ममता जी लाइट बन्द कर सोने ही जा रही थी कि डोरबेल की आवाज सुनकर ठिठक गयी। रात के 11 बजने वाले हैं इस समय कौन…हो…. सकता है।
दरवाजा खोला तो सामने रुचि को देखकर हैरान रह गयी।
क्या बात है रुचि इस तरह अचानक… और रौनक जी कंहा है मेरा मतलब तुम उनके साथ नही..
सब ठीक तो है न बेटा,
कुछ भी ठीक नही है मम्मी… और क्या मतलब है आपका मैं अकेले अपने घर नही आ सकती क्या ?
पापा कंहा है बुलाओ उन्हें,रुचि झुंझलाती हुई बोली।
ममता जी रुचि के स्वभाव को भली भांति जानती थी सो बात संभालते हुए बोली- अभी बहुत रात हो गयी है बेटा तेरे पापा सो गए हैं मैं भी सोने जा रही हूं। तू भी कुछ खा ले और आराम कर, सुबह बात करते हैं।
मुझे कुछ नही खाना है मां… बस एक कप कॉफी बना दो, रुचि कुछ नरम होते हुए बोली।
ममता जी ने फटाफट कॉफी बनाकर दी और सोने चली गई।
रुचि ममता और आलोक जी की इकलौती बेटी है, बहुत मन्नतों के बाद रुचि का जन्म हुआ था, माता पिता ने कभी भी किसी प्रकार की रोक टोक या बंदिश नही लगाई थी। कॉलेज पूरा होते होते एक मध्यमवर्गीय परिवार देखकर बहुत धूमधाम से रुचि और रौनक का विवाह हो गया। रौनक के घर मे मां अकेली थी। शादी के बाद से ही उन्होंने रुचि को दिल से अपनी बेटी मैन लिया था लेकिन रुचि ने उन्हें कभी गम्भीरता से नही लिया था।
विवाह के बाद घर गृहस्थी की जिम्मेदारी से रुचि को कोई मतलब नही था। वह पहले की तरह ही अपनी सहेलियों शॉपिंग और घूमने फिरने में मग्न रहती। रौनक समझाता तो कहती कि यही तो दिन हैं मौन मस्ती के… अब दोनो के मध्य होने वाली नोंकझोंक ने तू तू मैं मैं का रूप ले लिया और अक्सर ही रुचि गाल फुलाकर अपनी मम्मी के यंहा चली जाती।
कुछ दिनों बाद रौनक आकर रुचि को ले जाते, थोड़े दिनों तक सब ठीक रहता लेकिन फिर वही लड़ाई झगड़ा।
इस बार रौनक ने सोच लिया था कि चाहे जो हो जाये रुचि को लेने नही जाएगा, और न ही आने के लिए फोन करेगा। धीरे धीरे पूरा एक सप्ताह गुजर गया, न रुचि ने फोन किया न रौनक ने।
अब तो आलोक और ममता जी भी परेशान हो गए, उन्होंने रुचि को समझाने की बहुत कोशिश की पर रुचि भी जिद पर अड़ी रही।
इन्ही दिनों मोबाइल पर वैलेंटाइन डे वीक के स्टेटस देख देख कर रुचि को रौनक की याद सताने लगी। रौनक भी रुचि के बिना खुश नही था बेटे की उदासी देख मां वसुधा जी से न रहा गया।
एक शाम रुचि से मिलने जा पहुँची। रुचि से मिलकर उन्होंने बताया कि इसी तरह छोटी छोटी बातों में वे भी गाल फुलाकर रौनक के पिता को छोड़ आई थी फिर न कभी उन्होंने जाने की पहल की न रौनक के पिता उन्हें लेने आये।
बेटा जीवन मे बहुत उतार चढ़ाव आते है प्रेम की डोर को थामे रखने के लिए बहुत समझ, धैर्य और गम्भीरता रखनी पड़ती है।बात बात पर गाल फुलाने से कुछ भी हासिल नही होता।
रुचि को भी इतने दिन रौनक से दूर रहकर बहुत कुछ समझ आ गया था। अब वह रौनक को सरप्राइज देना चाहती थी।
सबसे पहले मार्किट जाकर बढ़िया सा गिफ्ट लिया, और रौनक को फोन कर पार्क में बुलाया। दोनो जब आमने सामने हुए तो सारे शिकवे शिकायते मानो अपने आप दूर हो गए। और एक मां की नसीहत से घर बिखरने से बच गया।
आजकल बच्चे बहुत ही जल्दी आवेश और अहम में अलग हो जाते है या फिर छोटी छोटी बातों पर अड़कर एक दूसरे को झुकाने की कोशिश करते है पर ये पवित्र रिश्ता बहुत सारी समझ और समय मांगता है तभी इसका दूसरा और सुखद पहलू उभरकर आता है।
मोनिका रघुवंशी
स्वरचित व अप्रकाशित
मुहावरा – गाल फुलाना