मां का दिल (भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव

तीन भाई …… एक सबसे छोटा मानसिक विक्षिप्त सा है  एक बार पागलपन में बाड़ी में बने कुएं में कूद गया था उसीको बचाने में पिता जी भी बिना आगा पीछे सोचे कुएं में कूद गए सिर कुएं की सख्त दीवाल से टकराया और तुरंत मृत्यु हो गई थी भाई को तो सुरक्षित निकाल लिया गया था पर पिताजी की इस आकास्मिक असमय मौत ने पूरे घर को झकझोर कर रख दिया था….मां का तो रोते रोते बुरा हाल हो गया तभी से उसे मोतियाबिंद की शिकायत हो गई।

पिता की आकस्मिक मृत्यु ने किशोर सरजू को असमय ही बुजुर्ग बना दिया था घर की एकमात्र आय का जरिया गांव में स्थित पिता की किराने की दुकान की पूरी जिम्मेदारी अपने नाजुक कंधों में सहर्ष उठा कर अपनी पढ़ाई और भविष्य के स्वप्न अपने छोटे भाई कैलाश की आंखों में उसने बो दिए थे…पिता की तरह कैलाश को दुनिया की हर ऊंच नीच समझा कर एक अच्छा इंसान बनाने की कोशिश भी करता रहा था वो…अपने बदले कैलाश के कैरियर बनाने पर ही पूरा ध्यान देता रहा बहन सविता को तो सरकारी विद्यालय में पढ़ाया पर भाई को शहर में ही रख कर पढ़ाया …उम्मीद लगाया था कि कैलाश की नौकरी लगते ही सबसे पहले मां का मोतियाबंद का ऑपरेशन फिर छोटी बहन की शादी कर दूंगा….मां के लाख कहने के बावजूद अपनी शादी ब्याह करने का ख्याल तक नहीं आता था उसे…!

जिम्मेदार व्यक्ति स्वहित से पहले अपनी जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देता है।




परंतु कैलाश तो नौकरी पाते ही शहर जाते ही गिरगिट की तरह रंग बदलने लगा था…अब तो मैं स्वंत्रत हूं अच्छी खासी आमदनी है मेरी बहुत दिन अभाव तंगी और घर के अनुशासन में दब कर रह लिया …बड़े भैया को तो अकल ही नहीं है खुद तो पढ़े लिखे है ही नहीं वो परचून की दुकान पर बैठ बैठ कर बिलकुल बेअकल हो गए हैं।मैं नौकरी करूंगा कि मां के नखरे उठाऊंगा अभी तक उनके ऑपरेशन का ख्याल नहीं आया था भैया को जैसे ही मेरी नौकरी मिली मेरा पैसा मेरा घर सब दिखने लग गया उन्हें यहां भी मुझे चैन और सुकून से नहीं रहने देंगे ।

दुखी था सरजू पिता की मौत पर भी इतना दुखी नहीं हुआ था वो जितना आज छोटे भाई के ऐसे ओछे व्यवहार से हो रहा था।मां का मोतियाबिंद ऑपरेशन सबसे बड़ी जरूरत थी….भाई से निराश हो वह गांव के ही सरकारी अस्पताल में गया तो वहां के डॉक्टर से मिलकर और वहां की व्यवस्थाएं देख कर उसका मन संतोष से भर गया कि मां का ऑपरेशन यहीं गांव में ही बढ़िया हो सकता है…

आज मां को लेकर अस्पताल जाने की ही तैयारी कर रहा था की ये बुरी खबर आ गई।

घर आया तो देखा मां तैयार बैठी है वो खुश हो गया ….लेकिन मां अस्पताल जाने के लिए लिए कैलाश के पास शहर जाने को तैयार बैठी थी…उसके नाराजगी जाहिर करते ही कहने लग गई…तू मत जा बेटा गुस्सा होकर यहीं बैठा रह ….पर मैं तो जाऊंगी जा ही रही हूं तेरा ही इंतजार कर रही थी ….तू मत जा सविता के साथ मैं जाती हूं …..कैसा भी है मेरा तो बेटा है ना थोड़ा गुमराह हो गया है… तेरे पिता तुम सबकी जिम्मेदारी मुझे ही सौंप कर गए हैं क्या मुंह दिखाऊंगी मैं उन्हें ऊपर जाकर…

लेकिन मां तेरा ऑपरेशन…..सरजू ने कहना चाहा था…

अरे भाड़ में गया मेरा ऑपरेशन चार दिन की जिंदगी बची है अभी तक की गुजर गई बाकी भी बीत ही जायेगी लेकिन मेरा बेटा कैलाश ….उसकी जिंदगी तो अभी शुरू ही हुई है और ग्रहण लग गया …अभी तक तो मेरे दिल को तसल्ली रहती थी कि जहां भी है खुश तो है मजे से तो है …..मैं जा रही हूं जो हो सकेगा कर लूंगी…मां तो प्रतिबद्ध थी जाने के लिए।

…..मां बहुत पैसा लगेगा उसे छुड़वाने में और तेरे ऑपरेशन के लिए इकठ्ठे किए इन रुपयों में से एक फूटी कौड़ी  उस स्वार्थी घमंडी के लिए तुझे नहीं दूंगा … सूरज ने अंतिम अस्त्र चलाकर जाती हुई मां के पैर बांधने की कोशिश की तो मां झपट कर बोली… हां हां नहीं चाहिए तेरे रुपए …धरे रह अपने पास…ये देख मैने भी जमा किए थे अपनी बेटी की शादी के लिए घर खर्चे  से बचा बचाकर ….जब बेटा ही नहीं रहेगा ऐसी शादी करने से क्या फायदा….




……मां तेरे पास इतने रुपए थे फिर भी अपने ऑपरेशन के लिए मुझे नहीं दिए मैं कितना परेशान रहा रुपए के कारण तेरी आंख का ऑपरेशन टलता रहा ….अरे इतने सारे रुपए में तो आराम से शहर के अच्छे अस्पताल में तेरा ऑपरेशन हो गया होता और अभी तक तू अच्छे से देखने भी लग जाती…सूरज अचंभित था मां के इस बर्ताव से।

बेटा मां के लिए खुद से बढ़ कर अपनी संतानों की खुशी और सुख होता है .. आज इन रुपयों से मैं अपने कैलाश की जिंदगी की खुशी वापिस लाने जा रही हूं मेरे लिए ये मेरे ऑपरेशन से बढ़ कर है।

नतमस्तक हो गया था सूरज मां के त्याग की पराकाष्ठा और ऐसे कुपुत्र के लिए भी ममत्व से लबालब मां का दिल देख कर।

मां तू धन्य है एक क्षण को तो तो मैं भी अपने छोटे भाई के प्रति अपनी जिम्मदारी से विमुख हो गया था ….रुक रुक मां मुझे भी अपने साथ ले चल …कहते हुए सूरज अपनी वत्सला मां के पीछे दौड़ पड़ा..!

शहर पहुंचते ही वो शांत सौम्य सी मां पुलिस थाने में दुर्गा बन गई थी… अपने निरीह से पुत्र को जेल की सलाखों के पीछे देख कर लड़ झगड़ कर रुपए दे दिला कर अपने पुत्र को जेल से निकाल अपने सीने से लगा कर ही दम लिया उसने …..कैलाश तो बस पछताता रोता मां में चरणों में गिर गया था सारा अभिमान सारा घमंड आज मां के ममत्व की पराकाष्ठा से धुल गया था….!

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