रूपा को जब पता चला कि रचना की माँ चल बसी हैं सुनकर उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि रूपा और रचना दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं । दोनों के परिवार एक-दूसरे को जानते थे । इसलिए शादियाँ हो गई परंतु आज तक दोनों एक-दूसरे से बिना बात किए नहीं रह सकती हैं ।
रूपा ने रचना को फ़ोन किया उधर से रचना ने ही फ़ोन उठाया था । रूपा की आवाज़ सुनते ही रचना रोने लगी । रूपा ने कहा यह सब कैसे हो गया रचना आंटी तो बिलकुल ठीक थी न ।
रचना ने सिसकती हुई आवाज़ में कहा –रूपा आजकल उनकी तबियत ठीक नहीं चल रही थी । कब से मुझसे कह रही थी कि एक बार आकर मिल ले पर क्या करूँ समय ही नहीं मिलता है । मिलिंद भीजाने की परमिशन नहीं दे रहे थे । दो दिन पहले अजय है न हमारा पड़ोसी उसने कॉल किया था किदीदी माँ को देखने आ जाइए क्योंकि उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई है । मैंने बच्चों को मिलिंद के पासछोड़ दिया और माँ को देखने चली गई ।
रूपा तुझे मैं क्या बताऊँ इधर मेरी कार घर के गेट पर पहुँची और उधर माँ की साँस रुक गई थी । मैं माँसे बात भी नहीं कर सकी । माँ ने मुझे एक बार जी भर के देखा भी नहीं था । आस पड़ोस के लोग बतारहे थे कि माँ हमेशा कहती थी कि मैंने अपनी ज़िंदगी जी ली है । अब मेरी कोई इच्छा नहीं बची है परंतुमरने से पहले एक बार रचना को देख लूँ तो बस है ।
मैं कितनी बदनसीब हूँ कि मैंने अपनी माँ की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर सकी । सच रूपा जब तकमाँ है न उनके साथ समय बिताना चाहिए उनके जाने के बाद कुछ नहीं हो सकता है । कहते हुए रोनेलगी । रचना प्लीज़ मत रोना ! मैं तुझसे आकर मिलूँगी रूपा ने कहा तो रचना ने फ़ोन रख दिया ।
रचना का फ़ोन रखने के बाद रूपा सोचने लगी कि मैं भी तो यही करती हूँ । अकेली संतान होने केकारण माता-पिता बहुत लाड़ करते हैं । वह माँ को कुछ समझती नहीं है उसे लगता है कि वह तो मेरेलिए क्यों नहीं करेगी ।
जब भी मायके जाती है माँ को एक मिनट बैठने नहीं देती है । इतना अच्छा और मेरी पसंद के व्यंजनबनाने के बाद भी नमक कम है मिर्च अधिक है इस तरह के कमेंट पास करती रहती है । आज के समयउनकी उम्र भी हो गई है फिर भी उन्हें एक टाँग पर नचाती है । माता-पिता के प्रति अपने व्यवहार कोयाद करके रूपा को रोना आने लगा था ।
वह सिर्फ़ माता-पिता ही नहीं सास को भी नहीं छोड़ती है । अपने बच्चों की किसी भी ख़्वाहिश को पूरानहीं करती थी । अगर वे कुछ माँगते थे तो उन्हें झिड़क देती थी । पति हमेशा कहते थे कि तुम्हारी माँतुम्हारे लिए सब बनाकर देती है पर तुम अपने बच्चों को डाँटा करती हो । अपनी माँ से कुछ तो सीखो ।आज रचना ने सोचा कि वह माँ पिताजी के पास जाएगी परंतु हमेशा की तरह रेस्ट लेने के लिए नहींबल्कि उन्हें रेस्ट देने के लिए । अपने बच्चों को सास के पास छोड़ दिया पर उनके लिए एक हेल्पर भीरखा ।
अचानक पहुँच कर माँ पिताजी को सरप्राइज़ दिया । रूपा को देखते ही माँ उसकी पसंदीदा खानाबनाने के लिए रसोई में जाने लगी और पिताजी बैग लेकर बाज़ार जाने लगे मिठाई और फल लाने केलिए । रूपा ने दोनों को रोक दिया ।
माँ से कहा –आप बैठिए आज मैं आपके पसंद का खाना बनाऊँगी और पिताजी से कहा घर से आतेसमय मैंने मिठाई और फल ला लिया है ।आपको बाज़ार जाने की ज़रूरत नहीं है ।
हाँ तो मैं कहे देती हूँ कि अब से जब तक मैं यहाँ हूँ तब तक आप दोनों बैठिए और मैं आप दोनों की सेवाकरूँगी । हम सिर्फ़ बातें करेंगे । रूपा की बातें सुनकर माता-पिता को बहुत ख़ुशी हुई । क्योंकि दोदिन पहले ही माँ को चक्कर आ गया था डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि कमजोरी हो गई हैरेस्ट लेंगे तो ठीक हो जाएगा । पंद्रह दिन रूपा ने माता-पिता की ख़ूब सेवा की । उन्हें भी अच्छा लगामाँ की कमजोरी भी कम हो गई थी । रूपा को इस बार घर वापस आते समय बहुत अच्छा लग रहा था। रूपा ने घर पहुँच कर सास से भी यही कहा कि आप बैठिए अब से सारे काम मैं ही करूँगी । अगरआपको बैठना नहीं पसंद है तो छोटी मोटी सहायता कर दीजिए । उसमें आई हुई इस बदलाव को देखकर घर के सब लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी ।
रूपा को भी रचना की माँ के देहान्त के बाद अपनी ग़लतियों का एहसास हो गया था । उसे अब समझमें आ गया कि बीता हुआ समय वापस नहीं आता है । एक बार माता-पिता को खो दिया तो उन्हें वापसनहीं ला सकते हैं । उनकी जगह कोई नहीं ले सकते हैं । इसलिए बचपन में उन्होंने हमारे लिए किया हैतो बड़े होने के बाद उनके लिए हमें कुछ करना है ।
#पाँचवाँ_जन्मोत्सव
के कामेश्वरी