माँ क्या सास अच्छी नहीं होती??-रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

अच्छा सोचेंगे तो अच्छा ही होगा सुमन तू क्यों ये सब बोल रही है। ये बातें मीनू ने सुमन से तब कहीं जब वो उसकी बेटी की शादी तय होने पर बधाई देने आई।

“बधाई हो मीनू , बेटी की शादी तय हो गई। तेरी दीक्षा का बहुत जल्दी रिश्ता हो गया। अब तो बेटी ससुराल चली जायेंगी। देखना कही उसकी सास नूतन जैसी नहीं हो।बेचारी का जीना दुश्वार कर दिया है उसकी सास ने।‘‘सुमन अपने लय में मीनू से कहे जा रही थी

मीनू ने देखा दीक्षा सुमन के लिए चाय लेकर आ रही थी जो दरवाजे पर ही रूक गई।

‘‘अरे नहीं सुमन तुम तो कबसे मुझे जानती हो, हम पड़ोसी से ज्यादा दोस्त हैं। तुम्हें लगता है मैं दीक्षा के लिए गलत घर परिवार चुन सकती।बहुत अच्छे लोग हैं। दीक्षा को बेटी जैसा प्यार देगी।अच्छा सोचेंगे तो अच्छा ही होगा ।”

इस बीच दीक्षा चुपचाप चाय रख कर चली गईं।

थोड़ी देर बाद सुमन के चले जाने के बाद दीक्षा मेरे पास आई और बोली,‘‘ मम्मा क्या सच में सास अच्छी नहीं होती? वो क्या तुम्हारे जैसे प्यार नहीं करेंगी?‘‘सुमन की बातें सुन कर जो दीक्षा ये सोच कर खुश थी कि उसकी मम्मी जी ( सास) बिल्कुल उसकी मम्मी के जैसी है अब डर उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।

‘अरे नहीं बेटा ऐसा कुछ नहीं है। ‘‘अच्छा सोचेंगे तो अच्छा ही होगा बेटा!क्यों सोच रही बेटा सास अच्छी नहीं होती ।क्या सास माँ नहीं होती? क्या बहु बेटी नहीं होती? बस ये समझो सब नजरिए की बात है।तुमने दादी के साथ मेरा रिश्ता देखा है न? फिर नानी और मामी का? तुम्हें क्या लगा देख कर?

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मीरा कभी ना होगी मोहन की … – अर्चना खंडेलवाल

‘‘मम्मी आप लोगों में तो बहुत प्यार था। दादी पापा से ज्यादा तुम्हें अपनी सारी बात बताती थी। हम दोनों भाई बहन को भी कितना प्यार करती थी। हम्म नानी भी मामी जी को तुम्हारी तरह ही प्यार करती है। मैं भी बस यही सोचती हूं मम्मी ससुराल में मम्मी जी की बेटी बन कर रहूंगी। बिल्कुल आपके और दादी के जैसे बेटी बन कर उनकी सहेली बनकर।‘‘दीक्षा आश्वस्त हो गई और कमरे से चली गईं।

मीनू दीक्षा को समझा तो दी पर खुद अतीत के गलियारों में घूमने लगी। उसका सफर आसान नहीं था। शादी कर के जब आई तो कड़क सास मिली थ। मीनू उनकी कड़कती आवाज से सहम जाती थी। ससुर के गुजर जाने के बाद कपिल और मॉं ही हमेशा साथ रहते। कपिल अकेली संतान थे तो मॉं की हर बात सर आंखों पर रखते। बेटे की शादी तो कर दी पर मीनू सास को एक आंख न सुहाती।कहती रहती मेरे बेटे को मुझसे दूर कर देगी। मीनू चुप रहकर सब कुछ सामान्य रखने की कोशिश करती रही।

 अपनी मॉं को जब भी कुछ बताती तो वो समझाते हुए कहती बेटा समधन जी हमेशा बेटे के साथ रही है बहुत वक्त बाद बेटे को तुम्हारे साथ बॉंट रही है।तुम बस धैर्य रखो। उनके दिल को समझने की कोशिश करो। कोई मॉं बुरी नहीं होती बेटा। उनकी बेटी नहीं है इसलिए उनको बेटी कैसी होती ये नहीं पता। बस तुम उनकी बेटी बन जाओ। क्या जब मैं तुम्हें डांटती हूं तो तुम मुझसे लड़ती हो? नहीं ना। तो बस वैसा ही समझो। ज्यादा परेशान मत हो। अच्छा करो अच्छा होगा। सास बहू का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता बेटा। एक आग है तो दूसरे को पानी बन जाना चाहिए। घी बन गई तो सब स्वाहा हो जायेगा। मेरी बेटी हो तुमपे पूरा भरोसा है। ‘‘

मीनू सास के साथ ज्यादा वक्त बिताने लगी। उनके मन की बात निकलवाने लगी।उनसे सलाह लेकर काम करती बिल्कुल वैसे जैसे मैं कुछ नहीं जानती आप ही बताइए ।उनकी सौ बातें तो जरूर सुनती पर इन सब के बीच सास सीखाती भी रहती ।कहते है बेटी तो एक पेड़ है जिसकी जड़ें उखाड़ कर हम दूसरे के घर की हरियाली बनाने भेजते। अच्छा खाद पानी मतलब प्यार अपनापन मिले तो पेड़ की जड़ें उस घर में भी रच बस जाती। और न मिले तो समझिए रेगिस्तान में लहलहाने की कोशिश करनी पड़ती।मीनू के सौम्य व्यवहार और अपने पन से सास की कड़क बोली अब मीठी होने लगी। सास अब मीनू की मॉं बन गई। इसके लिए मीनू को वक्त लगा पर उसने रिश्ता बचा लिया।

मीनू की सास अब मीनू की हर बात सुनती।जब बच्चे हुए तो मीनू से ज्यादा दादी उनका ख्याल रखती। दीक्षा के बाद जब यश आया तो मीनू हमेशा सोचती जब सास बनूंगी बहू नहीं बेटी समझूंगी। जैसे भी हो जो करना पड़ेगा करूंगी। बच्चे मेरे है तो उनकी खुशियां भी मेरी ही होगी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बच्चों का झगड़ा –  शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

‘‘मम्मी -मम्मी कब से आवाज दे रही हूं कहॉं खोई हुई थी।‘‘दीक्षा शायद बहुत देर से उसको आवाज दे रही थी।

‘‘कुछ नहीं बेटा आज तुम्हारी दादी की याद आ गई। कितनी खुश होती पोती की शादी में।‘‘मीनू उदास स्वर में बोलीं

कुछ महीनों बाद दीक्षा की शादी हो गई। उसी शहर में ससुराल होने की वजह से कुछ दिनों के बाद मीनू ने दीक्षा को सबके साथ अपने घर खाने पर बुलाया।

दीक्षा की मम्मी जी मीनू का हाथ पकड़ कर बोली समधन जी आपने मुझे अपना बेशकीमती हीरा दे दिया। मैं बहुत लकी सास हूं जो ऐसी बहू मिली। लगता ही नहीं बहू है। इतने अच्छे संस्कार और इतना अपनापन बिल्कुल आपकी ही परछाई है। मैंने आपको बताया नहीं पर शादी से पहले जब हम आपके घर आ रहे थे दीक्षा को मिलने तो गलत रास्ते पर चल गये थे। कुछ लोगों से जब पता पूछा तो बोले अच्छा कपिल जी के घर जाना है। बहुत सज्जन लोग हैं। आप लोगों का ऐसा व्यवहार ही है ना जो लोग इतनी इज्जत देते नहीं तो आज किसी को किसी की क्या पड़ी।

मीनू दीक्षा पर नाज़ कर रही थी। उसके दिए अच्छे संस्कार आज उसके घर संसार को लहलहा रहे थे।अगर वो कड़वी बातें सिखाती तो दीक्षा कभी भी मम्मी जी में अपनी माँ को नहीं देखती।

जो बोए पेड़ बबूल का आम कहाँ से पाये।अच्छी सीख और अच्छी सोच की बीज अगर बचपन से ही बो दिया जाये तो वो आगे चलकर आपके ही काम आते। कोई बहू बुरी नहीं होती ,कोई सास बुरी नहीं होती बस नजरिए की बात होती ।क्या हम कभी अपनी सास को अपनी मां की जगह रख सकते सब कहेंगे कभी नहीं। वैसे ही कोई भी सास बेटी की जगह बहू को नहीं रख सकती। बस हम इसी जगह पर गलत हो जाते। अगर आपकी बेटी अच्छी है और जब वो ससुराल में बहू बनकर जाती हैं तो बुरी कैसे हो सकती? वैसे ही सास अगर बेटी के लिए अच्छी माँ है तो अपनी बहु के लिए अच्छी सास क्यों नहीं हो सकती। बदलना खुद को पड़ेगा अपने लिए अपने बच्चों के लिए।आप और मैं एक औरत को समझने की कोशिश करें। आत्मसात करने की कोशिश करें। आपको अच्छी सास नही मिली तो क्या हुआ आप तो अच्छी सास बन सकती है? शुरुआत कर के तो देखिए।

रश्मि प्रकाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!