” माँ हम क्यों नुकसान सहें – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

“ यार नौ बज गए जल्दी से फोन हाथ में ले लो… माँ का फोन आने वाला है… हम सभी भाई बहन से उसने एक ही वक़्त पर ऑनलाइन आने कहा है।” पत्नी निशिता से कहते हुए रितेश ने जल्दी से फोन निकाल सामने रख लिया

ठीक नौ बजे सुमिता जी ने अपने तीनों बच्चों को विडियो कॉल लगा दिया

“ प्रणाम माँ !” एक सुर में सब बच्चों ने कहा

“ खुश रहो-खुश रहो… आ गए ना सब अब ये बताओ सब ठीक हो ?” सुमिता जी ने पूछा

“ हाँ माँ हम सब ठीक है पर एक साथ सबको यहाँ पर एकत्रित करने की वजह तो बताओ?” बच्चों ने पूछा

“ हाँ बता रही हूँ पहले कुछ सवालों के जवाब मुझे दो… क्या तुम सब अपने चाचा का एहसान मानते हो… जो उन्होंने तुम पर किया ?” सुमिता जी ने पूछा

” ये भी कोई पूछने वाली बात है माँ… हम सब जानते हैं जब मैं बारह साल का ही था तब पिताजी एक दुर्घटना में हमारा साथ छोड़ कर चले गए उस विकट परिस्थिति में हमारा साथ चाचा चाची ने ही दिया था… हमारी पढ़ाई लिखाई से लेकर राशि की शादी सब चाचा ने ही किया पर बात क्या है ये तो बताओ?” बड़े बेटे रितेश ने पूछा

 “ बेटा बात ये है कि चाचा की बेटी की शादी तय हो गई है…. चाचा की आर्थिक स्थिति पहले जैसी नहीं रही कि वो सब कुछ बहुत अच्छे से कर सके… पर मैं चाहती हूँ तुम सब मिलकर जितना हो सके उनकी मदद कर अपनी छोटी बहन की शादी में हाथ बँटाओ… मैं यहाँ रहती हूँ इन लोगों के साथ मुझे हालत पता है… हाँ इस बात से इंकार नहीं कर सकती

इस कहानी को भी पढ़ें: 

संयुक्त परिवार में टोका -टाकी ज़रूरी है पर एक शिक्षा और परवाह भी है। – मोहित महेश्वरी   : Moral Stories in Hindi

की तुम सबने घर में ज़रूरत की सभी चीजें जुटाने में उनकी मदद की है… उनकी यहीं एक बेटी है और तुम लोगों की सबसे छोटी बहन….जितना कर सकते हो करने की कोशिश करना… और हाँ राशि बेटा तेरे उपर मैं ज़्यादा ज़ोर नहीं डाल रही पर तुम देखो कुछ हो सकता है तो…।” सुमिता जी ने कहा

“ माँ मैं भी चाहूँगी जैसे मेरी शादी के वक़्त चाचा के हालात अच्छे थे तो सब कुछ बहुत अच्छे से किया तो तनु की शादी में भी कोई कमी ना हो… मैं इस बारे में निकुंज से बात करूँगी वैसे वो हमेशा कहते रहते हैं तुम सब को चाचा के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटना चाहिए ।” राशि ने कहा

“ पर माँ मैं कैसे क्या ही मदद कर सकता हूँ….जो सेलरी मिलती बच्चों के स्कूल और घर खर्च में ही ख़त्म हो जाते नित्या से कैसे कहूँ वो हमारी मदद करें… वो तो हर बात पर मुझे नफ़ा नुक़सान बताने लगती हैं अब शादी के नाम पर बोलूँगा तो कहेंगी फिजूल में हम क्यों खर्च करें जिसकी बेटी है वो जाने… हम क्यों नुक़सान सहे।”छोटे बेटे ऋषभ ने कहा

 रितेश भी हाँ में हाँ मिलाने लगा

” वाह मेरे बेटों…. अपना नफ़ा नुक़सान दिख रहा है…. यही नफ़ा नुक़सान अगर तुम्हारे चाचा ने उस वक़्त सोचा होता तो आज जो ऐशो-आराम की ज़िन्दगी और अच्छी सी नौकरी पर उछल रहे हो ना वो हो गया होता… मैं क्या ही कर लेती कितनी पढ़ी लिखी थी एक ही काम अच्छी तरह आता था खाना पकाना…उस वक़्त कौन खाना पकवाता था…चाचा ने तो ना सोचा मेरी पत्नी और एक बेटी को ही करूँ, वो क्यों बड़े भाई के चार परिवार के साथ अपनी आमदनी में नुक़सान सहते वो भी तो सोच सकते थे हमारे लिए नहीं करते तो उनका कितना खर्च बच सकता था…

. वो भी तो हम सबके लिए कितनी कटौतियाँ किए होंगे … तुम सब छोटे थे पर मैंने देखा है… तुम सब के स्कूल की फ़ीस भी कम नहीं होती थी सबने कहा सरकारी में डाल दो पर चाचा ना माने… तुम्हारे पापा के सपनों को टूटने नहीं दिया ख़ैर जब तुम लोगों से नहीं होगा तो कोई बात नहीं मैं तो हाथ पीछे नहीं खींच सकती कुछ जेवर रखे हैं मेरे वो बेच कर मदद कर दूँगी ।” सुमिता जी कहकर फ़ोन काट दी

अब सभी भाई बहन लगे बतियाने… ,“माँ कही से गलत नहीं है … सही तो कह रही है जब चाचा चाची हमें अपना बच्चा समझ कर पाले तो हमारी भी कुछ ज़िम्मेदारी तो बनती है… माँ ने कब कहाँ पूरा लूटा दो…. चाचा ने तनु के लिए कुछ ना कुछ इंतज़ाम तो किया ही होगा… बस हम सब उसमें थोड़ा अपना सहयोग दे देंगे तो चाचा पर ज़्यादा बोझ नहीं आएगा ।” राशि ने कहा

 ” पर दीदी हमारे भी तो बच्चे है …।” ऋषभ ने कहना चाहा

इस कहानी को भी पढ़ें: 

!! भरोसा !!  – मृदुला कुश्वावाहा

“ भाई बच्चे तो चाचा के और भी हो सकते थे तनु तो तब दो महीने की ही थी पर उन्होंने हमसब को अपना मान एक ही बेटी पर बस कर लिया मुझे भी लगता है….अगर चाचा ने हमें अपना मान सब किया तो हमें भी उनका बच्चा बन उनकी मदद करनी चाहिए ।” रितेश ने कहा

सभी भाई बहन सुमिता जी की बात पर सहमत हो गए…. तनु की शादी पर सबने अपनी अपनी तरफ़ से बहुत कुछ सामान दिया और चाचा को जरा भी अकेले नहीं पड़ने दिया…. तनु की विदाई के बाद चाची रितेश राशि और ऋषभ का हाथ पकड़कर बोली ,“ बेटा हमारे लिए तो जो हो तुम सब ही हो….व्यापार में नफ़ा नुक़सान तो होता रहता था

तब तुम्हारे चाचा यही कहते थे देखना गरिमा हमें जब भी कोई दुविधा होगी मेरे ये बच्चे ज़रूर उसे दूर कर देंगे और ये तुम सब ने सच कर दिखाया….तनु की शादी के लिए तो हम क़र्ज़ा लेने का सोच रहे थे पर उस नुक़सान से तुम सब ने हमें उबार लिया ।”

सुमिता जी वही पास में खड़ी थी ….अपने बच्चों पर उन्हें गर्व हो रहा था…. माना उन्हें लग रहा होगा बेकार ही शादी में नुक़सान हो गया पर ये भूल रहे हैं कि उसके बदले में जो प्यार और सम्मान मिल रहा है वो नफ़ा कहीं और से नहीं मिल सकता …. पैसे तो इंसान फिर भी कमा सकता है पर रिश्ते में नुक़सान हो जाए फिर उसे कमाना मुश्किल होता है ।

 दोस्तों नफ़ा नुक़सान सिर्फ़ पैसे का ही नहीं होता… कई बार किसी के द्वारा किए गए उस एहसान या कृतघ्न का भी नफ़ा नुक़सान भुगतना पड़ता है…. सुमिता जी के बच्चे जब छोटे थे तभी पति का देहांत हो गया… एक देवर ने सभी को सहारा दिया और बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई उनकी शादियाँ भी सही तरीक़े से करवाई पर अपनी बेटी की शादी के

वक़्त तक आर्थिक स्थिति पहले सी नहीं रही….पर वो ये बात किसी से कह नहीं पा रहे थे ऐसे में सुमिता जी ने बच्चों को समझाया और सबने अपने चाचा चाची के प्रति कृतज्ञ होते हुए मदद की पेशकश कर उन्हें सहारा दे ये जता दिया कि वो अकेले नहीं है।

मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें कमेंट्स करें और मेरी अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए मुझे फ़ॉलो करें।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

error: Content is Copyright protected !!