“मां “अभागन नहीं होती – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

“बापू बापू उठो, देखो, जागो, उठो ना, मुन्ना कितना रो रहा है। उसके लिए बाजार से दूध ले आओ या फिर मुझे पैसे दो,मैं लेकर आती हूं।”8 साल की रानी ने सुबक कर हुए अपने पिता से कहा। 

   पर उसके पिता काशीलाल को होश ही कहां था। नशे में बड़बड़ाता हुआ, रानी को धक्का देकर बोला-“मरने दे साले को, पैदा होने के 1 महीने के अंदर ही अपनी मां को निगल गया। मरने दे भूखा।” 

   मुन्ना की ऊंआ ऊंआ करके रोने की आवाज बढ़ती जा रही थी और बाप शराब के नशे में धुत्त पड़ा था, वैसे भी उसे किसी की चिंता थी ही कब। अपनी पत्नी रजनी को रोज पीटता था। कुछ घरों में काम करके वह पैसे लाती थी तो छीन लेता था। मुन्ना के होने के बाद, ना तो उसे सही खुराक मिली और ना ही देखभाल। बेचारी अभागन बिना देखभाल के मर ही गई। अब उसकी छोटी बच्ची रानी अपने भाई को रोता देख कर परेशान थी। 

घर से बाहर गई तो देखा, पड़ोसी काका दूध लेकर आ रहे हैं। काका से बोली-“काका, क्या थोड़ा सा दूध मेरे भाई के लिए दे देंगे? बापू जाग जाएंगे, तो उनसे पैसे लाकर मैं आपको दे दूंगी।” 

काका-“हां हां पता है, तेरा बाप क्या पैसे देगा मुझे, शराब पीकर पड़ा होगा। जा, अंदर से कोई बर्तन  ले आ।” 

इतना अभाव होते हुए भी रानी मुफ्त में दूध लेना नहीं चाह रही थी। 

काका, काकी से कहना, मैं मुन्ना को दूध पिलाकर आपके घर आकर झाड़ू पोछा कर दूंगी।” 

काका-“अरे रानी बिटिया, वह तो मायके गई है।”  

रानी ने दूध चम्मच से मुन्ना को पिलाया और उसके सोते ही काका के घर पहुंच गई। उसने देखा कि घर तो बिल्कुल साफ सुथरा पड़ा है। काका ने खुद खाना बनाया था तो बर्तन झूठ पड़े थे। रानी ने बर्तन साफ कर दिए। काका के मना करने पर भी वह मानी नहीं। 

ऐसे ही वह छोटे-छोटे काम करके अपने भाई को पालने लगी। अपने छोटे भाई की वह मां बन गई थी। कभी कोई कपड़े धुलवा कर उसे खाना दे देता तो कभी कोई दूध ब्रेड दे देता। एक घर में तो उसे पूरे महीने का काम भी मिल गया था। कभी-कभी भाई को साथ ले जाती,

तो लोग चिढ़ जाते थे। घर पर छोड़ती, तो उसे चिंता सताती थी। जैसे तैसे सब कुछ चल रहा था। काशीलाल, ईंटे ढोने  की मजदूरी करता था। रोज शाम को मजदूरी मिलने पर शराब के ठेके पर पहुंच जाता था और दिन भर की मेहनत की कमाई को शराब पर लुटा देता था।

बच्चों की खाने पीने और जरूरत की उसे कोई परवाह नहीं थी। एक दिन मामूली सी बात पर ठेकेदार से भिड़ गया और ठेकेदार ने उसे काम से निकाल दिया। अब वह बिना पैसे के शराब के लिए तड़पने लगा। पैसे थे नहीं तो करे क्या। 

एक दिन उसके शराबी साथी ने उससे कहा-“तेरी बेटी को बड़े शहर में काम पर लगवा दूं? बहुत अच्छे पैसे मिलेंगे। खाना बनाना ,झाड़ू पोछा ,बर्तन यही सब करना होगा। हर महीने तुझे पैसे भेजते रहेंगी।” 

काशीलाल-“हां लगवा दे, लेकिन वह मुझे पैसे नहीं भेजेगी, चिढ़ती है मुझसे। क्या तू कुछ ऐसा कर सकता है कि उसे भेज कर एक ही बार में बड़ी रकम हाथ में आ जाए। फिर वह मुझे पैसे भेजे या ना भजें।” 

10 -15 दिन बाद एक आदमी उससे मिलने आया और उसने काशीलाल को  50000 देने की बात की। 

काशीलाल मन ही मन बहुत खुश हो गया और झटपट पैसे लेकर रानी से बोला,”रानी बेटी, यह अंकल तुम्हें शहर में काम दिलवा देंगे, तुम्हारा मन करे तो मुझे पैसे भेज देना और यह जो काम दिलवाएं, उसे अच्छेसे करना।” 

रानी-“बापू, मैं तुम्हें और मुन्ना को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। मुन्ना को कौन देखेगा, तुम्हारा खाना कौन बनाएगा?” 

काशी-“मेरी चिंता मत करो, अंकल हमें घर बनवाने को इतने सारे पैसे दे रहे हैं। मैं घर बनवा लूंगा और मुन्ना को भी देख लूंगा, तुम उनके साथ जाओ।” 

रानी-“नहीं जाऊंगी। ” 

अब काशी लाल गुस्से में आग बबूला हो गया और उसे अपने हाथ से एक बड़ी रकम निकलती दिखाई दे रही थी। उसने खींचकर एक तमाचा रानी के गाल पर जड़ दिया। थप्पड़ खाकर रानी सहम गई और बोली ठीक है लेकिन मुन्ना मेरे साथ जाएगा।” 

काशीलाल मन में खुश होता हुआ सोचने लगा, चलो यह भी अच्छा हुआ। अब काशीलाल ने उसे आदमी से कहा-“अब 50000 में बात नहीं बनेगी, साहब, मैं इतना बेवकूफ नहीं कि नौकरानी के साथ नौकर फ्री में दे दूं।” 

काशी लाल ने उस आदमी से₹60000 लिए और उसे बच्चे सौपने के बाद हर दिन और ज्यादा नशे में चूर रहने लगा।  

     और उधर अभागन रानी ऐसे हाथों में पहुंच चुकी थी जहां उसके लिए केवल अंधकार था। जिस घर में उसे सफाई करने के लिए लगाया गया था, उस अंकल ने उसे घर में अकेला पाकर उसका शारीरिक शोषण किया। रानी ने जब आंटी को बताया, तो आंटी ने उसे धमका कर चुप करवा दिया।”इस बात को किसी से भी मत कहना, वरना तेरे भाई को तुझसे अलग कर दूंगी और उसका खाना पीना दूध सब कुछ बंद करवा दूंगी।” 

बच्ची बेचारी क्या करती, रो कर रह गई। 

धीरे-धीरे, बड़ी होते होते बहुत सयानी हो गई थी और अब अपने शोषण से घबराती भी नहीं थी। अपने शोषण को वह अपनी नियति मान चुकी थी, पर अब वह दुनिया वालों के व्यवहार से यह सीख चुकी थी कि उसे कैसे बात करनी है। 

“साहब , मुझे पता है मेम साब घर पर नहीं है, और आप क्या चाहते हो, यह भी मुझे पता है, मैं सब कुछ करने को तैयार हूं, लेकिन मेरी यह शर्त है कि आपको मेरे भाई को पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल में दाखिल करवाना होगा।” 

“साहब ,पूरे साल की भाई की फीस भरनी है।”ऐसे वह अपने भाई को पढ़ाने के लिए सब कुछ सहन करती रही और 8 साल से 18 साल की हो गई। भाई भी थोड़ा बड़ा हो चुका था। 

धीरे-धीरे उसे भी कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। रानी को कई बार अपने आप से नफरत होने लगती थी। उसे इस दलदल की काफी कुछ समझ हो गई थी और इस दलदल के कीड़ों से निपटना भी उसे आ गया था। 

कभी-कभी उसे अपने बाप की याद आती थी, तो वह उसे गालियां भी देती थी क्योंकि उसे बड़े होकर ही समझ आया था कि उसके बाप ने उसे बेच दिया था। 

कुछ वर्ष और बीत गए। मुन्ना अपने 12वीं के परीक्षा परिणाम का इंतजार कर रहा था। वह अब सब कुछ समझने लगा था और अपनी दीदी को यहां से निकालना चाहता था। उसे विश्वास था कि उसके अच्छे नंबर देख कर उसे अच्छा स्टूडेंट और एक अच्छा बच्चा जानकर,

कोई ना कोई उसकी मदद जरूर करेगा। उसके 12वींमें 95% नंबर आए और उसने अपने एक दोस्त की मदद से एक एनजीओ वाली दीदी से बात की। उन्हें अपनी बहनके बारे में बताया और अपनी मार्कशीट दिखाकर उनसे कहा कि मैं आगे पढ़ना चाहता हूं। 

   एन जी ओ वाली दीदी ने उसे ब्रिलिएंट बच्चे की मदद करने का वचन दिया। 

उन्होंने रानी और मुन्ना का नाम बीच में ना लाते हुए कहीं गलत काम करने वाले दलालों की रिपोर्ट कर दी और रानीको उसे दलदल से बाहर निकाल लाई। 

मुन्ना अब बेफिक्र होकर उनकी मदद से आगे की पढ़ाई करने लगा और रानी नारी निकेतन में रहकर वहां खाना बनाने का काम देखने लगी। 

और जब मुन्ना पढ़ लिखकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गया तब अपनी रानी दीदी के चरण स्पर्श करने लगा, तब रानीने कहा-“मेरे पैर मत छुआकर पगले, मैं तो अभागन हूं, जो अपनी भी रक्षा न कर पाई, तू एन जी ओ वाली दीदी के पैर छू।” 

मुन्ना ने उनके पैर छूकर, अपनी बहन रानी से कहा-“नहीं दीदी, आप अभागन नहीं हो, बल्कि अभागा तो मैं हूं जो मेरे कारण आपको इस दलदल में आना पड़ा। आप तो मेरी मां हो और “मां, कभी अभागन नहीं होती।” 

और फिर दोनों भाई-बहन गले लपटकर खुशी में रो पड़े। 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#अभागन

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