देखो मोहन बेटा! अब तुम भैया को अपने पास लेकर चले जाओ यहां गांव में अकेले कैसे रहेंगे? भाभी के जाने के बाद बहुत खोये खोये से रहने लगे हैं। अब मेरे हाथ पैर भी कमजोर पड़ गए हैं बेटा और तुम्हारी चाची की तबीयत भी ठीक नहीं रहती।अब मैं और तुम्हारी चाची शहर में अपने बेटे राकेश के घर जाकर ही रहेंगे।
गांव से फोन करके मोहन के चाचा जी ने कहा तब मोहन बोला आप सही कह रहे हैं चाचा जी लेकिन पापा किसी की भी नहीं सुनते मां की बरसी से पहले वो घर छोड़ना नहीं चाहते। मैं भी नौकरी की वजह से दो-तीन महीने में ही चक्कर लगा पाता हूं। बच्चों के स्कूल की वजह से कोमल भी नहीं जा पाती।
कल से बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां पड़ रही है हम सब वहां पर आएंगे और पापा को अपने साथ ले आएंगे इसी बीच में मां की बरसी भी हो जाएगी। आप और चाची वहां पर थे इसी वजह से हम लोग भी बेफिक्र थे। लेकिन इस बार समझा बूझकर मैं पापा को अपने साथ लेकर ही आऊंगा आप चिंता मत करें।
अगले दिन बच्चों की छुट्टी पडते ही ऑफिस से 8 दिन की छुट्टी लेकर मोहन अपने पापा के पास गांव में चला जाता है। मां की बरसी विधि विधान से करने के बाद मोहन और कोमल समझाबुझाकर रमेश जी को अपने साथ ले आते हैं। मोहन और कोमल अपने पिता को बड़े आदर के साथ रखते थे लेकिन फिर भी उनका मन वहां पर नहीं लग पा रहा था वे वहां पर अपने आप को असहज महसूस कर रहे थे।
कोमल ने महसूस किया जैसे रमेश जी उनके घर कुछ सकुचाये से और बुझे बुझे से रहते हैं। उन्हें लगा शायद माँ की कमी होने की वजह से वह इस तरह रह रहे हैं लेकिन एक दिन कोमल ने उन्हें चाचाजी से बात करते हुए सुना तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वो बोल रहे थे कि अब बाकी की उम्र बच्चों के सहारे ही काटनी है मैं नहीं चाहता मेरी वजह से इन्हें कोई परेशानी हो इसीलिए मैं इनसे किसी चीज की मांग नहीं करता जो दे देते हैं वही खा लेता हूं। मेरे बच्चे मेरा बहुत ख्याल रखते हैं लेकिन जब मैं स्थाई रूप से यहां पर रहूंगा तो कहीं मैं इन
रेखा के सवाल – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’ : Short Stories in Hindi
पर बोझ ना बन जाऊं। मैंने अपने बहुत दोस्तों से सुना है कि गांव से शहर जाने पर उनके बच्चे उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते और कुछ दिन बाद ही उनसे काम कराना शुरू कर देते हैं और ढंग से खाना भी नहीं देते । और कुछ दिन बाद वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं। मेरी तो पेंशन भी नहीं आती है मैं तो पूरी तरह से लाचार हूं इस उम्र का नहीं पता कि कितनी लंबी है। मैं तो चाहता हूं तुम्हारी भाभी मुझे भी जल्दी से अपने पास बुला ले खुद तो छूट गई और मुझे छोड़ गई। अपने ससुर की बात सुनकर कोमल की आंखों में आंसू आ गए।
उसे उनकी परेशानी समझ आ गई थी। उसने मोहन को सारी बात बताई मोहन भी अपने पिता की बातें सुनकर रोने लगा और कोमल से बोला हमें पापा के मन से यह डर निकलना पड़ेगा जिससे पापा को हमारे साथ रहने में कोई परेशानी ना हो। बच्चे और बूढ़े एक जैसे ही होते हैं उन्हें धीरे-धीरे प्यार से ही समझाना पड़ेगा कि सब बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं।
कोमल मोहन के साथ रमेश जी के कमरे में जाती है तो वे उठकर बैठ जाते हैं मोहन अपने पापा का हाथ अपने हाथों में लेकर कहता है पापा आप हमारे लिए कभी बोझ नहीं हो सकते। क्या आपको अपनी परवरिश पर विश्वास नहीं है? मैंने बचपन से आपको और मां को दादी बाबा की सेवा करते हुए देखा है। जिनके बदले में आप उनसे ढेर सारे आशीष पाते थे।
मेरे अंदर आपके दिए हुए संस्कार हैं, आपने कैसे सोच लिया आप अपने बेटे के घर रह रहे हैं यह घर आपका है, हम आपके साथ रहना चाहते हैं। एक दिन तो इस उम्र में सभी को आना है और जो जैसा व्यवहार अपने मां-बाप के साथ करेगा उसे वैसा ही अपने बच्चों से मिलेगा।
आपके कमरे की अलमारी में ही आपका वह डब्बा रखा है जिसमें आपके पैसे रहते थे हम गांव से लेकर आए हैं भगवान की कृपा और आपके आशीर्वाद से मेरे पास इतना पैसा है कि मैं अपने पापा का डब्बा कभी खाली नहीं होने दूंगा। आपका जैसा मन हो अपने पैसे खर्च कीजिए। रमेश जी अपने बेटे के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगते हैं उनकी बहू भी नम आंखों से यही सोच रही थी कि अच्छा हुआ पापा के मन की बात हमने जान ली अगर उस दिन फोन पर बात नही, करती तो पता ही नहीं चलता और पापा अंदर ही अंदर घुटते रह जाते।
पूजा शर्मा