लड़का हो या लड़की। दर्द भी बराबर होता है – सविता गोयल 

अरे बहू, ये क्या कर रही हो। अभी तो लल्ला खाली बीस दिन का हुआ है और तुम अभी से कपड़े धोने चल पड़ी।

माँ जी, पिछली बार भी तो बीस दिन होते ही मैं काम करने लगी थी। तो इस बार भी कर लूंगी।

नहीं नहीं बहू, अभी तेरा शरीर कच्चा है। आस-पड़ोस में कोई देखेगा तो क्या बोलेगा कि सास इतनी बुरी है कि लल्ला होने पर भी बहू को एक महीना आराम नहीं करने दिया लेकिन माँ गुड़िया पैदा होने के बाद भी तो मैं बीस दिन बाद सारा काम करने लगी थी।

सास बहू की इस बहस को सुनते ही कजरी की दादी सास ने जोर लगाते हुए कहा बहुरिया तू क्या पिछली बार का राग अलाप रही है। पिछली बार कौन सा तूने लल्ला जना था जो तेरे लाड-चाव करते। बेटी पैदा करने पर भी इतने दिन तुझे सुलाए रखा वो क्या कम था??

इस बार लल्ला लाकर तूने हमें सोने की सीढ़ी चढ़ाया है तो हमारा भी तो फर्ज बनता है ना कुछ लाड-चाव करने का। ज्यादा बहस मत कर और अंदर जा। देख लल्ला कब से रो रहा है। जाकर उसे दूध पिला बेचारे का गला सूख गया होगा।

तभी कजरी को कमरे से बाहर देखकर दो साल की गुड़िया आंख मलते हुए उससे चिपट गई मम्मी, मम्मी दुदु पीना है।

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हाँ मेरी गुड़िया, अभी लाती हूँ तेरे लिए दूध। कहकर कजरी अपनी बिटिया को प्यार से पुचकारने लगी।

तभी दादी सास फिर कड़क कर बोलीं तुझे क्या लगता है हम तेरी बेटी को खाना पीना नहीं खिलाते?? सारा दिन तेरी सास इसके पीछे-पीछे घूमती रहती है। इसे तेरी सास दूध पिला देगी तू जा लल्ला के पास।




कजरी भारी कदमों से अंदर जाकर अपने बेटे को दूध पिलाने लगी लेकिन उसका मन बहुत बेचैन था। रह-रहकर उसे वो दिन याद आ रहे थे जब उसने पहली बार ही बेटी को जन्म दिया था।

घर में कोई खुशी नहीं मनाई गई। और दादी सास उन्होंने तो पूरे दस दिन तक उस बच्ची का मुंह भी नहीं देखा था। कजरी को  खाना-पीना भी साधारण ही दिया जाता था। हां कजरी की सास कभी कभी दादी सास से छिपकर दाल में दो चम्मच घी डाल देती थी तो कभी सोंठ के लड्डू खिला देती थी।

कजरी के हाथ पैरों में दर्द रहता था लेकिन मालिश वाली भी नहीं आती थी।

प्रसव के बीस दिन बाद ही दादी सास ने कह दिया बस बहुत हो गया आराम, अब बहुरिया से कह दो अपना चौका चूल्हा संभाले। काम करते-करते जब बीच में कजरी की गुड़िया रोने लगती तो कजरी उसे दूध पिलाने के लिए भागती। लेकिन दादी सास ताने देते हुए कहती,  बच्चे तो रोते ही हैं सारा दिन इसे गोद में लेकर बैठी रहेगी तो बाकी के काम कौन करेगा??

लेकिन इस बार लल्ला के पैदा होने पर घर में उत्सव का माहौल था। दादी सास ने ही सबसे पहले लल्ला को अपनी गोद में लिया था। देसी घी के लड्डू भी बना दिए गए थे और कजरी और लल्ला की मालिश के लिए भी एक दाई माँ आती थी।

लल्ला के रोने की आवाज सुनते ही सब कहने लगते क्या हुआ लल्ला को?? भूख लगी है क्या?? कही तबियत तो ना बिगड़ गई?? 

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कजरी को सब समझ आ रहा था। उसने लल्ला को सुलाया और फिर अपनी गुड़िया के पास आ कर उसे गोद में बिठा लिया। कजरी की गोद में गुड़िया को देखते ही दादी सास ने आंखें निकालते हुए कहा बहुरिया तुझे कहा था ना अभी तेरा शरीर कच्चा है।




कजरी आज बोले बिना नहीं रह पाई माफ करियो दादी जितना कमजोर मेरा शरीर लल्ला पैदा करने पर हुआ है उससे ज्यादा कच्चा तो गुड़िया पैदा करने पर हुआ था। उस बखत तो किसी को मेरा दर्द मेरी परेशानी नजर नहीं आई। ना ही उस बखत किसी को मेरी बिटिया का रोना सुनाई पड़ता था ना उसकी किलकारी।

आप लोगों को बस ये लड़की नजर आती थी लेकिन बेचारी इस नन्ही सी जान को क्या पता लड़का-लड़की का फर्क। मेरी मां ने हमेशा मुझे अपने भाई के समान ही समझा था लेकिन लगता है आपको अपनी माँ से लाड-दुलार ना मिला.. तभी तो आप अपनी खुंदक मेरी नन्ही गुड़िया पर निकालती हो।

दादी सारे बच्चे एक जैसे ही पैदा होते हैं फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की। दर्द भी बराबर होता है और खुशी भी। याद रखियो दादी वंश बेल बहुएं ही बढ़ाती हैं। जब लड़की ना होवेगी तो बहू कहाँ से लाओगे। आज कजरी की दादी सास और सास दोनों कजरी का मुंह देखती रह गईं।

 

 

दादी, मैं अपने दोनों बच्चों को बराबर पालूंगी। एक मां होकर भी अगर मैं खुद ही अपने बच्चों में फर्क करूंगी तो इस दुनिया समाज को क्या दोष देना। दादी की नजरें नीची हो गई थीं और कजरी की सास के चेहरे पर एक मुस्कान उभर आई थी। वो तो आज तक अपने बच्चों के लिए आवाज ना उठा सकी लेकिन कजरी ने आज वो कर दिखाया।

दादी ने फिर डांटते हुए कहा दो अक्षर पढ़ लिए तो अब तू मास्टरनी बन के मुझे ही पढ़ाएगी क्या?? माफ कर दे इस बुढ़िया को लेकिन अभी लल्ला का ध्यान रख।

अगली सुबह जब कजरी उठी तो हैरान थी। गुड़िया दादी सास के पास खेल रही थी और दादी मुस्कुराते हुए उसके मुंह में मुरमुरे के दाने खिला रही थी। गुड़िया भी दादी की ओढ़नी को अपने चेहरे पर डालकर कभी छिप जाती तो फिर ओढ़नी हटा कर हंस पड़ती।

दादी ने आज पहली बार अपनी परपोती को ऐसे खेलते देखा था। उन्होंने गुड़िया को गोद में लेकर उसका माथा चूम लिया।

कजरी दूर खड़ी डबडबाई आंखों से ये नजारा देख रही थी।

सविता गोयल 

 

 

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