लड़के वाले सीजन -3 (भाग – 15) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि शुभ्रा के घर में शादी के समय ताई ने अलग ही रायता फैला दिया हैँ… वो ससुराल की सीता रामी और उसके संग के झुमके अपने ससुर नारायण जी को   कतई देने को तैयार नहीं हैँ …. ज़िसका फैसला करने के लिए ताई  सुमित्रा जी ने अपने एसआई चाचा , पिता जी , भाईयों को बुलवा लिया हैँ…. दोनों पक्षों की बात चल रही हैँ… ताई टस से मस नहीं हो रही अपनी बात से …. वो अपनी बात पर चाचाजी  की सहमति चाह रही हैँ…. तभी चाचा जी कहते हैँ… लाली सही तो कह रही कि ….

अब आगे….

क्या सही कह रही जीजी चाचा जी… सुमित्रा जी के मंझले भाई तपाक से बोल पड़ते हैँ….

यही कि उसके आगे भी छोरी हैँ… भुवेश भाई साहब की छोरी को ब्याह तो नारायण जी अपनी आँखों के सामने करे जा रहे…. पर क्या भरोसा दामाद जी की छोरी के ब्याह तक ऐसे ही तखत पर बैठे रहे… स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता इनका….

का बात कर रहो हैँ दरोगा तू …. सोना घर को हैँ…. बाऊ जी अपनी मर्जी से ही करेंगे जो कछु करनो हैँ…. नहीं तो अपयी लाली को घरेँ लै जाओ… ब्याह कैसो होगो मैं देख लूँगो…. बबलू जी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था….

अपने पति के मुंह से पीहर भेजने की बात सुन ताई सुमित्राजी  धरती पर लोट गयी…. देख लेओ बाऊ जी… तुमायी वजह से आज इनने  मेरे पीहर वालों से कैसी बात कह दयी … जो जीवन में भी ना कही कभी  .. सोची थी मैने इस घर से मेरी अर्थी ही जायेगी…. पर जे जीते जी मोये मेरे ससुराल से निकाल रहे…. सुमित्रा जी दहाड़े मारकर रोने लगी….

ज़िसे देख नारायण जी की आँखें नम हो गयी… उन्होने कहा … उठ जा सुमित्रा… मैं कछु ना लै रहो तुझसे…. तू धर ले सीता रामी और जो कछु यहां धरों हैँ… सब कछु लै जा…. पर शांति बनाये राखो तुम सब… खबरदार लाला  तूने आज के बाद बहू से कभी य़ा  घर से जाने की बात कहीं तो…मेई कसम खा तू ….मेरे जाने के बाद भी तू कभी ऐसा नहीं कहेगा …. उसका ससुराल हैँ जे … तेरे संग भांवर लैके आयी हैँ जे … कैसे तेई हिम्मत है गयी ऐसे कहबे की….

माफ कर देओ बाऊ जी… पर याकी (सुमित्रा जी की ) जबान भी तो कैसी कैंची सी चले हैँ…. अब ना कह रहो कछु ….

नारायण जी का बहू के प्रति इतना सम्मान भरा व्यवहार देख सुमित्रा जी के चाचा बोले…. लाली सुमित्रा… बड़े भागो वाली हैँ तू … तेरे घर में इतनी मजबूत लाठी हैँ…. जो तुम लोगों पर एक आँच भी ना आने देगी…. नारायण जी तुम छा गए हमायी नजरों में ….

तभी सुमित्रा के पिता जी बोले….लाली आज जो तू अपने ससुराल में कर रही कल तो तेरी भौजायी भी ऐसा करें तो तोये कैसो लगेगो…. तोये संस्कार देने में कहीं चूक हो गयी तेरे माँ बाप पे….

यह सुन सुमित्रा जी बिलख कर रो पड़ी… उन्होने उठकर नारायण जी के पैर पकड़ लिए….. .

ये का कर रही बहू … मैने तुझसे कछु कहीं हैँ क्या … उठ बांवरी….

बाऊ जी मैं तब तक ना उठूँगी जब तक तुम मोये माफ ना कर दोगे…. मैं माफी के काबिल तो ना हूँ…. जे सबरों जेवर लै लेओ…. जल्दी से बबली के हाथ में छुपायी सीता रामी और बाकी का जेवर निकाल कर सुमित्रा जी ने नारायण जी के हाथों में थमा दिया…. शुभ्रा लाली के ब्याह में कोई कमी ना रहनी चाहिए बाऊ जी…. मेई लाली को ब्याह भी तुम सब मिलकर ही करेंगे… मेई मति पर पाथर पड़ गए….

ए री … मैं का सारे जेवर को शुभ्रा लाली के ब्याह के लिए बेचने के लिए मांग रहो….

तो काये कूँ मांग रहे बाऊ जी… शुभ्रा के पिता भुवेश जी बोले….

सभी की निगाह नारायण जी के चेहरे की तरफ थी कि अब वो क्या बोलेंगे….

तुम सब पगला गए हैं का…. मैं तुम्हे बुद्धिहीन दिख रहो हूँ…. ये बाल धूप में सफेद ना करें… कि घर को जेवर बेच दूँगो ….

मैं तो बस इसलिये मांग रहो कि जो जो पहननो होये बहुओं को रख लेओ…. बाकी बैंक में लोकर में डाल आयें बबलू .. सबेरे ही अखबार में पढ़ी कि शादी ब्याह के परिवार में चोर घुस ज़ाते हैँ…. चोरी हैँ जाती हैँ… बस यहीं मारे… बाकी एक चेन दो अंगूठी शुभ्रा लाली को दे दे तू बबिता … तुझ पर और भी हैँ…सुमित्रा अपयी लाली के ब्याह में दै देगी….

का तुम भी समधी जी…. इतनी सी बात के लिए हम सबको बुलाये मारो…. सुमित्रा जी के चाचा बोले…

तो का हैँ गयो छोटे… य़ाई बहाने सब मिल गए… रोज रोज कहां आनो हैँ पावे…. सुमित्रा जी के पिता जी बोले…

सुमित्रा बहू भी परिवार की ज़िम्मेदारी में कहां जा पायी पीहर… साल हैँ गए…. घर तो याई ने संभार राखो हैँ….

नारायण जी के मुंह से यह बात सुन सुमित्रा जी मन ही मन भगवान जी का शुक्रिया अदा कर रही थी कि बाऊ जी को लम्बी उमर देना ठाकुर जी….

ये कार्ड लेते जाओ समधी सा … सभी को दे दियो…. सभी लोग परिवार सहित अईयो .. हला…. नारायण जी बोले….

जी ज़रूर… अब हमें इज़ाजत दीजिये … हम चलते हैँ….

जी राम राम…

राम राम सा… राम राम…. आत जात रहो करो….

सुमित्रा जी के घर वाले ज़ाते हैँ… तभी बुआ शन्नो रिक्शे से उतरती हैँ….

शुभ्रा घर के मामले के सुलझने के बाद मन ही मन बहुत खुश हैँ…

वो अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए उमेश को फ़ोन लगाती हैँ…

आज इस टाइम कॉल…सूरज़ कहां से निकला हैँ आज…. उमेश बोलता हैँ…

हा हा… वो तो बस ऐसे ही… एक बात बोलूँ आपसे?? .

हां बोलो ना शुभ्रा… तुम्हारी बातें सुनने के लिए तो उमेश तैयार बैठा हैँ.. आज जब तक मैं फ़ोन ना काटूँ तुम बात करती रहना….

अच्छा जी… ठीक हैँ….

तो बोलो ना शुभ्रा  …. क्या कह रही थी….??

जी… यहीं कि जबसे आपसे मिली हूँ खुद को आइने में निहारने लगी हूँ… ऐसा लगता हैँ आप मुझे कहीं से चुपके से देख रहे हैँ… पागल सी हरकतें करने लगी हूँ…. लगता ही नहीं मैं पहले वाली शुभ्रा हूँ… क्या आपके साथ भी ऐसा हो रहा हैँ?? .

शुभ्रा तुम मुझे बेइंतहा प्यार करने लगी हो…. तुम्हे तो बस इतना ही मेरा सुनोगी तो हंस हंसकर पागल हो जाओगी….. मैं तो कभी कभी …..

आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए बहनें भाईयों की लम्बी उम्र की दुआयें करें …. और भाई कोशिश करें बहनों से मिल आयें…. जय माता दी

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