मां की ममता – डा.मधु आंधीवाल

सुमना छज्जू के साथ मुन्ना को लेकर गांव से शहर तो आगयी थी । मजबूरी थी  उसकी पति शहर में मजदूरी करता था । गाँव में थोड़ी सी जमीन थी पर छज्जू का मन तो शहर की चकाचौंध में उलझ गया था । सुमना सोचती थी यहाँ से अपना गाँव क्या बुरा था । खुला खुला वातावरण शुद्ध हवा । यहाँ तो चारो तरफ ऊँचे ऊँचे खम्बे जैसे फ्लैट और बीच में इन मजदूरों की झोपड़ी । जैसे तैसे घर का खर्चा चलता था ।

        अभी तक चलो सब गुजर हो रही थी वह भी दो चार कोठियों में काम करके कुछ कमा लेती थी । अचानक  पता ना कौनसा रोग आगया । सरकार ने सब बन्द कर दिया ‌। इतने बड़े शहर में सन्नाटा कोठियों पर भी काम की मना कर दिया । झोपड़ी में से भी कुछ लोगों को बुखार की शिकायत हुई । डा. आये और ले गये  किसी को उस जगह से निकलने नहीं दिया जा रहा था । ऐसा रोग जो छूने से ही हो रहा था । बहुत लोग मदद कर रहे थे । खाने के पैकिट औरअन्य खाद्य सामग्री बहुत सी सामाजिक संस्थाये बांट रही थी पर वह दो दिन से बहुत परेशान थी छज्जू को बुखार था और उसने किसी को बताने के लिये मना कर दिया था । रात से छज्जू की तबियत बिगड़ गयी और पड़ोसियों को पता लग ही गया । किसी ने पुलिस में खबर कर दी अस्पताल से टीम आई और उसे ले गयी । सुमना और मुन्ना को हिदायत दे दी गयी कि झोपड़ी से बाहर ना निकले । छज्जू का कुछ पता नहीं चल रहा था । तभी रात में भगदड़ मच गयी चारो तरफ चीख पुकार उसने निकल कर देखा सब लोग अपना सामान और बच्चों को लेकर अपने गांवों को जा रहे थे । वह भी मुन्ना को उठाये निकल ली कोई सवारी नहीं पैदल लोग चल रहे थे  चलते चलते सोच रही थी छज्जू को छोड़ कर जाना शायद सही नहीं है पर मां की 

जिम्मेदारी और ममता ने कहा मुन्ना को अपने गाँव में सुरक्षित पहुँचाना भी जरूरी है और वह शहर की चकाचौंध से पलायन कर गयी । 

स्व. रचित

डा.मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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