लौटता वसंत – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

 आभा..सोसाइटी की सबसे कम उम्र की सदस्या थी ।सोसायटी ज़्यादातर संभ्रांत ,वृद्ध लोगों ने ख़रीद रखी थी। जिनमें कुछ अकेलेपन से शिकार थे ,तो कुछ अपनों के सताए हुए थे। तथाकथित विकसित समाज के ,विकसित लोगों का सुविधायुक्त वृद्धाश्रम था वह। सभी ने अपने अपने छोटे छोटे फ्लैट ख़रीद रखे थे।

और अपनी सभी सुविधाएँ भी एकत्रित कर रखीं थीं। दुविधा थी ,तो बस अकेलेपन की… इस अकेलेपन को मिटाने के लिये सोसायटी ने हफ़्ते में दो बार सामूहिक कार्यक्रम आयोजित कर रखा था।जिसमें सोसाइटी के सभी लोग एकत्रित होकर ,अपनी अपनी रुचिनुसार प्रस्तुति देते थे। पचपन वर्षीय आभा सोसायटी में नई ही आई थी।

पास के फ्लैट की रीमा से उसकी थोड़ी थोड़ी मित्रता हो गई थी। रीमा के आग्रह करने पर आभा सोसायटी के सामूहिक कार्यक्रम में चली गई थी। आभा ने ,शालीनता से अपना परिचय दिया और लोगों के कहने से एक गाना भी गाया। आभा की मधुर गायकी पहली बार में ही सबके मन को भा गई थी। अंतर्मुखी आभा ,कम ही बाहर जाती थी…

बस शाम को पार्क में थोड़ी देर के लिए टहलने जाती थी। एक शाम वह पार्क में बेंच पर बैठी थी , एक सज्जन बोले , आप नई आई हैं शायद?सहमी सी आभा बोली ,जी… तो वो सज्जन बोले मुझे यहाँ दो साल हो गये हैं, उस दिन आपका गाना सुना, सचमुच आप बहुत अच्छा गाती हैं। धन्यवाद कहकर आभा ने ज़्यादा बात आगे बात नहीं बढ़ाई।

आभा की मुलाक़ात अक्सर पार्क में हो जाती थी। एक दिन उन्होंने बताया कि विनय नाम है उनका मिलेट्री में जॉब करते थे। धीरे धीरे आभा भी साँझ होने का इंतज़ार करने लगी और उस अजनबी से हुई ओपचारिक बातों को मन में सोचने लगी। एक दिन विनय ने आभा से बातों ही बातों में उसके पिछले जीवन के बारे में जानना चाहा तो आभा भाव विभोर हो गई।

आभा ने अतीत की डायरी खोला तो मानो वह वहीं पहुँच गई हो। उसके पति एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत थे। अच्छा दाम्पत्य जीवन था उनका, दो बच्चे हैं, एक बेटा ,एक बेटी। दोनों ही बच्चे इंडिया से बाहर रहते हैं। बेटा जॉब करता है , बिटिया पढ़ाई कर रही है।दोनों पति पत्नी सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे ,

अचानक एक सड़क दुर्घटना में पति की मृत्यु हो गई। सबकुछ बिखर गया हो जैसे। बच्चों के साथ चलने को कहा लेकिन मैं भारत में ही रहना चाहती थी। इस सोसायटी में पति ने फ्लैट रिटायरमेंट के बाद रहने के लिए लिया था लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था मुझे समय से पहले और अकेले यहाँ आना पड़ा।

आभा अपने अतीत को याद करके रोने लगी तो विनय ने उसे ढाढ़स बँधाते हुए कहा हम सभी यहाँ किसी न किसी मजबूरी से ही आये हैं। फिर आभा ने विनय से पूछा आप कैसे आए यहाँ पर? विनय ने एक लंबी सांस खींचकर कहा मेरी उम्र साठ साल है, पाँच साल पहले लंबी बीमारी के बाद पत्नी का देहांत हो गया, दो बेटियाँ हैं, दोनों की शादी कर दी। 

बेटियाँ पास रहने के लिए बुलाती हैं लेकिन मैं हमेशा उनके पास नहीं रहना चाहता। दिल्ली में फ्लैट है लेकिन अकेले मन नहीं लगता। घर के चप्पे चप्पे में पत्नी की याद आती है इसलिए यहाँ रहना चाहता हूँ। जब मन व्याकुल हो और श्रोता अपनी पसंद का हो, तो दिल की झिरों से आसुओं का रिसाव होने लगता हैl भावुक हुए विनय ने अपनेआप को संभाला और आभा को सांत्वना देते हुए बोले कि कोई बात नहीं ,अब हम सब लोग साथ हैं l

फिर दोनों अपने अपने फ्लैट में चले गए l सोसाइटी का सामूहिक कार्यक्रम था विनय जी तैयार होकर आ गए ,उन्हें आभा नजर नहीं आई तो तुरंत आभा को फोन किया l आभा ने कहा कि मेरी तबियत ठीक नहीं है l विनय जी तुरंत आभा के घर पहुंचे ,उन्होंने कहा तुम्हे डॉक्टर को दिखा लेते हैं, आभा के मना करने पर भी विनय ने डॉक्टर को बुलाया l डॉक्टर ने उच्च रक्तचाप बताया l आभा कुछ संकोच भी महसूस कर रही थी …

लेकिन विनयजी की देखभाल उसे अच्छी भी लग रही थी ,साथ ही पुराने दिनों की भी याद दिला रही थी। कुछ दिनों बाद आभा की तबियत सही होने पर ,वह पार्क घूमने गई l वहां उसे कुछ समयांतराल के बाद विनय जी मिले l आभा को देखकर विनय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई l फिर दोनों चिरपरिचित जगह पर बैठे l बातों ही बातों में विनय ने आभा से कहा ,मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं…. उस दिन तुम्हारी तबीयत खराब देखकर मेरे

मन में एक ख्याल आया कि हम उम्र के उसे पड़ाव पर है कि ,कभी भी तुम्हारी या मेरी तबीयत खराब हो सकती है ,क्योंकि हम दोनों ही अकेले हैं …तो क्यों ना हम दोनों एक दूसरे की देखभाल कर लें… जो शेष जीवन है ,उसको उपेक्षित जीने की बजाए ,एक दूसरे के सानिध्य में हंसकर ही काट लें…।

तुम्हारे ऊपर कोई दबाव नहीं है ,तुम आराम से सोच कर फैसला ले सकती हो l अचानक आभा के मुंह से निकला ..लेकिन बच्चे और समाज क्या कहेंगे? मैं समाज और बच्चों की परवाह नहीं करता ,बच्चे अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त है, तुम्हारे दोनों बच्चे बाहर है और तुम विदेश जाना नहीं चाहती, रही बात मेरी ,तो बेटियों के साथ तो मैं अभी भी नहीं रह रहा हूं …इसलिए मैं तुम्हारे फैसले का इंतजार करूंगा …समाज और बच्चों की मैं परवाह नहीं करूंगा l

दोनों अपने अपने फ्लैट में आ गए l आभा, रात भर सो नहीं पाई…वह सोचती रही कि बच्चे क्या सोचेंगे …समाज ,क्या सोचेगा ? सुबह उसने अपनी दुविधा रीमा से कही। रीमा ने महसूस किया कि आभा भी विनय के साथ रहना चाहती है लेकिन सामाजिक बेड़ियाँ उसे जकड़े हुए हैं। उसने कहा देखो आभा हम सब से ही समाज है.. यदि किसी नई पहल से दो लोगों को ख़ुशी मिल रही है ,तो वो बहुत क़ीमती है। यदि हम किसी का अहित नहीं कर रहे हो ,तो हमें

समाज को दरकिनार कर देना चाहिए। समाज हमारी तकलीफ़ों का साथी नहीं ,तो हमारी खुशियों का भी हक़दार नहीं। रही बात बच्चों की ,तो तुम दोनों को अपनेअपने बच्चों को बता देना चाहिए।लेकिन फ़ैसला तुम्हें तुम्हारी सहमति से ही लेना चाहिए। आभा को रीमा की बात सही लगी उसने अपने बच्चों से बात की। विदेश में रह रहें

बच्चे ,तुरंत तैयार हो गये ।उन्होंने कहा हम आकर आप दोनों को एकसूत्र में बाँधेंगे। विनय जी की बेटियाँ भी अपने पिता के जीवन में आती बाहर को देख कर राज़ी हो गई। चारों बच्चों ने अपने नये अभिभावकों को नये रिश्ते की डोर से बाँध दिया। विनय जी अपने जीवन में आई बाहर को देखकर आभा से बोले ,जीवन में वसंत जब भी आये …उसका स्वागत करना चाहिए। रीमा , आभा और विनय जी के जीवन में लौटते वसंत की अगवानी करने के लिए तैयार हो गई।

 समाप्त 

 ( स्वरचित, मौलिक)

 रश्मि वैभव गर्ग कोटा

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