“हाँ माँ आज कैसी हो तबियत ठीक हैं न “हाँ रे ठीक हुँ छूटकि क्या कर रही हैं गोलू स्कूल गया हैं।
हां माँ तभी तो घर मे शान्ति हैं वरना आपसे बात हो पाती क्या उधम मचाये रखता हैं पुरे घर मे दोनो मिलकर।
हां रे भैया भी बोलता हैं सोनू की भी आजकल काफी शैतानी बढ गई हैं।
कैसे हैं सब भैया भाभी, होली मे आ रहे हैं क्या, भैया को तो बोकारो की होली बहुत पसंद हैं मुझे भी अच्छा लगता हैं कितने मजे होते थे मा होली मे दही बड़े बनते थे पुए पकवान क्वाटर मे सब लोग एक साथ सुबह रंग खेलते फिर शाम को साफ सुथरे नये कपडे पहनकर गुलाल खेल ने निकल पडते एक दुसरे से गले मिलते बुजुर्गो को प्रणाम विनीता बोलते बोलते बचपन की यादो मे खो गई!
“हाँ सच मे वह दिन कितने अच्छे थे आजकल तो बच्चे पडोसियो को पहचानते तक नही हैं आधे घरो के बच्चे तो बाहर रह्ते हैं रास्ते सुने,सैक्टर सुना स्ट्रीट सुने पडे हैं और मेरा घर भी सुना”माँ बोलते बोलते थोडी इमोशनल हो गई थी।
ओह माँ अब रोना नही क्या करे सब अपनी अपनी लाइफ मे व्यस्त हैं अब वह बचपन वाला दिन तो नही आ सकता न अच्छा बताओ होली मे दही बडे बना रही हो न!
नही किसके लिए बनाऊ तेरा भैया भाभी तो आयेगा नही उनलोग यह छुट्टियो को अच्छे से उपयोग कर रहा हैं बाहर जा रहा हैं घूमने,तुम्हरा भी अपना प्रोग्राम हैं अब किसके लिए बनाऊ हम बुढे बूढ़ी के लिए जिन्हे यह सब हजम नही होती,कितनी आश लगाई थी की इस बार जब दुसरे त्यौहारो मे कोई नही आया तो तेरे भैया भाभी इस बार जरुर आयेंगे कितनी इच्छा होती है रे तेरे भतीजे को देखने की कहते कहते माँ रो पड़ी।
“ओह माँ अब रो मत सबको अपनी जिन्दगी जीने दो तुम भी खुश रहो”
मैने किसी को रोका हैं क्या सब जिए अपनी जिन्दगी बस सिर्फ इतनी सी चाहत रह्ती हैं की त्यौहार मे मेरा घर भरा रहे छोटे बच्चे मेरे आँगन मे खिले बस इतनी सी खुशी ही साल भर संजोय रख लेती हुँ।
माँ की बाते सुनकर विनीता भी भावुक हो गई छूटकि के उठने का कारण देकर उसने फोन रख दिया।
शाम को रवि के घर से फोन आया तो उधर से विनीता की सास भी होली मे घर आने की बात कर रही थी उन्हे भी आश रह्ती हैं त्यौहारों मे बच्चो के घर आने की लेकिन रवि ने अपनी माँ को ऑफिस मे छुट्टी न मिल पाने का कारण देकर मना कर दिया।
रवि के फोन रखते ही विनीता ने कहा” चलो इस बार होली मे घर चलते हैं माँ बाबूजी कितने आश लगा कर रखते हैं हमारी उन्हे बहुत खुशी होगी”
रवि एक व्यंगात्मक हँसी के साथ बोला “बन्द करो यह नाटक तुम्हरा कल तक इस बात को लेकर बहस हो रही थी की तुम्हे होली मे घर नही जाना हैं क्युंकि तुम को अकेले होली मनानी हैं अपने सहेलियो के साथ आज अचानक माँ बाबूजी का ख्याल आ गया तुम्हे ज्यादा लोग, मेरे रिश्तेदार अच्छे नही लगते इसलिए नही जा रही थी हर त्यौहार पर माँ बुलाती तुम हमेशा कुछ न कुछ कारण दे देती नही तो मुझसे झूठ बोल ने के लिए बोलती हो आज यह हृदय परिवरतन कैसे हो गया।
विनीता बोल पड़ी”आप चल रहे हैं की नही “
रवि “अरे होली मे तो असली मजा छोटे शहरो गाँवो मे ही आता हैं जरुर चलेंगे लेकिन तुमने बताया नही हृदय परिवर्तन हुआ कैसे!
विनीता मन ही मन सोच रही थी हृदय परिवर्तन माँ के दर्द को जानकर ही हुआ ,जब अपनी माँ को दर्द हुआ तो समझ आया सास का दर्द क्युंकि सास भी किसी की माँ हैं। उसने मन ही मन सोचा जब भी मौका मिलेगा एक चक्कर ससुराल और मायके का जरुर लगा लेगी।
अगर सम्भव हो तो कोशिश करे त्यौहारो मे घर जाकर बूढ़ी आंखो को खुशी देने की।
धन्यवाद
स्वरचित मौलिक
आराधना सेन