Moral Stories in Hindi :
जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि घर के शादी के हंसी ख़ुशी के माहोल में शुभ्रा के घर फेंकी गयी चिठ्ठी से सभी के मन बुझ गए हैँ… पर दादा नारायण जी ने मना कर दिया हैँ कि अभी कोई भी लड़कों वालों को कुछ भी नहीं बतायेगा जब तक हम जांच पड़ताल ना कर लें…..शुभ्रा का भाई विक्की सामने रहने वाले प्रशांत अंकल के यहां से सीसीटीवीं फुटेज लेकर आ गया हैँ…… शुभ्रा उमेश से फ़ोन पर बात कर रही हैँ…. वो उमेश से पूछती हैँ आप मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे… उमेश बोला हां शुभ्रा मैं तुम्हे अपने जीवन की सबसे ज़रूरी घटना तो बताना भूल ही गया…. तभी ताई की बेटी बबली भागती हुई आती हैँ…
दीदी… जल्दी चलिये …. सीसीटीवी फुटेज मिल गयी हैँ… जीजा जी तो सच में….
अब आगे…
जी मैं आपसे बाद में बात करती हूँ…. कुछ ज़रूरी काम हैँ…
शुभ्रा उमेश की बात सुने बिना ही फ़ोन काट देती हैँ…
उमेश को बुरा भी लगता हैँ…… कि ऐसे तो मेरी पूरी बात सुने बिना शुभ्रा कभी फ़ोन नहीं रखती….चाहे कितना भी ज़रूरी काम क्यूँ ना हो…. खैर उमेश को भी बहुत काम हैँ… वो भी फ़ोन पोकेट के रख यूनिट चला गया….
पूरी बात तो बोल बबली … जीजा जी क्या ….
दीदी…. अब मैं क्या बताऊँ …. आप ही देख लो चलकर …
दोनों बैठक में आती हैँ जहां पहले से घर के सभी लोग मौजूद हैँ….
लीजिये दादा जी देखिये …. विक्की अपना फ़ोन आगे बढ़ाता हुआ बोला….
मोये तो कछु ना दिख रहो … सब कछु कारो कारो लग रहो हैँ….. तू ही बताये दे को आदमी हैँ या मे….
दादा जी… मुझे भी समझ नहीं आ रहा हैँ… हेलमेट लगाये हुए हैँ दोनों…
ला मोये दिखा…. ताऊ बबलू बोले…
उन्होने थोड़ी देर फुटेज देखी….
बाऊ जी जे दिनानाथ को छोरा ना लाग रहो…. कद काठी तो ऐसी ही लाग रही….
हो सकता हैँ भाई साहब … वैसे ही उससे आपकी अच्छी खासी बहस होये गयी पिछली साल… ध्यान हैँ…. शुभ्रा के पिता भुवेश जी बोले…
हैँ सकत हैँ… वाई ने करो होवे…. बहुत कमीनो आदमी हैँ….
पर ताऊ जी दिनानाथ चाचा का बेटा तो नोयडा रहता हैँ… एक साल से आया ही नहीं…. और वो इतनी दूर रहने लगे हैँ अब…. और वो इतना लम्बा नहीं हैँ… विक्की बोला…
फिर को हैँ… ठीक ते देखियो…… दादा नारायण जी बोले…
तुम सबन की आँखें बेकार हैँ गयी हैँ… मोये लाओ… मैं बताऊँ को हैँ जे …. ताई सुमित्रा आगे आतें हुए कहती हैँ….
लो ताई अब आप ही बताओ….
सुमित्रा जी भी घूरकर फ़ोन की फुटेज देखती हैँ… मोये समझ आयें गयी हैँ… लाला एक बार और चलाय दै फ़ोन….नैक एक बार और देख लूँ… तो पक्की हैँ जाए जो समझ रही वहीं हैँ जे आदमी….
वैसे तोये…. को लाग रहो सुमित्रा. … बबलू जी अपनी पत्नी से बोले…
नैक सबर करो.. बताये रही…. सुमित्रा जी बोली…..
हां तो समझ आयें गयी… तो सुनियो सब जन … ज़े कोई और नाये जे नुक्कड़ को बिन्दी लिपिस्टिक बेचन वारो भोला हैँ….
तोये हेलमेट में कैसे पतो चल रही…. वो काये कूँ ऐसे करेगो ….
बतईयो … दादा नारायण जी कहते हैँ….
बाऊ जी…. पीछे ते ऐसे ही कमर लचकावे हैँ वो….. जे रंग की बूशट ही पहनत हैँ… वापे एक ही बूशट हैँ… लाग रही…. मैं जब भी कछु सामान लैने जाऊँ हूँ तो पइसा कम करायबे के मारे वासे हमेशा झगड़ा होतो हैँ मेरो…. एक बार तो वो ऐसो गुस्सा हैँ गयो कि तुम खुद तो सस्तो सामान लेत हैँ… सबन कूँ और बताये देत हैँ… मेई दुकानदारी खराब कर रही तुम … अईयो नाये अगली बार ते मेई दुकान पे…. जहां सस्तो मिले वहीं जइयो … मैने ऊँ वाये गुस्सा में द्वे चार गारी दै डारी बाऊ जी…. तभी कह रही वहीं हैँ ज़े … दूसरों वाकी दुकान पर काम करवे वारो छोरा लागे हैँ…
तू बिल्कुल बुद्धिहीन हैँ…. आज त्योहार के दिना वो अपनी बिकरी करेगो कि तेरे घरे चिठ्ठी पतर फेकबे आयेगो….पति बबलू सुमित्रा जी पर खीजते हुए बोले…
मोये तो जो लागी… कह दयी …
बऊ …. वो ऐसे ना करेगो ….. ये जो बड़ी रंजिश राखत होगो वहीं करेगो…. दादा नारायण ही बोले….
वैसे भी ताई जी वो दुकान वाले अंकल भी इतने लंबे नहीं हैँ… छोटे से तो हैँ… शुरू होते ही खत्म हो ज़ाते हैँ…. वैसे फुटेज में कुछ भी क्लीयर नहीं हो रहा हैँ… दो आदमी हाई स्पीड में आयें हैँ… पीछे वाले ने जल्दी से उचक कर लेटर फेंक दिया हैँ हमारे घर पर …अब तो कोई और ही रास्ता निकालना पड़ेगा….विक्की हताश होते हुए बोला….
तो का करो जाये… तुम लोग ही बतावो…. दादा जी कहते हैँ….
तब तक फिर दादा जी के फ़ोन पर उमेश के पिता नरेश जी का फ़ोन आता है …. नारायण जी फ़ोन उठाते हैँ….
हलो…. राम राम समधी जी…. कहो कैसे फ़ोन करो…. का हाल चाल…
जी राम राम …. हम सब ठीक हैँ… आप लोग बताईये कैसे हैँ….
और शादी की तैयारियां कैसी चल रही…. बस कुछ ही दिन रह गए हैँ बच्चों की शादी के… नरेश जी बोले…
नारायण जी मन ही मन सोचे…. का बताऊँ … तैयारी कैसी चल रही … यहां तो पूरो दिमाग ही खराब कर राखो हैँ चिठ्ठी ने… का तैयारी करें …… कछु समझ ही ना आयें रही…
वो बोले…. बस चल रही हैँ छोरा के बापू ….. हम सब हूँ सही हैँ….
जी… वो कल धनतेरस हैँ तो अगर आपके घर से कोई हमारी बहू शुभ्रा को तनिष्क वाले की दुकान पर ले आता तो ठीक रहता…. बहू अपनी पसंद का जेवर ले लेती …. अगर आप इजाजत दे तो….
का इजाजत दूँ मैं … दादा नारायण ही बहुत दुखी हैँ… पोती के पूरे जीवन की बात है …..
वाकी दुकान को तो हलको पतरो सोना ऊँ बहुत महंगो आत हैँ… मैने सुनी हैँ….कोई और दुकान ते लै लेओ…
जी भले ही हल्का भी महंगा आता हैँ… पर 22 कैरेट का होता हैँ वो… इसलिये वहीं से लेना चाहते हैँ….
ठीक हैँ… जैसे तुम सबन कूँ ठीक लागे…. भेज दूँगो बबलू के संग लाली कूँ ….. घर पर ऊँ त्योहार हैँ… समय ते लौट आयें… ध्यान राखियो ….
जी बिल्कुल…. आप बेफिकर रहे… समय से आ जायेंगे घर वो लोग….
और बताईये नारायण जी… कोई दिक्कत तो नहीं आ रही….. कुछ भी समस्या आयें तो निहसंकोच बताइयेगा…. अब आपका और हमारा परिवार एक ही हैँ….
कैसे भले आदमी हैँ छोरा वारे…. मोये तो चिठ्ठी वारी बात एक टका ऊँ सच ना लाग रही…. मन ही मन दादा नारायण जी के बातें चल रही हैँ….
नाये… कोई समस्या ना हैँ….अब रखत हूँ फ़ोन…. ठीक से रहियो सब…
जी…. आप सब भी….राम राम जी….
राम राम… राम राम…. स्वस्थ रहो… मस्त रहो….
तो कल लाली कूँ भेज दियो…. अभी काऊँ ते कछु कहबे की ज़रूरत नाये हैँ….. जाओ … सब खाये पीके सोवो…कल त्योहार हैँ…राम जी पे भरोसा राखो… सब ठीक हैँ जायेगो….
सभी लोग खाना पीना खा चुके हैँ…
शुभ्रा ने माँ का मन रखने के लिए एक रोटी खा ली… उसका मन आज किसी काम में नहीं लग रहा…. टहलने के लिए वो छत पर आयी हुई हैँ ….. तभी अचानक उसे याद आया कि उमेश जी कोई अपने जीवन की घटना बता रहे थे… उसने तुरंत उमेश को फ़ोन लगाया….
हेलो… क्या कर रहे हैँ आप…. खाना खा लिया आपने??
हां खा लिया शुभ्रा…. एक बात पूछूँ ??
हां… कहिये ….
तुमने सुबह अचानक से मेरी बात सुने बिना फ़ोन क्यूँ काट दिया था… बताओगी मुझे….
जी… वो बारिश आ गयी थी… तो आंगन से कपड़े उठाने गयी थी… नहीं तो भीग ज़ाते… शुभ्रा को उमेश से इस तरह झूठ बोलना अच्छा नहीं लग रहा था… पर क्या करें बेचारी…..
तुम सच बोल रही हो ना ??
जी…. अच्छा आप सुबह अपने जीवन की कोई बात बताने वाले थे…. बताईये??
तुमने फ़ोन काट दिया… तो बात भी कट हो गयी… उस टाइम मूड था बताने का….
जी बताईये ना … परेशान क्यूँ करते हैँ….
तो आगे से पूरी बात किये बिना फ़ोन मत काटना …. समझी … मुझे अच्छा नहीं लगता तुम्हारे मुंह से आई लव यू सुने बिना….
जी… ठीक हैँ… सोरी … आगे से ऐसा नहीं होगा….
हां तो मैं ये कह रहा था शुभ्रा कि मेरे जीवन में एक घटना हुई थी ज़िसे मैं तुम्हे बताना भूल गया कि जब मैँ पहली बार तुम्हे देखने आया था…. जब तुम मेरे सामने आयी तो ऐसा लगा बस तुम ही हो वो जो मेरे लिए बनी हो…. मेरा दिल इतनी जोर जोर से धड़क रहा था…मेरे हार्मोन ऐसे डिस्बैलेंस हो रहे थे कि लग रहा था कहीं हार्ट फेल ना हो जाए मेरा… पर सबके सामने खुद को संभालना भी था….. मैं अपने मन की ख़ुशी ज़ाहिर नहीं कर सकता था….
शुभ्रा खिला खिलाकर हंस पड़ी….. तो आपके ये बात बतानी थी… मैं समझी …..
हां तो मैने तुम्हे अपनी इतनी बड़ी वीकनेस बतायी … ये कोई छोटी बात है … तुम भी ना …. तुम भी बताओ ना … तुम्हे कैसा लगा था उस दिन….
जी…ज्यादा रोमैंटिक मत होईये….अब सो जाईये… सुबह पीटी पर जाना होगा आपको….
हां जाना तो हैँ… पर मन तो करता हैँ…. तुमसे बात खत्म ही ना हो कभी ….
चाँद सी महबूबा हो मेरी, कब ऐसा मैने सोचा था… हां तुम बिल्कुल वैसी हो… जैसा मैने सोचा था…. उमेश का मूड आज कुछ ज्यादा ही अच्छा था….
आप भी बिल्कुल वैसे हैँ… जैसा शुभ्रा ने सोचा था….
अच्छा… बाय…….
बाय से पहले बोलो तो सही….
जी कल बोलूँगी….
इसमें भी दिन देखोगी…. ठीक हैँ.. सता लो… ज़ितना सता सकती हो अपने उमेश को…. मैं भी कल ही बोलूँगा… बाय…..
अगले दिन शुभ्रा के घर में आंगन की धुलाई हो रही हैँ… ताई और शुभ्रा की माँ मिलकर आंगन धो रही हैँ… .
वहीं नारायण जी कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैँ…. बबलू जी शुभ्रा को लेकर जाने की तैय़ारी कर रहे हैँ….
खाना पीना हो चुका हैँ… बस बबलू जी ने अपनी बाइक स्टार्ट ही की थी….. शुभ्रा अपना दुपट्टा आगे कर बैठने ही वाली थी… सभी घर के लोग उन्हे बाहर छोड़ने आयें हैँ… तभी गेट पर फिर दो आदमी बाइक पर आतें हैँ….. पीछे बैठा हुआ आदमी उचक कर एक कागज फिर फेंकता हैँ….. तभी विक्की उसकी कोलर पीछे से पकड़ आगे की ओर घसीटता हैँ… वो आदमी जमीन पर गिर जाता हैँ… दादा नारायण जी उसका हेलमेट हटाकर देखते हैँ… यह क्या यह आदमी तो….
आगे की कहानी कल… आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं ….. माता लक्ष्मी आप सब पर अपनी कृपा बनाये रखे….
ॐ नमः शिवाय ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा