लड़के वाले सीजन -3 (भाग – 4) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि उमेश के ताऊ और पापा शुभ्रा के घर गाड़ी की बात करने आयें हुए हैँ…. ताऊ रमेश अपनी बात से मुकर गए हैं कि कुछ पैसे गाड़ी के आप लोग भी दे….जबकि ऐसा कुछ तय नहीं हुआ था….ईधर शुभ्रा ने उमेश का दिल दुखा दिया हैँ… यह कहकर कि आपकी और मेरी शादी अब नहीं हो पायेगी शायद … मेरे घर वालों पर इतना पैसा नहीं कि वो इतना दहेज दे पायें … इधर आपस में समझौता कर नरेश जी और रमेश जी अन्दर बैठक में आतें हैँ…. दादा नारायण जी उनके कुछ बोलने से पहले ही बोल पड़ते हैं कि अब लग ना रई कि हम जे ब्याह कर पावेंगे….लगुन सगाई तो हैँ गई पर …..
अब आगे….
जे सगाई तो हैं गई पर ब्याह हम ना कर पांगे ….. अब ध्यान ते सुन लेओ छोरो वारों कि हम शादी के मेरिज होम,दावत को खच्च, छोरी को थोड़ो बहुत सोने को सामान, छोरा कूँ चेन , द्वे अंगूठी जो पहले ही दै दई लगुन सगाई पे , कोई और रिश्तेदार कछु देने चाहेगो छोरा छोरी को तो वो…. वा में ते हम कछु ना राखेंगे …. कपड़ा लत्ता, सामान सट्टा में टीबी बड़ी वाई जो आजकल चल रई , वो डबर बेड, एक अलमारी बड़ी वाई,,एक कपड़ा धोबन की मशीन, एक जामे मौह देखत हैँ का कहत हैँ वाए …
बाऊ जी वो डरेशिंग टेबल …. ताई तपाक से बोली….
हां वई ,, गैस को चूल्हो तो हम देंगे नाये . .. छोरी को ज़ाते ही ससुरार में न्यारों थोड़े ना करानों हैँ ….
ताऊ रमेश मन ही मन ही सोच रहे कि क्या अजीबो गरीब परिवार हैँ….कहां फंस गए हम और हमारा उमेश…..
बाकी थोड़ो बहुत और कछु होगो तो वो देख लेवेंगे…. गाड़ी के लिए एक रूपया ना दे पावेंगे… अब बताओ छोरो वारों मंजूर हैँ य़ा नाये….
इधर राहुल उमेश को उदास देख उसकी पीठ पर हाथ रख बोलता हैँ….
भाई तू आज उजड़ा चमन कैसे बना हुआ हैँ… चेहरा कैसे लटका रखा हैँ….. कुछ दिन में शादी हैँ तेरी…. खुश रह…. अपनी केयर कर … क्या तू रो रहा हैँ?? चेहरा ऊपर तो कर ज़रा….
तू जा यहां से…. मेरी शादी पता नहीं अब हो भी पायेगी य़ा नहीं शुभ्रा से … पापा के मन में इतना लालच कहां से आ गया…. पैसे मांग रहे शुभ्रा के घरवालों से गाड़ी के…..
क्या अंकल…. वैसे मुझे नहीं लगता उमेश कि अंकल ऐसा कह सकते हैँ… ज़रूर तेरे उस ख्ड़ूँस ताऊ ने भड़काय़ा होगा वो मुझे वैसे भी बहुत चालाक लगते हैँ…. और तू ये लड़कियों की तरह क्यूँ रो रहा हैँ…. अरे घरवाले नहीं करेंगे शादी तो क्या शादी नहीं होगी भाई की …. तू भाभी को भगा लाना… मैं सारा अरेंजमेंट कर दूँगा तुम्हारे रहने खाने का….
तेरा दिमाग खराब हैँ क्या कमीने … शुभ्रा की जगह कोई और होता तो शायद भाग भी आती मेरे साथ पर शुभ्रा तो कभी नहीं मानेगी…. मुझसे ज्यादा अपने परिवार वालों से प्यार करती हैँ वो…. मैं भी ऐसा नहीं करूँगा …शुभ्रा की बदनामी मैं कभी नहीं करा सकता…. उमेश दुखी होकर बोला….
तो फिर एक ही रास्ता बचा हैँ तेरे पास भाई…. राहुल उत्सुकता से बोला….
क्या ??
यहीं कि तू अब पूजा पाठ शुरू कर दे….रोज नहाकर एक लोटा जल, सारी समस्याओं का हल…. सोमवार को एक लोटा जल चढ़ा महादेव को… मंगल को सुन्दर कांड का पाठ और हनुमान चालीसा का पाठ कर , गुरुवार को गाय को आटा गुड़ खिला, शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दिया जला…. अगर तूने ऐसा कर लिया शुभ्रा भाभी को तेरी होने से कोई नहीं रोक सकता….
ये बोल कौन रहा हैँ… राहुल बाबा… जो खुद दो दो दिन नहीं नहाता …. लेकिन एक बात है तू न हो तो मेरे दुख को कौन सुने…. पहले पापा से बात करता हूँ…. पता तो चले उन्होने कहा भी हैँ ऐसा य़ा ताऊ जी की जुबान बोल रहे हैँ वो….
हां… ये ठीक हैँ… चल यार अब… आज मेजर साब आ रहे हैँ सिगनल यूनिट के…. वहां बुलाया हैँ सभी को….
राहुल और उमेश यूनिट की तरफ जा रहे हैँ…
इधर दादा नारायण के फैसले को सुनने के बाद रमेश जी बोले….
ठीक हैँ मंजूर हैँ पर आप लोगों को हमारी भी एक बात माननी पड़ेगी ??
का… बताओ … का बात ?? नारायण जी बोले..
मेरिज होम शानदार होना चाहिए… दावत एवन होनी चाहिए… पिज्जा , बर्गर सब होना चाहिए… हमारे जितने खास रिश्तेदार हैँ उन सबको एक एक चांदी का सिक्का देना होगा… और हमारे यहां सास के लिए बक्सा जाता हैँ… वो भी तैयार करना होगा…
अब आप बताओ मंजूर हैँ य़ा नहीं … रमेश जी बोले…
वाते पहले चाय नाश्ता कर लेओ … हार गए होंगे गुना गनित करके… नारायण जी मजाकिया लहजे में बोले….
रमेश जी ने नरेश जी को घूरकर देखा कि तेरी और उमेश की वजह से इतनी बेइज्जती करा रहा हूँ यहां नहीं तो क्या किसी की मजाल कि सचिवालय के इतने बड़े अधिकारी को कोई कुछ कह जायें ..
नरेशजी ने आँखों के इशारे से रमेश जी को शांत रहने को कहा … और चाय पीने को बोला….
सभी ने चाय का कप उठाया….
जे पकोड़ा का मौह देखन कूँ राखे हैँ… दादा नारायण जी गुस्से में बोले….
उनकी तेज आवाज सुन ताऊ और नरेश जी ने एक एक पकोड़ा
उठाया….
जे चटनी को का होगो….
दोनों ने चटनी में पकोड़े डुबो लिए…
य़ाके बाद जे काला जामन , सारों नाश्तों खत्म करनों हैँ… फिर खाने की भी व्यवस्था हैँ रई …
तुम सब यहां कैसे खड़ी हैँ… जाओ रसोई में… सबन के लई खानों बनाओ…. दादा नारायण दरवाजे पर कान लगाये खड़ी औरतों से बोले….
बुढ़ऊँ ख्ड़ूस ज़रूर हैँ और अजीब भी पर खातिर में कोई कमी नहीं छोड़ते …. मन ही मन रमेश जी सोचे…
ये हमारे भारत की संस्कृति हैँ कि घर आया मेहमान घर से भूखा नहीं जाना चाहिए….
जी खाना रहने दीजिये …. नाश्ता ही काफी हैँ….
तभी अंदर से ताई की जोर की आवाज आयी कि ये का कर रही हैँ लाली शुभ्रा तू … चाकू से…..
सभी यह सुन चाय छोड़ रसोई घर की तरफ भागे ….
पीछे पीछे रमेश जी और नरेश जी भी तेज कदमों से आगे बढ़ रहे….
इधर उमेश शुभ्रा को मेसेज पर मेसेज कर रहा हैँ कि रोना नहीं शुभ्रा… मैं हूँ ना …. तुम मेरी हो…. सिर्फ मेरी…. तुमसे बहुत प्यार करता हूँ…. शादी तो होकर रहेगी हमारी… पापा को समझाता हूँ…..
पर शुभ्रा तो….
आगे की कहानी कल… तब तक के लिए जय श्री राम ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा

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