लड़के वाले भाग -2 – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अभी तक आपने पढ़ा कि हेड मास्टर के पद से रिटायर्ड नरेश जी अपने बड़े बेटे उमेश जो कि फौज में हैं,, के लिए लड़की देखने जा रहे हैं… साथ में पत्नी वीना जी, छोटा बेटा समीर और बड़े भाई साहब नरेश जी भी हैं…. सभी लोग बतायी गयी निर्धारित जगह पर पहुँच लड़की के पिताजी को फ़ोन करते हैं… तभी उधर से वो पांच मिनट में आने का बोलते हैं… वो अपनी स्कूटी से अपने बेटे के साथ सभी को लेने चौराहे पर आते हैं … पर तभी यह क्या होता हैं…

 

अब आगे….

लड़की के पिताजी ज़िनका नाम भुवेश हैं,,सभी को राम राम बोलते हैं…. तभी सभी की नजर उन पर पड़ती हैं उनका एक पैर नहीं था… यह देख सभी अचंभित रह ज़ाते हैं…. बड़े भाई साहब से रहा नहीं जाता… वो बोलते हैं… आपने आने की तकलीफ क्यूँ कि आप बता देते तो हम आ ज़ाते….

जी कोई बात नहीं … आप लोग अपना समय निकालकर आयें… हमारे मेहमान हैं… रास्ता थोड़ा संकरा हैं बस इसलिये आपको लेने आयें हैं…

तो क्य अंकल गाड़ी अंदर नहीं जा पायेगी…. समीर बोला….

हां बेटा… यहां से आप लोगों को थोड़ा तकलीफ होगी ज्यादा दूर नहीं हैं पर पैदल चलना पड़ेगा…

जी कोई बात नहीं … हम गाड़ी यहीं साइड से लगा देते हैं… पैदल चलते हैं सभी… मौसम भी अच्छा हैं… नरेश जी बोले…

गाड़ी साइड से कर सभी लोग बाहर आते हैं … समीर हाथ में मिठाई ले लेता हैं… लेकिन बड़े भाई साहब को चलने में थोड़ा तकलीफ होती हैं… वो लाठी लेकर चल पाते हैं… उनको लाठी लेकर चलता देख भुवेशजी स्कूटी से उतरते हैं,,अपना डंडा हाथ में लिए… जी आप बैठ जाईये स्कूटी पर … मैं पैदल चलता हूँ…

अरे नहीं नहीं…. कैसी बात करते हैं आप…. आप कैसे जा पायेंगे … मैं धीरे धीरे चल लूँगा….

जी , मैं अपाहिज ज़रूर हूँ… पर असहाय नहीं… एक पैर ना होने पर भी अपने सभी काम खुद ही करता आया हूँ…. आपके यहां तो बेटे को भेज दिया था कि कहीं आप लोग मुझे देख अपना मेरे घर आने का ईरादा ही ना बदल दें….

ब्रेव मैन अंकल….आप ऐसी हालत में भी सारे काम खुद करते हैं…उमेश बोला….

पर फिर भी हमें अच्छा नहीं लग रहा… आप गाड़ी से ही चलिये… मुझे समीर सहारा दे देगा…. रमेश जी बोले…

जी,,, आप बड़े हैं… आपकी बात नहीं टालूँगा … जैसा आप कहे …

वीना जी जेठजी से पर्दा करती थी इसलिये घूंघट किये साड़ी को थोड़ा ऊँचा कर रास्ते में किचड़ पानी से बचते हुए चल रही थी… गली बहुत ही संकरी थी… जहां हर तरह के लोग दिख रहे हैं.. झोपड़ी में रहने वाले थे कुछ लोग… कुछ बढ़ई का काम करने वाले… कुछ सिल बनाने वाले… कुछ सब्जी य़ा गोलगप्पे की ठेल लगाने वाले.. बीच बीच में कुछ ठीकठाक घर भी दिखे थे पर वो बात नहीं थी जो नरेश जी और उमेश जी की गेट बंद वीआईपी कोलोनी में थी… सभी लोग एक दूसरे का मुंह देख रहे थे… ऐसा लग रहा था जैसे कहना चाह रहे हो.. कहां आ गए हम…. इतनी गंदी बस्ती में …. नरेशजी का सफेद कुर्ता पैजामा पीछे से किचड़ से जूतों की वजह से गंदा हो चुका था… कई बार वो पीछे मुड़कर अपना कुर्ता देखते…

पीछे से समीर धीरे से बोला… अब देखने का कोई फायदा नहीं पापा… कुर्ते का तो जो होना था सो हो गया…. आगे देखिये बस…. सभी लोग मुंह दबाकर हंसने लगे…. भुवेश जी की फटफटिय़ा स्कूटी आगे आगे चल रही थी बाकी सब पीछे पीछे. …

तभी एक घर के सामने स्कूटी रोकी उन्होने…. घर बहुत ही पुराना ज़र्जर हालत में था … बारिश की वजह से ऐसा लग रहा था कि ये घर अब गिरा ,, तब गिरा …. पुताई तो शायद सालों से नहीं हुई थी घर में …. बाहर एक यहीं कोई 22-23 साल की लड़की आंगन धोने में लगी थी नारियल झाड़ूँ से…. उसके बाल बिखरे हुए… पतले से शरीर की… गोरा रंग… हल्का नीले रंग का सूट पहने बहुत ही मासूम सी प्यारी सी लग रही थी वो लड़की… अभी तक वहां कुछ ठीक लगा तो वो झाड़ूँ लगाती लड़की थी… शायद ये वहीं लड़की हो ज़िसे वो लोग देखने आयें थे…

सभी को गेट के अन्दर आता देख वो लड़की धीरे से झाड़ूँ साइड में रख तेज कदमों से घर के अन्दर चली गयी…..

बाहर आंगन में एक नल लगा था जिसके साथ पाईप जुड़ी थी…. भाई साहब रमेशजी बोले – सभी लोग जूतें किनारे ऊतार दो… हाथ धो लो… वीना जी यहीं चाहती थी… वो चप्पले पहनी थी जो किचड़ से बहुत गंदी हो गयी थी… उन्होने चप्पल और पैर दोनों पाईप के पानी से अच्छे से धोये…. पानी बहुत ही ठंडा था… नरेशजी ने नल के पानी को एक घूंट पी भी लिया था क्यूँकि रास्ते में चलने से प्यास लग गयी थी….

तभी भुवेश जी के पिताजी, भाई साहब और उनकी पत्नी हाथों में आरती की थाली लेकर आयें…उन्होने सभी लोगों को टीका लगाया … उनकी आरती उतारी…. तभी तपाक से समीर बोला… आप लोग आरती क्यूँ उतार रहे हो हमारी… वीना जी ने समीर का हाथ खींचकर उसे पीछे किया….

बेटा… हमारे यहां कोई भी मेहमान आयें हम उसकी टीका लगाकर आरती ज़रूर उतारते हैं चाहे वो मेहमान कोई भी हो… आप लोग संकोच मत कीजिये… ये हमारी परम्परा हैं…

जी,, बहुत अच्छा लगा आपका ये तरीका …. रमेश जी बोले…

चलिये अब अंदर पधारिये … उमेश और समीर ने दादा जी और भुवेश जी के भाई साहब और उनकी पत्नी के पैर छुये … सभी ने अपने पैर पीछे कर लिए…

ये क्या कर रहे हो बेटा… क्यूँ हमें पाप का भागी बना रहे हो… हमारे यहां लड़के वाले पैर नहीं छूते … हम छूते हैं उनके… लड़की के ताऊ जी बोले….

जी,, आप बड़े हैं हमसे… हमारा कर्तव्य हैं आपके पैर छूने का…. उमेश धीरे से बोला…

बेटा आगे से मत छूना …. हमारे यहां नहीं छूते. …

इतना बोल भुवेश जी ने सभी को अंदर बैठने को कहा …

अंदर पुराने ज़माने के सोफे थे जो हिलडुल रहे थे… सभी लोग ठीक से देखकर कि कहीं सोफे अंदर ही ना घुसते चले जाए ,,, बैठ गए…. कि तभी सामने से एक नाक बहाता बच्चा कूदता हुआ आया और समीर की गोद में बैठ गया… पर यह क्या ये बच्चा तो…..

शेष आगे….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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