लायक – गौतम जैन

सायरन की आवाज के साथ ही एम्बूलैंस तेजी से अस्पताल में आकर रुकी । पेशेन्ट को तुरंत स्ट्रेचर में आपरेशन थियेटर में  लाया गया  और आपरेशन शुरू हो गया ।

      सुरेश ने अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी की और तीन लाख रुपए जमा करवा दिए । और पापा की सलामती की प्रार्थना करने लगे।

       करीब दो घंटे बाद आपरेशन थियेटर का दरवाजा खुला , डाक्टर ने बाहर आकर बताया की अब पेशेन्ट की हालत स्थिर है घबराने की कोई बात नहीं है।चौविस घंटों में होश आ जाएगा

   “आपका बहुत बहुत धन्यवाद डाक्टर साहब ” मां ने कहा ।

    ” पापा के होश में आने पर सुरेश ने पूछा अब कैसी तबीयत है पापा ,कैसा महसूस कर रहे हैं । पापा ने इशारे से बतलाया की ठीक है । ।

      दो दिनों बाद पापा को अस्पताल घर ले आए । सुरेश दिन रात पापा की सेवा में जुटा रहा

     “अस्पताल का बिल कितना आया” पापा ने सुरेश से पुछा ।


आप इन बातों पर ध्यान न दें पापा आराम करें। लेकिन पापा के बार बार पुछने पर बताया तीन लाख, दवाइयों और उपरी खर्च मिला कर साढ़े तीन लाख ।

     ” इतने पैसे कहां से आए ” पापा ने फिर पूछा।

      इसने अपने हिस्से में आया मकान रहन रख कर अस्पताल का बील भरा है । और दिन रात आपकी सेवा में लगा रहा है ।

      पापा की आंखें भर आईं ” मुझे माफ करना बेटा मैंने हमेशा बेटों को ग़लत समझा है मेरा मानना था की बेटे बीवी आते ही बदल जाते हैं और अपना घर अलग बसा लेते हैं साथ बेटियां ही निभाती है । मुझे माफ करना बेटा कहते हुए पापा रो पड़े ।


            आप क्या सोचते हैं पापा ये आप जाने आपको यह ख्याल कैसे आया ….क्यों ….आया मुझे नहीं पता । आप मेरे पिता है आपका हाथ हमेशा ही हमारे सर पर रहे । आप ठीक हो गए इससे बढ़कर कुछ भी नहीं है कोई घर कोई जायदाद आपसे बढ़ कर नहीं है पापा । आप व्यर्थ की बातों में ध्यान मत दीजिए और आराम कीजिए ।

          आज मेरी आंखें खुल गईं सुमित्रा मुझे गर्व है अपने बेटे पर और आंखें पुनः छलक आई मगर इस बार आंसू खुशी के थे ।

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