Moral Stories in Hindi :
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई नित्या से काम करवाने की…..जानती हो आज तक इसने खुद से एक गिलास पानी भी लेकर नहीं पिया है….और तुम इसे रसोई में लगा कर चल दी…. कहीं हाथ वाथ जल गया तो इसका ब्याह कैसे होगा सोचा भी है ।” सुनंदा जी ग़ुस्से में बहू राशि को डाँटते हुए बेटी नित्या का हाथ पकड़कर उलट पलट कर देखने लगी
” क्या ज़रूरत पड़ी थी तुम्हें रसोई में आने की ….. जरा सी बात नहीं समझती है ….हज़ार दफ़ा कहा है रसोई में ना आया कर …. हाथ पैर जल गया तो हो गया ।” कहते हुए नित्या का हाथ पकड़कर सुनंदा जी रसोई से बाहर चली गईं
“ ये क्या बात हुई माँ…. वैसे तो सबसे कहती रहती हो मेरी बेटी और बहू दोनों मेरे लिए एक समान है पर सच में ऐसा है क्या…..आपने भाभी को यूँ ही सुना दिया…. उन्होंने कभी मुझे नहीं कहा ये कर दो वो कर दो…. एक तो तुम ख़ुद कभी उनकी हेल्प करती नहीं हो….वो तो कुहू रोये जा रही थी….तब भी भाभी रसोई में ही सब्ज़ी बना रही थी…. मैं कुहू का रोना बर्दाश्त ना कर सकी तो उन्हें कहा बता दो भाभी क्या करना है…. मैं करती हूँ आप कुहू को देखो….
तब भाभी ने कहा उसे भूख लगी है…. दूध पिलाने लगूँगी तो सब्ज़ी कैसे….. फिर मैं उन्हें भेज कर सब्ज़ी देख रही थी…. वो भुनना ही तो था …. कौन सा पहाड़ टूट जाता…. और माँ क्या भाभी की माँ ने उन्हें रसोई के ही काम करवाए होंगे….. वो भी तो किसी की बेटी ही है ना…. मेरे लिए सोच सकती हो पर बहू के लिए नहीं…..
भाभी का हाथ कितनी बार जला है पर तुम कभी ध्यान नहीं देती उपर से कह देती हो रसोई में कटना और जलना आम बात है….. सोच कर देखो भाभी को कितना बुरा लगता होगा….. वो तो भाभी के संस्कार है जो वो पलट कर कुछ नहीं बोलती….. शायद इस इंतज़ार में होगी कभी तो उनकी सासु माँ में माँ की ममता जागेगी…।” नित्या सुनंदा जी के दोगले व्यवहार से आहत रहती थी…. वो जब भी कुछ कहती सुनंदा जी उसे चुप करा देती थी पर आज नित्या को ग़ुस्सा आ गया था ।
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रोती कुहू को छोड़कर राशि रसोई में वक़्त पर खाना बनाने में लगी थी….. सुनंदा जी मजे से टीवी पर कोई प्रवचन सुन रही थी
“ बहुत बोलने लगी है तू…. मुझे मत सिखाओ बहू के साथ कैसा व्यवहार करना…. जो कर रही हूँ सही कर रही हूँ…. हम भी सास ससुर की हर बात चुपचाप सुना करते थे…. मजाल है जो ज़बान जरा हिला सकें…. और हमारे घर की बेटियों से काम नहीं करवाया जाता समझी ना…।” सुनंदा जी जो एक दबंग सास के रूप में आ चुकी थी बोली
“ हाँ तभी तो रमा बुआ का वो हाल हो रखा है….रहने दो माँ तुम नहीं समझोगी…. जब अपने पर बीतती तभी समझ सकते …. शायद तुम्हें दादी ने यही सिखाया है ।” नित्या माँ को बोल निकल गई
नित्या के ये बोल सुनंदा जी को कई वर्ष पीछे ले गए…. जब वो ब्याह कर इस घर आई थी… एक जवान लड़की के जाने कितने अरमान और ख्वाहिशें होती हैं…. पति ससुराल सब सावन के अंधे की तरह हरा भरा ही दिखता है … हक़ीक़त तो पास जाकर देखने समझने से पता चलता है…..
बड़े नाज़ों से लेकर आई थी सुनंदा जी की सास… सब तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे पर हक़ीक़त में वो बहुत कड़क थी…. दो बेटियों और एक बेटे की माँ बेटियों से एक काम ना करवाती सब काम अकेले ही सुनंदा जी को करना पड़ता…. कई बार शरीर चूर चूर हो जाता पर मजाल जो आराम कर सकें…
दोनों ननदों का जब ब्याह हुआ राजकुमारी की तरह विदा किया पर क्या पता था राजकुमारी को राजमहल में भेज रहे हैं या कहीं और…. रमा के काम काज ना आने से सौ ताने मिलने लगे…. वो तमक कर मायके आ गई…. सुनंदा जी ननद को प्यार से समझाना चाहती थी कि आपका घर है जैसे मैं यहाँ सब करती आपको भी करना चाहिए पर वो तो अकड़ में रहती….
मुझसे नहीं होगा फिर क्या था ससुराल वालों मे कह दिया फिर रखो अपनी राजकुमारी को अपने पास…. तब से रमा मायके में ही रहने लगी….. सुनंदा जी के पति की सरकारी नौकरी थी सो वो शहर में रहने लगे….रमा का फिर ना ब्याह हो पाया ना वो किसी घरवालों के दिल में जगह बना पाई…. कोई कितना एक पैर पर खड़ा रह सकता था……
सुनंदा जी सास की बात सुन सुनकर यही सोचती रहती सास को हमेशा रुआब में रहना चाहिए और यही बात वो सोचते सोचते बहू को जब लाई तो वैसे ही व्यवहार करने लगी थी पर नित्या ना तो रमा बनना चाहती थी ना सुनंदा जैसी सास चाहती थी…. वो कई बार बातों बातों में सुनंदा को सुना दिया करती थी पर क्या मजाल सुनंदा जी के कानों पर जूं रेंग जाए….
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तभी छनाक की आवाज़ से सुनंदा जी को होश आया….. अतीत पीछे छोड़ वो दौड़ कर आवाज़ की दिशा में भागी….
राशि एक हाथ से कुहू को पकड़ी हुई थी दूसरे से कुछ बर्तन निकालने का प्रयास कर रही थी जो उसके हाथ से छूट गया….
“ क्या हुआ भाभी….. क्यों आप सब अकेले करने में लगी रहती हो…. कुहू को मुझे दो…… भाभी ये घर हम सबका है और कुहू भी हम सबकी ज़िम्मेदारी है….. यूँ अकेले करेंगी तो अकेले ही रह जाएगी…।” नित्या सुनंदा जी को सुनाते हुए बोली
“ आप पढ़ाई कर रही थी ना नहीं तो कुहू को लेकर गई थी आपके पास….।” राशि धीरे से बोली
“ लाओ दो कुहू को…. और हाँ बहू इसको लेकर रसोई में मत आया करो… बच्ची है आग के पास लेकर रहोगी कहीं कुछ हो गया तो …..।“ कहते हुए सुनंदा जी कुहू को गोद में ले ली
“ और हाँ जब कुछ काम अकेले नहीं हो पाए तो मुझे कह देना…. ऐसे अकेले करोगी तो हमें लगेगा तुम ख़ुद सब कर सकती हो….।” कह सुनंदा जी कुहू को लेकर हॉल में आ गई
पीछे पीछे नित्या भी आ गई
“ थैंक्यू माँ …. तुम्हें समझ तो आया भाभी कोई ग़ैर नहीं है …. जब वो परायी होकर हमें अपना मान हमारे लिए सब कुछ करने को तैयार रहती है तो हम उनके लिए क्यों नहीं सोच सकते…..देखा कुहू आपकी दादी समझदार हो रही है…।” कुहू के गालों को प्यार से सहलाते नित्या ने जब कहा तो कुहू हँस दी
“ हाँ हाँ बना लो बुआ भतीजी मेरा मज़ाक़…. वो क्या है ना सास का जो चोगा पहना वही दिखा रही थी अब तो भई हम दो दो बेटियों की माँ बनेंगे…. एक काम करेंगी तो दूजी क्यों आराम करेंगी…. कल से तू भाभी की मदद करना …. अब तेरी भाभी को डाँटूँगी नहीं….।” सुनंदा जी ने ज्यों ही कहा नित्या माँ के गले लग गई…..
दूर रसोई में काम करती राशि मन ही मन भगवान को धन्यवाद कर रही थी ऐसी सुलझी हुई ननद देने के लिए जो शायद कल की परिस्थितियों को बख़ूबी समझ पा रही थी।
दोस्तों बहुत घरों में बेटियों को सच में ऐसा बना कर रखते हैं कि वो कोई काम ही नहीं करती….. वो ये क्यों भूल जाते हैं जिसे बहू बनाकर ला रहे हैं वो भी किसी की नाज़ों पली बेटी होगी ….वो भी शायद आराम करके ही यहाँ आई होगी पर ससुराल आते ही सारी ज़िम्मेदारियों की गठरी उसके सिर पर डाल देना ये कहीं से जायज़ नहीं है….. आप क्या सोचते हैं ज़रूर बताएँ….. रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई
Kya main aapki kahani Ko use kar sakti hun please jarur bataen