माँ का दर्द समझ मे आता है, पत्नी का क्यों नहीं..?? – अर्चना सिंह : Moral stories in hindi

 “टिकट  कन्फर्म हो गया है “।आप तूलिका से बात कर लीजिए एक बार ” । लैपटॉप पर काम करते हुए क्षितिज ने अपनी माँ विद्या जी को कहा । फिर विद्या जी ने बात अनसुनी करते हुए फोन काट दिया ।

अगले ही दिन की फ्लाइट थी । तूलिका रसोई में रोटियाँ सेंक रही थी, भागते हुए वो क्षितिज के कमरे में पहुँची और पूछने लगी क्षितिज से…”मम्मी जी का फोन था, कोई खास बात ..? क्षितिज ने ना में सिर हिलाते हुए कहा..”उनसे बोला बात कर लें व तुमसे पर मम्मी फोन काट दीं । खास बात तो नहीं बस गठिया रोग दिखाने के लिए आ रही हैं। बस इतनी ही बात हुई ।

फोन के वक़्त सामने नहीं थी तूलिका लेकिन वो समझ चुकी थी माजरा । जैसे ही क्षितिज ने बात खत्म करी, फट पड़ी तूलिका ।

“क्या समझकर रखा है इनलोगों ने हमे ? सेवा आप तो नहीं करते हो कि बस आपको फोन कर दिया हो गया । खाना बनाती हूँ मैं, दवाइयाँ लाती हूँ मैं, टहलाने ले जाती हूँ मैं, पर मुझे एक कॉल नहीं करना है ।

जितना हम चुप रह रहे हैं उतना ये लोग सिर पर चढ़े जा रहे   हैं । मैं कोई सेवा किसी की नहीं करने वाली , पहले आपको बोल रही हूँ क्षितिज । फिर मत कहिएगा आप की आपको नहीं बोला । बहुत बार कर के देख लिया पर ये लोग सिर्फ अकड़ और नीचा  दिखाने के अलावा कुछ नहीं किए ।

क्षितिज तूलिका की ये स्थिति देखकर अवाक रह गया ।उसके तरीके से उसकी तकलीफ साफ- साफ दिख रही थी, वो भी समझ सकता था ।लेकिन हर माँ के लाल का तो बस यही है न ..”माँ गलत हो तो गलत नहीं बोल सकता, भले ही पत्नी गलत न हो और माँ बोले गलत है तो मान लेगा । उसने बिस्तर से उतर के तूलिका के गले में अपनी बाहों का हार डालते हुए कहा..”पानी सिर के ऊपर होने दो, कोई मुझे कुछ बोले तो ..फिर देखो मैं क्या- क्या सुनाता हूँ ।

आँखों से लगातार आँसू निकल रहे थे और बहुत ऊँचे स्वर में चीख रही थी तूलिका..पानी सिर से ऊपर जाने का इंतज़ार कर रहे हैं, क्या बोल रहे हैं आप क्षितिज ? न आपके सामने कोई उल्टी- सीधी बहकी बातें करेगा न पानी आपके सिर से ऊपर जाएगा । कैसे मानेंगे आप की पानी सिर से ऊपर जा रहा है, बताइए मुझे भी । ग्यारह साल की शादी में आपने कब मेरे लिए मुँह खोला ?

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कभी आपके पापा के ऑपरेशन में उनकी सेवा 3 महीने की, कभी नीलू (देवरानी )  के बच्चा होने पर  कभी आपके चाचा – चाची की सेवा में जी- जान लगा दी ।

उस दौरान भी सिर्फ मेरी बुराई व अपयश ही हाथ लगा ।  और तो और मेरे करने की कीमत नहीं तो क्यों करूँ मैं, बस दुःख झेलकर चिंतित रहने के लिए ? मुझसे अच्छी तो आपकी बहन शालू है, न खटती है, न किसी की सेवा करती है बस फोन पर सलाह देती रहती है और लोग उसकी सुनते रहते  हैं फिर जता भी देते हैं … घरवालों के लिए बेचारी हमेशा सोचती है ।नहीं नाम कमाना मुझे । बहुत हो गया अब ।

इस कदर फटते हुए तूलिका को क्षितिज ग्यारह सालों में पहली बार देखकर हतप्रभ रह गया । एक मिनट के लिए वह बिल्कुल मौन हो गया । फिर रसोई से एक गिलास पानी लाकर बहुत हिम्मत से तूलिका की ओर बढ़ाते हुए कहा…”मेरी खातिर चुप हो जाओ, अपना पारा मत बढ़ाओ । समझ सकता हूँ मैं ।

पानी पी के लम्बी साँस खींचते हुए तूलिका बोली..”कुछ करिये न क्षितिज । क्या दर्द सिर्फ माँ को होता है पत्नी को नहीं…? क्षितिज समझ चुका था अब ज्यादती बर्दाश्त नहीं करेगी तूलिका । प्यार से पुचकारते हुए क्षितिज ने कहा..”साथ दूँगा तुम्हारा इस बार सोच लिया हूँ । दिमाग को शांत रखो और जो काम करने जा रही हो कर लो । अब थोड़ा राहत महसूस कर रही थी तूलिका । घर के सारे काम निपटा के बच्चों को स्कूल भेज के चाय पीकर खुद को ऊर्जावान महसूस कर रही थी ।

अगली सुबह जल्दी से तैयार होकर क्षितिज माँ को स्टेशन  लाने चला गया । 

आते ही विद्या जी का रोबीला चेहरा देखकर तूलिका पहले तो घबराई और दिमाग मे पिछली पुरानी बातें चलचित्र की भाँति घूम गयी । लेकिन उसने मूड न खराब करने की सोच रखी थी । मुस्कुराते हुए उसने विद्या जी का स्वागत किया और दुबारा चाय बनाकर ले आयी । चाय पीने के बाद विद्या जी नहाने ही जा रहीं थी कि बेटी शालू का कॉल आ गया ।

फोन रख के वो तूलिका को देख के मुस्कुराते हुए कहने लगीं..” उफ्फ ! ये लड़की भी न ! दिन – रात हमारे बारे में सोचती रहती है । घर से निकलने तक मे तो अब तक चार – पाँच बार हर कदम पर फोन कर दी । मम्मी! समान का ध्यान रखिएगा, क्या खाया- पीया और कहाँ पहुँचे । सच में बेटियाँ होती ही ऐसी हैं । किस्मत वाली हूँ मैं , एक बेटी ही है और इतना ख्याल रखने वाली ।

तूलिका ने खा जाने वाली नज़रों से क्षितिज को देखा । जी कर रहा था कि तूलिका सारा गुस्सा तभी उड़ेल दे लेकिन आँखों आंखों में ही क्षितिज ने रोक लिया ।

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अब विद्या जी नहाकर आईं तो मुँह बनाते हुए बोलने लग गईं..”घर कितना अस्त व्यस्त और रसोई कितनी बिखरी सी रहती है यहाँ और बिस्तर तो देखो कैसी सिलवटें पड़ी हैं। चाह कर भी कुछ बोलकर अपना मूड खराब नहीं करना चाहती थी तूलिका । उसने गुस्से के घूँट को पी लेना उचित समझा । क्षितिज पेट्रोल भरवाने चला गया । कुछ देर बर्फ  पेट्रोल भरवाकर क्षितिज आ चुका था और डॉक्टर के पास दोनो माँ- बेटे निकल गए । 

थोड़ी देर बाद बच्चे आ गए स्कूल से ।खाना खिलाकर आराम करने के बाद उन्हें ट्यूशन भेज दिया ।तूलिका अब आराम करने चली गयी । सोना तो चाहती थी पर नींद नहीं आ रही थी । उसने मद्धिम आवाज़ में कुछ देर गाना सुना फिर गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आयी । पर्दे की ओट से देखा तो क्षितिज डॉक्टर के यहां से आ चुके थे ।

आते ही तूलिका पूछने लगी..”डॉक्टर  क्या बोले मम्मी जी ?  सिर टिकाते हुए विद्या जी बोल रही थीं..”लम्बा समय दिया है कम से कम छः महीने लगेंगे उपचार में । एक महीने इंजेक्शन और फिर जाँच की रिपोर्ट आएगी तो उपचार पूरी तरह से शुरू होगा । ये सब सुनकर तूलिका का दिल पसीज आया । उसने पुरानी बातों को वहीं छोड़ दिया ।

क्षितिज मुँह पोछते हुए आकर माँ से बोलने लगा..”जब उपचार कराना ही है माँ तो कल से शुरू कर देते हैं। जल्दी सुबह खाकर तैयार रहिएगा आप । 

तूलिका को टेढ़ी आँखों से देखते हुए विद्या जी ने कहा..”कल से नहीं। मुझे पहले शालू के घर जाना है ।  दो – चार दिन तो उसके पास रह लूँ । फिर ईलाज करवाउंगी । कितनी बार हालचाल पूछ चुकी है । खुशनसीब हूँ मैं, एक बेटी है और वो भी इतना ख्याल रखने वाली । पिछली बार पापा बीमार थे तो शालू ने मन्नत माँगी थी तब जाकर पापा ठीक हुए। इतना करती है वो हमारे लिए तो हमे कुछ सोचना बनता है न ।

ये बात सुनकर तूलिका के तन – बदन में लहर सी दौड़ गयी । रुक नहीं पाई वो और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए बिना सोचे समझे विद्या जी के मुँह पर उसने बोल दिया..”अच्छा सोचा है मम्मी जी ! जाइए, मैं तो कहती हूँ चार – पाँच दिन क्यों ? वहीं रह कर ईलाज कराइए न ।

जादूगरनी हैं वो, उन्होंने मन्नत माँगी और पापा जी ठीक हो गए, आप भी जाइये छः महीने यहाँ रहने की जरूरत नहीं । आज तक विद्या जी से किसी ने बढ़ – चढ़ कर इतनी बोलने की हिम्मत नहीं की थी । अपनी बेज्जती विद्या जी को हजम नहीं हो रही थी। अवाक रह गए क्षितिज और विद्या दोनों । तूलिका को तरेरते हुए विद्या जी क्षितिज के पास जाकर बोलीं..सुन रहा है क्या बोल रही है, जाकर रोक न उसे । वरना बहुत बुरा होगा ।

क्षितिज ने कहा अब मैं भी उसे नहीं रोक सकता माँ । आप देखिए आपने बिल्कुल हद पार कर दी । मौका आपने दिया है ।विद्या जी समझ नहीं पा रही थीं तभी तूलिका ने बोला..”मुझे रोकने की कोशिश मत कीजियेगा क्षितिज । मेरे घर और रसोई बिखरे और गंदे हैं इसलिए कि मेरे बच्चे अभी सात आठ साल के हैं, मैं उन्हें बांध के नहीं रखती ।

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और मैं किसी को सोफे और बिस्तर पर बैठने के लिए गुस्सा नहीं करती । लोग होंगे तो घर सामान उलझे बिखरेंगे ही न..? जब मन्नत मांगने से ही तबियत ठीक हो जाती है तो क्यों मै अपना जी जलाऊँ ? मुझसे अच्छी तो आपकी बहन शालू है न ! फोन करके ही वो इतने मान- सम्मान बटोर लेती है जो मैं आज तक ग्यारह वर्षों में सब करके भी नही बटोर पायी । फिर क्यों करना मुझे सेवा । 

विद्या जी समझ चुकी थीं तूलिका का सब्र जवाब दे गया था लेकिन अब उसके आगे उनकी हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने की । तभी शालू का फोन आया । विद्या जी ने फोन उठाकर कहा..शालू ! इलाज कल से ही शुरू कराना है मुझे, नहीं आ पाऊँगी । “मम्मी ..नारियल पानी और फल जूस सब समय पर लेते रहिएगा ।

तभी विद्या जी ने रूखे स्वर में कहा..”तुम वहीं से ज्ञान मत दो मुझे कैसे और क्या करना है । जो सेवा करेगा उसे पता है क्या कैसे करना है । तुम बस अपने घर की साज – सज्जा पर ध्यान दो और अभी रखो फोन । बहुत काम….

तब तक शालू ने फोन काट दिया माँ के इतने कटु तंज भरे शब्द सुनते हुए । तूलिका को कोई पछतावा नही हो रहा था । बहुत हल्का महसूस कर रही थी आज ग्यारह वर्षों बाद । ऐसा लगा जैसे सीने से किसी ने पत्थर का बोझ हटा दिया पर थोड़ी असमंजस में थी कि इतनी जल्दी कैसे सब कुछ बदल गया । लेकिन अंदर से बहुत हल्का महसूस कर रही थी ।

अर्चना सिंह

मौलिक, स्वरचित

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