सरोज की जब आंखें खुली तो उसने अपने को अस्पताल के बेड पर पाया। धीरे-धीरे उसे सब कुछ याद आने लगा। घर में अचनाक उसकी तबियत खराब हो रही थी..सीने में दर्द सा हो रहा था पर घर में कोई नहीं था।दोनों बेटे ऑफिस गए हुए थे।छोटी बहु अपनी किट्टी पार्टी में गई हुई थी।बड़ी बहु नेहा अपने कमरे में आराम कर रही थी।
उसने उसे आवाज नहीं लगाई क्योंकि वो उसे पसंद नहीं करती थी बेटे ने अपनी पसंद से शादी जो की थी।वैसे नेहा बहुत पढ़ी लिखी सुंदर और संस्कारी थी।शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल ली थी।पर एक तो उसकी लव मैरिज हुई थी…दूसरा दहेज में भी वो ज्यादा कुछ नहीं लाई थी इसलिए सरोज उसे पसंद नहीं करती थी।
छोटी बहु को वो खुद पसंद करके लाई थी।दहेज में भी उसे मोटी रकम मिली थी इसलिए वो छोटी बहु से ज्यादा लाड करती थी।जबकि छोटी बहु को घर के कामों में कोई रुचि नहीं थी ना ही वो उस की तरफ ध्यान देती थी।उसे तो बस सजने सँवरने,पार्टियों में जाने और घूमने फिरने का शौक था।
अभी सरोज अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी नर्स आई और उसे दवा देने लगी।सरोज ने नर्स से पूछा- “मुझे क्या हुआ?और यहाँ कौन ले कर आया?” तो वो बोली
“आँटी जी आपकी बहु आपको यहाँ लेकर आई और एडमिट किया। आपकी कंडीशन बहुत गम्भीर थी पर भगवान का शुक्र मनाइए कि बहु आपको समय पर अस्पताल ले आई
और आप का इलाज शुरु हो गया।अगर वो समय पर आप को नहीं लाती तो आपको बचाना मुश्किल था।” नर्स की बात सुनकर सरोज की आँखों में आँसू आ गए।वो सोचने लगी,कि जिसे वो पसंद नहीं करती थी और दिन रात ताने दिया करती थी वही बहु उसके लिये जीवन बन कर आई।फिर उसे अहसास हुआ कि बहु तो पास है नही? उसने नर्स से बहु के बारे में पूछा- “कहाँ है वो?”
“जब से आप आईं हैं वो आपके पास से हटी नहीं है।बस एक दवा की जरुरत थी..वही लेने मेडिकल स्टोर गई है..आती ही होगी।” नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा।तभी नेहा आ गई,सरोज को होश में आया देखकर वो खुश तो बहुत हुई
पर उसे लगा कि कहीं सास को उसका वहाँ रहना पसंद ना हो वो जाने लगी…उसे जाता देख सरोज हाथ जोड़ते हुए बोली-“नेहा मैंने तुझे बहुत दुख दिया फिर भी तूने आज मेरी जान बचाई।मुझे माफ कर दे बेटा।”
“माँ जी,आप ऐसे माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा ना करें। मैंने तो वही किया जो एक बेटी अपनी माँ के लिए करती है।”नेहा सरोज के हाथों को पकड़ते हुए बोली।
सरोज ने नेहा को गले लगा लिया।अपनी बहु के प्रति उसका हृदय परिवर्तन हो गया था।धीरे धीरे समय गुजरता गया।सरोज को इस बात का एहसास हो गया था कि दहेज नहीं संस्कार काम आते हैं। जिस नेहा को वो बहु मानने से इंकार करती थी वही लव मैरिज वाली बहु उसकी बेटी बन चुकी थी।उन दोनों के बीच प्यार भरे रिश्ते को देखकर कोई अंजान व्यक्ति उन्हें मां बेटी ही समझता था।
सच पैसा तो आनी जानी चीज है हमें इसको ज्यादा त्वज्जो नहीं देना चाहिए। कद्र गुणों की करनी जो हमेशा इंसान के साथ रहते हैं।
कमलेश आहूजा