संजय जी की कोठी रोशनी में नहाई जगमगा रही थी। कोठी से लेकर लान तक रोशनी की सजावट की गई थी। आज उनके बेटे शैलेश की शादी का रिसेप्शन जो था। मेहमानों की आवाजाही लगी थी। चूंकि संजय जी अच्छी बड़ी पोस्ट पर कार्यरत थे सो कुछ संभ्रांत व्यक्ति भी वहां उपस्थित थे।
स्टेज पर बैठे दुल्हा-दुल्हन की जोडी देख सब प्रसन्न हो संजयजी एवं साधना जी को बधाई देते हुए प्रशंसा कर रहे थे। वे दोनों खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। खुशी की आभा उनके चेहरे से फूटी पड रही थी। गीतिका पढ़ी लिखी आधुनिक विचारों की लड़की थी सो वह परिवार को अधिक महत्व नहीं देती थी। वह परिवार के नाम पर केवल स्वयं एवं पति को ही मानती थी।
खैर शादी के बाद वे सब एक साथ रहने लगे शैलेश उनका इकलौता बेटा जो था और सी.ए. के रूप में कार्यरत था। बाप बेटे के ऑफिस जाने के बाद सास बहू घर में रह जाती। साधना जी गीतिका के साथ घुलने मिलने की कोशिश करतीं। उसे प्रेम पूर्वक रखतीं उसके आराम का पूरा ध्यान रखतीं किन्तु वह तो अपने में ही मस्त रहती।
समय चक्र घूमा गीतिका दो बच्चों की मां बन गई। बेटी तनु एवं बेटा मनु। बच्चे होने के बाद सारी जिम्मेदारी सास पर छोडकर अपने कार्यों में जैसे सहेलियों के साथ घूमना,किटी पार्टीज शॉपिंग में मस्त रहती। घर की कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती। बच्चे भी माँ को घर में न पाकर दादी से चिपके रहते।
समय कब किसके लिए रुका है। पांच साल बीत गए और आज संजय जी का रिटायरमेंट होना था,सो वे रिटायर हो घर आ गए।
संजय जी स्वस्थ एवं उर्जावान थे सो बुढ़ापे की झलक अभी उनमें दिखाई नहीं देती थी। उन्होंने सोचा कि अभी नौकरी से रिटायर हुआ हूं, जीवन से नहीं। अब साधना के साथ जीवन की दूसरी पारी खेलने को तैयार हूं , साथ ही पोते-पोती के साथ खेलने का आनन्द लेना चाहते थे जो अब तक नौकरी के कारण नहीं ले पा रहे थे।
किन्तु सोचा कब होता है। भविष्य के गर्भ में न जाने कौन-सी योजनाएं छिपीं रहतीं हैं कार्यान्वित होने को।
चार साल तो आराम से कटे, अब गीतिका की नज़रें बदलने लगीं। उसे उन लोगों का यहां रहना खटकने लगा। उसकी सहेलियां रोज उसके कान भरतीं, क्या गीतिका इतनी आलीशान कोठी की मालकिन है फिर भी अच्छी तरह इनजाय
नहीं कर पाते। तेरे सास-ससुर जो रहते हैं कुछ तो लिहाज करना पड़ता है।ऐसा कर उन्हें वृद्धाश्रम भेज दें, फिर आराम से जिन्दगी के मजे ले। इस तरह की रोज-रोज कहीं बातों का उस पर असर होने लगा, और सास-ससुर को वृद्धाश्रम
भेजने का विचार उसने पुख्ता बना लिया।
अब वह किसी भी बात को लेकर साधना जी से उलझने लगी। उल्टे सीधे जबाब देती जिससे साधना जी बहुत आहत हो जाती। अक्सर हर दूसरे तीसरे दिन घर का वातावरण कलह युक्त हो जाता। साधना जी दुखी होकर रो पड़तीं । बच्चे भी दादी को रोता देख दुखी होते और पूछते दादी आपकी तबीयत खराब है तो दादू को बोलो न डाक्टर के ले चलें । वह हंस कर बच्चों को बहला देती। घर में शांति बनाए रखने हेतु वे पति को भी कुछ नहीं बतातीं।
एक दिन संजय जी के कुछ साथियों ने वे भी सेवा निवृत थे पिकनिक का कार्यक्रम बनाया था। सो उन्होंने साधना जी को कल पिकनिक के हिसाब से कुछ खाना बना कर ले चलने की बात की। अब साधना जी असगंजस में थीं कि वे पिकनिक पर जायेंगी तो पीछे घर का काम तथा बच्चों को कौन सम्हालेगा। उन्हें विचार मग्न देख संजय जी बोले तुम चुप कैसे रह गईं कोई परेशानी है क्या !
हाँ सोच रही हूं कि मेरे जाने के बाद पीछे घर और बच्चों को कौन देखेगा। यह सुनते ही संजय जी बोले क्यों गीतिका कहां है क्या वह यह सब नहीं देखती। साधना जी से कोई उत्तर देते नहीं बना। उनकी चुप्पी ने हकीकत बयाँ कर दी।
संजय जी कहाँ है गीतिका।
वह तो अपनी सहेली के यहां गई है। ठीक है तुम कल की चलने की तैयारी कर लो निश्चित रूप से चलना है कोई ना नुकर नहीं सुनुंगा।
शाम को गीतिका के आने पर साधना जी ने उसे बताया कि कल उनका पिकनिक जाने कार्यक्रम है सो वह घर पर रहकर बच्चों को सम्हाले।
ये कैसे हो सकता है मम्मी जी कल तो मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने का कार्यक्रम है सो में कैसे घर में रुक सकती हूं। आप फिर कभी चली जाना साधना जी चुप रह गईं।
तभी संजय जी जो चुपचाप खडे सास-बहु का वार्तालाप सुन रहे थे बोले- गीतिका घर और बच्चों के सम्हालने की जिम्मेदारी तुम्हारी है साधना की नहीं। उसने अपने बच्चों को सम्हाल लिया अब वह यह सब नहीं करेगी। तुम मूवी देखने एक दिन बाद भी जा सकती हो, साधना आज ही मेरे साथ जायेगीं।
उस वक्त तो गीतिका चुप रही किन्तु शैलेश के आने पर उसके कान भरे कि मैं अपना मूवी देखने का प्रोग्राम केंसिल नहीं कर सकती। मम्मी-पापा को क्या बुढाये में पिकनिक शौक चर्राया है। बस मैंने कहा दिया कि मैं घर में नहीं रूकूंगी।
शैलेश बोला तुम नहीं रुकोगी तो मत रुको
किन्तु मम्मी-पापा भी नही रुकेंगे वे बूढ़े हैं तो क्या उनकी कोई इच्छाएं नहीं हैं पापा के सब दोस्त जा रहे है तो वे क्यों नहीं जायेंगे।
फिर पीछे से घर के काम और बच्चों का क्या होगा गीतिका बोली ।
शैलेश बच्चों को तुम अपनी किसी सहेली के घर छोड देना और काम आकर कर लेना ।
यह संभव नहीं है।
तो मैं घर पर रुक जाता हूं किन्तुमम्मी-पापा जरुर जाएंगे।
तुम सम्हाल पाओगे।
जो होगा देखा जायेगा तुम जाओ मौज करो ।
बहुत सोचकर गीतिका ने सुबह उठ कर अपने ग्रुप में फोन किया कि आज मैं नहीं आ पाऊंगी।
दूसरे दिन मम्मी-पापा चले गये।
जब उसने यह बात अपनी सहेलीयों को बताई तो उन्होंने उसे फिर उकसाया कि बूढ़े बुढिया को घर से निकाल और आराम से रहे।
अब गीतिका रोज किसी न किसी बात को लेकर घर में हंगामा करती। शैलेश के कान भरती कि मम्मी-पापा को वृद्धाश्रम पहुंचा दो में इनके साथ नहीं रह सकती।
अब रोज-रोज की चिक चिक से परेशान हो शैलेश बोला ठीक है हम अलग रहेंगे। वह खुश हो गई। पर उसे पता नहीं था कि शैलेश क्या सोच रहा है। शैलेश ने दो बेड रूम का फ्लैट किराए से ले लिया और गीतिका से बोला अपना सामान पैक कर लो हम अपने घर में चल रहे है। गीतिका उसका मुँह देखती रह गई। ये क्या कर रहे हो होश में तो हो। हम यह मकान छोड़ कर किराए के फ्लैट में रहेगें। नहीं यह संभव नहीं है, तुम मम्मी-पापा को वृद्धाश्रम पहुंचा दो हम यहीं रहेंगे
इस कोठी के मालिक हम नहीं मम्मी-पापा है अतः वे यहीं रहेंगे और तुम्हें उनके साथ नहीं रहना है तो तुम यहां से निकलोगी। यह कोठी मैंने नहीं बनाई जो तुम इस पर अपना हक जमा रही हो। अब किराये के मकान में ही रहना होगा उसी में तुम्हें गुजारा करना पडेगा कल शिफ्ट करना है सो तैयारी कर लो। मम्मी-पापा आजदी से अपनी इच्छानुसार अपना जीवन बितायेगें वे तुम्हारी गृहस्थी सम्हालने के लिए विवश नहीं हैं। मम्मी ने यह कोठी बड़े चाव से बनवाई थी, और पापा ने भी उनकी इच्छा का पूरा मान रखा था। एक एक कोने को मां ने सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया था सो वे अपने बनायें घरौंदे में ही रहेंगे
यह सुनते हो उसके अरमानों पर घडों पानी गिर गया। कहाँ तो पूरी कोठी की मालकिन बनने का सपना देख रही थी और अब कहाँ दो बेडरूम फ्लैट में गुजारा करना वह भी बंधी बंधाई सेलरी में।
शैलेश ने अपने मम्मी-पापा को पूरी बात
बताई और कहा आप लोग खुशी से रहिए।
मैं आपके पास आता रहूँगा गीतिका को
सबक सिखाना जरूरी है। उसे सब कुछ सीधा मिल गया तो उसे हजम नहीं
हुआ जब अभाव में जिएगी तब अक्ल ठिकाने आएगी।
छोटे से फ्लैट में उसका दम घुटता बच्चे भी बन्द जगह में खुश नहीं थे अपने दादा-दादी को याद करते। गीतिका को गृहस्थी के काम का अनुभव नहीं था सो पन्द्रह-बीस दिनों में ही सेलेरी ख़त्म हो जाती। तब वह शैलेश से कहती सामान खत्म हो गया पैसे भी अब क्या करूं।
शैलेश – मैंने तो पूरी सैलरी तुम्हारे हाथ पर रख दी अब कैसे करना है तुम जानो। अब मैं कहां से पैसे लाऊं ।झगडे होने लगे। पैसे के अभाव में घूमना फिरना, मूवी, शापिंग, किटी सब बन्द हो गया।
जो सहेलियां उसके साथ तितलियों सी मंडराती रहतीं थीं वे सब पैसे के अभाव के कारण उड गईं। अब उसे कोई घास नहीं डालता। छोटे से फ्लैट में आने में उसकी सहेलियों को शर्म आती। वह समझ गई कि उसने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारी है। पर अब पछताने से क्या होता। शैलेश चुपचाप उसको परेशान देख कर मन ही मन खुश होता और सोचता कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ।
देखते ही देखते एक वर्ष बीत गया, न वह खुश थी ,न बच्चे और न शैलेश ही।
परेशान हो कर उसने अपनी माँ को पूरी बात बताई। मां का उत्तर सुन वह हैरान रह गई ।
वे बोली – बेटा गल्ती तो तुमने की है, मम्मी -पापा को वृद्धाश्रम भेजने की बात भी तुम्हारे मन में कैसे आई। क्या अपने घर के यही संस्कार है। तुमने अपने घर में दादा-दादी को रहते नहीं देख था।कल को यदि तुम्हारी भाभी भी हमारे साथ यही सब करे तो तुम्हें कैसा लगेगा। वह तो समधी जी एवं समधन जी का बड़प्पन है कि कभी उन्होंने हमसे तुम्हारी शिकायत नहीं की।जैसा तुमने चाहा अपनी मनमानी करती रहीं।
अभी भी वक्त है तुम अपनी भूल सुधार लो। समधी जी एवं समधन जी बडे ही सुलझे हुए सहृदय इंसान हैं वे तुम्हें तुम्हारी भूल के लिए माफ कर देगें सच्चे मन से जाकर उनसे माफी माँगलो। और एक अच्छी संस्कारी बेटी की तरह रह कर हॅसीं खुशी जीवन बिताओ। बड़ों का आर्शीवाद जीवन में खुशी और सुकुन देता है । गीतिका को मां की बात समझ आ गई और शैलेश से बोली चलो मम्मी-पापा के पास चलते हैं। शैलेश के चेहरे पर सन्तोष की मुस्कान आ गई और उसके इस निर्णय से बच्चे भी खुशी से चहकने लगे उन्हें उनके प्यारे दादा-दादी क साथ जो मिलने वाला था।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
20-3-24
छठा जन्मोत्सव के अन्तर्गत कहानी प्रतियोगिता
पंचम—कहानी