‘ अनीता सिन्हा’ बैंक में सीनियर असिस्टेंट की पोस्ट पर काम करती हैं।
उनके पति का देहांत हो चुका है।
संतान सुख से वंचित वे घर में नितांत अकेली ही रहती हैं।
वे रोज सुबह घर के सारे कामकाज निपटा कर पूजा के नाम पर भगवान् जी को सिर्फ़ अगरबत्ती दिखा कर ८. २० की लोकल से अपने ऑफिस के लिए निकल जाती है।
फिर उनकी घर वापसी रात की ८ बजे वाली लोकल से ही हो पाती है।
यहाँ तक कि चालीसा पाठ भी वे गाड़ी में ही बैठ कर निश्चिंत भाव से करती हैं ।
विगत छह वर्षों से जब से पति मनोहरलाल का देहावसान हुआ है। उनकी नित्य की यही दिनचर्या रही है।
इसमें चेंज के नाम पर अगर कुछ है तो वह है किन्नर ‘ मजुँल ‘।
दुबले-पतले छरहरे बदन वाले मजुँल की आंखों में अनीता जी को न जाने क्यों अपनी जन्म लेने के बाद मात्र तीन हफ्तों तक मातृत्व का सुख दे कर मर गई बिटिया की झलक दिखती है।
मजुँल भी जो उस ट्रेन की नाचने-गाने वाले हिंजड़ो की झुंड में शामिल रहती है न जाने क्यों अनीताजी के पास आते ही थोड़ी देर के लिए रुक जाती है।
जहाँ अन्य सब हिजड़े बेशर्मी से अपने हाथों को नचा-नचा कर पैसे के लालच में किसी की भी गोद में बैठ रही होतीं , वहीं मजुँल की आंखों में विवशता साफ झलकती मानों उसकी शर्म अभी बाकी है।
करीब रोज ही उसे इस मार्मिक स्थिति में देखती अनीताजी एक दिन अचानक उसके हाथ थाम कर पूछी बैठी,
” तुम्हारा घर कहाँ था बेटी ? “
इतने प्यार से शायद ही किसी ने मजुँल से बात की हो ,
” चाची, लखीमपुर ” मीठी आवाज में बोली… मजुँल
” तुम चलोगी मेरे साथ ? “
सुन कर मजुँल की आँख में चमक उभरी लेकिन फिर तुरँत ही बुझ गई।
भयंकर विवशता से भरी कुछ भी नहीं बोल कर उसने सिर्फ़ दोनों हाथ जोड़ दिए।
उसकी आंखो में आंसू झिलमिला रहे थे।
फिर गिरोह की सरगना झल्लो मौसी की ओर देखी जिस का चेहरे सपाट और भावशून्य है।
चेहरे पर सपष्टतया असमंजस की रेखाएं खिंची हैं तो क्या उनकी अनुमति है ?
तभी ट्रेन झटके खा कर रुक गई।
गाड़ी के रूकते ही अनीता जी ना जाने किस भावना से प्रेरित हो कर मन में दृढ निश्चय करती हुई मजुँल के हाथ कस कर पकड़े और सीधे उतर गई ।
झल्लो मौसी ने कनखियों से दोनों माँ-बेटी को उतरती हुए देखा और संतुष्ट हो कर मुँह फेर पीछे पलट … गई।
जैसे कह रही हो… ,
” जा चली जा ,
आखिर किसी परवाह करती हुई माँ ने तो हमारा मान रखा … है।
स्वरचित / सीमा वर्मा