मीरा बालकनी में खड़ी बारिश की बूंदों को निहार रही थी और मन में कहीं घनी बारिश का शोर था।अबतक बस सहते चले आना का दर्द इस कदर भर गया था कि कब आँसू छलक कर बहने लगे थे,उसे पता भी नहीं चला
अचानक कंधे पर एक स्पर्श पाकर वह चौंकी और सामने अपनी पुरानी सहेली रीमा को देखकर खुद को सम्हाल न सकी और फूट फूट कर रो पड़ी। रीमा ने भी उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की और मन का गुबार बह जाने दिया। थोड़ी देर तक रो लेने के बाद जब मानसी का मन कुछ हल्का हुआ तो रीमा ने पूछा,”क्या हुआ, आज इस तरह क्यों बिखर गई तुम।जब से मैं तुमको जानती हूँ,संघर्ष करते ही देखा है और हर तकलीफ का मुस्कुरा कर सामना करते ही देखा तुमको तो आज हुआ क्या है,मुझे तुमको इस हाल में देख कर तकलीफ हो रही है मानू..
अरे अरे, बस बस,सारे सवाल एक ही सांस में पूछ लोगी क्या? सब्र रखो थोड़ा,तुमसे तो मैं अपने दिल का सारा हाल कह लेती हूँ रीमा क्योंकि एक तुम ही हो जो मुझे समझती हो मगर हम सारी बात चाय के साथ करेंगे।पियोगी न?? मानसी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ पूछा तो रीमा भी सम्हल कर बोली,नेकी और पूछ पूछ, मगर चाय के साथ पकोड़े भी बनाना मानू स्पेशल।
मानसी रसोई की तरफ बढ़ गई और रीमा खो गई अपनी दोस्त मानू के अतीत में..
मानसी और रीमा कॉलेज की दोस्त थी। बहुत खूबसूरत थी मानसी और सुरीली तो इतनी कि सब उसे कॉलेज की लता दीदी कहते थे।मगर कहते हैं न कि किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता तो मानसी के माता पिता का भी बचपन में निधन हो गया था और वो अपनी नानी के घर ही रह रही थी। बूढ़ी नानी का जबतक जोर चलता रहा मानसी की पढ़ाई चलती रही फिर एक दिन अचानक ही उसकी मामी ने उसकी शादी सोहम से तय कर दी।
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मानसी आगे पढ़ना चाहती थी मगर बिन मां बाप की बच्ची की कौन सुने और उसका सुरक्षा कवच नानी भी अब अशक्त हो चुकी थी तो आनन फानन में उसकी शादी सोहम से हो गई। शादी के बाद मानसी एक और झटका लगा जब उसे पता चला कि सोहम की पहली पत्नी का निधन हो गया था और उसकी दो बेटियां थी बड़ी महिमा 12साल और छोटी रितिका 10 साल की।मानसी से सोहम ने शादी भी बेटियों की देखभाल की खातिर की थी।मानसी ने इसे भी अपनी किस्मत समझ कर अपना लिया
और बच्चों को मां का प्यार देने की पूरी कोशिश और उनकी देखभाल करने लगी। लेकिन सोहम की बेटियां उस से कटी कटी रहती और उसे मां मानने को तैयार नहीं थी।यहां तक कि वो दोनों जब तब उसे कटी वचन बोलती मगर मानसी ने धैर्य नहीं खोया और अपना कर्तव्य निभाती रही।उन दोनों ने मानसी के लिए बहुत सारी समस्याएं खड़ी कीं, और सोहम से उसकी शिकायतें भी करती।सोहम गुस्से का बहुत तेज था तो वह अक्सर मानसी के साथ बहुत बुरा व्यवहार करता। वह मानसी को अक्सर अपशब्द कहता..पीटता था।
मानसी बेचारी किसी को कुछ कह नहीं पाती थी।मगर उसके कर्तव्य स्नेह और समर्पण को देख कर धीरे उसकी बेटियां का मन पिघलने लगा और अब महिमा और रितिका उसे सपोर्ट करने लगी थी।कभी कभी अपनी बातें भी मानसी को बताती तो मां की तरह मानसी उन्हें समाधान बताती।इस तरह दिन गुजरने लगे। हालात बहुत तो नहीं सुधरे थे मगर इतने हो गया था बच्चियों के अच्छे तरह बात के लेने से मानसी को थोड़ा सुकून मिल गया था। इसी तरह देखते कई साल गुज़र गए। महिमा एक MNC में नौकरी करने लगी थी और रितिका पायलट बन गई थी। मगर मानसी के दिन वैसे ही बीत रहे थे।
चाय चाय चाय…की आवाज से रीमा की तंद्रा भंग हुई तो उसने देखा मानसी चाय पकौड़े के साथ आ चुकी थी।
देख यार चाय के साथ साथ वो बात भी बता जो मैं जानना चाहती हूं,रीमा ने अधीरता से कहा तो मानसी हंस पड़ी और बोली, अच्छा सुन!
“आज कल महिमा अपनी दोस्त की शादी में घर आई हुई है ,कल रात अचानक चीखने चिल्लाने की आवाज से उसकी नींद खुल गई।किसी बात को लेकर सोहम अपने किसी दोस्त से बहुत नाराज़ था और बड़बड़ किए जा रहा था।मैने जब कारण जानना चाहा तो वहां का गुस्सा उसने मुझ पर उतार दिया। महिमा ने अपने पिता को रोकने की बहुत कोशिश की। लेकिन सोहम नहीं रुका।
महिमा ने अपने कमरे में ले जाकर मेरी देखभाल की,चोटों को साफ किया और मेरे लिए खाना बनाया।
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महिमा ने अपने पिता से कहा कि वह मानसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता, और यदि वह उसकी मां को सम्मान नहीं दे सकता तो महिमा उसे अपने साथ बैंगलोर ले जाएगी।”
“आज मैं बहुत खुश हूं रीमा ,मेरा त्याग आज मेरे बच्चों ने समझ लिया और ये स्नेह और प्रेम देख कर मेरी आँखें भर आईं । मेरा #अनकहा दर्द आज मेरी बच्ची ने समझ लिया” ये कहकर रीमा के गले लग गई।
रीमा की आंख से भी खुशी के आंसू छलक गए।आज उसकी दोस्त का संघर्ष खत्म होने की तरफ बढ़ चला था।
दोस्तों ये कहानी एक सत्यघटना का रूपांतरण है
रश्मि श्रीवास्तव शफ़क़
लखनऊ
उत्तर प्रदेश
#अनकहा दर्द