बधाई हो सिंह साहेब आपके घर पर “लक्ष्मी” आई है.. मग़र “यूटेरस” में अधिक चोट लगने की वजह से आपकी श्रीमती अब दुबारा माँ नहीं बन सकती..अस्पताल से डॉक्टर श्रीमती वर्मा ने फोन करके कहा..
सिंह साहेब का खून खौल उठा, उन्हें लगा कि जैसे उस डॉक्टर ने उनके “जख्मों पर नमक छिड़क” दिया हो..
वेस्टर्न कोल इंडिया लिमिटेड के “चीफ इंजीनियर माइनिंग” राज बहादुर सिंह यानी सिंह साहब के पास लाखों की दौलत थी, बड़ा घर था, कुछ पुश्तैनी जायजाद थी, कमी थी तो बस एक ही कि, इस सम्पत्ति का कोई ‘वारिस” नहीं था। पुत्र रत्न की चाह में उनकी पत्नी रमा को लगातार तीसरी बार बेटी हुई..निराश होकर सिंह साहेब न तो अस्पताल जाकर अपनी पत्नी रमा का हालचाल पूछा, और न नहीं नवजात पुत्री को देखने अस्पताल आये।
रमा को भी शायद इस बार पुत्र होने की आस थी, लेकिन पुत्री होने की वजह से वह सिंह साहब का सामना करनें से यूँ घबरा रही थी जैसे कि उसने बेटी को जन्म देकर कोई गुनाह कर दिया हो..डॉक्टर श्रीमती वर्मा की सलाह पर रमा ने अपनी बेटी का नाम “लक्ष्मी” ही रखा।
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वर्ष बीतते गये लक्ष्मी स्कूल जाने लगी, परन्तु लक्ष्मी के भाग्य में माता पिता के होते हुये भी उनका प्यार नसीब नहीं था, उसे हमेशा बड़ी बहनों के उतारन कपड़े दिये जाते, उसके साथ सदा दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता, यहाँ तक कि उसकी दोनों बड़ी बहने भी अपने माता पिता के “नि-पुत्र” होने का दोषी भी लक्ष्मी को ही मानती थी, घर में होने वाली हर अनहोनी की भड़ास लक्ष्मी पर ही निकलती थी।
लक्ष्मी पढ़ने में होनहार थी हमेशा अव्वल दर्जे से उत्तीर्ण होती फिर भी उसकी कोई प्रसंसा नहीं करता था, धीरे-धीरे युवा हुई, कॉलेज जाने लगी, सिंह साहब ने जहां दोनों बड़ी बेटियों के लिये शहर के सबसे अच्छे महाविद्यालय में दाखिला था, लक्ष्मी को साधारण महाविद्यालय में ही दाखिला करवाया।
बढियां कोचिंग एवम उचित मार्गदर्शन मिलने के बावजूद भी लक्ष्मी की दोनों बहनें किसी भी सिविल, बैंकिंग अथवा शासकीय नौकरी की परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर सकी, इसलिए सिंह साहेब ने जल्द ही दोनो बेटियों के लिये अच्छे घरों में रिश्ता देखकर उनका ब्याह करा दिया।
इधर लक्ष्मी ने जब अपने माता-पिता से आगें पढ़ने की इजाजत मांगी तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि वह दोनों बेटियों के दहेज़ में अपनी जीवन भर की पूंजी दे चुके हैं, उसे जो भी कुछ करना हो अपने दम पर करें, हमसे कोई उम्मीद न रखें।
किसी तरह ट्यूशन के पैसे जोड़कर लक्ष्मी ने पहली बार UPSC परीक्षा दी, और पहले ही प्रयास में लक्ष्मी ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया..
आज लक्ष्मी के घर में देश के नामी मीडियाकर्मियों का जमावड़ा था, सभी सिंह साहेब और रमा को बधाइयां देते हुये कह रहे थे कि बधाई हो, “आपकी लक्ष्मी तो सचमुच ही लक्ष्मी साबित हो गई है”.. आईएएस अधिकारी बनने के बाद इसके पास किसी बात की कमी नहीं रहेगी।
सिंह साहब ने भरी हुई आँखों से लक्ष्मी को गले लगाते हुये कहा, मुझे माफ़ कर दे बेटी, तू तो सचमुच ही लक्ष्मी है, मुझे ही समझने में भूल हुई..आज सिंह साहेब के कानों में वर्षों बाद डॉक्टर मिसेज़ वर्मा के शब्द..बधाई हो आपके घर पर लक्ष्मी हुई है” फ़िर से गूंज रहे थे.. मग़र आज यह शब्द “ज़ख्मों पर नमक छिड़कने” की बजाय, ज़ख्मों पर शीतल मरहम लगतें से प्रतीत हो रहे थे।
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स्वलिखित
अविनाश स आठल्ये
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#जख़्म पर नमक छिड़कना