नहीं नहीं.. यह नहीं हो सकता, किसी भी हालत में नहीं हो सकता, ऐसे कैसे कोई चला जाएगा, परसों ही तो मेरी बात हुई है, पगलाइ सी शिप्रा को पति रोहित ने दिलासा देते हुए कहा… देखो शिप्रा अपने आप को संभालो यह वक्त हिम्मत हारने का नहीं है, शांत हो जाओ! अरे कैसे शांत हो जाऊं.. मां थी मेरी मां.. परसों ही तो मेरी बात हुई है, कितना बुला रही थी मुझे, कह रही थी
बेटी 6 महीने हो गए तुझे देखे हुए एक बार आकर मिल जा और मैं अपनी जिम्मेदारी मैं इतनी उलझ गई की मां से मिलने तक का समय नहीं मिला, मैं अपनी मां से मिलने तक नहीं जा पाइ और आज मां चली गई हमेशा के लिए! क्या मां अपनी बेटी से इतना नाराज हो सकती है?आज सुबह 5:00 बजे भैया का फोन आया, सुबह-सुबह का फोन अक्सर डराने वाले होते हैं
शिप्रा को भी लगा कुछ अनहोनी है, भैया ने रोहित को यह खबर शिप्रा को देने से मना कर दिया लेकिन शिप्रा समझ गई उसके मुंह से पहला शब्द यही निकला. रोहित मां चली गई ना..? नहीं शिप्रा.. कैसी बातें कर रही हो, भैया का फोन आया था कह रहे थे मां की तबीयत खराब है मिलने आ जाओ तुरंत! नहीं नहीं.. मुझे पता है मां चली गई, कल मेरे सपनों में भी आई थी मुझे बुला रही थी,
आने के लिए जोर दे रही थी और मैं अपने काम का बहाना बनाकर जा ही नहीं पाई! शिप्रा फटाफट सामान रख लो हम चलते हैं! रोहित खुद अपने आंसू नहीं संभाल पा रहा था कहने को वह उसकी सास थी लेकिन उन्होंने कभी भी उसे अपने बेटे से कम नहीं माना था, तीन घंटे का सफर था और शिप्रा की हालत खराब होती जा रही थी, शिप्रा गाड़ी में बैठी बैठी जार जार रोती जा रही थी
और उसके दिमाग में पिछली बातें घूमती जा रही थी कितनी लाड़ो से पली थी शिप्रा, बहुत मिन्नतों के बाद हुई थी, मां की बहुत इच्छा थी कि उनके आंगन में एक बेटी हो, दो भाइयों के बाद हुई थी इसलिए अत्यधिक लाडली थी, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए घर वाले बेकरार रहते थे, बड़ी मुश्किलों से शादी के बाद उसको विदा किया गया, मां तो कई दिन तक पागल सी ही रही थी,
सुबह-सुबह जब मां चाय बनाती तब् आवाज लगाती आज गुड्डू बेटा… चाय पी ले, फिर कहेगी चाय ठंडी हो गई, कभी कहती बेटा कॉलेज के लिए लेट हो जाएगी जल्दी तैयार हो जा, शिप्रा के पापा मां को समजाते अरे… तुम्हें कितनी बार कहा गुड्डू अपने ससुराल में है, खुश है और तुम रोज-रोज यह दो कप चाय बना बनाकर लाती हो, इतना सुनते ही मां फिर से रोने लग जाती!
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शिप्रा की दोनों भाभी बहुत अच्छी थी फिर भी बेटी तो बेटी ही होती है क्या अपने जिगर के टुकड़े को विदा करने का मतलब यह होता है कि उसे भूल जाए, जैसे ही शिप्रा की खबर लगती कि वह मायके आ रही है मां बार-बार दरवाजे के अंदर बाहर होती रहती, कभी गेट पर जाकर, कभी बाहर की गली में चक्कर भी काट आती, बच्चे हंसते मजाक बनाते
,दादी.. भूआ अभी से कहां से आ जाएगी बुआ को 3 घंटे लगते हैं आने में, आप जब से बाहर खड़ी हो देखो कितनी गर्मी हो रही है अंदर जाकरबैठ जाओ और बच्चों की बातें सुनकर मां मुस्कुरा देती और जैसे ही शिप्रा घर में आती मां उसके ऐसे चिपक जाती मानो लोहे से कोई चुंबक और फिर शुरू होता
शिप्रा की खातिरदारी का दौर, मां अपने हाथों से तरह-तरह की चीज बनाकर शिप्रा को खिलाती और जब शिप्रा के जाने के दिन नजदीक आते मां 2 दिन पहले से ही उदास हो जाती, शिप्रा की शादी को 4 वर्ष हो गए थे किंतु अभी तक उसकी गोद सूनी थी मां कई बार शिप्रा से कहती.. बेटा जिंदगी का क्या भरोसा,
मैं तेरे आंगन में छोटा सा बच्चा खेलते हुए देखना चाहती हूं, तो शिप्रा कहती.. अरे मां अभी क्या जल्दी है जब होना होगा तब हो जाएगा और फिर चुप हो जाती, मां कई बार शिप्रा को मिलने के लिए बुलाती तब शिप्रा कहती…. मां मेरे पास और भी बहुत सारे काम है अब ऐसा तो नहीं है बार-बार आपके पास आती रहूं, यहां रोहित को भी ऑफिस जाना होता है
घर भी देखना होता है, कभी-कभी मां कहती.. शिप्रा बेटा तेरे लिए नींबू का अचार डाला है बेटा तेरे लिए यह बनाया है तब शिप्रा कहती.. अरे मेरी प्यारी मां आजकल सब बाजार में मिलता है तुम क्यों इतनी मेहनत करती हो, शिप्रा क्या समझती कि वह तो मां की ममता थी वरना मिलने को तो कौन सी चीज बाजार में नहीं मिलती, पर क्या मां की ममता बाजार में मिल जाती है?
मां अपनी सेहत का भी पूरा ध्यान रखती योग व्यायाम भजन ध्यान और पूजा प्रार्थना में मां का बहुत ध्यान रहता था फिर अचानक यह सब कैसे हो गया, वहां जाने के बाद पता चला मां को एकदम से दिल का दौरा पड़ा था अस्पताल ले जाने से पहले ही मां चली गई, मा को देखकर शिप्रा को सद्मा सा लगा वह रोना धोना सब भूल गई और हंसती हुई खिलखिलाती हुई कह रही थी…
मुझे तो बुला लिया और खुद यहां आराम से सो रही हो, उठो मां आज हम दोनों मां बेटी साथ में खाना खाते हैं और भैया हमें देखकर तुम चिढ़ना मत की मां मुझे ज्यादा प्यार करती है तुम्हें कम, और मां आज तो मैं तुम्हें वह खुशखबरी भी सुनाने वाली हूं जिसे तुम सुनना चाहती थी, जिस खुशी को तुम देखना चाहती थी वह खुशी में तुम्हें देना चाहती हूं ,मां तुम्हारी बेटी भी मां बनने वाली है
अभी कल ही पता चला है! अब सोती ही रहोगी क्या… उठो ना फटाफट से और इतनी सारे रिश्तेदार क्यों आए हुए हैं, क्या घर में कोई प्रोग्राम है? मुझे तो किसीने बताया ही नहीं? मां तुम ऐसा कैसे कर सकती हो और शिप्रा जोर-जोर से मां को हिलाने लगी, सभी लोग शिप्रा को रुलाने की कोशिश करने लगे ताकि शिप्रा के मन का गुबार निकल जाए किंतु शिप्रा को तो कुछ भी होश नहीं था,
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काश..एडजस्ट करना नही,बल्कि जवाब देना सिखाया होता। – ममता गुप्ता
थोड़ी देर बाद शिप्रा बोली.. भाभी कितनी देर हो गई कुछ खाने को दो ना क्या बनाया है आज? आपको पता है ना कितनी दूर से आई हूं , मां तो आज ऐसे सो रही है जैसे कितने दिन की थकी हुई हो, भाभी मां ऐसे क्यों सो रही है आज क्या तबीयत सही नहीं है? आखिरकार शिप्रा के पापा ने शिप्रा को गले लगाते हुए कहा बेटा.. तेरी मां चली गई अब कभी नहीं आएगी, उसकी बस एक ही इच्छा थी
की जाने से पहले वह तुझे देखना चाहती थी, शायद भगवान का कोई संकेत होगा इसलिए उसने दो दिन पहले तुझे फोन करके कहा था शिप्रा बेटा एक बार अपनी मां से मिलने आजा, लेकिन तुझे भी क्या पता था कि ऐसा हो जाएगा, देख बेटा मां चली गई अब कभी नहीं आएगी तेरी मां और फिर अचानक शिप्रा को क्या हुआ जैसे ही मां को ले जाने लगे शिप्रा जोर-जोर से रोने लगी और चिल्लाने लगी..
नहीं मेरी मां को मत ले जाओ, मेरी मां की गुनहगार में हूं, सजा तो मुझे मिलनी चाहिए थी मां को नहीं, मां मुझे कितनी ही बार मिलने के लिए बुलाती थी और मैं इतनी व्यस्त हो गई मां से मिलने का समय ही नहीं रहा, शादी के बाद बेटियां इतनी पराई हो जाती है? उसे याद आने लगे वह पल जब शिप्रा के मना करने के बाद भी मां जबरदस्ती उसके लिए तरह-तरह के लड्डू अचार और पापड़ बनाकर रखा करती थी
और बाद में शिप्रा और रोहित उनको मजे से खाते थे रोहित तो अक्सर कहते थे शिप्रा.. तुम्हारी मां सच में बहुत अच्छी है वह तुम्हें कितना चाहती है, कितना लाजवाब खाना बनाती हैं! एक बार शिप्रा को डेंगू हुआ था और वह 7 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही थी शिप्रा की मां तुरंत आ गई और उन्होंने घर और अस्पताल दोनों की जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई, रोहित बिल्कुल निश्चिंत हो गए थे, मम्मी 2 महीने उसके पास रहकर गई थी
और उन दो महीना में शिप्रा पहले से भी ज्यादा तंदुरुस्त हो गई थी, वह कैसे भूल गई अपनी मां के त्याग को, क्या एक बेटी इतनी मजबूर हो गई की मां के बुलाने पर भी ना जा पाई, काश…मां मैं तुम्हारा इशारा समझ पाती, अब कुछ नहीं हो सकता, क्या मां वापस नहीं आ सकती, आ जाओ ना मां अब मैं तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी एक बार मुझे डांटने के लिए, मुझसे लड़ने के लिए आ जाओ ना मां,
मैं अच्छी बच्ची बनूंगी मैं तुम्हारी हर बात मानूंगी पर प्लीज तुम आ जाओ मां, पर मां तो चली गई हमेशा के लिए ,कुछ दिन रहकर शिप्रा भी रोहित के साथ अपने घर आ गई, लेकिन अब शिप्रा हर समय खामोश रहने लगी, बस केवल हां हूं मैं ही बातें किया करती, 9 महीने के बाद उसने एक स्वस्थ और सुंदर बेटी को जन्म दिया जिसे देखते ही शिप्रा के मुंह से बस यही निकला.. देखो रोहित मेरी मां लौट आई है मेरी मां लौट आई है,
और अपनी बच्ची को सीने से चिपका कर जोर-जोर से रोने लगी यह देखकर अस्पताल के सारे स्टाफ की आंखें भी नम हो गई, एक तरफ मां के जाने का दुख और दूसरी तरफ उनके लौट आने की खुशी, यही तो है सुख दुख का संगम!
हेमलता गुप्ता स्वरचित.
कहानी प्रतियोगिता सुख दुख का संगम