हमारे भारत में आज भी सैंकड़ों गांव ऐसे हैं जहां शिक्षा व्यवस्था सीमित है। यह कहानी उत्तर प्रदेश के ऐसे ही एक छोटे से गांव से संबंध रखती है जहां 10वीं कक्षा के बाद बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए आसपास के शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।
इस गांव में चिकित्सा की सुविधाएं भी न के बराबर हैं। प्रसून की दादी बीमार होती तो इलाज के लिए हर बार शहर जाना भी संभव नहीं हो पाता। 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले, दादी के लाड़ले प्रसून के मन में यहीं से एक सपने ने जन्म लिया।
प्रसून का सपना था कि वह डॉक्टर बने और अपने गांव के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करे। बचपन से ही उसे यह विश्वास था कि अगर वह मेहनत करेगा, तो कोई भी सपना असंभव नहीं हो सकता। लेकिन उसके सपने की राह इतनी सरल नहीं थी।
कक्षा 10 की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद, प्रसून के माता-पिता ने उसे शहर भेजने का फैसला किया। यह निर्णय उनके लिए आसान नहीं था। वे साधारण किसान थे और पूरे गांव में उनकी सादगी और मेहनत के लिए सम्मान था। लेकिन वे जानते थे कि अगर उनका बेटा कुछ बड़ा करेगा, तो इसे एक अलग रास्ते की जरूरत होगी।
शहर पहुंचते ही प्रसून को एक नई दुनिया का सामना करना पड़ा। वहां के बच्चे पहले से ही कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। उनके पास बेहतरीन संसाधन और पढ़े-लिखे परिवारों का सपोर्ट था। प्रसून की स्थिति इससे पूरी तरह से अलग थी। उसे लगा कि वह इस माहौल में कहीं खो जाएगा।
स्कूल में कक्षा के अन्य छात्रों के बीच वह स्वयं को अजनबी सा महसूस करता। तेज तर्रार बच्चों के बीच उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। हर दिन वह सोचता, “क्या मैं कभी इन बच्चों जैसा बन पाऊँगा?” उसकी मनःस्थिति में एक अजीब सा निराशावाद घर करने लगा।
स्वयं को अकेला महसूस करते हुए उसे अपने मम्मी पापा की याद आने लगी। अपने कमरे खड़ा होकर खुद से कहने लगा, “मैं गांव का साधारण लड़का हूं। मैं डॉक्टर नहीं बन सकता। शायद मुझे गांव वापस लौट जाना चाहिए।”
प्रसून ने अपने मन की बात करने के उद्देश्य से अपनी मम्मी को फोन लगाया। उसकी मम्मी ने कहा, “बेटा, कैसे हो?” प्रसून ने हल्के से जवाब दिया, “ठीक हूं, मम्मी।” मां ने उसकी आवाज़ में थकावट और चिंता को भांप लिया।
उसकी मम्मी ने कहा, “बेटा, हम जानते हैं कि तुम कठिनाइयों का सामना कर रहे हो, लेकिन तुम्हारे पास एक ताकत है—हमारा आशीर्वाद और तुम्हारी मेहनत। तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह मुश्किल हो सकता है, लेकिन हर कठिनाई तुम्हारे अंदर और ज्यादा ताकत पैदा करेगी।”
माँ के शब्दों ने उसका दिल छू लिया। उसे समझ में आया कि वह अकेला नहीं था। उसके पीछे मम्मी पापा का प्यार और विश्वास था, जो उसे प्रेरित और सपोर्ट कर रहा था।
प्रसून ने अपना दृष्टिकोण बदलने का निर्णय लिया। वह अब अपने सपने को सिर्फ एक लक्ष्य नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी मानने लगा। अब वह अपनी पढ़ाई में और अधिक परिश्रम और समर्पण के साथ जुट गया।
अब उसने NEET की कोचिंग कक्षाएं भी ज्वाइन कर ली। यहां उसे नए संघर्ष का सामना करना पड़ा। यहां हर टॉपिक के बाद टैस्ट होता था और बच्चों को रैंक दी जाती थी। उसने अपने रिजल्ट देखे और पाया कि उसकी रैंकिंग अपने साथियों से बहुत पीछे चलती, तो उसका मन फिर से टूटने लगा। आत्मसंशय उसे फिर से घेरने लगा।
प्रसून दीवाली की छुट्टियों में घर आया तो माता-पिता की अनुभवी आंखों ने उसकी सारी मन स्थिति को समझ लिया। उन्होंने उसे अपने पास बिठाकर, प्रेम से और विस्तार से उसकी सारी समस्याओं पर चर्चा की।
उसके पापा ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारा मुकाबला किसी से नहीं है। तुम्हें अपनी किसी से तुलना करके हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। बस तुम्हें हर दिन अपने आप को पहले दिन से बेहतर बनाना है। तुम्हारा मुकाबला स्वयं से है। अपने पर विश्वास रखो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। हम हर हाल में तुम्हारे साथ हैं।”
प्रसून की मम्मी ने भी उदाहरण देते हुए कहा, “बेटा, अगर तुम्हारे 100 में से 60 अंक आते हैं तो तुम्हें अगला लक्ष्य निर्धारित करना है कि मैं अगली परीक्षा में 60 से अधिक अंक लाऊंगा और मान लो कि अगली बार तुम्हारे 62 अंक आते हैं तो तुम्हें सोचना है कि इस
बार मुझे 62 से अधिक अंक लेने हैं, चाहे एक ही अंक अधिक क्यों ना हो। जब तुम इस तरह से करोगे तो तुम देखना कि तुम आत्मविश्वास से भर जाओगे और सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।”
माता पिता से प्रेरणा लेकर, इस बार प्रसून नई ऊर्जा और दृढ़ निश्चय के साथ शहर वापस आया। उसने ठान लिया कि अब हर दिन पहले से बेहतर होगा। उसने अपनी पढ़ाई की योजना फिर से बनाई। वह अब सिर्फ परीक्षा के अंक नहीं, बल्कि हर कदम पर अपने आप से मुकाबला करने की कोशिश करता था।
वह समय पर उठता, ध्यान से पढ़ाई करता और अपनी कमजोरियों को सहयोग और मार्गदर्शन से सुधारने की कोशिश करता। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत और आत्मविश्वास का फल दिखने लगा। अब उसे ये महसूस होने लगा कि हर दिन एक नई शुरुआत है और हर संघर्ष एक सफलता की ओर बढ़ता कदम।
NEET परीक्षा का दिन भी आ गया। प्रसु्न के मन में हल्की घबराहट थी, लेकिन इस बार वह पूरी तरह से तैयार था। उसकी पढ़ाई, उसका संघर्ष, और उसके माता-पिता की बातें, सब एक साथ जुड़कर उसे सफलता की ओर मार्गदर्शन दे रहे थे।
जब परिणाम आया, तो प्रसु्न के चेहरे पर एक नई चमक थी। उसने NEET परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी। उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने भगवान का धन्यवाद किया और उसे गले लगा लिया और कहा, “हमारा बेटा, सच में काबिल है! हमें विश्वास था कि तुम कर दिखाओगे।”
कुछ समय बाद, गांव के स्कूल के हेडमास्टर ने प्रसु्न को सम्मानित करने के लिए बुलाया। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हुए, गांव के बच्चों से कहा, “हम सभी के अंदर प्रतिभा होती है। माता-पिता का आशीर्वाद हमें उस प्रतिभा को निखारने की प्रेरणा देता है। उनकी दुआएं मेरे आत्मविश्वास और संघर्ष की ताकत बनी जिससे मैं हर मुश्किल को पार कर पाया।”
प्रसून की बातें गांव के बच्चों में उसकी तरह बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की नई प्रेरणा जगा गई। वे समझ गए कि माता पिता की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी शक्ति है।
-सीमा गुप्ता ( मौलिक व स्वरचित)
वाक्य: #मां बाप की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी शक्ति है।