अन्वी जल्दी मेरा टिफिन लगाओ बैंक जाने में देर हो रही है मुझे भी टाइम से पहुंचना है मैं बैंक में मैनेजर हूं तो मेरी जिम्मेदारी है—–! अरे लगाती हूं, लेकिन खाना तो पूरा बना लेने दो, खाना तो ठीक है लेकिन कुछ खा तो लो, रोज भूखी अपने ऑफिस जाती हो! मां—– आप जरा देख लो—- अन्वी भूखी चली जाएगी!
मैंने तो नाश्ता कर लिया है, और टिफिन भी रख दिया अन्वी ने, अरे—- तुझे बड़ी अपनी पत्नी की चिंता रहती है मां चिल्ला कर बोलीं अच्छा मैं तो चलता हूं! अन्वी को भी समय से ऑफिस जाने देना नहीं तो—– उसे देर हो जाएगी अन्वी याद से तुम अपना टिफिन भी रख लेना! हां मैं टिफिन रख लुंगी यह कहकर अन्वी अपना काम खत्म करके जल्दी से तैयार होती है और भूखी ही ऑफिस चली जाती है।
रोज ही ऐसा होने लगता है और एक दिन अन्वी बहुत बीमार हो जाती है उसको ज्यादा भूखा रहने से और पूरी डाईट न मिलने के कारण, और घर के इतने ज्यादा काम होने के कारण वह कमजोर हो जाती है, खून की कमी आ जाती है, क्योंकि वह सुबह जल्दी उठकर घर मैं सबका खाना बनाकर और बिना खाए
अपने ऑफिस जाती है! शाम को आते ही फिर खाने में लग जाती है, और जब सब खा लेते हैं तभी वह खाना खाती है, रात को चाहे 10 बज जांये इसका कारण यह था कि अन्वी की सास को किसी भी मेड के हाथ का खाना अच्छा नहीं लगता था, और वह कोई भी मेड नहीं लगाने देती थीं इस कारण अन्वी पर बहुत काम पड़ने लगा।
“मा, मेरी पत्नी की जगह आपकी बेटी होती तो…” – अभिषेक शर्मा : Moral Stories in Hindi
अनवी की हालत उसके पति विराट से देखी नहीं गई एक दिन अचानक ऑफिस से फोन आता है कि अन्वी को चक्कर आ गए और वह अपनी सीट से नीचे गिर गई, यह सुनकर विराट घबरा जाता है, और उसी समय अन्वी के ऑफिस पहुंचता है, अन्वी को देखकर विराट को चिंता हो जाती है! और जब वह डॉक्टर को दिखाने ले जाता है
तो डॉक्टर भी कहते हैं कि आप अपनी पत्नी का ध्यान नहीं रखते क्या? कितनी कमजोर हो गई है! इनमें तो खून ही नहीं है ऐसा लगता है जैसे यह खाना ही नहीं खाती, इनको अच्छी डाइट की जरूरत है, और रेस्ट की जरूरत है, आप इन पर ध्यान दें! नहीं तो यह बहुत ज्यादा एनीमिक हो जाएगी और ब्लड प्रेशर इनका लो रहने लगेगा
“खतरनाक हो सकता है” यह सुनकर विराट को बहुत दुख होता है, कि आज अन्वी भी मेरे कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है ,ऑफिस जाती है, और फिर घर का काम भी करती है मेरी छोटी बहन रीना कॉलेज में बीए सेकिंड ईयर में पढ़ती है इसलिए मां उसे कोई भी काम नहीं करने देतीं
और हम लोग भी कोई काम नहीं बताते बस पढ़ाई लिखाई करती है और आराम करती है, विराट मन ही मन निर्णय कर लेता है “मेरी पत्नीअन्वी मेरी ही जिम्मेदारी है”! बहुत हो गया अब मुझे मां से बात करनी चाहिए? बस फिर क्या था।
विराट जैसे ही घर आता है अपने माता-पिता के सामने बैठकर बोलता है पापा मम्मी आप यह बताएं अन्वी भी मेरी तरह ऑफिस जाती है मैं तो ऑफिस जाते समय भी नाश्ता करता हूं लंच लेकर जाता हूं लेकिन यह तो बिल्कुल भूखी जाती है बस अपना जो भी टिफिन लेकर जाती है वही खाती है वह भी दोपहर में और शाम को आते ही फिर खाना बनाने लगती है, मेरी छोटी बहन रीना भी उसकी कोई मदद नहीं करती है, आप भी कोई मदद नहीं करतीं।
मैं ऑफिस से आकर आराम करता हूं! अब आप यह बताएं अन्वी ऑफिस से आकर क्या आराम करती है? नहीं करती हम दोनों ही ऑफिस जाते हैं! मैं तो आकर भी आराम कर लेता हूं
पर अन्वी को तो दिनभर ऑफिस में भी काम रहता है और सुबह शाम भी घर में भी काम, तो आप खाना बनाने वाली मेड क्यों नहीं लगा लेतीं क्या आपकी बेटी इतना काम करेगी तो आप उसे देखेंगी कि नहीं? क्या आप भी अपनी बेटी के संग ऐसा ही करेंगी? “मां मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप ऐसा ही करतीं”—–!
विराट बोलता है मां में यह सब इसलिए कह रहा हूं! कि आज अन्वी को ऑफिस में चक्कर आ गए, उसके ऑफिस से मेरे पास फोन आया और मैं जब अन्वी को लेकर डॉक्टर के पास गया और डॉक्टर को दिखाया तो वह बोल रहे हैं कि खाने का और आराम का ध्यान रखें नहीं तो उसे बहुत कमजोरी आ जाएगी वह बहुत बीमार हो जाएगी।
यह सब सुनकर विराट के पापा को तो समझ में आ जाता है पर मां मुंह बना लेती हैं! फिर चुप हो जाती हैं क्योंकि डॉक्टर ने साफ कह दिया था अगर अन्वी को आराम नहीं मिलेगा और टाइम से खाना नहीं खायेगी तो अन्वी को खतरनाक बीमारी हो सकती है और कुछ भी हो सकता है? यह सोचकर मां को पश्चाताप होने लगता है
और मां को विराट की बात सही लगती है, कि हां मेरी बेटी होती तो मैं ऐसा नहीं करती बस फिर वह दूसरे ही दिन अपनी सहेली से कह कर खाने वाली मेड को लगाती हैं और अन्वी से कहती हैं,
जैसे मेरी बेटी रीना है वैसे ही तुम हो सुबह तुम पहले अपना नाश्ता करो! कुछ फल खाओ, और मेड से अपना और विराट का टिफिन बनवाकर लेकर जाओ। देखते देखते अनवी की हालत सुधरने लगती है मां को लगता है कि मैं कुछ गलत कर रही थी—— लेकिन मेरे बेटे ने सही सलाह दी मां को अपनी गलती महसूस हुई और अपनी बहू पर प्यार आया।
विराट के समझाने पर घर की खुशियां फिर से वापस आ गईं। आखिर बहू भी बेटी होती है।
सुनीता माथुर
मौलिक, स्वरचित रचना
पुणे महाराष्ट्र