सोमनाथ जी का पुरे घर मे दबदबा सा था। चार पुत्र चार बहुये, दो बेटी दामाद, नाती पोते सब बडे हो चुके थे।एक भरा पुरा परिवार था,आज भी रसोई मे खाना सोमनाथ जी से पूछकर ही बनाया जाता था,सोमनाथ जी के डर से उनकी पत्नी का भी भरपूर मान सम्मान मिलता था।
घर के सभी निर्णय सोमनाथ जी लेते थे बेटे पिता से पुछे बिना कोई भी काम नही करते चाहे वह खेतो से सम्बंधीत्त हो या बच्चो की शादी ब्याह की।
सोमनाथ जी के घर के बाहर एक बैठ्की थी उसमे उनके दोस्त गांव के बडे बुढे सब आते भीतर खबर जाती चाय की कपे थाली मे सजकर आ जाती थी,सोमनाथ जी बडे ही गर्व से कहते इस घर मे मुझे सब बहुत मानते हैं मेरे बेटे बहू सब आज्ञाकारी हैं।
सोमनाथ जी की अब धीरे धीरे उम्र ढल रही थी कमर थोडी झुक सी गई थी हाथो मे बिना लाठी के चल न पाते थे शरीर ने बिमारियों का घर बना लिया था, तो उनकी पत्नी भी बिमार रहने लगी थी, बेटे माँ बाबूजी के इलाज मे हो रहे खर्चे से तंग होते दिखते थे सब कुछ सोमनाथ जी का फिर भी बेटे अब उनकी हर बात से चिढने लगे थे बेटे आपस मे लड़ते थे बात बात पर ,बहुये काम को लेकर सास ससुर के सेवा को लेकर झगडे होते,कोई भी उनकी सेवा नही करना चहता,मुँह बनाकर चाय ,खाना देने आती।
सोमनाथ जी एक दिन बोले अरे अपनी सास को जरा उठाकर खाना दे दो उसे कोई सुध बुध नही हैं खांस खांस के उसकी हालत खराब हैं तो बडी बहू बोल पड़ी”बाबूजी मेरे पास समय नही उन्हे उठाने का जब उठेंगी तो खा लेन्गी,नही तो आप उठा लो”
सोमनाथ जी बडी बहू की बातो को सुनकर अचंभित हो गए यह वही बहू हैं जो जी बाबूजी के बैगेर बात नही करती थी,उम्र का येह खेल हैं आज शरीर कमजोर हो गया तो इज्जत भी नही, सोमनाथ नाथ जी पत्नी को उठाकर खाना खाने को बोल रहे थे उनकी बुखार शरीर से करह्ते हुए उठी खाने को देखते ही बोल पड़ी “मुँह मे स्वाद नही हैं, आज तो पनीर की सब्जी बनी थी”
सोमनाथ जी ने छोटी बहू को अवाज लगाते हुए कहा”बहू तुम्हारी सास को पनीर की सब्जी देना भुल गई बडी बहू,जरा ले आओ”
ससुर की अवाज सुनते ही बहुये आपस मे बोलने लगी बाप रे बाप इनका एक दिन पनीर के बैगेर खाया नही जाता ज्यादा पनीर नही था सो नही दी लेकिन इतनी यह बुड्ढों बूढ़ी लालची हैं की पुछो मत!
सोमनाथ जी और उनकी पत्नी के कानो तक अवाज जा रही थी दोनो की आंखे छलछल थी।
बुढापा तो एक दिन सबको आयेगा जब आयेगा तब उन्हे समझ आयेगा बुढापा का दर्द खैर दोनो ने चुपचाप खाना खाकर सो गए लेकिन नींद दोनो के आंखो मे न थी।
सुबह सुबह सभी बेटे बहुओ को बुलाकर सोमनाथ जी ने एक फैसला सुनाया “मैं अपनी संपति का बंटवारा करना चहता हुँ लेकिन मेरी संपति को पाने का अधिकार उन्हे ही होगा जो हमे भी स्वीकार करे मतलब तुम सभी भाईयो मे संपति के बंटवारे के साथ हमारा भी बंटवारा होगा सभी मेरे लिए समान हो हम तीन तीन महिने सभी के पास रहेंगे जिन्हे स्वीकार होगा उन्हे मेरे संपति मे अधिकार मिलेगा जिन्हे स्वीकार नही उन्हे नही।
जिनके पास हम तीन महीने रहेंगे उन्हे हमारी सारी सुख् सुविधाओ का ख्याल रखना पडेगा,अब तुम सब अपना फैसला सुनाओ।
सभी सोमनाथ जी के इस फैसले को सुनकर आश्चर्य थे क्युंकि सोमनाथ जी बहुत गुस्सते थे अगर कोई अलग रहने की बात करता था तो।
सोमनाथ जी उनकी पत्नी की तरफ देखते हुए बोले मुझे यही सही लगा घर मे हमारी हालातो को देखकर , बुढापा धीरे धीरे अभिशाप न बन जाए इसलिए मैने यह फैसला लिया उनकी पत्नी हमेशा की तरह उनसे सहमत थी।
#बुढापा
स्वरचित
आराधना सेन