श्याम सुंदर जी का बँगला शहर से दूर था आसपास कोई घर नहीं थे दूर दूर तक नज़रें घुमाओ तो कहीं एकाध घर दिखाई देता था ।
अपनी हिफ़ाज़त के लिए उन्होंने एक वाचमेन को रखा था । वे रेवेन्यू डिपार्टमेंट में अच्छे ओहदे पर थे । रोज सुबह वाकिंग करने जाते थे ऑफिस से गाड़ी पिकप करने आती थी । बड़े ही ठाठ थे । उनके एक बेटा और एक बेटी हैं । दोनों ही अमेरिका में निवासी हो गए हैं । साल में एक बार या दो साल में एक बार फ़ुरसत मिले तो आ जाते थे ।
यहाँ कल रात भर बारिश हो रही थी । श्याम सुंदर जी अपनी आदत के मुताबिक़ ही सुबह पाँच उठ गए थे । जबकि उन्हें मालूम था कि आज वे मार्निंग वॉक पर जा नहीं सकते हैं । बारिश की वजह से पूरी सड़कें पानी से भरी हुई हैं ।
उन्होंने जैसे ही मेन दरवाज़ा खोला तो देखा एक छोटा सा छ महीने का बच्चा पानी में हाथ डालकर खेल रहा था ।
श्याम सुंदर जी को देखते ही उनके पास आकर उनके पैर पकड़कर खड़ा हो गया । श्याम सुंदर जी ने भी उसके गालों को थपथपाकर देखा चारों तरफ़ नजर घुमाई कि यह किसके साथ आया है । उनकी नज़र कोने में सोई हुई औरत पर पड़ी जो बच्चे की किलकारियों को सुनकर उठ गई थी डरते हुए जल्दी से बच्चे को गोद में लेकर कहा साहब रात को बारिश के कारण मैं यहाँ रुक गई थी । अब चली जाऊँगी ।
उसी समय घर के अंदर से सुहासिनी जी आते हुए कह रहीं थीं कि आपने सुना हमारी लक्ष्मी जिस बस्ती में रहती है वहाँ पानी भर गया है । आज वह काम पर नहीं आएगी मुझे ही सारा काम करना पड़ेगा ।
श्याम सुंदर के पास खड़ी हुई लड़की ने कहा कि अगर आप कहेंगे तो मैं आपके घर का सारा काम कर दूँगी । मेरे बच्चे को पीने के लिए दूध दे दीजिए बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
सुहासिनी ने उसकी तरफ़ देखते हुए श्याम सुंदर जी से पूछा कि यह कौन है ?
वे कुछ कहते उसके पहले ही उस लड़की ने कहा कि मेम साहब मेरा नाम गौरी है मैं रहने के लिए जगह ढूँढने निकली थी कि बारिश शुरू हो गई और मुझे यहाँ आपके बरामदे में सर छिपाने के लिए वाचमेन भाई से सहायता लेनी पड़ी क्योंकि मेरे पास यह मेरा छोटा बच्चा था ।
सुहासिनी जी ने उसे काम करने की इजाज़त दे दी । उसका बच्चा गोल मटोल सा घर में घूम रहा था जिसे देख ये दोनों पति पत्नी खुश हो रहे थे । गौरी काम कर रही थी तो सुहासिनी ने ही उसे दूध पिला दिया और उसे कान्हा कहकर पुकारने लगे ।
सुहासिनी ने श्याम सुंदर जी से कहा कि सुनिए ना मैं सोच रही थी कि जब तक गौरी को कहीं रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं मिल जाता है हम उसे अपने घर में ही रहने देते हैं ।
हमारा इतना बड़ा घर है और कान्हा घर में घूम रहा है तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है । श्याम सुंदर जी को भी लग रहा था कि गौरी को यहाँ रोक लें तो अच्छा है परंतु वे होम मिनिस्टर की हाँ का इंतज़ार कर रहे थे इसलिए जैसे ही उसने गौरी को रोकने की बात कहा तो जल्दी से हाँ कह दिया कहीं उसका मन ना बदल जाए ।
वे रोज दस बजे ऑफिस चले जाते थे और शाम को छह बजे वापस आते थे । उनकी गाड़ी गेट के पास रुकती थी कि नहीं कान्हा आकर उनके पैर पर लिपट जाता था । जब तक वे उसे गोद में नहीं ले लेते थे तब तक वह पैर छोड़ता ही नहीं था ।
श्याम सुंदर और सुहासिनी जी के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी दोनों ही अमेरिका में रहते थे ।
श्याम सुंदर जी और सुहासिनी दो तीन बार अमेरिका में बेटे और बिटिया के पास रहकर आ गए थे ।
वहाँ उनका दिल नहीं लगता था क्योंकि उनके बेटे बहू ने बच्चे पैदा ना करने का फ़ैसला कर लिया था । वे दोनों अपनी नौकरी से बहुत व्यस्त रहते थे कभी इस कंट्री तो कभी उस कंट्री घूमते रहते थे ।
अकेला घर उन्हें काटने को दौड़ता था। बेटे बहू को उनसे बात करने की फ़ुरसत भी नहीं मिलती थी । पिछली बार बेटे ने कह दिया था कि माँ आप दोनों इंडिया में ही रहिए हम फ़ोन पर बातचीत कर लिया करेंगे । बिटिया कोई कम नहीं है वे दोनों भी नौकरी करते थे । उनका एक बेटा था परंतु वह अब हाई स्कूल में आ गया है तो वहाँ के तौर तरीक़े अलग होते हैं तो वहाँ भी मन नहीं लगता था ।
सुहासिनी इंडिया आकर कई दिनों तक सो नहीं पाई थी उसे बार बार बेटे की बातें याद आतीं थीं ।
उसे याद आया था जब श्याम के माता-पिता की देखभाल उसने कैसे किया था । वे दोनों दिन भर उनकी सेवा के लिए एक टाँग पर खड़े रहते थे । सुहासिनी की माँ उसे हमेशा कहती थी कि बिटिया माँ बाप की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी शक्ति है । सास ससुर की अपने माता-पिता के समान देखभाल कर । उसने उनकी बातों का मान रखा ।
आज उसके बेटा बहू तो इस बात को मानते भी नहीं हैं ।
उन्होंने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ही कान्हा को गौरी के साथ अपने पास रखने का फ़ैसला कर लिया था । गौरी अब इनके साथ ही सुहासिनी की राईट हैंड बनकर रह गई थी ।
इस बीच सुहासिनी के माता-पिता जो मुंबई में रहते हैं उन्हें एक काम वाली बाई की ज़रूरत थी । सुहासिनी की माँ बाथरूम में गिर गई थी उनकी देखभाल करने के लिए कोई मेहनती ईमानदार व्यक्ति की ज़रूरत है । पिता ने सुहासनी से मदद माँगी तो उसने श्याम सुंदर जी से कहा कि हम कुछ दिनों के लिए गौरी को माँ के घर भेजते हैं । गौरी से पूछा तो उसने कहा कि जैसे आपकी मर्ज़ी है ।
गौरी अपने छोटे बच्चे को लेकर मुंबई पहुँच गई वहीं पर वह दो साल तक रह गई थी।
इन्हीं दिनों सुहासनी के माँ की तबियत भी ठीक हो गई थी इसलिए गौरी को सुहासनी ने वापस बुला लिया था । उनके माता-पिता को गौरी बहुत पसंद आ गई थी । उन्होंने उसे बहुत ही दुखी मन से वापस भेजा था । कान्हा अब पाँच साल का हो गया था। श्याम सुंदर जी के घर में कान्हा लाड़ प्यार से पल रहा था वह बहुत ही होशियार था ।
उन्होंने उसे स्कूल में भर्ती कराया । वह खेलकूद पढ़ाई सबमें सबसे आगे था अपनी कक्षा में अव्वल आता था । उसने एम ए पास कर लिया और एक सरकारी कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी करने लगा । इस बीच श्याम सुंदर जी भी रिटायर हो गए थे । अब वे घर में ही रहते थे ।
एक दिन श्याम सुंदर जी ने उससे कहा कि कान्हा सिर्फ़ एम ए करके खुश हो । मेरे ख़्याल से तुम आगे भी पढ़ लेना इतने होशियार हो मुझे पूरा विश्वास है कि तुम ज़रूर बहुत आगे बढ़ोगे । उनकी बातों को सुनकर भी वह चुप ही था ।
उनके बार बार पूछने पर उसने बताया कि उसे सिविल्स की परीक्षा लिखनी है ।
श्याम सुंदर जी के रिटायर होने के बाद कान्हा का उन्हें बहुत सहारा था । वह घर और बाहर सारे काम कर लेता था । गौरी घर के काम के साथ आने जाने वालों को जवाब देना साफ सफ़ाई सब करती थी । एक तरह से हम दोनों उनके सहारे ही जी रहे हैं यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
कान्हा उन्हें बाबा बुलाता था और सुहासनी को मामी बुलाया करता था । जब वह छोटा सा था तब वाचमेन ने उसे सिखाया था कि साहब और मेमसाहेब कहकर पुकारना । उसे ठीक से बुलाना नहीं आता था तो श्याम जी को बाबा और सुहासनी को मामी बुलाया करता था ।
श्याम जी जैसा चाहते थे वैसा ही कान्हा ने सिविल की परीक्षा पास कर लिया और फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट में उसकी नौकरी लग गई थी ।
श्याम सुंदर जी ने गौरी से कहा गौरी तेरा बेटा बहुत बड़ा ऑफ़िसर बन गया है । उसे सुनकर गौरी की होंठों पर मुस्कान आई और वह वहाँ से चली गई थी ।
श्याम सुंदर जी सोच रहे थे कि उसका स्वभाव ही ऐसा है कि कुछ बोलती ही नहीं थी । वह पूरे निर्णय हम पर ही छोड़ दिया करती थी । जब मुंबई जाने के लिए उससे कहा तो भी उसने यही कहा था कि आपकी मर्ज़ी कह दिया।
आज उसके लिए निर्णय लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो गया है ।
कान्हा की ट्रेनिंग पूरी हो गई थी उसको पोस्टिंग भी मिल गई है उसने कल रात को ही फोन करके मुझे बताया था कि मैं यहाँ घर लेकर फिर वहाँ आऊँगा और माँ को अपने साथ ले जाऊँगा । उसकी बातों को सुनकर मेरा दिल बैठ गया परंतु यह तो सहज है कि बेटा नौकरी के बाद अपनी माँ को दूसरों के घर कैसे रहने देगा । हमें पहले से ही इस बात को सोच लेना चाहिए था कि कभी न कभी यह दिन ज़रूर आएगा ।
सुहासिनी तो गौरी के जाने की बात को सुनना नहीं चाह रही थी । उसने खाना पीना छोड़ दिया और रोते हुए बैठ गई थी । मैंने कहा भी था कि इसमें इतना ग़ुस्सा होने वाली क्या बात है यह तो एक दिन आना ही था ।
अब सोचो हमारे बच्चे अमेरिका में रहते हैं । हमें अवसर मिले तो हम भी वहीं जाकर रहते थे ना । यह सब ठीक है आप गौरी से पूछिए कि वह क्या चाहती है ।
मैंने गौरी से पूछा कि कान्हा तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहता है गौरी तुम उसके पास जाओगी ?
हमेशा की तरह ही उसने कहा कि आप जैसा कहें । मेरे लिए भी निर्णय लेना कठिन था लेकिन मैंने उससे कहा कि तुम अपना सामान पैक कर लो अगले हफ़्ते तुम्हें जाना है ।
सुहासिनी गौरी के लिए भला बुरा कह रही थी । यह उसका ग़ुस्सा नहीं उसके प्रति प्यार ही है ।
उसने आँखों में आँसू भरकर मुझसे कहा कि वह जा रही है ना तो अच्छा नहीं लग रहा है क्योंकि हमारे साथ इतने सालों से रह रही थी। उसके जाने की बात सोचकर ही मेरा दिल बैठा जा रहा है फिर वह उठी और अपने आँसुओं को पोंछते हुए कहा कि जब मैंने अपनी बेटी को भेजा तो खुशी खुशी उसका सामान पैक किया था । बेटे को भी खुश होकर भेजा था । मुझे मालूम नहीं है कि आज गौरी जा रही है तो मैं आँसू क्यों बहा रही हूँ ।
गौरी हमारे पास वह जितने भी दिन रहेगी एक नौकरानी बनकर ही रहेगी । वही अपने बेटे के पास रहेगी तो वह उस घर की मालकिन होगी और सोफ़े पर पैर पर पैर रख कर बैठेगी ।
उसने अपनी पूरी ज़िंदगी कष्टों में बिताया है। अब तो उसे खुश रहने का अधिकार है । उसकी खुशी को बिगाड़ने वाली मैं कौन होती हूँ इसलिए मैंने सोच लिया है कि उसे अब मैं खुश होकर ही भेजूँगी।
वह एक सप्ताह हमारे लिए दुखदाई था । पहले कान्हा के आने की ख़ुशी में दिन गिना करते थे आज गौरी के जाने के दिन गिन रहे हैं । सुहासिनी की आँखें रह रहकर भरीं जा रहीं थीं । उसने कहा कि गौरी जा रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे अपनी बच्ची जा रही है ।
मैंने कहा कि सुहासिनी हमारे बच्चों के साथ हमारा ऋण का बंधन है वे लोग जा रहे थे तब भी हम दुखी हुए थे परंतु यह चली गई ना तो हम लोग अनाथ हो जाएँगे मुझे यही डर है । ऐसा लग रहा है कि जैसे अचानक हम बहुत बूढ़े हो गए हैं ।
कान्हा के आने के दो दिन पहले ही हम दोनों पति पत्नी डॉक्टर के पास गए । उन्होंने हमें देखते हुए कहा क्या बात है दोनों में कहा सुनी हुई है क्या बी पी इतना ज़्यादा बढ़ गया है ।
मैंने हँसकर कहा अरे नहीं हम तो आदर्श पति पत्नी हैं । बुढ़ापा आ रहा है ना इसलिए हो सकता है । उनसे रेगुलर चेकप कराया और घर के सामने कार से उतरा कि नहीं ऐसा लगा जैसे मैं हवा में उड़ रहा हूँ । कान्हा जो हमेशा मुझे उठा लेता था वैसे ही उठाकर ज़मीन पर रखा था कि गौरी डाँटने लगी थी कि उनका सर चकराएगा बेटा इस तरह कोई करता है क्या?
उसे देखते ही हमने एक साथ कहा अरे कान्हा तुम तो दो दिन बाद आने वाले थे आज ही आ गए ।
उसने कहा जी बाबा दो दिन पहले ही छुट्टी मिल गई थी तो आ गया हूँ । बहुत अच्छा चल अंदर चल कहते हुए हम सब अंदर आ गए । दिन भर बाबा मामी कहते हुए हमारे पास बैठकर बातें करते जा रहा था ।
मैं खाना खाकर दीवान पर लेटा हुआ था कि मेरे पैर के पास बैठकर मेरे पैर दबाने लगा । बचपन से उसकी मेरे पैर दबाने की आदत थी मना करने पर भी नहीं सुनता था । वहाँ अपनी नौकरी के बारे में बता रहा था । मैंने भी कुछ सलाह दिए ।
उसने कहा कि कल रात के ट्रेन का रिज़र्वेशन हो गया है बाबा मैं और माँ जा रहे हैं । मैंने अपने आप को सँभालने की कोशिश करते हुए ही उससे कहा कि बहुत अच्छी बात है कान्हा माँ को आराम दे उसने बहुत कष्ट सहे हैं और एक अच्छी सी लड़की को देख शादी करके घर बसा ले बेटा । इतना कहने में ही मेरा गला भर आया और उससे कहा कि जब भी फ़ुरसत मिले एक बार हमें देखने के लिए आ जाना ।
यह सुनते ही उसने आश्चर्य चकित होकर कहा यह क्या बात हुई बाबा आप हमारे साथ नहीं आएँगे ।
इस बार मेरे आश्चर्य होने की बारी थी हम लोग और तुम्हारे साथ!!!
हाँ बाबा आप भी हमारे साथ आएँगे और आप अपने सर्विस में कितने आराम से रहते थे वैसे ही आपको आराम दूँ सोचकर ही मैंने सिविल सर्विस एग्ज़ाम लिखा था । मेरे और माँ के लिए तो क्लर्क का जॉब भी चल जाता था ।
आपने ऐसे कैसे सोच लिया है कि आप दोनों के बिना हम दोनों जी लेंगे । आपके बच्चे कुछ नहीं सोचेंगे मैं उन्हें समझा दूँगा ।
आप उनके पास आते जाते रहिए परंतु रहेंगे मेरे पास ही समझ गए हैं ना । माँ को साथ ले जाकर वहाँ घर को सजाकर फिर आप दोनों को ले जाऊँगा मेरी गोद में सर रखकर कहा बाबा मेरे साथ आएँगे ना ।
जब स्वयं ईश्वर आकर वरदान दे रहे हैं तो मैं मना कैसे कर सकता था । इसलिए उसके सर पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा जरूर आएँगे कान्हा ।
देखा दोस्तों बच्चों ने तो मुँह मोड़ लिया था कि हम बूढ़े हो गए हैं । परंतु आज कान्हा उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए उतावला हो रहा है यह कहते हुए कि माँ बाप की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी शक्ति है । ईश्वर एक दरवाज़ा बंद करता है तो दूसरा अवश्य खोल देता है।
के कामेश्वरी