घर में आज सभी व्यस्त थे क्योंकि घर की लाडली बेटी रिया को लड़के वाले देखने आ रहे थे। लड़का रिया के दादाजी के ही बहुत अच्छे दोस्त का पोता था। वो एक बहुत बड़ी नामी कंपनी में बहुत अच्छी पोस्ट पर था,इधर रिया भी कुछ कम नहीं थी। रिया भी एक बड़े प्राइवेट बैंक में प्रबंधक के पद पर कार्यरत थी। वेतन भी उसका अच्छा खासा था।बचपन से ही पढ़ाई में होशियार और काफ़ी समझदार थी।
बहुत दिनों से घर में उसकी शादी की बात चल रही थी पर कहीं बात नहीं बनी थी। यहां पूरी उम्मीद थी कि रिश्ता हो जायेगा पर कहीं ना कहीं रिया अपनेआप को इस तरह से सबके सामने आने में सहज महसूस नहीं कर रही थी क्योंकि उसको लग रहा था कि वो भी तो लड़के के समान पढ़ी लिखी है। उसकी ही तरह नौकरी करती है। फिर इस तरह की देखना-दिखाना लड़की के साथ ही क्यों? उसने ये बात अपनी मां से भी कही थी। तब मां ने उसको ये कहकर कि बेटा ऐसा नहीं है लड़के को भी तो तुम्हारे पापा और चाचा देखकर आए हैं समझाने की कोशिश की थी पर ये सब उसकी समझ से बाहर था।
शाम को नियत समय पर लड़का विभोर उसके माता-पिता,चाचा-चाची,दादा-दादी सब आ गए थे। इतने सारे लोगों को देख रिया वैसे भी थोड़ा परेशान हो गई थी। फिर भी वो अपने मन को समझाते हुए किसी तरह सबके सामने आई। सब तो ठीक लग रहे थे पर पता नहीं क्यों विभोर की मां बहुत ही कड़क स्वभाव की लग रही थी। सब लोग बैठे,आपस में थोड़ी बातचीत के बाद विभोर की मां ने रिया से प्रश्न पूछने शुरू किए।
उन्होंने कहा कि हमारे परिवार की कुछ परंपराएं हैं जिनका निर्वाह हम सभी करते हैं। रिया ने भी सिर हिलाकर उनकी बात पर सहमति दी। फिर उन्होंने कहा कि विभोर के प्रमोशन की बात चल रही है हो सकता है कि उसका स्थानांतरण किसी दूसरे बड़े शहर में हो जाए तब उसको नौकरी छोड़नी पड़ सकती है। इस पर रिया ने बहुत ही सधे शब्दों में बोला कि मेरे बैंक की शाखाएं प्रत्येक बड़े शहर में हैं इसलिए वो कहीं भी आराम से ट्रांसफर ले सकती है इसके लिए नौकरी छोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
उसने ये बोला ही था कि विभोर की मां ये सुनकर इतना तुनक गई कि चलो इस पर तो तुम्हें नौकरी नहीं छोड़नी पड़ेगी पर जब तुम दोनों अकेले रहोगे तो तुम्हारे भी काम का समय सुबह से शाम होगा। कभी कभी तुम्हें ऑफिस में आने में देर भी होगी। ऐसे में अगर मेरा बेटा जल्दी आ गया तो कौन इसको समय से चाय कॉफी देगा। इसको तो आदत है ऑफिस से आते ही घर की चाय कॉफी पीने की और सुबह नाश्ते में पराठें खाने की।
वैसे भी हमारे घर में कोई कमी तो है नहीं जो हम सब बातें ताक पर रखकर अपनी बहू से नौकरी करवाएं। रिया जो अब तक सब कुछ चुपचाप सुन रही थी वो अपनेआप पर काबू न रख सकी।
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रिया की नौकरी रिया का आत्मसम्मान थी। उसके खिलाफ़ वो किसी से भी कुछ नहीं सुन सकती थी। रिया ने बोला आंटी जी मेरे को एक मिनट का समय दीजिए। सब लोग हैरान थे कि रिया क्या करने जा रही है?रिया उठी और अपने घर की रसोई से कॉफी बनाने वाली मशीन और आटा लगाने वाली मशीन लेकर आई। अपने सामने रखकर बोली कि आंटी जी वैसे तो ये छोटा मुंह बड़ी बात होगी पर आपको अपने बेटे के लिए बहु नहीं इन सब सामान की जरूरत है। एक लड़की जो खुद भी पढ़ लिख कर पढ़ाई करके अपना एक स्थान बनाती है
वो सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ दे कि उसके पति को शाम की कॉफी या सुबह के पराठें समय से मिल सकें तो हमारा महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार की बात करना बेमानी है। मैंने ये नहीं कहा या कभी सोचा कि मेरी नौकरी मेरे परिवार से बढ़कर है पर ये मेरा अरमान है। मेरी पहचान है। इस पहचान को बनाए रखने के लिए मैने बहुत मेहनत की है। अगर जब परिवार बढ़ाने की बात आयेगी या जहां पर मुझे लगेगा कि मैं नौकरी की वजह से अपने परिवार को समय नहीं दे पा रही।
उस दिन मैं ये नौकरी छोड़ने में एक मिनट नहीं लगाऊंगी पर इस तरह की बातों पर नहीं। ऐसे तो एक लड़की अपने परिवार में पच्चीस छब्बीस साल रहने के बाद दूसरे घर जाती है। वो तो कभी नहीं कहती अपने ससुराल वालों को कि मुझे इस समय खाना खाने की आदत है या इस समय चाय पीने की आदत है तो आप लोग भी मेरी वजह से अपना समय बदलो। आखिर कब तक हम एक लड़की से ही इस तरह के त्याग की उम्मीद करते रहेंगे। ये कहकर रिया क्षमा मांगते हुए वहां से उठकर चली गई। घर के हॉल में चुप्पी सी छा गई। किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि इस तरह का कुछ होगा। किसी को भी रिया के इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी
वहां बैठे विभोर के सभी घर वाले भी चुपचाप वहां से उठने का प्रक्रम करने लगे। पर कहीं ना कही विभोर रिया की बातों से सहमत था। पर अभी कुछ कहना बात को बढ़ाना होती क्योंकि हमारा समाज कितना ही आधुनिक क्यों ना हो जाए पर आज भी हमारे यहां विवाह सिर्फ लड़के लड़की का ही नहीं होता बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है। इस तरह रिश्ते की बात तो बीच में ही रह गई।
उन लोगों के जाते ही रिया की दादी बहुत ही गुस्से में आ गई और रिया को सुनाते हुए बोली कि छोरी थोड़ा जबान को रोक ना सके थी। क्या हो जाता जो उनके सामने चुपचाप सर झुकाकर हां में हां कर देती तो। एक बार शादी हो जाती तो कर लेती फिर अपने मन की। इतना अच्छा रिश्ता घर आकर वापस चला गया। पहले ही बोली थी तेरे मां बाप से कि लड़की जात है इतना ना सिर पर चढ़ाएं पर तब हमारी एक ना सुनी। अब भुगतो नतीज़ा। देखना और कैसे कैसे दिन दिखाएगी ये छोरी।
इधर रिया ने भी ठान रखा था कि वो आज चुप नहीं रहेगी। उसने बोला दादी शादी के बाद कैसे मन की करने की बात करती हो आप? देखा है मैने बुआ के साथ क्या हुआ है और तो और मेरी मां के साथ क्या हुआ है? बुआ की शादी आपने तय कर दी जब उनके एमए के आखिरी साल की परीक्षा reh गई थी। उन्होंने आपसे बहुत कहा कि पूरा कर लें फिर शादी कर देना।
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आपने कहा कि लड़के वाले शादी के बाद परीक्षा दिलवा देंगे। ऐसा कुछ हुआ नहीं क्योंकि उनके ससुराल वाले आगे पढ़ाना तो दूर की बात परीक्षा के लिए भी तैयार नहीं हुए। आपने भी जैसा ससुराल वाले कहें वैसा करो कहकर पल्ला झाड़ लिया। ऐसे ही मां शादी से पहले कितना अच्छा सितार बजाती थी। आज वो सितार कबाड़ की शोभा बढ़ा रहा है।
आप लोग जो ये लड़की को हर समय पराई अमानत और लड़की जात समझकर अपने निर्णय थोपते हो अब किसी ना किसी को तो उसके खिलाफ़ आवाज़ उठानी पड़ेगी। मुझे अच्छे से याद है एक बार जब मेरे हाथ पर तेल गिर गया था और चेहरे पर भी छींटे आए थे तब आपने ये कहा था कि लड़की जात है अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाओ कहीं निशान ना रह जाए। आपको मेरे जलने के दर्द से ज्यादा ये चिंता थी कि कहीं निशान ना रह जाएं। फिर रिया ने कहा कि दादी शायद इसमें आपका दोष नहीं नहीं है क्योंकि आपने अपने बचपन से ऐसा ही होते देखा है।
पर एक बार याद करने की कोशिश कीजिए कि जब आप किशोरावस्था में थी और आप पर भी पाबंदियां लगाई जाती होंगी। तब क्या ये सब रूढ़िवादिता और हर बात में लड़की जात सुनना आपको बुरा नहीं लगता था। सोच कर देखिए घर में आप और आपके भाई ने एक ही आंगन में जन्म लिया है पर आपको हर बात में पराया होने का एहसास कराया जाता हो।
आप बीमार हो या कोई चोट लग जाए तो आपका इलाज़ भी ये कहकर कराया जाता हो कि इसे दूसरे के घर जाना है तो कैसा लगता है। काश हम लड़के और लड़की दोनों को एक समान मानकर परवरिश करते तो शायद किसी लड़की को ससुराल नाम के शब्द से ना तो डर लगता और ना ही कोई दुर्भावना रहती। आज पूरा घर चुप था सिर्फ रिया बोल रही थी। उसकी बातों के आगे आज दादी की भी नहीं चली थी। वातावरण को इतना गंभीर देख दादाजी ने ही हंसते हुए कहा कि चलो जो होता है अच्छे के लिए होता है।
मेरी रिया बिटिया बहुत ही समझदार है और किसने कहा कि कभी तुझे पराई अमानत समझा है। तेरे आने के बाद ही तो बेटा हमारा व्यापार चलने लगा था। फिर उन्होंने कहा कि रिया की दादी तुम ही तो कहती हो कि शादी ब्याह संजोग से होते हैं। जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं। भगवान ने हमारी रिया के लिए भी उसके हिसाब का वर चुन रखा होगा। वो ये कह रहे तो बाहर से आवाज़ आई बिल्कुल ठीक और पते की बात कह रहे हो मेरे दोस्त त्रिलोकी। ये आवाज़ थी विभोर के दादाजी की जो विभोर के साथ आए थे।
उन्होंने कहा कि रिया बिटिया ने कुछ गलत नहीं कहा। हमारा विभोर तो उसकी एक एक बात से सहमत है। रही बात हमारी बड़ी बहू मतलब विभोर की मां की तो वो जानबूझ कर रिया से ऐसे प्रश्न कर रही थी क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि दोनों तरफ से ही कोई गलतफहमी रहे। वैसे भी जीवन दोनों बच्चों ने एक साथ निभाना है। जब मिया- बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी?
उनकी ये बात सुनकर सब जोर जोर से हंसने लगे। एक महीने के बाद दोनों की सगाई की तिथि निकली। आज दादी ही सबसे ज्यादा खुश थी और रिया की बलाएं लेते हुए नहीं थक रही थी। रिया की नज़र उतारते हुए सबके सामने बोली कि मेरी लाडो तूने मेरी आंखें खोल दी बस मैं ये कहना चाहती हूं कि तू पराई अमानत नहीं है बल्कि ये घर हमेशा तेरा है।
शादी के बाद भी ये घर तेरा उतना ही रहेगा जितना पहले था। आज रिया विभोर की सगाई ही नहीं बल्कि दो पीढ़ियों का मिलन भी था। जहां कोई किसी के खिलाफ़ नहीं अपितु एक दूसरे के साथ था।
दोस्तों कैसी लगी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया ना दें।आज भी जहां हम बात इक्कीसवीं सदी की करते हैं पर कहीं ना कहीं लड़के लड़की में फ़र्क करते हैं। अगर बचपन से ही लड़की को भी पराया धन समझकर ना पाला जाए और लड़की जात है ऐसा कहकर भावनाओं को ठेस ना पहुंचाई जाए तो शायद उसके मन भी ससुराल जैसे शब्द के प्रति इतना पूर्वाग्रह नहीं रहेगा।
नोट: कहानी को कहानी की तरह ही लें। कृपा करके दादी को बड़ी जल्दी अक्ल आ गई इस तरह के कमेंट्स ना दें।
डॉ पारुल अग्रवाल,
नोएडा