माँ बनी शेरनी – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

   सुबह-सुबह दरवाज़े की घंटी बजी तो मनोरमा जी ने सोचा कि चंपा आई होगी…उसके आने का यही तो टाइम है,यही सोचकर उन्होंने दरवाज़ा खोला तो अपनी बेटी श्रेया को देखकर खुश हो गई।कुछ कहती इससे पहले श्रेया माँ के गले लगकर रोने लगी।

         छह बरस पहले श्रेया का विवाह सिद्धार्थ के साथ हुआ था जो एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था।श्रेया के सास-ससुर उसे बहुत चाहते थें।वह भी उनके आदर-सम्मान में कोई कमी नहीं करती थी।

        डेढ़ साल बाद श्रेया एक बच्चे की माँ बनी।उसके सास-ससुर पोती को गोद में लेकर बहुत खुश थें।कभी-कभी सास के मुँह से निकल जाता कि लड़का होता तो…लेकिन उनके पति उन्हें समझाकर शांत कर देते।

        श्रेया की फुफेरी सास अपने बेटे-बहू के पास आईं हुईं थी जो पास ही में रहते थें।एक शाम वो अपनी भाभी से मिलने चली आईं।इधर-उधर की बातें करने के बाद पूछी,” भउजी(भाभी)….भइया नहीं दिख रहें।सास बोली कि एक शादी में दिल्ली गये हुए हैं।

  ” अच्छा…।” फुफेरी सास के चेहरे पर ऐसे भाव आ गये जैसे उनके मन की मुराद पूरी हो गई हो।फिर तो वह रोज ही सुबह आ धमकती और अपनी स्वभावानुसार श्रेया की सास के कान भरने लगती।कभी श्रेया के काम करने के तरीके पर नाक-भौं सिकोड़ती तो कभी उसके बोलने पर।उसकी सास ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थी लेकिन समझदार थी और अपनी चचेरी ननद के स्वभाव से भी अच्छी तरह से परिचित थीं। रिश्ते न बिगड़े…इसलिए वो बस मुस्कुरा देती।अपनी दाल न गलते देख फुआ जी ने अपना पैंतरा बदला और कहने लगी,” भउजी…पोता बिना तो घर सूना ही रहेगा।हमारे पड़ोस की बहू को भी लगातार चार लड़कियाँ ही हुईं।” 

       सास भी तो इंसान ही होती है…पोते को गोद में खेलाने की इच्छा तो उनकी थी ही…सो ननद की बात सुनकर मन थोड़ा भटक गया।फिर तो फुआ जी ने उसपर नमक-मिर्च लगाने शुरु कर दिये और आखिर एक दिन कह ही दिया,” भउजी…आप तो न सिद्धार्थ का दूसरा ब्याह कर दीजिये और पोते का सुख भोगिये…मेरी बड़ी गोतनी(जेठानी) ने भी यही किया और देखिये…।” कहते हुए उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई।

        श्रेया किचन में ही थी, पिछले तीन दिनों से अपनी फुआ सास की गाथा को चुपचाप सुन रही थी लेकिन आज तो…।उसका मन तो किया कि जाकर फुआ सास को जवाब दे दे… लेकिन माँ के सिखाये संस्कार बीच में आ गये।दुख और क्रोध का गुबार कहीं तो निकालना था ही।उसने अपनी चार साल की बेटी को नर्सरी स्कूल में छोड़ा और माँ के पास आकर रोने लगी। 

        बेटी को यूँ रोते देखकर मनोरमा जी घबरा गई, बोली, ” बात क्या है..बता तो…सिद्धार्थ ने कुछ कहा…तेरी सास ने तो कहीं…।” तब श्रेया ने पूरी बात बताई और पूछने लगी,” क्या सच में सिद्धार्थ की दूसरी शादी…।”

    ” ऐसे-कैसे कर देंगे दूसरी शादी…।तू चिंता मत कर..जो मेरे साथ हुआ है वो तुम्हारे साथ नहीं होगा।” मनोरमा जी ने दृढ़ स्वर में कहा तो श्रेया चौंक गई,” आपके साथ!…।”

    ” हाँ..मेरे साथ…अपने रिश्तेदारों के घर में पोता देखकर तेरी दादी भी अपनी गोद में पोते को ही खेलाना चाहतीं थीं।तुझे देखकर वो बहुत मायूस हुईं…।तुझसे पहले भी मेरी एक बेटी और हुई थी जो छह महीने बाद…और फिर तू पैदा हुई।फिर तो तेरे पापा की ताई ने तेरी दादी के कान भरने शुरु कर दिये…कुल-खानदान की दुहाई देकर तेरे पापा को दूसरी शादी के लिये मनाने लगी।तेरे पापा बहुत सीधे थे..माँ के परम आज्ञाकारी….।तेरी दादी की बात पूरी होने से पहले ही तेरे पापा का एक्सीडेंट हो गया और वे…।फिर तो तेरी दादी ने मेरे पर अपना पूरा गुस्सा निकाला और तुझे अपने से अलग कर दिया।मैं तुझे खाना खिलाती तो बहुत गालियाँ निकालती।तेरे स्कूल जाने पर रोक लगाती..हर वक्त अनाप-शनाप बकती रहतीं।अंत समय में तूने उनकी बहुत सेवा की..तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ…पर तू फिक्र ना कर…मैं हूँ ना…अपने जैसा तेरे साथ भी हर्गिज़ नहीं होने दूँगी।” कहते हुए मनोरमा जी उठ खड़ी हो गईं।

     ” माँ…आप कहीं झगड़ा तो…।”

 ” नहीं रे…।” मुस्कुराते हुए उन्होंने बेटी के कान में कुछ कहा और बोली,” अब घर जा…मैं आती हूँ।

       थोड़ी देर बाद ही मनोरमा जी अपने समधियाने पहुँच गई।श्रेया की सास अपनी समधिन को अचानक देखकर हैरान हो गईं।फिर चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए बोलीं,” आईये..बैठिये..ये मेरी चचेरी ननद हैं।” कहते हुए ननद की ओर इशारा किया ।

     फिर तो एक माँ शेरनी बन गई।फुफिया सास पर गरज़ने लगी,” तो आप ही मेरे दामाद का दूसरा ब्याह करा रहीं हैं…पोता के लिये….जो फिर भी पोता ना हुआ तो मैं आप दोनों पर केस कर दूँगी।बेटा-बेटी में भेद करने के लिये पुलिस आप दोनों को पकड़कर जेल में डाल देगी।” पुलिस-जेल का सुनकर फुफेरी सास तो वहाँ से खिसक ली…और श्रेया की सास….उनके तो पसीने छूटने लगे।तुरन्त नरम होकर बोली, ” नहीं- नहीं..ऐसी तो कोई बात नहीं है।वो ज़रा…।” 

       अपनी समधिन की हालत देखकर मनोरमा जी की हँसी छूटने लगी…किसी तरह से अपनी हँसी को रोकते हुए बोली,” ज़रा-पूरा मैं नहीं जानती।उस दिन अपनी बेटी की सास को तो आप समझा रही थी कि बेटा-बेटी सब प्रभु की इच्छा है तो फिर अपनी बहू के साथ क्यों?” 

     ” अब गुस्सा थूक भी दीजिये..बैठिये…श्रेया..अपनी मम्मी को चाय नहीं पिलाओगी।” मनोरमा जी का हाथ पकड़कर अपने पास बिठाते हुए उनकी समधिन बोली।

      माँ को चाय देते हुए श्रेया मुस्कुराई जैसे कह रही हो,” यू आर ग्रेट!” दोनों हँसते हुए चाय पीने लगीं। तभी श्रेया की सास ने धीरे- से पूछा,” वो पुलिस का क्या नंबर है? सुगंधा की सास को…।” फिर तो मनोरमा जी हँसी छूट गई और उनकी समधिन समझ गई कि वह सब एक नाटक था।लेकिन अपनी बेटी के लिये एक माँ का शेरनी बनना उन्हें अच्छा लगा था।

                               विभा गुप्ता

                                स्वरचित 

#जो मेरे साथ हुआ है वो तुम्हारे साथ नहीं होगा

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