लाल गाड़ी – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

मीना के घर किट्टी थी, गपशप के बाद तम्बोला खेल शुरु ही हुआ था अचानक लीना राधिका से पूछ बैठी 

       “क्या बात है राधिका, आजकल भाईसाहब देर रात, एक लाल गाड़ी से आते है, सब ठीक है ना,” लीना के होठों पे रहस्यमयी मुस्कान देख, राधिका चिढ़ गई।

     किट्टी पार्टी का शोर ये सुन कर थम सा गया, हर महिला की प्रश्नवाचक निगाहें राधिका की ओर उठ गई। 

    “हाँ लीना, सब ठीक है, तुमको चिंता करने की जरूरत नहीं है,अपने तम्बोला के टिकट पर ध्यान दो “कठोर स्वर में बोल कर राधिका ने लीना का मुँह बंद कर दिया.।

    पर उसका मन फिर गेम में नहीं लगा, किसी तरह खेल खत्म होने का इंतजार करने लगी,तम्बोला खत्म होते ही सब खाना खाने उठ गये, सब हँसी -मजाक में लगे थे, लेकिन राधिका अन्मयस्क हो गई, किसी तरह खाना खा,मीना से विदा ले घर आ गई। जानती थी उसके पीछे लीना सारी कहानी चटकारे ले कर सुना रही होगी। 

        संदीप के लिये कभी उसके मन में कोई संशय नहीं था, लेकिन पिछले एक महीने से संदीप देर रात घर लौटते, राधिका के पूछने पर,”ऑफिस का काम बहुत बढ़ा हुआ है, इसीलिये देर तक बैठना पड़ता है “सुन कर फिर राधिका ने कभी कुछ नहीं पूछा।

     दोनों बच्चों का स्कूल, होमवर्क से लेकर सास -ससुर सब की जिम्मेदारी राधिका बखूबी उठाती, मन में कोई मैल नहीं था तो मस्त रहती थी, सभी राधिका के कर्मठ और सरल स्वभाव की तारीफ करते,लेकिन उसका बेफिक्र अंदाज और तारीफ उसकी पड़ोसन और सहेली लीना को रास नहीं आ रहा था।

     आखिर उसे मौका मिल गया,कुछ दिनों से उसने देखा देर रात संदीप लाल रंग की गाड़ी से आता। ड्राइविंग सीट पर उसे किसी महिला के होने का अंदेशा हुआ।

         आज उससे रहा ना गया,किट्टी में उसने राधिका से पूछ ही लिया।

  राधिका ने उस समय लीना का मुँह तो बंद करा दिया लेकिन मन को अशांत होने से रोक ना पाई, सोच लिया आज संदीप से सब पूछ कर रहेगी।

      संदीप और दिन की तुलना में आज थोड़ा और देर से आया, कार की आवाज सुन राधिका ने बालकनी से कार के अंदर देखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंधेरा होने से उसे ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दिया,हाँ कंधे तक खुले बाल और पतली कलाई जरूर दिख गई, राधिका को लीना की बात सत्य लगने लगी।

       . अंदर आ कर संदीप सीधे कमरे में सोने चला गया राधिका ने खाने के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया। थकाहारा संदीप को सोने में देर ना लगी, लेकिन राधिका की आँखों से नींद कोसों दूर थी, करवट बदलते रात गुजर गई, घड़ी ने पांच का अलार्म बजाया,सर दर्द से बेहाल राधिका अलार्म बंद कर उठ बैठी।

  चाय बना कर सासू माँ को देने गई तो उसकी सूजी लाल ऑंखें देख वो पूछ बैठी “क्या बात है राधिका तबियत ठीक नहीं है क्या “

    “हाँ माँ सर दर्द से फटा जा रहा “

     “तू सो जा, मैं बच्चों को स्कूल भेज दूंगी “कह सासु माँ ने राधिका को सोने भेज दिया 

      बेड पर लेट राधिका सोने की कोशिश करने लगी,पर अशांत मन, आँखों से नींद को भगा दे रहा था, संदीप उठ गये थे, राधिका को इस तरह लेटे देख बोले,”तबियत ठीक नहीं है क्या “

       उनका हाथ राधिका के सर पर रखते ही राधिका फूट पड़ी, “एक बात बताइये, लाल गाड़ी से आपको छोड़ने कौन आता है, मुझे धोखा क्यों दे रहे है,….”

    “एक मिनट्स रुको…. धोखा और मैं.. तुमको दूंगा, जिसे मैं दिलो जान से चाहता हूँ, जिसने मेरे बच्चे ही नहीं मेरे माता -पिता को भी अच्छे से संभाल लिया, जिसकी वजह से मैं निश्चिन्त हो अपना कार्य कर पाता हूँ, उसे धोखा दूंगा .., इतना ही विश्वास है तुम्हे अपने पति पर,”दुखी स्वर में संदीप बोले।

         ” पर वो लाल गाड़ी… “राधिका अभी भी वहीं अटकी थी।

      “वो लाल गाड़ी मेरे बॉस की है,”

     “पर वो तो कोई लड़की चलाती है, मैंने कल खुले बालों को देखा था।

   .”ओह..तुम्हारी अशांति का कारण अब समझ में आया…. ये देखो,”संदीप ने हँसते हुये मोबाइल में लाल गाड़ी ड्राइव करते पतली कलाई और कंधे तक बालों वाले की फोटो दिखाई….

    अब झेपने की बारी राधिका की थी, क्योंकि संदीप का बॉस पतला- दुबला,लंबे बालों वाला शख्स था,

      “पगली दाम्पत्य जीवन की नींव विश्वास से बनती है, अगर नींव कमजोर होगा तो इमारत मजबूत कैसे होगी,याद रखों हम जो सोचते है वहीं देखते है, पर जरुरी नहीं जो देखते है वो सत्य हो…”राधिका को प्यार करते संदीप बोले..

       और राधिका के मन की सारी अशांति उड़ गई, मन हल्का हो गया,असीम शांति से उसकी आँखों में नींद उतर आई….।

            ये सच है हम जो सोचते है वहीं देखते है, पर जरुरी नहीं वो सत्य हो, दूसरों पर विश्वास कर अपनों पर अविश्वास ना करें, दूसरा तो शक का बीज बो कर मस्त हो जाते लेकिन अज्ञानता बीज से पेड़ बनाने में देर नहीं करता, अतः ज्ञान से काम ले,अज्ञान से नहीं….।

                         —–संगीता त्रिपाठी 

#अशांति

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