गुनाहों का कभी प्रायश्चित नहीं होता – प्रतिभा भारद्वाज ’प्रभा’  : Moral Stories in Hindi

“मां जी क्यों न हम एक बच्चा गोद ले लें….”
“बहू, तुम्हें होश भी है कि तुम क्या कह रही हो….बच्चा गोद ले लें…..तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि मैं किसी और का बच्चा गोद लेने के लिए मान भी जाऊंगी… ये बात अलग है कि तुम ही हमें बच्चे का सुख नहीं देना चाहतीं वरना तो आजकल बहुत इलाज हैं और यदि ऐसा है तो मुझे साफ साफ बता दो, मैं अपने बेटे का दूसरा विवाह करवा दूंगी लेकिन पोता तो मुझे अपने ही वंश का चाहिए….” अपनी छोटी बहू कविता के कहने पर शकुंतला जी भड़क उठीं।

कविता भी ज्यादा बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए चुपचाप अपने कमरे में चली गई।

शाम को छोटे बेटे अनुज से शकुंतला जी ने फिर वही बात छेड़ दी, ” बेटा तुम्हारी शादी को 4 साल हो गए और मुझे अभी तक पोते का मुंह देखने का सुख नहीं मिला, तुम क्या चाहते हो कि मैं ऐसे ही पोते का मुंह देखे बिना मर जाऊं….बेटा, क्यों न तुम दूसरा विवाह कर लो क्योंकि इससे तो कोई उम्मीद बची नहीं है कि ये मुझे पोते का सुख देगी ……”

“बस कीजिए मां जी जब देखो तब आप बस पोता पोता की रट लगाए रहती हैं,… कविता से मेरा विवाह हुआ है और अगर हमें संतान नहीं हुई तो इसका मतलब ये नहीं है कि मैं उसे छोड़ दूं …अरे जितना दुख आपको है उतना ही मुझे और कविता को भी है तो क्या हम उसे बेसहारा छोड़ दें. …क्यों न हम एक बच्चा गोद ले लें और भी तो ऐसे लोग हैं जिन्हें संतान का सुख नहीं मिलता तो वो भी तो गोद लेते हैं, ऐसे ही हम ले लें तो इसमें बुराई क्या है…..”

” चुप कर, अब तू भी उसी की भाषा बोलने लगा कि बच्चा गोद ले लें….अरे अपना खून अपना होता है तुम लोग समझते क्यों नहीं हो….एक बात कान खोल के सुन ले कि बहू को कल मेरे साथ डॉक्टर के भेज देना फिर चाहे अब पोता हो या पोती कम से कम मुझे दादी बनने का सुख तो मिलेगा….

मैंने उससे कहा तो वो जाने को तैयार नहीं है कहती है कि भगवान की मर्जी होगी तो यह सुख मिल जाएगा लेकिन डॉक्टर के पास किसी चेकअप के लिए नहीं जाएगी….अरे ये भी कोई जिद है उसकी….उसे आज तू साफ साफ समझा दे कि या तो मेरे साथ डॉक्टर के चले नहीं तो मैं दूसरी बहू ले आऊंगी और रही बात इसके बेसहारा होने की तो भले ही यह चाहे तो इस घर में रह सकती है….. पर मुझे तो इस घर का वारिस चाहिए….”

उन दोनों की बहस सुनकर कविता भी वहां आ गई और अनुज को इशारे से चुप करने लगी, “चलिए आप, मां जी के साथ मैं डॉक्टर के पास चली जाऊंगी…”

“नहीं कविता अब मुझे और चुप मत करो… आज मुझे बोल लेने दो…..और मां जी आप …क्या कह रहीं थी कि पोता या पोती (ठहाके के साथ हंसता हुआ) ….आज आपको कुछ भी चलेगा बस दादी कहने वाला होना चाहिए तो ये बात आपने भैया भाभी के सामने क्यों नहीं कही जब भाभी मां बनने वालीं थीं तब तो आपको पोता ही चाहिए था

और केवल पोता आपने न जाने कितनी बार  भाभी के न चाहते हुए भी उनके गर्भ में पल रही बेटियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया और तो और जब भैया का एक्सीडेंट हुआ और वो भगवान को प्यारे हो गए तब भाभी को ही अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया और अब आपको मेरी संतान से मतलब है चाहे वो पोता हो या पोती वाह मां वाह … आपने तब भी भैया भाभी की बात नहीं मानी और न अब हमारी मान रही हो…..”

“बेटा, मुझे अपनी उन गलतियों का अहसास है शायद मेरी ही गलतियों की वजह से भगवान ने मेरा बेटा मुझसे दूर कर दिया, अब तो एक तू ही सहारा है, तुझी से मेरी आस बंधी है और इसीलिए मैं चाहती हूं कि मुझे जल्दी से जल्दी दादी बनने का सुख दे दे …. एक बार बहू को मेरे साथ डॉक्टर के भेज दे अगर कोई कमी हुई तो जितना भी खर्चा आएगा हम इलाज करवाएंगे न….” कहते हुए शकुंतला जी आंखों में आंसू भर आईं।

“तो फिर ठीक है मां जब आपने ठान ही लिया है तो चलना डॉक्टर के पास लेकिन इलाज कविता का नहीं मेरा करवाने….क्योंकि कमी कविता में नहीं मुझमें है…..”

जैसे ही अनुज ने कहा शकुंतला जी उसे देखती रह गईं, उन्हें चक्कर सा आने लगा।

अनुज ने उन्हें संभालते हुए कहा, ” हां मां कमी मुझमें है और यह बात हमें बहुत पहले ही पता चल गई थी इसीलिए कविता आपके साथ डॉक्टर के यहां जाने के लिए मना करती थी और उसने तो मुझे भी आपको बताने के लिए मना कर दिया था और बेचारी खुद आपके गुस्से का शिकार बनती रही …

अपने आपको बांझ सुनकर भी चुप रह जाती…. वो तो यदि आप मुझ पर दूसरे विवाह का दबाव न डालती तो मैं अब भी नहीं बताता….लेकिन अब क्या करता जब कमी मुझमें है तो दूसरा क्या चाहे जितने विवाह करवा दो दादी बनने का सुख तो मैं आपको दे ही नहीं पाऊंगा…..दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आप जैसे लोग हर बात में केवल महिलाओं में दोष निकालते हैं, बड़ी भाभी के गर्भ में बेटियां थीं तो उसमें भाभी का क्या दोष था जो आपने उनके चाहते हुए भी उन्हें मां बनने के सुख से वंचित रखा और अब जब मुझे संतान सुख नहीं मिल रहा तो इसमें इस बेचारी कविता का दोष….वो क्यों आपके या किसी और के ताने सुने….”

आज शकुंतला जी को लगा कि भगवान ने इतने सालों से  उनकी प्रार्थना क्यों नहीं सुनी क्योंकि जो उन्होंने बड़े बेटे बहू के साथ किया था वो भ्रूणहत्या कोई गलती नहीं उनके द्वारा जानबूझ कर किया गया गुनाह है और गुनाहों का कोई प्रायश्चित नहीं होता।

आज शकुंतला जी के पास पश्चताप के आंसुओं के अलावा कुछ नहीं बचा था।

प्रतिभा भारद्वाज ’प्रभा’

VM

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