माँ की वेदना – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  बस अपना मुकुल की नौकरी अमेरिका में लग जाये, तो अपने जीवन की मुराद पूरी हो जाये।

        कह तो सही रहे हो मुकुल के पापा,तमने पैसे का इंतजाम कर ही लिया है, भगवान जरूर हमारी कामना पूर्ण करेंगे।बस कभी कभी मन मे ऐसे ही ख्याल आ जाता है मुकुल के पापा-वहाँ जाकर मुकुल हमे भूल गया तो?दुःख तकलीफ में कैसे हम जा पायेंगे-कैसे वो आ पायेगा??

      अरे कमला तुम तो यूँ ही उलट बात सोचती हो,शुभ शुभ सोचा करो।अपना मुकुल तुम्हे क्या ऐसा लगता है?

          रघुबर और कमला का बस एक ही सपना था कि उनका बेटा विलायत में रहे।ऐसा सोचकर भी उनका सीना चौड़ा हो जाता।असल मे उनका मुकुल अमेरिका जाये, ये प्रेरणा उन्हें रघुबर के दूर के रिश्ते के भाई के बेटे के अमेरिका जाने और वहीं बस जाने से प्राप्त हुई थी।पता नही ये प्रेरणा थी या उनके प्रति ईर्ष्या या फिर विदेश जाने का क्रेज।

पर इतना जरूर था कि रघुबर अपना सब कुछ भी दांव पर लगा कर बेटे को अमेरिका भेजने को लालायित थे।भाग्य की बात थी कि मुकुल को एक अमेरिकी कंपनी से ऑफर लेटर आ गया।ऑफर लेटर प्राप्त होने की बात सुनकर मुकुल को जो खुशी हुई होगी वो तो अपनी जगह,पर रघुबर का तो मन मयूर  नाच उठा।मुकुल के अमेरिका जाने की गाथा रघुबर ने सब मित्रों और रिश्तेदारों के समक्ष गा दी।अब जाकर उसके अंतःकरण को शांति प्राप्त हुई थी।

        मुकुल अमेरिका चला गया,उसके जाने के कुछ दिन बाद ही रघुबर और कमला को घर मे अजीब सा सूना पन महसूस होने लगा।रघुबर तो बाहर काम पर जाता था सो हो सकता है उसे मुकुल के जाने से इतना फर्क न पड़ा हो,या पुरुष होने के कारण अपने मनोभाव को दबाने में सफल रहा हो,पर कमला मुकुल का यूँ चले जाना जहां अपनी मर्जी से अपने बेटे से मिल भी न सके,उसे साल रहा था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सम्मान – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

रघुबर की खुशियों के कारण और मुकुल की तरक्की को ध्यान में रखते हुए वह अपनी वेदना को दबाये रखती।कमला अंदर ही अंदर घुलती जा रही थी।वह अपने पति रघुबर को भी अपनी व्यथा नही बता पा रही थी।दिन प्रतिदिन कमला का वजन घटता जा रहा था।रघुबर उसे डॉक्टर के पास भी लेकर गया पर कोई सुधार नही हुआ।आखिर कमला ने बिस्तर पकड़ लिया।

       एक रात अर्ध बेहोशी की हालत में कमला मुन्ना मुन्ना बड़बड़ा रही थी तब रघुबर की समझ मे आया कि यह तो मुकुल जिसे वह बचपन मे मुन्ना ही कहती थी,उसकी याद में मरी जा रही है।उसकी हालत देख रघुबर की आंखे भी डबडबा गयी।वह सोच रहा था कि वह मुन्ना की याद को कमला से छिपाये हुए है,

पर ये कमला तो उससे भी अधिक मुन्ना की याद में पीड़ित है।बेबस रघुबर मुन्ना को कहां से लाकर दे।कमला की हालत उससे देखी नही जा रही थी।साथ ही वह यह भी नही समझ पा रहा था कि मुन्ना को वापस आने को किस मुँह से कहे।

        असमंजस की स्थिती में रघुबर खुद अवसाद में जाने लगा था।अपने मन की बात बिस्तर पर पड़ी कमला से भी कैसे कहे?सुबह सुबह दरवाजे को खड़खड़ाने की आवाज सुन किसी प्रकार रघुबर ने दरवाजा खोला तो सामने तो मुकुल खड़ा था।हर्ष में रघुबर चीख उठा री कमला देख तो तेरा मुन्ना आया है।तेरी ममता उसे खींच लायी है।

चेहरे पर उल्हास आंखों में आंसुओं की धार लिये रघुबर मुकुल का हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ कमला के पास ले गया।कमला ने मुकुल को अपने सीने से चिपका लिया।मुकुल कोई बच्चा तो था नही जो कुछ भी न समझ नही पाता।वह तो उसके मित्र ने उसे उसकी माँ की बीमारी की सूचना दे दी थी,तो वह आ गया था।

       चार दिन में ही कमला ने बिस्तर छोड़ दिया था, पर कभी कभी वह उदास हो जाती,उसे लगता कि मुन्ना तो फिर चला जायेगा।यही सोच रघुबर की भी थी।मुकुल खुद सोच रहा था कि जब वह अमेरिका वापस जायेगा तब माँ का क्या होगा?सब अपनी अपनी तरह की सोच से पीड़ित थे।आखिर मुकुल के वापस जाने का समय आ रहा था।

रात में मुकुल अपनी माँ के पास आया और बोला माँ।मुकुल के माँ कहते ही कमला की रुलाई फूट पड़ी,मुकुल का हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगा घिघिया सी गयी कमला,मुन्ना मुन्ना कहते वह मुकुल से चिपट गयी।किसी प्रकार मां को सुलाया।अगले दिन मुकुल ने अपने पिता को अपना अंतिम फैसला सुना दिया-वह अमेरिका वापस नही जायेगा, यही भारत मे नौकरी ढूंढेगा।वह अपनी मां और पिता से दूर नही रह सकता।

       आज रघुबर को न समाज की चिंता थी,न उसे मुकुल को अमेरिका भेजने की अभिलाषा थी,न विदेश का क्रेज था,उसे ध्यान आ रहा था बस मुकुल के विछोह में हुई कमला की हालत का।रघुबर ने भी आगे बढ़ अपने मुन्ना को अपनी बाहों में समेट लिया।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#आखिरी फैसला साप्ताहिक  शब्द पर आधारित कहानी:

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!