“मां मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो” – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

सोफे पर लता जी के कानों में रह रहकर बेटे सौरभ के शब्द गूंज रहे थे “मां मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो”। इन्हीं शब्दों के दरमियां लता जी अतीत में खो गई,किस प्रकार उनकी कड़क मिजाज़ सास उनपर हुक्म चलाती और वो सुबह से शाम चकरघिन्नी सी लगी रहती तथा रात को पति की सेवा में, फिर भी कोई नहीं था जो तारीफ तो छोड़ो प्यार के मीठे दो बोल भी बोल दे। 

समय बीतता गया और वे सौरभ व स्वरा, दो बच्चों की मां बन गई, उनकी सास भी बूढ़ी हो गई, परन्तु टोरा अब भी वही था। एक दिन सास स्वर्गवासी हो गई और किस प्रकार दुनिया को दिखाने के लिए लता जी रोई पर मन ही मन प्रसन्नता की चादर ओढ़े थी कि अब घर पर में शांति रहेगी। 

ऐसा हुआ भी,अब पति आकर घर खर्च उन्हें देते, आकर चार बातें भी करते।अब भी वो घर का सारा कामकाज करती बल्कि घर और बढ़ते बच्चे बेहतर संभालती, मगर हां कोई रोक टोक या घर में तनातनी नहीं थी। 

समय कहां रुकता है, स्वरा शादी करके ससुराल चली गई और सौरभ की  बहू बनाकर वे आरती को अपनी पसंद से लाई। पर घर की मालकिन अब भी वही थी,एक एक रुपए का हिसाब रखती,सब्जी तरकारी से लेकर हर छोटी बड़ी चीज उनके अनुसार ही आती और बनती। बहू आने पर भी उसकी कोई राय मायने नहीं रखती,

वरन मांगी ही नहीं जाती।आखिर लता जी सास जो ठहरी,जो उनके साथ हुआ था,उसका बदला तो उन्हें अपनी बहू से ही लेना था।इस दौरान न जाने कब लता जी, अपनी सास जैसी ही हो गई। वही गुमान, वही चोगा।

और जैसे तैसे करके घर भी चल ही रहा था,आरती से जितना बन पड़ता करती,वरना लता जी थोड़ी बहुत मदद करती पर ताने देने में कोई कसर नहीं छोड़ती। 

हाल ही में सरकारी स्कूलों की भर्तियों का परिणाम आया और उसमें आरती का सिलेक्शन हो गया।सुबह 7.30 बजे निकलना होता और शाम 3 बजे आती। सुबह जल्दी उठकर सब्जी रोटी बनाकर जाती, आते ही सास ससुर चाय के लिए इंतेज़ार करते मिलते।फिर लता जी के ताने हमसे ठंडी रोटी नहीं खाई जाती,ऐसी नौकरी का क्या फायदा ,जो दो टाइम गर्म खाना ही न दे सके।

आखिर आरती भी थककर स्कूल से आती,तो चिड़चिड़ी रहने लगी। ऊपर से अब वो अपनी पसंद की कुछ चीजें खुद ले आती, सास को ये वैसे ही बर्दाश्त न था,आखिर वो चूंकि कभी सास के रहते कुछ अपनी पसंद से नहीं लाई,

सिवाय मायके से और उसमें में पहले सास को दिखाती।दोनों सास बहू के बीच अब कहासुनी भी हो जाती।एक तरफ बहू कहती कि मैं स्कूल में बैठकर नहीं आई वहीं लता जी को लगता मैं बहू बनकर भी पिसी,अब क्या सास होकर भी घर का काम करूंगी। फिर भी किसी तरह गाड़ी चल रही थी।

आज इतवार था,सुबह आरती लेट उठी और लता जी का भुनभुनाना शुरू, “हम तो कभी न सोए ससुराल में आठ बजे तक,आजकल की बहुओं को तो शर्म लिहाज ही नहीं है”। सौरभ भी इस रोज की चिकचिक से थक चुका था, ऊपर से नाश्ते की जगह मां की शिकायतें जो उन्हें आरती से थी। आखिर लाडले बेटे से न कहती तो कैसे मन भरता।

इसी दौरान आरती की रसोई से चीखने की आवाज़ आई,सौरभ गया तो देखा जल्दी में गर्म तेल गिरने से उसका हाथ जल गया। तभी लता जी आई और बोली कुछ नहीं नाटक करती है,एक तो देर से उठी,ऊपर से अब काम न करने के बहाने ।

आरती कुछ कहती उससे पहले सौरभ ही बोल पड़ा”मां मेरी पत्नी की जगह  अगर आपकी बेटी होती तो भी आप यही कहती” और लता जी चुप। 

तैश में आकर सोफे पर बैठ गई और याद करने लगी कि शुरू शुरू में स्वरा जब आकर अपनी सास की बातें बताती तो लता जी किस प्रकार उसमें अपनी सास की छवि महसूस करती थी, उन्हें रह रहकर सब याद आता। साथ ही उनका वो बेटा जो उनकी हर हां में हां मिलाता था,वो किस तरह उनके सामने बहू की तरफदारी में बोला।

असमंजस की स्थिति थी अहम ऊपर रखें या बेटी और खुद के साथ का व्यवहार।तभी उनके पति पास आकर बैठे और कहने लगे लता क्या तुम्हें नहीं लगता तुम मेरी मां जैसा व्यवहार करोगी तो अपना परिवार तोड़ लोगी।लता जी जैसे नींद से जाग गई, कहने लगी ..नहीं जी।मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। उठकर बेटे बहू के कमरे की तरफ चल दी,अपनी बहू का हाथ देखने और सास की छवि जो उन पर हावी हो गई थी उसे तोड़ने और सास के मामतमयी रूप में आने।

 

“ऋतु यादव”, रेवाड़ी, हरियाणा।

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