Moral stories in hindi : एस.डी.एम्. सक्सेना कलेक्टर साहब के साथ किसी महत्वपूर्ण मीटिंग में व्यस्त थे कि उनका असिस्टेंट धड़ल्ले से सीधा अंदर घुसा चला आया. सभी ने रोषपूर्ण निगाह से उसकी और देखा तो उसने कातर निगाहों से उसने कहा “सर, फोन है. घर से. कोई घटना हुई है. मेम साहब रो रही हैं”.
“काकू …… काकू स्कूल से घर नहीं आया है. उसका अपहरण हो गया है. निक्की ने देखा. एक औरत ने उठाया है”. उनकी पत्नी की घबराई हुई आवाज आई.
तहलका मच गया. कलैक्टर साहब ने स्वयं संज्ञान लेकर एस.पी. सिटी को फोन किया. शहर भर में पुलिस की गाड़ियां फर्राटे भरने लगीं. प्रशासनिक अधिकारी के बच्चे का भी अपहरण हो सकता है. अख़बारों के दफ्तर सक्रिय हो गए. कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे. पत्रकार पक्ष विपक्ष के नेताओं से घटना की प्रतिक्रिया लेने दौड़ पड़े.
इस से पहले कि मिस्टर सक्सेना घर पहुंचते बच्चा भारी बस्ता लटकाये हुए खरामा खरामा घर की और बढ़ता देखा गया. किसी ने पहचान लिया.अरे ये तो डिप्टी कलेक्टर साहब का बेटा है. निकट जा रही पुलिस पीकेट ने बच्चे को घेर लिया और सीना फुलाए हुए और अपनी पीठ थपथपाते हुए संगीनों के साये में सकुशल माँ के हाथों तक पहुँचाया.
मामला प्रशासनिक अधिकारी के बच्चे का था. बहुत तूल पकड़ने की संभावना थी इसलिए पुलिस और प्रशासन ने अपराधी को पकड़ने में पूरी ताकत झोंक डाली. चार घंटे के अथक परिश्रम, निक्की और काकू से मिली निशान देही और एस.पी. निर्मला द्विवेदी की सूझ बूझ से निलाया नगर के स्लम से एक महिला को गिरफ्तार कर लिया गया. काकू ने और निक्की ने उसे पहचान लिया.
एस.पी. ऑफिस के बाहर भीड़ लगी हुई थी. पत्रकार, श्रेय लूटने को तत्पर नेतागण और पब्लिक.
एक सांवली सी मोटी औरत को जमीन पर बिठा रखा था. एक लेडी पुलिस इन्स्पेक्टर उस से एसपी के सामने पूछताछ कर रही थी.
“कौन से गैंग से जुडी है. सच सच बता वार्ना मार मारकर हड्डी पसली तोड़ देंगे. जिंदगी भर को जाएगी अंदर”.
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महिला एकदम भयभीत पुलिस अधिकारी की और देख रही थी. तभी सक्सेना साहब ने सपत्नीक प्रवेश किया. महिला सूनी सी आँखों से सक्सेना दंपत्ति को देखने लगी.
“उधर क्या देखती है. आँख मिलकर बात कर. क्या करते हो तुम लोग बच्चों का. बेचते हो”.
“ह्यूमन ट्रेफिकिंग का मामला लगता है सर. जब इन्हे पता चला होगा कि पुलिस अत्यंत सक्रिय हो गई है तो छेड़कर भागना पड़ा होगा. बच्चा तो सेफ है न सक्सेना साहब. उसे चोट वगैहरा…… ” मैडम निर्मला ने पुछा.
“नहीं मगर ….. मगर बच्चे ने बताया कि ये औरत बच्चे को सीने से दबाकर ….. पता नहीं मार देना चाहती थी या. चूम रही थी. पुरुषों में तो बच्चों के प्रति इस प्रकार की यौन कुंठा मिलती है मगर….. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा”.
अपराधिनी अभी भी एक टक सक्सेना साहब को देख रही थी.
एस. पी. निर्मला जी ने फिर कहा “सुनो इंस्पैक्टर. ये लोग बड़े घाग होते हैं. इसे इंटेरोगेशन रूम में ले जाओ और जरा ठीक से उगलवाओ. मुझे इस शहर में कोई बच्चा चोर गैंग नहीं चाहिए”.
लेडी इंस्पैक्टर महिला के बाल पकड़कर उठाने लगी. महिला अभी भी लगातार सक्सेना साहब को घूर रही थी. मरुथल सी सूनी, निर्जीव और सपाट आँखों से.
अचानक सक्सेना साहब चौंके और जोर से बोले “एक सैकिंड इंस्पेक्टर … एक सैकिंड” फिर कुछ सोचते हुए से बोले “तुम ….. थिरुबाला हो …… ओह ….. हाँ तुम वही तो हो”. फिर दोनों हाथ माथे पर रखकर बैठ गए. सारा डिपार्टमेंट आश्चर्य से सक्सेना साहब की और देख रहा था.
“थिरुबाला, तुमने ये क्या किया. क्यों किया तुमने ऐसा. मुझ से कहतीं. मैं खुद काकू को तुम से मिला देता. सुनिए मैडम. मैं अपना आरोप वापस लेता हूँ. इन्हे छोड़ दिया जाय प्लीज”.
“ऐसे कैसे सक्सेना साहब. इन्वेस्टिगेशन तो करना पड़ेगा. पता नहीं तार कहाँ से जुड़े हों. ये तो कुछ बोलती ही नहीं”.
“थिरुबाला, बताओ न तुम ने ये सब क्यों किया”. सक्सेना साहब की पत्नी ने आँखों में आंसू भरकर कहा”.
थिरुबाला ने नजरें नीची करके बोलना शुरू किया “मैम ….. आप का बच्चा अपने पेट में रखने का आप ने मुझे पूरा पैसा दिया. बल्कि ज्यादा दिया. मगर ….. मगर उसके बाद मैं माँ नहीं बन सकी. हस्बैंड के साथ केरला लौटने से पहले” उसने एक हिचकी ली और उसकी आँखों से आंसू की धरा बाह निकली. फिर अस्फुट शब्दों में बोलना शुरू किया “एक बार …… एक बार बेबी को सीने से लगाने को रोक नहीं पाई मैम. हम क्राइम किया है. हम को माफ़ नई करना साब”.
“ओफ्फ. प्लीज एसपी साहिबा. छोड़ दीजिये उन्हें. ये मेरे बच्चे की सैरोगेट मदर हैं. मानवीय संवेदनाये और भावनाएं इंसान को कितना निर्बल और कितना मजबूर कर देती हैं, एक महिला होने के नाते आप समझ सकती हैं”.
रवीन्द्र कान्त त्यागी