-पत्नी अकेले कैसे रहेंगे। आगे से कभी भी ऐसी बात अपनी ज़ुबान पर
मत लाना और अपनी भाभी के सामने तो कभी भी ऐसी बात ना करना।"
अपनी माँ का दोगला रूप देखकर अनामिका सन्न रह गई, वह समझ नहीं पा रही थी कि वह
क्या बोले और क्या करे।
दूसरे दिन सुबह-सुबह उसने तलाक के काग़ज़ निकाल कर अपनी माँ को दिए और कहा "माँ
इन्हें जला देना।
सुभद्रा चौंक गई "यह क्या बोल रही हो अनामिका? मैं जो कुछ भी कर रही हूँ, तुम्हारे भले के
लिए ही तो है।
"चुप रहो माँ, मुझे अपना भला अब ख़ुद ही करना होगा" और अनामिका ने अपना सूटकेस जो
उसने रात को ही भर लिया था, उसे लेकर वह निकल गई। सुभद्रा उसे जाते हुए देखती रह गई लेकिन
शायद वह समझ गई थी इसलिए ना कुछ कह सकी और ना ही उसे रोक सकी।
अनामिका अपने असली घर पहुँच गई और जैसे ही बेल बजाने के लिए हाथ उठाया उसे अंदर
से कुछ आवाज़ आई, तब उसका हाथ वहीं रुक गया।
दमयंती और राजीव के बीच बातचीत हो रही थी।
दमयंती राजीव को समझा रही थी,राजीव बेटा नाराज़ मत हो। अनु में अभी बचपना है,
देखना उसे एक ना एक दिन अपनी ग़लती का एहसास ज़रूर होगा और वह वापस भी आ जाएगी। हमारे
परिवार की बेटी है, हमारी जान है वह। हमारे घर के दरवाज़े उसके लिए हमेशा खुले रहेंगे और दिल के
दरवाज़े भी। रिश्ते को तोड़ने में नहीं, हमेशा जोड़ने में विश्वास रखना चाहिए।
राजीव हमारे देश में बेटियों को कोख में ही मार डालते हैं या कभी-कभी तो पैदा होते से ही
हत्या कर देते हैं। एक बार बेटी तब मरती है और एक बार बेटी को बहू बनाकर ससुराल वाले मार डालते
हैं। बेटी को मायके और ससुराल में मारने वालों की कमी नहीं है लेकिन मुझे मेरी बेटी का इंतज़ार रहेगा।
उसके अल्ता वाले लाल पाँव की छाप और हल्दी वाले हाथों की छाप, आज भी मेरी आँखों के सामने आ
जाती है। राजीव देखना वह बहुत ही अच्छी लड़की है, वह वापस अवश्य आएगी और अपना रिश्ता
निभाएगी। यह रिश्ता हमने जीवन भर के लिए किया है, छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव और बाधाएँ तो जीवन में
आती ही रहती हैं। जो इन बाधाओं से निपट कर आगे बढ़ते हैं उन्हीं के रिश्ते हमेशा कायम रहते हैं। बेटा
खून का नहीं यह रिश्ता है प्यार का।
इतने में बाहर से फूट-फूट कर रोने की आवाज़ आती है, अनामिका डोर-बेल नहीं बजा पाती।
दमयंती की बातें सुनकर वह भावुक हो जाती है और अपनी भावनाओं पर उसका संयम नहीं रह पाता।
वह फूट-फूट कर रोने लगती है। तभी दमयंती और राजीव दरवाज़ा खोलते हैं और रोती हुई अपनी अनु
को दमयंती गले से लगा लेती है। अनु के मुँह से आज प्यार भरा शब्द निकलता है "माँ, माँ मुझे माफ़
कर दो मैं बहक गई थी। आपने तो मुझे पहले ही दिन से बेटी मान लिया था, मैंने ही इस रिश्ते को
समझने में वक़्त लगा दिया किंतु आपने इस रिश्ते की गरिमा को बढ़ा दिया।
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)