लालच और अहंकार   – बेला पुनीवाला

 अनिकेत बहुत ही मेहनती लड़का था, अपने पापा के अचानक से चले जाने के बाद उसी ने ही अपने पापा का सारा बिज़नेस संँभाला था और साथ-साथ अपने पापा का कर्ज़ा भी चुका रहा था। मगर किस्मत हर बार साथ नहीं देती,

जैसे कि अनिकेत के अच्छे खासे बिज़नेस में अचानक से बहुत बड़ा नुक्सान हो गया, अचानक से एक दिन अनिकेत की फैक्ट्री में आग लग गई, उसे बहुत ही बड़ा नुक्सान हो गया, ऊपर से अनिकेत को अपने पापा  का कर्ज़ा भी चुकाना बाकि था।

अनिकेत के अपनों ने भी उस वक़्त मुँह फेर लिया, उस वक़्त अनिकेत डिप्रेशन में आ गया, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि वह अब क्या करे ? और फ़िर से शुरुआत कैसे करे ? क्योंकि नया बिज़नेस शुरू करने के लिए भी उसे बहुत से पैसो की ज़रूरत थी, मगर अब उसके पास अपने घर के अलावा और कुछ भी बाकि बचा नहीं था।

उस वक़्त अनिकेत को ख़याल आया, कि अपना ये घर जो उसके पापा के नाम था, उसे बेच के नया बिज़नेस शुरू करेगा। और कुछ वक़्त के लिए किसी भाड़े के मकान में रहने चला जाएगा। बिज़नेस से पैसा आने के बाद फ़िर से वह अपना घर खरीद लेगा। 

किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। अनिकेत की एक बहन थी, जिसका नाम सुधा था और उसकी भी शादी हो चुकी थी और वह अपने पति और बच्चों के साथ किसी दूसरे शहर में रहती थी। अब अनिकेत का घर उसके पापा के नाम था, अनिकेत की माँ अनिकेत के साथ ही रहती थी।

जब अनिकेत ने घर बेचने के कागज़ात बनवा दिए, तब ये बात अनिकेत की बहन के कानो तक पड़ी। अनिकेत से सुधा ४ साल बड़ी थी, तो सुधा को बुरा लग गया, कि छोटे भाई ने पापा का घर बेचने का फ़ैसला उस से पूछे बिना ही ले लिया। सुधा का पति मामूली सी जॉब करता था, पैसो की ज़रुरत किसे नहीं होती ?

सुधा के पति विकास ने सुधा को कहा, कि ” अच्छा मौक़ा है, अनिकेत घर बेच रहा है, तुम्हारे पापा की बड़ी हवेली है, अच्छा खासा पैसा मिलेगा, तुम भी अनिकेत से इस वक़्त अपना हक़ का पैसा माँग लो, हमारी ज़िंदगी में भी कुछ कम तकलीफ नहीं है,

थोड़े बहुत पैसे आएँगे, तो बच्चों के नाम कर देंगे और उनका पढाई-लिखाई का खर्चा निकल जाएगा और पैसे बचे तो तुम्हें ही काम आएंँगे ना ? ” विकास की ऐसी बात सुनकर सुधा का मन भी ललचा गया, लालच और अहंकार में आकर पहले तो सुधा ने अनिकेत को इग्नोर करना शुरू कर दिया,

उसके बाद अनिकेत के फ़ोन का जवाब भी नहीं देती, तब जाके अनिकेत खुद सुधा के घर चला गया, ये जानने के लिए, कि ” आख़िर बात क्या है ? सुधा दीदी फ़ोन क्यों नहीं उठाती ? उस से बात क्यों नहीं करती ?


” अनिकेत सुधा दीदी के घर गया, तब सुधा ने अपने भाई को पानी तक  नहीं पूछा, ऊपर से कहने लगी, कि ” आज तक आप ने हमारे लिए किया ही क्या है ? नाहीं मेरे बच्चों को या मुझे कुछ दिया और नाहीं मेरे पति को अपने बिज़नेस में लगाया, जबकि आप जानते थे,

कि उन दिनों विकास को नौकरी की कितनी ज़रूरत थी, जब मैं प्रेगनेंट थी। ( सुधा को ये पता नहीं था, कि फ़िर जब उसके पति विकास की नौकरी लगी थी, वह अनिकेत ने ही लगवाई थी और तब से उसके बच्चों की स्कूल फीस भी अनिकेत ही भरता था, जो आज तक विकास ने सुधा से छुपाया था। )

अनिकेत कुछ सफाई देता, उस से पहले ही सुधा ने अनिकेत को घर से बाहर निकल जाने को कहा, अनिकेत को सब से बड़ा धक्का फैक्टरी के नुक्सान से ज़्यादा सुधा दीदी की ऐसी बातों से लगा।

( दरअसल सुधा का पति विकास पहले से ही थोड़ा कामचौर, अहंकारी और धोखेबाज़ था, इस बात की भनक अनिकेत को हो गई थी, विकास अपने आप को  समज़दार समज़ता था मगर अपने नाम की तरह उसने अपने जीवन में कभी विकास नहीं किया था। इसीलिए अनिकेत ने विकास को अपने बिज़नेस से दूर ही रखा था, और अपनी बहन की खातिर पिछले हाथ से अपनी बहन की मदद के लिए अनिकेत विकास को पैसे दे दिया करता था। विकास के साथ रहते-रहते सुधा भी उसके जैसी ही हो गई थी। ) 

फीर अनिकेत की माँ के कहने पे अनिकेत ने सुधा दीदी को पेपर्स साइन के लिए सीधे कोर्ट में ही बुला लिया। कोर्ट में आकर भी सुधा ने साफ़-साफ़ साइन करने से इंकार कर दिया। सुधा ने अनिकेत से उसकी प्रॉपर्टी में से आधा हिस्सा माँगा। जब्कि प्रॉपर्टी अनिकेत के पापा के नाम थी, तो उस प्रॉपर्टी में से एक हिस्सा अनिकेत की माँ का भी था,

मगर सुधा को उस वक़्त पैसो का नशा चढ़ा हुआ था, वह सब के बिच बिना कुछ सोचे-समझे गाली-गलोच पे उतर आई, अनिकेत से ये सब बर्दास्त नहीं हुआ, इसलिए उसने आखिर में सुधा दीदी से कहा, कि अगर आप को पैसा चाहिए,

तो अब आपको हमारे साथ सब रिश्ता तोडना होगा, क्योंकि अब आपकी ऐसी गाली-गलोच सुनने के बाद मैं या माँ आपके साथ कोई रिश्ता रखना नहीं चाहते। उस वक़्त भी सुधा की आँखों पे सिर्फ़ पैसो की पट्टी चढ़ी हुई थी, सुधा ने बिना सोचे समझे हांँ कह दिया। प्रॉपर्टी में से आधा पैसा अब सुधा के नाम हुआ

और आधा अनिकेत के नाम। बुरा वक़्त आने पे कौन अपना और कौन पराया, पता चल ही जाता है। उस दिन के बाद अनिकेत और सुधा ने एक दूसरे का चेहरा नहीं देखा। लेकिन अनिकेत को बिज़नेस के लिए अब भी और पैसो की ज़रूरत थी, इसलिए वह थोड़ा परेशान रहता था। 


उस वक़्त उसकी पत्नी अनन्या ने उसे बड़ा सपोर्ट किया, उसी ने अनिकेत को हिम्मत दी, कि ” फ़िक्र मत करो, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। कान्हाजी पे भरोसा रखो। ” अनन्या ने अपने मायके के ज़ेवर और पैसे निकालकर अनिकेत को दिए और कहा,

कि इसे बेचकर अपना नया बिज़नेस शुरू करो, अनिकेतन ने पहले तो अनन्या के ज़ेवर और पैसे लेने से इंकार कर दिया, कि इसे मैं कैसे ले सकता हूँ ? इस पे तो सिर्फ तुम्हारा ही अधिकार है और इस ज़ेवर और पैसो में तुम्हारे माँ-पापा का अशीर्वाद भी तो है।

तुम इसे अपने पास रखो, मैं कुछ ना कुछ ज़रूर कर लूंँगा। मगर अनन्या नहीं मानी, उसने ज़िद्द करके अपने ज़ेवर अनिकेत के हाथों बिकवा दिए, उस वक़्त अनिकेत ने अनन्या से वादा किया, कि जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी मैं तुम्हें इस से भी अच्छे ज़ेवर खरीद के दूंँगा। 

एक तरफ़ अनिकेत ने मन लगाकर नया बिज़नेस शुरू किया। जिस में काफ़ी पैसा निकल गया, ऊपर से रोज़ का घर का ख़र्चा वो अलग। अनन्या ने अनिकेत का हाथ बटाने के लिए घर में बच्चों को टूशन क्लास पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के बाद अनिकेत का नया बिज़नेस भी अच्छे से चल पड़ा।

अनिकेत को थोड़ा अच्छा लगा, कि चलो अब सब ठीक हो रहा है। कुछ ही वक़्त में अनिकेत ने अनन्या को नए ज़ेवर दिला दिए और नया घर भी खरीद लिया। आख़िर मेहनत का फल अच्छा ही मिलता है। 

लेकिन उस तरफ अनिकेत की बहन जिसने गाली-गलोच देकर अपने ही भाई से पैसे माँगे थे और हर रिश्ता अनिकेत से तोड़ के चली गई थी, आज फ़िर से वही बहन अनिकेत के घर आकर उससे माफ़ी मांँग रही थी और अपने किए पे शर्मिंदा थी।

सुधा का पति विकास बहुत से पैसे जुए में हार गया और शराब की लत की वजह से नौकरी भी चली गई थी। अब दोनों के पास खाने के पैसे भी नहीं रहे थे। इसलिए सुधा और विकास के पास अब एक ही रास्ता बचा था, अपने भाई अनिकेत के पास वापस लौट आना। विकास को भी अपनी गलती का एहसास हो चूका था, अपने अहंकार में आकर दोनों ने पैसो के साथ-साथ रिश्तों को भी खो दिया था। 

अनिकेत ने कभी भी अपने और सुधा दीदी के बच्चों में फ़र्क नहीं किया था, विकास को अनिकेत ने फ़िर से अच्छी नौकरी पे लगा दिया, सुधा के बच्चों का स्कूल में दाखिला करा दिया और सुधा भी अब अनन्या के जैसे बच्चों को टूशन क्लास पढ़ाने लगी।

फ़िर से सब ठीक हो गया। अनिकेत का दिल बड़ा था इसलिए उसने सुधा दीदी को माफ़ तो कर दिया, लेकिन अब भी अनिकेत के दिल में वह बात रह गई थी, जो सुधा ने उसके साथ उसके बुरे वक़्त में किया था इसलिए अनिकेत ने एक इंसान होने की ख़ातिर उसकी मदद तो कर दी मगर अब अनिकेत के दिल में सुधा और विकास के लिए पहले सा प्यार भी नहीं रहा था।  

तो दोस्तों, अगर सुधा और विकास ने अनिकेत के साथ अहंकार और लालच में आकर बुरा बर्ताव नहीं किया होता, तो आज अनिकेत दिल से सारे रिश्तें निभा रहा होता।   

#अहंकार  

 – बेला पुनीवाला

                                           

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