“मैं कह रही हूँ ना तुम लोगों से मुझे खाना नहीं खाना…. ले जाओ ये खाना यहाँ से….. चार पैसे क्या कमाने लगे हैं खुद को बहुत होशियार समझने लगे हैं… माँ की तो कोई फ़िक्र ही नहीं है… बस बीबी बच्चा यही इनकी दुनिया है।” सुनंदा जी ग़ुस्से में धमकियाते हुए बेटा बहू से बोल रही थी
“ पर माँ हुआ क्या है किस बात पर इतना ग़ुस्सा हो रही हो…. राशि ने कुछ कहा है या फिर बच्चों ने… मैं तो तुमसे कभी कुछ कहता ही नहीं… फिर ये खाने पर ग़ुस्सा क्यों निकाल रही हो… खा लो ना।” निकुंज माँ का हाथ पकड़कर बोला
सुनंदा जी बिस्तर पर लेटकर अपना बायाँ हाथ आँखों पर रख कर ग़ुस्से में बोले जा रही थी मानो किसी को देखना ही नहीं चाहती हो।
“ पर मम्मी जी बताइए तो सही आख़िर हुआ क्या है….मुझे तो अच्छे से याद है आज मुझसे कोई गलती भी नहीं हुई… खाना भी वकायदा आपको पूछ कर आपकी पसंद का बनाया है….फिर खाने को मना करना भगवान का अपमान करना होता है… आप ही कहती ना?” राशि भी सास को मनाने के सब दाँव आजमा रही थी
“ बस कह दिया ना… नहीं खाना… अब तुम लोग अपने घर जाने ही वाले तो मेरी परवाह करने की कोई ज़रूरत नहीं है ….ना इस दिखावे की कि मुझे तुम दोनों कितना मान सम्मान देते हो!” सुनंदा जी दोनों के तरफ़ से मुँह फेर करवट बदल ली
दोनों एक दूसरे का मुँह ताकने लगे… ,”हे भगवान माँ तुम भी किनकी बातों में आ गई….चलो पहले उठो खाना खाओ फिर सब बताता हूँ…।” निकुंज माँ को उठाकर बिठा दिया…
माँ के हाथों में थाली पकड़ाते हुए निकुंज बोला,“ पहले ये बताओ ये सब बात तुम्हारे मन में किसने बिठाया… कौन है जो तुम्हें ऐसी नसीहत दे रहा?”
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सुनंदा जी कौर लेते हुए बोली,“ आज सुबह तुम दोनों उस आदमी से किसी घर की बात कर रहे थे ना….मैं समझ गई मेरा बेटा बहू भी दुनिया के चाल चलन पर चलना चाहता… घर में एक माँ ही तो बोझ होती हैं… वृद्धाश्रम ना भेज कर मुझे यही घर में मरने छोड़ कर तुम बच्चों के साथ नए डुपलेक्स घर में शिफ़्ट होना चाहते हो ना…. किरण ( सुनंदा जी की बहन) कह रही थी आजकल के बेटा बहू सास ससुर के साथ जरा रहना नहीं चाहते…
मौका मिलते अपनी गृहस्थी अलग कर लेते हैं… दीदी तुम भी सावधान रहना… तुम्हारी तो बहू भी नौकरी करती है… देखना कल को तुम्हें पूछेंगी तक नहीं इसलिए अपने लिए सोचना शुरू कर दो…जब अलग चले जाए घर किराए पर लगा देना … कुछ आमदनी होती रहेगी तो ज़िन्दगी आसान रहेगी नहीं तो बेटा बहू का मोहताज बन कर रह जाओगी ।”
एक दुखद आह के साथ सुनंदा जी ने कहा और अपनी आँखों से लुढ़कते आंसुओं को गालों पर ही पोंछ लिया
“ माँ खाना खाते हुए रोना नहीं चाहिए… अन्न फिर शरीर को नहीं लगता …. और किरण मौसी की बहू ने क्या किया वो उन्होंने आपको बता कर अच्छी ख़ासी नसीहत दे दी और आप हमसे बिना कुछ जाने सुने अपने निष्कर्ष पर निकल गई…. हम आपको सब कुछ बताते पर पहले कुछ फ़ाइनल तो होता….आप मौसी जी की बात सुन अपने बेटे बहू पर अविश्वास कर बैठी ।” राशि की आँखें भर आई थी क्योंकि वो सास को हमेशा बहुत सम्मान करती थी
“ माँ तुम भी ना…पता है जो तुम आज सुबह आदमी की बात सुन कर आँकलन कर बैठी हो तो बता देता हूँ… हम तुम्हें छोड़कर ना कभी जाने का सोचते ना ही कभी जाने वाले… यहाँ से कही गए भी तो तुम्हें हमेशा साथ रखेंगे…. तुम्हारे सिवा एक दीदी ही अपनी है जो खुद अपने ससुराल में व्यस्त है…. तुम्हारे लिए हमें सोचना है और इसमें शादी के दस साल बाद कोई कोताही की हो तो बताओ…. राशि ने कभी तुम्हारी बात ना सुनी हो तो
कहो…. कितनी बार राशि जो कहती तुम नहीं मानती हो ऐसे में भी राशि वही करती जो तुम्हें पसंद हो चाहे उसका मन हो ना हो…. अब रही बात घर की तो हम बस इंवेस्टमेंट के लिए एक फ़्लैट बुक करना चाह रहे थे ताकि एक घर भी हो जाए इनकम टैक्स में भी थोड़ी राहत मिले और पैसे इधर उधर खर्च करने से बेहतर कहीं उसका प्रयोग करना लगा इसलिए हम उस पहचान वाले बिल्डर को बुला कर एक घर की बात कर रहे थे….. तुम्हें छोड़ कर जाने का कोई इरादा नहीं है ।” निकुंज ने माँ को समझाते हुए कहा
“ सच्ची बेटा तुम लोग मुझे यहाँ छोड़कर नहीं जाने वाले ….. मैं बेकार ही किरण की नसीहत मान सोच बैठी जब छोड़ कर जाने वाले तो अपना इंतज़ाम भी कर लूँगी।” सुनंदा जी खाकर उठी ,हाथ धोकर आई और अलमारी से एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर देते हुए बोली,“ बेटा ये रख लो काम आएगा ।”
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निकुंज आश्चर्य से लिफ़ाफ़ा लेकर खोला तो उसमें कुछ पैसे थे…,” ये सब क्या है माँ पैसे हमें क्यों दे रही हो ये तुम्हारे पैसे है ना।”
“ मेरी बचत के पैसे है जो मुझे तुम्हारे बाबूजी का पेंशन मिलता उसे जोड़ कर रखती जा रही थी …. ले लो बेटा एक घर कभी ना कभी ज़रूर काम आएगा…. आज तुम्हारे बाबूजी की याद आ गई…. ये ज़मीन भी उन्होंने बचत के फलस्वरूप ही लिया था जब हम पूरे परिवार के साथ रहते थे….मैंने कहा क्या ही ज़रूरत है तो बोले…. ज़रूरत घर की नहीं बचत की है जब कभी बुरा वक़्त आया तो ये आड़े हाथों काम आ सकता…. और देखो जब वो घर सबके परिवार बढ़ने पर छोटा पड़ने लगा तो हम यहाँ आ गए… तुम्हारे भी दो बच्चे है … ये उनके लिए बचत समझ कर रख लो… ले लो बेटा एक घर आड़े वक़्त के लिए ।” सुनंदा जी बेटे को नसीहत देते हुए बोली
अब निकुंज और राशि खुश हो गए थे…. पहले जिस बात पर नाराज़ हो खाना नहीं खा रही थी अब माँ समझ भी गई थी और उन्हें नसीहत भी दे रही थी….।
दोस्तों कभी कभी बड़े कुछ अधूरी बात सुन ना जाने मन में कितने ही आँकलन कर बैठते है…. पर जब सच्चाई जानते है तो नसीहत देने से भी नहीं चुकते….ऐसी बचत की नसीहत आपको किसी ने दी है जो हमें भी बताएँ ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश