आज फिर तुमसे, अपने दिल की बात करने बैठी हूं
अब ये दुनिया दारी और घर गृहस्थी के चक्कर में, दिल- विल जैसा तो कुछ रह नहीं गया है
भले ही चले… अरे वेलेंटाइन वीक…. हमें क्या?
हम दिमाग़ लगाए के अपनी घर गृहस्थी संभाले या दिल?
सैंया जी अपने काम धंधे में खटे और सौतन?
आय के सब एक बार में ही हड़प के लिए जाएं
सारा हिसाब किताब, अरे वो ही जो हम महीने भर लगाते हैं,एक बार में पानी फेर के चली जाए। इतना पैसा जो हम अपने छुटुक – पुटुक उपायों से बचाते हैं, उनका कोई मोल नहीं?
लो भला, सब्जी वाले से फ्री में मिर्ची धनिया लेना, रिक्शे वाले से दो रूपए कम कराना
” अरे तुम जितना दूर समझ रहे हो उतना है नहीं, उससे बहुत पहले ही उतर जाएंगे हम….”
घर में आए फेरी वाले से घंटों किट- किट करके,अच्छे से ठोक बजाकर तब कुछ खरीदते हैं, ऐसे ही नहीं कह के जाता ” मैडम बहुत दांत से दबाए के रखती हैं…. आसान नहीं है (पैसे) निकलवाना…”
अरे हम तो इसे अपने लिए कांप्लीमेंट मान के चलते हैं हमारे सैंया जी इतनी मेहनत से कमाए के लाएं और हम उसे ऐसे ही… उस मुई (?) को ले जाने दें? हम कोई जरूरी सामान लेने के लिए भी हजार बार सोचे हैं… वो ही ना
अभी बहुत जरूरी तो नहीं है… उसके बिना भी चल ही रहा है.. पिछला वाला अभी काम लायक है.. छोटू को तो बड़ी बहन वाली टीम शर्ट भी आ जाती है.. अब दिए एक झापड़ छोटू जो हमसे बोले कि
” ये लड़कियों वाली टीम शर्ट है..”
और भला,ये सब करने में कितनी बार आंखों के कोरों में आ जाने वाले आंसुओं को कितनी समझदारी से छुपा ले जाते हैं,ये कौन जानता है?
हम ज़रूरत भर भी सोच समझ कर ख़र्च करें और वो(?) अपने लटके – झटके दिखा के पल भर में जेब ढीली कर देर हमारे सैंया जी बस लाचार हो के हथियार डाल दें और कहें
” क्या करें,इस पर हमारा बस ही नहीं चलता
लो भला
हम इतना किस्सा सुना डालें और तुम वहीं पर अटकी हो
ये भला सौतन कौन है??
अरे वो ही, जो पूरी दुनिया को अपना जलवा दिखा – दिखा के आगे लगाई हुई है, क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या जवान..
जिसके आगे सब पानी भर रहे हैं, लोंग सी सी करते हुए चटपटी चाट की तरह खा भी रहे हैं,.. आंसू भी टपका रहे हैं.. और मजे ले लेकर ऊपर से चटनी भी डलवाए जा रहे हैं
क्या कहा?… वो बनवारी चाट वाला?
कर दिया ना सब गुड़ गोबर
अरे .. नहीं वो
मंहगाई ( डायन) यार
पूर्णिमा सोनी
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
# गुड़ गोबर करना, मुहावरा प्रतियोगिता
विधा- व्यंग्य