“मम्मी जी, मेरी माँ की तबियत खराब है |पापा ने सुबह फोन किया था| मैं दो चार दिन के लिए मायके जाना चाहती हूँ |” नैना ने सुबह की चाय देते हुए अपनी सासू माँ मालती जी से कहा|
“निखिल से पूछ लिया? क्या कहा उसने ? ” मालती जी ने पूछा |
“उन्हें अभी नहीं बताया है |वे बाथरुम में हैं |अभी तुरंत फोन आया था |बाथरूम से निकलेंगें तो बता दूंगी|” नैना ने कहा |
“क्या बताना है मुझे |”निखिल बाथरूम से निकल कर माँ की बगल में बैठते हुए बोला |
” अरे बताना क्या है? वही मायके जाने का बहाना , माँ की तबियत खराब है |”मालती जी बोली |
“नहीं, नहीं बहाना नहीं है|मम्मी की तबियत सच में खराब है |पापा ने फोन किया है |” नैना झट से बोली |
“वो तो हर समय उनलोगों को कुछ न कुछ होता ही रहता है |अब उम्र हो गई |बुढ़ापे का समय है तो कुछ न कुछ तो होगा ही |इस उम्र में संतान को माता पिता के साथ होना चाहिए, पर वो लोग भी क्या करें, उनकी संतान तो उन्हें छोड़ कर विदेश में बैठी है |” मालती जी नैना को सुनाते हुए बोली |
“भैया सिर्फ पांच साल के लिए गए हैं |तीन साल पूरे हो गये हैं |दो साल के बाद वे लोग वापस यहाँ आ जायेंगे |” नैना ने कहा |
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“तबतक तुम लगी रहो |शादी के दो साल हो गये, पर तुम्हारा ध्यान तो वही लगा रहता है | यहाँ का तो कुछ ख्याल ही नहीं | शाम को निखिल के साथ चली जाना और मिलकर आ जाना |” मालती जी ने निखिल की ओर देखते हुए कहा |
“हाँ, यह ठीक है | |अभी आफिस जाते हैं |शाम को चलेंगे |” निखिल ने भी सहमति जताई |
“लेकिन पापा कुछ घबराये लग रहे थे |मैं अभी जाना चाहती हूँ |हो सकता है मम्मी को हास्पिटल ले जाना पडे |” नैना घबराते हुए बोली |
“और तुम्हारा आफिस |”निखिल ने पूछा |
” मैं अभी दो दिन की छुट्टी ले लूंगी और फिर आगे देखूंगी, क्या करना है?जरूरत होगी तो छुट्टी बढ़ा लूंगी|”नैना बोली |
“लेकिन यहाँ का क्या? मेरे घुटने का दर्द बढ़ा हुआ है | मेरी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही है |”मालती जी झट बोली |
” आप को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है |कामवाली और खाना बनाने वाली दोनों अभी आती होगी, मैं उन्हें अच्छे से समझा दूंगी |आप को परेशानी नहीं होगी |”
“वो सब तो ठीक है, पर रहने की कोई जरूरत नहीं है| देखकर आ जाना| रूक मत जाना |”मालती जी ने जोर से बोला |
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” अभी तो मैं गई भी नहीं हूँ |पहले जाकर देखूँ तो, कैसी तबियत है ? तबियत खराब होगी तभी रहूंगी |आप इतना परेशान क्यों हो रही हैं ?”नैना को भी गुस्सा आ गया |वह भी जोर से बोली |
“नैना, यह क्या तरीका है, माँ से बात करने का |” निखिल बोला |
“मैंने ऐसा क्या कहा? ” नैना ने पूछा |
“अरे इसे कुछ मत कहो |यह नहीं समझेगी |अपने मायक़े वालों के आगे इसे कुछ दिखता ही नहीं |” मालती जी ने ताना मारा |
“मम्मी जी आप भी तो माँ है | आप को कुछ होता है तो क्या हम आप को छोड़ देते हैं?” नैना ने गुस्से में कहा -“आप की अच्छी तरह देखभाल करती हूँ ना, फिर अपनी माँ को क्यों छोड़ दूं? “
“नैना” निखिल गुस्से से बोला -“ऐसा क्यों बोल रही हो ? ये मेरी माँ है | इसका सदा सम्मान करो |मैं जो भी हूँ, माँ की बदौलत हीं हूँ |पापा तो बचपन में ही उपर चले गये थे |माँ ने ही इतनी अच्छी तरह पालन -पोषण किया, पढाया- लिखाया, तभी मै आज इतनी अच्छी जिंदगी बिता रहा हूँ |मेरी जिंदगी में माँ का महत्व बहुत ज्यादा है और मेरा फर्ज है कि मैं अपनी माँ का जिंदगी भर पूरा- पूरा ध्यान रखूं |हम माँ के लिए जो भी करते हैं, वह हमारा कर्तव्य है |
उनकी संतान होने के नाते करते हैं, कोई एहसान नहीं करते उनपर | तुम्हें भी हमेशा इस बात का ध्यान रखना है |समझी |”निखिल गुस्से में उठ कर खड़ा हो गया |कमरे का वातावरण तनाव से भर गया |
“अरे ये क्या समझेगी? मायके में संस्कार, व्यवहार, रिश्तों का महत्व सिखाया गया हो तब ना ? ” मालती जी व्यंग्य से बोली |
“नहीं मम्मी जी मैं सब समझ गई | पहले मैं कुछ दुविधा में थी, पर आपलोगो की बातें सुनकर मैं माँ का महत्व और संतान का माता- पिता के फर्ज को बहुत अच्छी तरह समझ गई |”
नैना एकदम शांत स्वर में बोली -“निखिल मैं माँ के प्रति तुम्हारे विचार जानकर बहुत खुश हूँ, पर जो जो बातें तुमने अपनी माँ के लिए कहा वो सभी बातें मेरी माँ पर भी लागू होती है |मेरी माँ ने भी मेरे लिए वो सब किया है, जो तुम्हारी माँ ने तुम्हारे लिए किया है | तुम्हारे मन में तुम्हारी माँ के प्रति जो भाव हैं, मेरे मन में मेरी माँ के प्रति भी वही भाव हैं | तुम्हारी माँ , मेरी माँ में फर्क क्या है? माँ माँ में भेदभाव क्यों? माँ तो माँ है, तुम्हारी हो या मेरी , फिर उनके प्रति फर्ज निभाने में भेदभाव कैसा?” नैना ने एक गहरी सांस ली |
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कमरे में सन्नाटा छा गया |तीनों चुप हो गये |थोड़ी देर बाद नैना बोली -“मैं जा रही हूँ और जब मम्मी की तबियत ठीक हो जायेगी, तब आ जाऊंगी |आप लोग अपना ध्यान रखियेगा |” कहते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगी |
“रूको नैना, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ |” निखिल ने कहते हुए माँ की ओर देखा |माँ ने भी सिर हिला कर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी |कमरे का तनाव खत्म हो गया था |
भेदभाव
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |