Moral Stories in Hindi :
जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि उमेश और शुभ्रा के घरवालों के बीच तो दहेज को लेकर आपसी समझौता लगभग हो चुका हैँ… घर कि औरतें लड़कों वालों के लिए अंदर खाना बनाने गयी हैँ… कि तभी शुभ्रा के हाथ में चाकू देख शुभ्रा की ताई चिल्लायी… ये का कर रही लाली शुभ्रा… घर के सभी लोग दौड़ते हुए रसोई घर में आयें हैँ… उनके पीछे नरेश जी और ताऊ जी भी किसी अनहोनी की आशंका से रसोई घर में आ गए हैँ…..इधर उमेश शुभ्रा को ना जाने कितने मेसेज किये जा रहा हैँ… पर शुभ्रा तो….
अब आगे….
ये का कर रही लाली तू चाकू से अपने हाथ की नस काट रही… कोई समझाओ इसे… अब तो सब बातचीत हैँ गई छोरा वारन के संग फिर भी जे का कर रई तू … ताई शुभ्रा के हाथ में पकड़ी चाकू को कलाई पर रखा देख बोली….
लाली… का है गयो हैँ तोये…. तू तो सबन ते समझदार हैँ घर में … ऐसे जान ना देवे हैँ… दादा नारायण जी कांप रहे हैँ और अपनी लाली शुभ्रा को समझा रहे हैँ…..
बेटा ऐसा नहीं करते…. आप तो पढ़े लिखे समझदार बच्चे हो…. गलत कदम नहीं उठाते…. उमेश के पिता नरेश जी भी घबराते हुए बोले….
अपये पापा की तरफ तो देख छोरी… हादसे में पांव गंवाने के बाद भी हिम्मत ना हारी इनने … तुम सबन को पढ़ायो लिखायो …. शुभ्रा की माँ बबिता आँखों में आंसू लिए अपनी बेटी को समझा रही हैँ….
पिता भुवेश जी भी असहाय से खड़े कांप रहे हैँ….
पापा… दादाजी … ताई …. आप लोगों को मैं इतनी नासमझ लगती हूँ क्या कि अपनी शादी के लिए मैं आत्महत्या करूँगी…. अपने माँ पापा आप सबके आगे तो ऐसी सौ शादियां कुर्बान ….. पापा ने माँ ने इतनी मुश्किलों से मुझे पाला पोसा …. बड़ा किया… पढ़ाया…. मैं इतनी बेवकूफ नहीं ताई …
शुभ्रा के मुंह से यह बात सुन नरेश जी और रमेश जी के चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर आयी… वो मन ही मन खुश हो रहे थे कि सच में शुभ्रा बहुत समझदार लड़की हैँ…. हमारी बहू के रुप में हम एक सुलझी हुई लड़की लेकर ज़ायेंगे….
तो तू का कर रई चाकू ते फिर …. ताई सुमित्रा कमर पर हाथ रखे हुए बोली….
अरे वो तो ताई मैँ ये पूजा का कलावा काट रही थी चाकू से… इसका धागा निकल आया हैँ… आप भी ना पता नहीं क्या सोच लेते हो….
सोरी अंकल…. मेरी वजह से आप लोग परेशान हुए…. शुभ्रा अपने होने वाले ससुर जी से आँखें नीची कर बोली…
धीरे से बबिता जी ने शुभ्रा का दुपट्टा उसके सर पर रख दिया…
बेटा कोई बात नहीं … अच्छा लगा जानकर कि तुम इतनी समझदार हो… हमारे घर को अच्छे से संभाल लोगी…. पर अब अंकल नहीं…. पापा बोला करो हमें… उमेश हमारा बेटा हैँ तो तुम हमारी होने वाली बहू…. तो हम तुम्हारे पिता हुए ना …
शुभ्रा ने शर्माकर हां में सिर हिलाया…..
चलिये अब बैठक में चलते हैँ…. भुवेश जी बोले…
सभी लोग फिर से बैठक में आकर बैठ गए हैँ…. .
तो सुनो छोरा वारों… हमें ऊँ तुमायी सारी बात मंजूर … पर अब बात से मुकर ना जइयो …. एन बखत पे…. और भुवेश कल मैं ऊँ चलूंगों गाम…. मेई बात को वजन पड़ेंगो तो पइसा मिल जावेंगे हाल….
आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ नारायण जी….ताऊ रमेश जी बोले…
हां कहो … का कह रहे…
नरेश जी ने अपना सर झुका लिया कि पता नहीं अब किस चीज की डिमांड करेंगे भाई साहब नारायण जी से….
कई दिनों से मैं पक्के बीघा खेत लेने की सोच रहा हूँ… पर समझ नहीं आया कही … कुछ ना कुछ दिक्कत आती रही… ले नहीं पाया…. अगर आप मुझे दे दे अपने खेत तो अच्छा रहेगा… आपको कैस पैसा भी मिल जायेगा और मुझे खेत…. हमने देख रखे हैँ आपके गांव के खेत… बाई पास से लगे हुए हैँ..
अच्छी जगह हैँ… मुझे पसंद आयी थी…
हां भाई साहब .. ये तो बहुत ही अच्छा रहेगा…. आप तो लेना ही चाह रहे हैँ कई सालों से…. नरेश जी उत्सुक होते हुए बोले…
तो बताईये नारायण जी… देंगे आप अपने खेत मुझे… कोई जोर जबरदस्ती नहीं हैँ…. सोच विचार कर लीजिये आपस में…रमेश जी नारायण जी की तरफ देखते हुए बोले….
नेकी और पूछ पूछ सा…. हम तो चाहे ही हैं कि कोई घर परिवार से ही लै लेबे हमाये खेत… बाहर ना जावें…. और अब तो तुम सब भी हमाये परिवार जन ही के हैँ गए हैँ…. ठीक हैं पक्की रही…. लै लेओ तुम… तुम्हे जे बबलू लै जायेगो कल… ठीक से फिर देख लियो…. फिर लिखा पढ़ी करा लियो… नारायण जी के चेहरे पर ख़ुशी साफ झलक रही थी….
भुवेश जी और उनके बड़े भाई साहब बबलू जी भी एक दूसरे को बधाई दे रहे थे कि चलो छोरी के ब्याह के पैसों को व्यवस्था हो जायेगी….
शुभ्रा को भी जब पता चला कि पैसों की प्रॉब्लम सोल्व हो गयी हैँ और सारी बात सही से हो गयी हैँ तो वो मन ही मन बहुत पछतायी कि उसने सारी बात हुए बिना ही बीच में उमेश को इतना परेशान कर दिया… उसने उमेश को फ़ोन लगाया….
उमेश तो जैसे उसी के फ़ोन के इंतजार में बैठा था… उसने पहली रिंग पर ही फ़ोन उठा लिया…
हेलो शुभ्रा…. तुम मेरे साथ भाग आना…. अगर घर वाले नहीं माने तो… पर शादी कहीं और मत करना प्लीज … समझी …
इससे पहले कि शुभ्रा कुछ बोलती… उमेश बोल पड़ा ….
शुभ्रा जोर से खिलाखिला कर हंस पड़ी….
तो तुम्हे हंसी आ रही हैँ…. यहां मैं सोच सोचकर पागल हुआ जा रहा हूँ…. तुम मुझसे प्यार नहीं करती ना …. कहीं और शादी कर सकती हो तुम अब… सच सच बताना……
जी आप…मेरी बात तो सुन नहीं रहे बस खुद ही बोलते जा रहे हैँ… कितना बोलते हैँ आप… बिल्कुल चुप रहना अब…..
पता हैँ आपको पैसों का भी अरेंज़मेंट हो गया हैँ और सारी बातें भी हो गयी हैँ यहां दादा जी और पापा जी की…. हमारी शादी हो रही हैँ…..
पापा जी कौन ??
जी आपके पापा जी मेरे भी पापा जी हुए ना …. शुभ्रा शर्माते हुए बोली….
अच्छा तो मेरी शुभ्रा अब मेरे पापा को पापा जी बोलने लगी हैँ.. बहुत अच्छा लगा तुम्हारे मुंह से सुनकर … सच में लगने लगा हैँ कि अब तुम मेरी हो गयी हो…
जी अभी नहीं… घोड़े पर सवार होकर ,सात फेरे लेकर, सिन्दूर लगाकर, मंगलसूत्र पहना कर अपनी दुल्हन को ले ज़ायेंगे… तब वो पूरी तरह से आपकी होगी…..
तो आज ही आ जाऊँ बारात लेकर …. बोलो शुभ्रा??.
जी.. आप भी ना …. अच्छा ये मत कहियेगा अब कि मैं आपसे प्यार नहीं करती… इस दिल पर सिर्फ और सिर्फ उमेश जी का नाम हैँ….
आयें हाये… ऐसे ही बोलती रहा करो बस… दिल को कितना सुकून मिलता हैँ…. बहुत अच्छा लगा जानकर कि चलो सब ठीक हो गया….
सुनिये जी…. आपको एक ज़रूरी बात बतानी हैँ पर इस बात को सुनकर आप कहीं …..
आगे की कहानी कल… तब तक के लिए अहोई माता की जय ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा