“मैं आखिर अन्याय क्यों सहूं!!” – अमिता कुचया

 

आज उमा जी घर में अकेली थी।घर में बहू बेटे को बाहर जाना था।तो बहू नीरजा ने कहा -“मम्मी जी आज हम दोनों को बाहर जाना है, इसलिए खाना दोनों टाइम का बना दिया है,आप खा लेना।हम लोग रात में देर से आएंगे।”

तभी उमा जी ने कहा -“बहू तुम लोग मुझे हमेशा छोड़ कर चले जाते हो, ऐसा क्यों!”

तभी  व्यंग्य भरे शब्दों में नीरजा कहती हैं -“अरे मम्मी जी आप चल तो पाते नहीं हो, फिर भी घूमना है ••••”

फिर बेटा सुमित भी कहता है -“हां मम्मी हम लोग आपके साथ परेशान होना नहीं चाहते।आप घर पर ही रहो,तो ज्यादा अच्छा।

दोनों बहू बेटे बाहर ताला लगाकर चले जाते है। ऐसे में  उमा जी  को अकेले रहना बहुत दुखदाई लगता है। और बहू बेटे भी नहीं चाहते कि वे कहीं आए जाए।इस कारण उन्हें वो अकेले ही छोड़ जाते हैं।वो दिन भर अकेले ही रहती , उनसे बात करने वाला कोई नहीं रहता,इस तरह उन्हें समय काटना बहुत मुश्किल लगता है,वो सोचती है,कि रामायण पढ़ लूं।पर घर में अकेले कितनी देर रामायण पढ़ती खैर••••

उन्होंने पूजा पाठ कर रामायण भी पढ़ ली।

बारह ही बजे थे। उन्होंने सोचा कि चलो अब खाना खा लूं।तब उन्होंने देखा कि बहू बासी दाल और तीन ही रोटियां टेबल पर रखकर गई है। उन्होंने जैसे तैसे खाना खा लिया।अब उनका बुढ़ापा होने की वजह से उनका टीवी में भी मन न‌ही लग रहा था। तीन ही बजे थे। उन्होंने सोचा कि चलो अपनी पड़ोसन से फोन पर बात कर लूं।पर फोन भी  उस समय नहीं लग रहा था।अब तो समय भी काटने को दौड़ रहा था।करें भी तो क्या करें।बहू की पाबंदी जो थी।वह मन का कुछ खा बना भी नहीं सकती थी।उस पर रोक टोक  बहू जो लगाती थी।अब तो पति नहीं थे। इसलिए बेटा पर ही निर्भर हो गई थी। और तो और उन्हें बहू की बातें  भी सुननी पड़ती थी।ऊपर से वो स्टोर रुम का ताला लगाकर रखती थी।इस बात का चाहकर भी विरोध नहीं कर पाती थी। क्योंकि बेटा बहू के कहे में चलता था।



खैर••• ये भी सोचती रही,यही सोचते सोचते उनकी नींद लग गई। फिर शाम हुई तो फिर सोचने लगी••• क्या करु ?समय गुजरता क्यों नहीं!!!

 

फिर उन्होंने सोचा कि चलो छत में टहल आए तो देखा वहां भी ताला बहू ने लगा कर रखा है।उन्होंने चाय बना कर पी और पेपर भी पढ़ने लगी।

रात हुई तो खाना खाया और थोड़ी देर में सोने चली गई।इस तरह उमा जी का टाइम बड़ी मुश्किल से निकला ,क्योंकि बाहर से ताला लगा था। और छत में भी ताला था। वे करती भी तो क्या करती •••••

जैसे ही रात में दरवाजा खुलने की‌ आवाज आई तो समझ गई कि बेटा बहू आ गये है। उन्होंने सोचा बहू न सही बेटा तो पास आएगा ।वह तो पूछेगा मम्मी खाना खाया या नहीं?  पर वो भी नहीं आया।

उसी समय दरवाजा खुला देखकर पड़ोस से रमा की बेटी सुहाना आई। वह बोली -भाभी आप लोग कहीं गये थे क्या?तब नीरजा बोली -हां हम लोग अभी लौटे हैं । सुहाना ने कहा -“आंटी से काम है ,वो भी गयी थी क्या ? ” तब नीरजा कुछ नहीं बोल पाई।तभी सुहाना कहने ‌लगी – “मम्मी ने मुझे भेजा है ,मुझे आंटी से मिलना है। ” इतना कह वह सुहाना उनके कमरे में चली जाती है।तभी वह कहती हैं-” अरे आंटी जी आप कितने दिन से  नहीं दिखे।आज बाहर  निकलते हुए नहीं हो। आज आपके यहां सुबह से ताला लगा हुआ था। मैं आज दो बार देख कर गयी। मम्मी ने सोचा तब उमा जी ने कहा- सुहाना मैं कहीं नहीं गईं थीं।ये तेरे भैया भाभी मुझे अंदर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर चले गए थे। उन्हें लगता कि मैं परेशान करुंगी। इसलिए वे नहीं लेकर गये। क्या करूं? मैं तो घर में रह रहकर बोर‌ हो गई हूं।समय भी बड़ी मुश्किल से आज निकला।

फिर सुहाना कहती हैं, आन्टी जी मम्मी से आप फोन पर भी बात नहीं करती है, आप को फोन लगाओ तो बंद बताता है।

हां ,बेटा मैंने भी आज तेरी मां को फोन लगाने कोशिश की तो लग न रहा था। मेरे फोन को देख क्या हुआ है।इतने में वो फोन‌ की लिस्ट देखती है, तब वह चौंक कर कहती हैं -अरे आंटी जी मेरी मम्मी का नंबर और भी आठ दस नंबर तो ब्लैक लिस्ट में हैं। इसलिए रिसीव नहीं हो रहा है।

आंटी जी अब मैंने ब्लैक लिस्ट से नंबर हटा दिए।तब वो कहती हैं मेरी बहू को न जाने  मेरे से क्या चिढ़ है। पता नहीं क्यों ऐसा करती है।उसे लगता है कि कहीं मैं उनकी किसी बुराई न कर दूं। इसलिए वो मुझे किसी से मिलने नहीं देती।

 

फिर वह पूछती है, आंटी जी मम्मी ने  पूछा है कि तिरुपति जाने का कार्यक्रम बना है ,वहां क्या आप चलोगी ?



तब उमा जी कहती हैं हां हां मैं जरुर चलूंगी। बहुत हुआ घर में कैदी जैसे रहना •••••

वह सुहाना से पैकिंग कराती है। और अगले दिन नहा कर तैयार हो जाती है,तभी नीरजा कहती हैं मम्मी कहां चली आपकी सवारी ••••चला तो जाता नहीं, और घूमने का शौक लगा है •••तभी बेटा भी पूछने लगता है-” मम्मी कहां जा रही हो! और किसके साथ कुछ तो बताया करो••••?”तब उमा जी कहती हैं  -” तुम लोग बताते हो कि कहां जाते हो। मैं कहीं भी जाऊं, तुम्हें क्या! तुम लोग ने मुझे कैदी जैसा बना दिया है। न खुद कहीं जाने देते हो, न‌ ही मुझे साथ में ले जाते हो।जब से पापा क्या गुजरे ,तब से मैं तुम पर बोझ हो गई हूं।तुम लोग मुझे देते क्या हो ?केवल दो वक्त का खाना और क्या!! मेरे पैरों में दर्द क्या हुआ तब से तुम लोगों ने डाक्टर को दिखाया तक नहीं,न ही कोई सेवा की।अब और अन्याय न सहूंगी।तुम लोग मुझे कमजोर न समझना बहुत हुआ बहू बेटे का लिहाज अब और नहीं •••

 

और मैंने सोच लिया है,अब मैं डाक्टर से चैक अप करा कर तिरूपति बालाजी के दर्शन करने जाऊंगी।

अब मेरी समझ में आ गया है कि मुझे आत्मनिर्भर होना पड़ेगा।

तब बेटा बोला-” कैसी बातें कर रही हो मम्मी ••••

अगर और ज्यादा दिक्कत हो गई तो हमसे न‌ कहना। “

फिर उमा जी बोली -कौन सा कुछ मेरे लिए कुछ कर रहे हो। हां हां न कहूंगी।

फिर बेटा बहू दोनों बड़बड़ाकर कहने लगते हैं देखते हैं महिला मंडली और पड़ोसी कितना साथ देती है।हम आपके सगे है।हम ही काम आएंगे।वो बाहरी नहीं •••

तब वो भी तुनक कर बोली- देखो इतने दिन से मैं देख रही हूं।बेटा तुझे मेरी कद्र नहीं है, बहू की‌ हां हां में मिलाता है।अब मैंने एक निश्चय कर लिया है कि मैं तुम लोग पर न निर्भर रहूंगी न ही बोझ बनूंगी। मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है।ये घर मेरे नाम पर है। तुम लोग कहीं और रहने  का इंतजाम कर लो।ये घर खाली कर दो और मैं ऊपर वाले कमरे किराए से  दे दूंगी।तो आमदनी हो जाएगी।मेरा गुजारा भी हो जाएगा।



तुम लोगों ने मेरी आजादी तक छीन ली। तुम लोग ने मेरे खास वाले नंबर भी ब्लैक लिस्ट में डाल दिए।ताकि मेरे फ़ोन पर किसी से बात न हो पाए। तुम्हारी बात न बता दूं।इसी कारण मिलने भी नहीं देते। ऐसे किस काम के बहू बेटे•••

 

तुम लोग कहीं भी जाओ, पर मुझे अब तुम लोग के साथ नहीं रहना। इतना ही सुनना था।कि बहू बेटे के चेहरे फीके पड़ गये।

और उन्होंने कहा-” मम्मी मुझे माफ़ कर दो।हम लोग ने जो‌ आपके  साथ इस तरह व्यवहार किया।”तब भी उमा जी अपने निर्णय पर अडिग रही। और उन्होंने घर बहू बेटे से घर खाली कराया।

और स्वतंत्र रूप से रहने लगी। उन्होंने ऊपर वाला घर का हिस्सा किराए से देकर अपना गुजारा करने लगी।

इस तरह  वो बहू बेटे पर बोझ नहीं बनी। और स्वतंत्र होकर स्वाभिमान के साथ रहने लगी।

 

दोस्तों -बड़े बुजुर्ग केवल प्यार और अपनापन चाहते हैं। यदि हम उनके साथ इस तरह से व्यवहार करें तो वे अकेलापन महसूस करने लगते हैं। साथ ही उनका सामाजिक जीवन और गतिविधियां भी रुक जाए तो जीवन काफी मुश्किल होता है। यदि किसी का समय ऐसा हो तो पल- पल काटना मुश्किल हो जाता है।

ऐसा लगता है कि जैसे समय की सुई रुक गई हो। सामाजिक जीवन  का रुक जाना एक औरत के लिए अन्याय ही होगा।

 

दोस्तों -ये रचना कैसी लगी? कृपया अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दें। और रचना अच्छी लगी हो तो लाइक, शेयर एवं कमेंट भी करें।

मेरी और भी रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फालो करें 🙏🙏❤️❤️

 

आपकी अपनी दोस्त ✍️

 

अमिता कुचया

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!