यह कहानी एक छोटे से गांव की है, जहां एक किसान का परिवार सुख-शांति से रहता था। किसान का नाम रमेश था, और उसकी पत्नी का नाम सुनीता था। दोनों की शादी को दस साल हो चुके थे, और उनके एक प्यारी सी बेटी भी थी, जिसका नाम रिया था। परिवार के सदस्य हमेशा एक-दूसरे के साथ खुशी-खुशी रहते थे। लेकिन एक दिन, गांव में एक बड़ा तूफान आया। रात भर मूसलधार बारिश और तेज हवाओं ने सब कुछ उजाड़ दिया। उस तूफान ने गाँव के कई घरों को नुकसान पहुँचाया, और रमेश का घर भी इससे अछूता नहीं रहा।
सुनीता अपने पति रमेश और बेटी रिया के साथ रात भर घर को सुरक्षित करने की कोशिश करती रही, लेकिन तूफान बहुत भयंकर था। सुबह तक घर का अधिकांश हिस्सा जर्जर हो चुका था। रमेश और सुनीता ने तय किया कि वे पास के शहर में जाकर मदद लाएंगे। रिया को बचाने के लिए सुनीता ने उसे एक कमरे में बंद किया और खुद दोनों हाथों से घर को बचाने की कोशिश करती रही।
रमेश और सुनीता शहर से मदद लाने लौटे, लेकिन रास्ते में फिर से तेज बारिश ने उनकी राहें कठिन बना दीं। किसी तरह वे घर लौटे और देखा कि रिया को चोटें आई थीं। उसे तुरंत इलाज की आवश्यकता थी, लेकिन गांव में डॉक्टर नहीं थे।
रमेश ने अपनी पत्नी को संजीदा होते हुए कहा, “सुनीता, अगर मेरी पत्नी की जगह आपकी बेटी होती तो क्या हम उसे इस कदर दर्द में देख पाते?” सुनीता ने एक लंबी सांस ली और कहा, “रमेश, मैं जानती हूं कि यह बहुत दर्दनाक है। लेकिन, तुम जानो, एक मां कभी भी अपनी बेटी को दर्द में नहीं देख सकती। अगर मेरी बेटी होती तो भी मैं वही करती जो तुमने किया। परिवार का मतलब ही यही होता है।”
रमेश ने उसकी बातों को गंभीरता से सुना और फिर कहा, “लेकिन मा, कभी कभी मैं यह सोचता हूं कि क्या हम अपनी प्रियतम को उन संकटों से बचा पाएंगे, जिनमें हम खुद फंसे हैं। क्या मैं अपने परिवार को सुरक्षित रखने में सफल हो पाऊंगा?”
इस कहानी को भी पढ़ें:
सुनीता ने अपने पति की तरफ देखा और उसे ढाढस दिया, “रमेश, जीवन में संघर्ष तो हमेशा रहेगा, परंतु हमें अपने परिवार का ध्यान रखना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। हम दोनों साथ मिलकर अपनी बेटी की देखभाल करेंगे और उसकी हर जरूरत का ध्यान रखेंगे। तुम्हारी चिंता सही है, लेकिन यह भी जरूरी है कि हम एक दूसरे का साथ दें और कभी हार न मानें। यही तो परिवार का असली मतलब है।”
रमेश ने सुनीता के चेहरे पर नजर डाली और देखा कि उसकी आंखों में एक गहरी समझ और ममता थी। वह जानता था कि पत्नी के दिल में परिवार के लिए असीम प्यार था। उसने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा और कहा, “तुम सही कह रही हो, सुनीता। हमें हर हाल में अपनी बेटी को सुरक्षित रखना है और उसे यह समझाना है कि प्यार और परवाह ही जिंदगी की असली ताकत है।”
तूफान के बाद धीरे-धीरे गांव में शांति लौटी, और रमेश ने अपनी पत्नी और बेटी के साथ मिलकर घर को फिर से ठीक करना शुरू किया। उनकी मेहनत रंग लाई, और घर फिर से उसी खूबसूरती से खड़ा हो गया, जैसे पहले था। सुनीता और रमेश के बीच प्यार और समझ बढ़ी, और रिया भी इस प्यार को महसूस करती रही।
इस घटना ने रमेश को यह सिखाया कि परिवार में चाहे कोई भी सदस्य हो, उसकी रक्षा करना और उसे प्यार देना ही असली जिम्मेदारी है। और जब भी संकट आए, तो एक साथ मिलकर उसे पार करना चाहिए। यही सच्ची ताकत है।
अभिषेक शर्मा