“आपकी माँ को एक बच्चा तक संभालना नहीं आता, और आप गाँव से इनको लेकर आए हैं, मेरे सहयोग के लिए, ये मेरी मदद क्या करेंगी? उल्टा एक आदमी का काम भार बढ़ गया है मेरा। इन्हें गाँव भेज दीजिए, कोई काम की नहीं हैं ये, कहाँ मेरी माँ, कहाँ ये??”
झुंझलाते हुए, आरती ने नितिन से कहा। नितिन और आरती कुछ दिन पहले ही पहली बार माता-पिता बने हैं। आरती और नितिन की शादी दो साल पहले हुई थी। नितिन सरकारी विभाग में शहर में कार्यरत था। शादी के बाद आरती भी नितिन के पास शहर आ गयी।
नितिन के दो छोटे भाई दूसरे शहर में रहकर नौकरी की तैयारी करते थे। और नितिन के माता-पिता गाँव में रहते थे। छुट्टियों में नितिन कभी अपने माता-पिता के पास, तो अब शादी के बाद कभी ससुराल चला जाता था।
आरती जब माँ बनने वाली थी तो आरती के मायके वालों से लेकर,…आरती के ससुराल में सब बहुत खुश हुए। आरती की देखभाल के लिए, आरती की माँ उसके पास शहर आ गई, माँ कभी अपने घर जाती तो, आरती की सासू माँ आ जाती थी, आरती,…की देखभाल के लिए। आरती अपनी मदरहुड (गर्भावस्था)का बहुत आनंद ले रही थी।
उसे सबकुछ नया, और अलग, यानि खास अनुभव करा रहा था। पति का प्यार,.. माँ की देखभाल, और अपने अंदर नन्हे जान की कल्पना, गर्व और खुशी की अनुभूति से…आरती आनंदित हो रही थी।
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समय के साथ आरती ने बेटे को जन्म दिया। उस समय उसके पास,… माँ, सासू माँ, पति ससुर, देवर यानि पूरा परिवार था। माँ बनने के खुशी आरती के चेहरे पर साफ दिख रही थी। चेहरा दमक रहा था उसका, और मन उमंगों से भर गया था। आरती के लिए सबकुछ नया,…अद्भुत, जब वह अपने बेटे को गोद में उठाती, सीने से लगाकर दूध पिलाती,
और बाहों में भरकर चूमती तो लगता, सारा जहां का सुख बस यही है। उसकी माँ उसे, बच्चे को कैसे दूध पिलाना है? कैसे तेल लगाना है? कैसे गोद में उठाना है? कैसे अपने पास में सुलाना है? सब कुछ बताती। इधर सासू माँ घर के काम को संभाल रही थी, खाना, रसोई,…कपड़े, साफ़-सफाई आदि। आरती अब कुछ जिम्मेदार, और मजबूत हो गई तो,
कुछ दिन आरती की माँ, आरती के पास रही, फिर अपने गाँव आ गई। आखिर आरती की माँ भी कितने दिन रह सकती थी, अपने घर को छोड़कर? यहां भी संयुक्त परिवार, खेती-बाड़ी आदि काम था। आरती की माँ जब गाँव आ गई, तो अब घर और बच्चा, आरती और उसकी सासू माँ की जिम्मेदारी हो गई।
जब आरती की माँ थी, तो आरती, अपने बच्चे के लिए ज्यादातर अपनी माँ पर ही निर्भर थी। आरती की माँ, बच्चे और आरती का भरपूर ख्याल रखती थी। अब आरती को माँ का जाना,…बहुत अखड़ रहा था। पर… माँ बनने के बाद जिम्मेदारी तो उठानी ही पड़ेगी। एक माँ, की जिम्मेदारी, पत्नी की, बहु की….सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाने की सोच रही थी आरती।
और माँ बनने के बाद हार्मोनल परिवर्तन,…अचानक, माँ के चले जाने के बाद काम का बोझ, चिड़चिड़ी और उखड़ी-उखड़ी सी रहने लगी थी आरती। नितिन पढ़ा-लिखा जिम्मेदार, वो भी आरती की भावनाओं को समझता और आरती का सहयोग करता था। अपने पति, पिता, बेटा हर फ़र्ज़ को….नितिन निभाने में कमी नहीं कर रहा था।
आरती के किसी बात का बुरा नहीं मानता था, बल्कि प्यार से समझाने की कोशिश करता था, और समझता भी था उसे। पर आज अचानक….सबकुछ जानते हुए आरती उसकी माँ को कोस रही है। नितिन समझ गया,…जब तक आरती से खुलकर बात नहीं करूंगा, कहीं आरती के मन में अपनी सास के प्रति कड़वाहट बढ़ता न जाए, और रिश्तों की खाई बढ़ने से फिर परिवार की खुशी कम होती जाती है।
नितिन ने आरती के कंधे को पकड़कर, अपने नजदीक बिठाया, और बोला,…”क्या हुआ? बाबू(नंदन) तो सो रहा है,…. मैंने देखा माँ उसे कपड़ा पहना रही थी, फिर तुमने दूध पिलाया, बाबू को सुला दिया,…फिर किस बात से खीझ रही हो? आज रविवार है रसोई तो मैं ही संभाल रहा हूँ। माँ ने कुछ कहा? या अपनी माँ को मिस कर रही हो?
या और कोई बात है मुझे बताओ?” नितिन के प्यार से पूछने पर, फूट पड़ी आरती,…”माँ जी को कुछ पता नहीं है, बच्चे को दूध पिलाने के बाद कैसे डकार करवाना है, कैसे तेल लगाने के लिए पैरों पर बच्चों को लिटाना है? कैसे छोटे बच्चे को गोद में उठाना है, कपड़ा पहनाना भी नहीं आता, और छोटे बच्चों को चुप कैसे कराना है,
ये भी नहीं पता है। मुझे ही बाबू को संभालना होता है, और माँ जी बस मेरा मुँह देखती रह जाती है। उनके यहां रहने से मुझे कोई फायदा ही नहीं है। गाँव भेज दीजिए, ये तो नहीं कहेंगी, मेरी मदद कर रही हैं यहां रहकर।” नितिन ने कहा, “बस इतनी सी बात? सबकुछ जानती हो तुम फिर भी माँ को गलत समझ रही हो?
तुमसे तो मैंने कुछ नहीं छिपाया। आरती जब मेरे पापा ने इनसे शादी किया था, मैं बारहवीं में पढ़ता था, और मेरा एक भाई, आठवीं में, एक सातवीं में। दादी, चाची, पापा सब मिलकर जैसे-तैसे माँ की मौत के ग़म से ऊबर ही गए थे,…पॉच साल पहले मेरी जन्मदात्री माँ की मौत हो गयी थी। पापा शादी कर इन्हें अपने घर ले आए,…
उम्र में मुझसे लगभग, आठ-दस साल बड़ी होंगी, माँ कहने में शुरू-शुरू में हिचकिचाहट होती थी,…..दादी ने, लाल माँ कहने के लिए हमें प्रेरित किया। मैं समझदार और,…बड़ा था तो अपनी माँ को खोने का दर्द, और अपने पापा के जीवन में,… दूसरी महिला का होना,….कुछ अच्छा महसूस नहीं होता था। समय, के साथ…
हम इनके साथ रहने लगे, कुछ झिझक, कुछ हिचकिचाहट के साथ। समाज में लोग इन्हें हमारी दूसरी माँ (सौतेली माँ) और पापा की दूसरी पत्नी कहने लगे। इनके आने के कुछ समय बाद,….समाज ने इनसे सवाल करना शुरू कर दिया, माँ कब बन रही हो? कुछ दिन तो ऐसे ही बीत गया,…इनके अंदर भी माँ बनने के अरमान पलते होंगे….
हर औरत माँ बनना चाहती है। कहा जाता है कि औरत की पूर्णता, माँ बनने से होती है। डॉक्टर को दिखाया गया, तो इनके लिए एक झन्नाटेदार खुलासा हुआ,…. कि पिताजी ने दुसरी शादी करने से पहले खुद की नसबंदी करवा लिया था। पिताजी को पहली पत्नी से तीन बेटे तो थे ही,
अब इन्हें सिर्फ अपने लिए पत्नी चाहिए था, बच्चा नहीं। और लाल माँ के घरवाले भी न जाने क्यों पिताजी से इनकी शादी करवा दिया, समझ नहीं आता? मेरे पापा की आमदनी अच्छी थी, पर उम्र में इनसे काफी बड़े, तीन जवान बेटों का बाप…। लाल माँ के मायके वालों को जब पिताजी की असलियत पता चली तो,…
लाल मां से कहा गया,…पापा से तलाक़ लेकर आ जाए, उनकी दूसरी शादी करवा दी जायेगी। कम से कम अपने बच्चों की माँ तो बनेगी। अपने गर्भ से बच्चा होगा, जिसपर सिर्फ़ उसका अधिकार होगा,…और सजा भी मिलेगी पिताजी को धोखे का।
पर जानती हो लाल माँ ने क्या कहा,…?
“अब जो हो गया, सो हो गया। इतने दिनों से इस परिवार से जुड़ गयी हूँ, पति, बच्चे, परिवार सभी से स्नेह का बंधन जुड़ गया है। इन्हें तोड़कर, जाना इतना आसान नहीं है। मैं भी अब सिर्फ तीनों बेटों की ही माँ बनकर रहूंगी। क्या करूँ जब पति को ही मेरी जरूरत का ख्याल न रहा तो, किससे शिकायत करूं, और क्या और क्यों करूँ?”
जबकि लाल माँ चाहती तो, कानून से, समाज से, परिवार से हर तरह से पिताजी से अलग होने के लिए दवाब बना सकती थी। पर इन्होंने, हमें चुना, और खुद की कोख त्याग दिया। एक पत्नी तो बन गयी, पर एक माँ..?? ‘ आँसू थे नितिन के आँखो में।’
लाल माँ से पिताजी की शादी के तीन साल हो चुके थे, मैं स्नातक थर्ड ईयर में था,…लाल माँ की आदत हम सबको भी हो ही गई थी। हम समय के साथ इनके त्याग को समझने लगे थे,….। लाल माँ नहीं, अब हम इन्हें माँ कहने लगे,….और माँ भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है। तुमसे कुछ छुपा तो नहीं है
न आरती, तो तुम माँ को समझना क्यों नहीं चाहती हो? तुम क्यों नहीं समझती हो, कि उन्होंने अपने कोख से कोई बच्चा नहीं जना है,..नवजात बच्चों को कैसे संभालना है, इन्हें कैसे पता चलेगा,….इनके लिए सबकुछ नया है, इन्होंने बच्चों के जन्म के बारे में सिर्फ सुना है, महसूस नहीं किया है।
मेरे पिताजी के कारण ये कभी अपने बच्चों की माँ नहीं बन पायी। कभी-कभी तो मुझे लगता, मैं भी इनका गुनहगार हूँ। पिताजी ने नसबंदी इसलिए करवा लिया, ताकि हम तीनों भाई को आगे कोई बंटवारा, या सौतेला-सगा का झंझट न हो।” आरती झुंझली हुई तो थी ही, गुस्से में बोलने लगी, “आपकी माँ का ये त्याग,
आपके पिताजी जैसे पुरुषों के अहंग या यौन कहें, पुरुषों के स्वार्थ को बढ़ाता है।, आपकी लाल माँ, यानी नई माँ को,….जब पता चला, मेरे पति नहीं चाहते मैं प्राकृतिक रूप से माँ बनूं तो, इन्हें आपके पिताजी को छोड़कर चले जाना चाहिए। या इनके विरुद्ध अपने माँ बनने के अधिकारों का हनन के विरुद्ध न्यायालय में केश फाइल करना चाहिए।
ताकि समाज में पुरुषों को, महिलाओं के अधिकार, और ताकत का पता चलता। ये खुद तो अधूरी रह ही गईं,….समाज को संदेश भी कायरता का दे रही हैं। या यों कहें, पितृसत्तात्मक समाज को बढ़ावा दिया है इन्होंने।” नितिन ने कहा, “तुम बिल्कुल सही कह रही हो,….पर जो हो चुका इसे बदला तो नहीं जा सकता,…
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अब ये एक पत्नी, माँ, सास, और दादी की जिम्मेदारी निभा रही हैं,…तो हम इनका सहयोग करें, इन्हें समझें,…। इनके खालीपन को अपने प्यार और स्नेह से भरने की कोशिश करें, न कि….इन्हें इनके त्याग, प्यार, या कमियों के कारण जलील करें। मैं क्या बताऊं, तुम एक स्त्री हो, इनके दर्द को बखूबी समझ सकती हो। तुम सोचो,…
.मैंने नसबंदी करा लिया होता, और तुम एक पत्नी तो बन जाती, पर अपने बच्चे की माँ नहीं बन पाती तो….कैसा महसूस होता? ये बातें तुम्हें शादी के बाद पता चलता तो कैसा लगता? क्या करती तुम??”
नितिन के इतना कहते ही, नितिन के मुंह पर हाथ रख दिया,…आरती ने, “ऐसा तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ।”
“बहु के नज़रिये से नहीं, बस एक बार स्त्री के नज़रिए से देखो।” अपनी बात पूरी करते हुए नितिन रूआंसा हो गया था। नितिन की आँखों में देख,….आरती भी द्रवित हो गयी, और नितिन को सीने से लगा लिया। बोली कुछ नहीं, पर अपनी सास के दर्द को महसूस करने की कोशिश करने लगी।
नितिन जब कुछ…सामान्य हुआ तो आरती से बोला,…”माँ से जितना लगाव रखोगी, माँ को उतना अच्छा लगेगा, और….उन्हें अपने त्याग का कोई पछतावा नहीं होगा।” आरती ने सर हिलाकर, हु, हामी भरी। आरती का मन अपने सास के तरफ़ से साफ़ हो गया था। वो भी अब समझने लगी थी,…..
कुछ करने के बाद ही किसी चीज का अनुभव होता है, न कि बस सुनने, देखने भर से। बाबू के रोने के आवाज़ से आरती अपने बेटे के पास गयी, तो देखी सासू माँ पहले ही पहुंच चुकी थी। आरती समझ गई, ये करती हैं मेरे बेटे के लिए बहुत, पर….सकारात्मक नजरिए से मैं देखती ही नहीं थी। अब आरती के मन से काफ़ी बोझ उतर चुका था।
# स्नेह का बंधन
चाँदनी झा